कमाल अमरोही गीतकार शायर लेखक की जीवनी

 कमाल अमरोही भारतीय सिनेमा के उन महान शिल्पकारों में से एक थे, जिन्होंने अपने लेखन, निर्देशन और कविताओं से सिनेमा को नए आयाम दिए। उनका जन्म 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था। उनका असली नाम सैयद आमिर हैदर कमाल नकवी था, लेकिन फिल्म जगत में उन्हें कमाल अमरोही के नाम से पहचाना गया।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा - कमाल अमरोही का प्रारंभिक जीवन संघर्षमय था। उनके पिता चाहते थे कि वह पारिवारिक संपत्ति की देखभाल करें, लेकिन कमाल का दिल लेखन और फिल्मों की दुनिया में था। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से फारसी और उर्दू में स्नातक किया। बचपन में ही उन्होंने उर्दू में कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं और फिल्मों में काम करने का सपना देखा था।

फिल्मी करियर- कमाल अमरोही का फिल्मी सफर 1938 में कहानी लेखक के रूप में शुरू हुआ। उन्होंने "जेलर" (1938) और "छलिया" (1938) में काम किया। 1949 में, उन्होंने अपने निर्देशन करियर की शुरुआत फिल्म "महल" से की, जो एक सुपरहिट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने "दायरा" (1953), "पाकीज़ा" (1972), और "रज़िया सुल्तान" (1983) जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया। "मुगल-ए-आज़म" (1960) के संवाद लिखने के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।यह भी पढ़ें

कमाल अमरोही स्टूडियो-मीना कुमारी ने स्टूडियो बनाने के लिए 15 एकड़ ज़मीन खरीदी थी,बाद में कमाल अमरोही से शादी करके उन्हें गिफ्ट करदी थी ,1958 में, कमाल अमरोही ने "कमाल अमरोही स्टूडियो" की स्थापना की। यह स्टूडियो 15 एकड़ में फैला हुआ था और इसमें फिल्म निर्माण के सभी पहलुओं को समाहित किया गया था। इस स्टूडियो में कई मशहूर कलाकारों और तकनीशियनों ने काम किया और इसे भारतीय सिनेमा के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है।


व्यक्तिगत जीवन कमाल अमरोही का निजी जीवन भी काफी दिलचस्प और संघर्षमय रहा। उन्होंने तीन शादियाँ कीं। उनकी पहली पत्नी बिल्किस बानो, दूसरी पत्नी मेहमूदी और तीसरी पत्नी मीना कुमारी थीं। मीना कुमारी के साथ उनका संबंध काफी विवादित रहा। उनके दो बेटे, शंदार अमरोही और ताजदार अमरोही, और एक बेटी रुखसार अमरोही हैं। कमाल अमरोही के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उन्होंने हर मुश्किल का सामना किया और सिनेमा में अपना नाम बनाया।यह भी पढ़ें

जीवन परिचय 

नाम -  सैयद आमिर हैदर कमाल नकवी
उपनाम -स्थान -कमाल अमरोही (मीना  कुमारी का दिया नाम "चन्दन ")
जन्म तिथि - 17 जनवरी 1918
जन्म स्थान - अमरोहा, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम- 
विवाह - उन्होंने तीन शादियाँ कीं। उनकी पहली पत्नी बिल्किस बानो, दूसरी पत्नी मेहमूदी और तीसरी पत्नी मीना कुमारी थीं।
शिक्षा -
संतान-बेटे -  शानदार अमरोही  (फिल्म निर्देशक) और ताजदार अमरोही (फिल्म निर्देशक)
बेटी - रुखसार अमरोही (लेखिका)
भाई-बहन-भाई -जमाल अमरोही (असिस्टेंट डायरेक्टर ,प्रोडक्शन मैनेजर )
अन्य संबंध-चचेरे भाई - जौन एलिया और रईस अमरोही (पाकिस्तानी शायर व् लेखक)
मृत्यु - 11 फरवरी 1993 (आयु 75) बॉम्बे, महाराष्ट्र, भारत

मीना कुमारी के साथ पहली मुलाकात- कमाल अमरोही और मीना कुमारी की प्रेम कहानी एक अद्भुत मोड़ पर शुरू हुई थी। कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को अपनी फिल्म 'अनारकली' के लिए साइन किया था। हालांकि, यह फिल्म पूरी नहीं हो पाई क्योंकि प्रोड्यूसर इस फिल्म का बजट कम रखना चाहते थे, जो कमाल को पसंद नहीं आया। इस दौरान एक हादसे में मीना कुमारी के चोट लग गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।


अस्पताल में पहली मुलाकात -कमाल अमरोही घायल मीना कुमारी को देखने पहली बार अस्पताल पहुंचे। तब मीना कुमारी की छोटी बहन ने उन्हें बताया कि आपा तो मौसम्बी का जूस नहीं पी रहीं हैं। लेकिन कमाल के सामने मीना कुमारी ने एक झटके में जूस पी लिया। कमाल हर हफ्ते मीना कुमारी को देखने मुंबई से पूना आने लगे।

किताबों और खतों की कहानी -अस्पताल में रोज-रोज मिलने के बाद, कमाल और मीना की दोस्ती और भी गहरी हो गई। दोनों ने रोजाना एक-दूसरे को खत लिखने का फैसला लिया। मीना कुमारी के पिता को यह नजदीकियां रास नहीं आ रही थीं। कमाल पहले ही दो शादियां कर चुके थे और उनके तीन बच्चे भी थे। लेकिन मीना कुमारी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था।

खतों का सिलसिलामीना कुमारी अपने एक्सीडेंट के बाद वॉर्डन रोड पर स्थित एक मसाज क्लिनिक पर रोज जाती थीं। उनके पिता कार से दो घंटे के लिए उन्हें छोड़ जाया करते थे। उस समय का उपयोग मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच खतों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता था। इन खतों में दोनों ने अपने दिल की बातें साझा कीं और एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया।

नजदीकियों का बढ़ना -खतों के माध्यम से दोनों की नजदीकियां और भी बढ़ती गईं। मीना कुमारी के पिता को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया, लेकिन मीना कुमारी ने अपने प्रेम को प्राथमिकता दी। दोनों का प्यार अब एक मजबूत बंधन में बदल चुका था, जिसे किसी भी प्रकार की परिस्थिति हिला नहीं सकती थी।

निकाह की तैयारी- 14 फरवरी 1952 को, दोनों बहनें पिता के छोड़ने के बाद कमाल अमरोही के पास पहुंचीं। काजी पहले से ही तैयार थे, और उन्होंने पहले सुन्नी रवायत से और फिर शिया रवायत से निकाह करवाया। इस तरह, मीना कुमारी और कमाल अमरोही ने अपने प्यार को एक नई दिशा दी।

प्रेम और संघर्ष का सफर -मीना कुमारी और कमाल अमरोही की शादी ने कई उतार-चढ़ाव देखे। दोनों का प्यार कई मुश्किलों से गुजरा, लेकिन उनकी प्रेम कहानी अमर हो गई। 1964 में, दोनों का अलगाव हो गया, लेकिन इस बीच, कमाल अमरोही ने 'मुगले आजम' फिल्म के संवाद लिख कर अपने लेखन का जलवा बनाए रखा और इस फ़िल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।यह भी पढ़ें


प्रमुख पुरस्कार और सम्मान

1961-फिल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए  "मुगल-ए-आज़म" (1960)
1972 - फिल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए नामांकित: "पाकीज़ा" (1972)



कमाल अमरोही की शायरी 

1 - गीत 

मौसम हे आशिकाना 

ए कहीं से उनको ऐसे में ढूंढ लाना 
कहना के रुत जवान हे और हम तरस रहे हैं 
काली घटा के साये बिरहँ को डस रहे हैं 
डर हे न मार डेल सावन का क्या ठिकाना 
मौसम है आशिकाना
सूरज कहीं भी जाये, तुम पर ना धूप आये
तुमको पुकारते हैं, इन गेसूओं के साये
आ जाओ मैं बना दूँ, पलकों का शामियाना

मौसम है आशिकाना
फिरते हैं हम अकेले बाँहों में कोई लेले 
आखिर कोई कहाँ तक तन्हाईयो से खेले 
दिन होगये हैं ज़ालिम रातें क़ातिलाना 

मौसम है आशिकाना
ये रात ये ख़ामोशी ये ख्वाब से नज़ारे 
जुगनू हैं या ज़मीं पर उतरे हुए हैं सितारे 
बे ख्वाब हैं मेरी आँखें मदहोश हे ज़माना 

2 - गीत 

यूँही कोई मिल गया था, यूँही कोई मिल गया था

सरे राह चलते चलते, सरे राह चलते चलते
वहीं थमके रह गई है, वहीं थमके रह गई है
मेरी रात ढलते ढलते, मेरी रात ढलते ढलते

जो कही गई है मुझसे, जो कही गई है मुझसे
वो ज़माना कह रहा है, वो ज़माना कह रहा है
के फ़साना
के फ़साना बन गई है, के फ़साना बन गई है
मेरी बात टलते टलते, मेरी बात टलते टलते

यूँही कोई मिल गया था, यूँही कोई मिल गया था
सरे राह चलते चलते, सर-ए-राह चलते चलते 

शब-ए-इंतज़ार आखिर, शब-ए-इंतज़ार आखिर
कभी होगी मुक़्तसर भी, कभी होगी मुक़्तसर भी
ये चिराग़
ये चिराग़ बुझ रहे हैं, ये चिराग़ बुझ रहे हैं
मेरे साथ जलते जलते, मेरे साथ जलते जलते

ये चिराग़ बुझ रहे हैं, ये चिराग़ बुझ रहे हैं 
मेरे साथ जलते जलते, मेरे साथ जलते जलते

यूँही कोई मिल गया था, यूँही कोई मिल गया था
सर-ए-राह चलते चलते, सर-ए-राह चलते चलते

3 - गीत 

ठाड़े रहियो ओ बाँके यार रे ठाड़े रहियो
ठाड़े रहियो 

चाँदनी रात बड़ी देर के बाद आई है
ये मुलाक़ात बड़ी देर के बाद आई है
आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के बाद
आज की रात बड़ि देर के बाद आई है

ठाड़े रहियो ओ बाँके यार रे ठाड़े रहियो
ठाड़े रहियो 

ठहरो लगाय आऊँ, नैनों में कजरा
चोटी में गूँद लाऊँ फूलों का गजरा
मैं तो कर आऊँ सोलह श्रृंगार रे 
ठाड़े रहियो

जागे न कोई, रैना है थोड़ी
बोले छमाछम पायल निगोड़ी बोले
निगोड़ी बोले
अजी धीरे से खोलूँगी द्वार रे
सैयाँ धीरे से खोलूँगी द्वार रे
मैं तो चुपके से
अजी हौले से खोलूँगी द्वार रे
ठाड़े रहियो

Conclusion:-

कमल अमरोही -एक सफल गीतकार, लेखक और फिल्मकार

कमाल अमरोही एक महान गीतकार, निर्देशक और लेखक थे। उन्होंने अपने करियर में कई उत्कृष्ट फिल्में बनाई और भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी लेखनी और निर्देशन में गहराई और संवेदनशीलता की झलक मिलती थी। उनकी कृतियों ने सिनेमा प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया और आज भी उनकी यादें जीवित हैं। कमाल अमरोही का योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमिट रहेगा।यह भी पढ़ें





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