गुलज़ार साहब, जिनका वास्तविक नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है, का जन्म 18 अगस्त 1934 को दीना, पंजाब, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मक्खन सिंह कालरा और माता का नाम सुजान कौर था। गुलज़ार साहब के जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया और उनकी सौतेली माँ ने उन्हें अच्छी तरह से नहीं पाला। इसलिए, उन्होंने अपना अधिकांश समय अपने पिता की दुकान पर बिताया। गुलज़ार का परिवार भारत विभाजन के बाद दिल्ली चला आया और उन्होंने सब्जी मंडी क्षेत्र में बस गए। गुलज़ार ने स्कूल की पढ़ाई में अधिक रुचि नहीं दिखाई और वे इंटरमीडिएट में फेल हो गए।
FAQ
1-गुलजार ने अपना नाम क्यों बदला?
2-Why did Gulzar change his name?
Ans- शायर , गीतकार, कवि अपना नाम ज़्यादा सुन्दर और आसान बनाने के लिए अक्सर उपनाम (तखल्लुस ) या PEN NAME रख लेते हैं,इससे उन्हें पहचान हासिल करने और मशहूर होने में मद्दद मिलती हे
3-What is Gulzar real name?
Ans. वास्तविक नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है
साहित्य और लेखन में रुचि
बचपन से ही, गुलज़ार साहब को पढ़ने का शौक था। उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के लेखन ने गहराई से प्रभावित किया। गुलज़ार साहब का साहित्यिक करियर तब शुरू हुआ जब उनकी रचनाएँ पाकिस्तानी पत्रिकाओं में छपने लगीं। "फुनून" पत्रिका के संपादक अहमद नदीम क़ासमी ने उन्हें प्रोत्साहित किया और मार्गदर्शन दिया, जिससे गुलज़ार साहब ने उन्हें अपना "बाबा" या पितातुल्य माना यह भी पढ़ें
जीवन परिचय
नाम - सम्पूर्ण सिंह कालरा
उपनाम - उन्होंने अपना उपनाम ‘गुलज़ार दीनवी’ रख लिया था। हालांकि, बाद में उन्होंने इसे बदलकर सिर्फ़ ‘गुलज़ार’ रख लिया।
जन्म तिथि -18 अगस्त 1934
जन्म स्थान -दीना, पंजाब, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान)
पिता का नाम- मक्खन सिंह कालरा
माता का नाम- सुजान कौर
विवाह - 1973 में उनकी शादी राखी से हुई। शादी के समय दोनों अपने करियर के शिखर पर थे।
अफेयर्स/गर्लफ्रेंड्स - मीना कुमारी
संतान - एक बेटी मेघना गुलज़ार है, जो एक सफल फिल्म निर्देशक हैं। मेघना ने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से फिल्म निर्माण में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है और कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया है।
शिक्षा -इंटरमीडिएट में फेल
धर्म - सिख धर्म
घर पता - पंचशील सोसाइटी, नरगिस दत्त रोड, पाली हिल रोड, बांद्रा पश्चिम, मुंबई - 400050
गुलज़ार साहब की प्रकाशित पुस्तकें
1- त्रिवेणी
2-पंद्रह पांच पचहत्तर
4-पुखराज
5-पाजी नज़्में
विवाद और चुनौतियाँ
गुलज़ार साहब का जीवन भी विवादों से अछूता नहीं रहा। 1975-77 के आपातकाल के दौरान, उनकी फिल्म "आंधी" विवादास्पद हो गई क्योंकि इसका नायक का चरित्र तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलता-जुलता था। 2010 में, एक कार्यक्रम में लेखक चेतन भगत के साथ हुए विवाद ने भी सुर्खियाँ बटोरीं।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
1972: "कोशिश" के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा।
1991: "लेकिन" के गीत "यारा सिली सिली" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
1996: "माचिस" को संपूर्ण मनोरंजन प्रदान करने वाली सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म।
फिल्मफेयर पुरस्कार:
1975: "आंधी" के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म क्रिटिक्स पुरस्कार।
1976: "मौसम" के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक।
1978: "घरोंदा" के गीत "दो दीवाने शहर में" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
1980: "गोलमाल" के गीत "आनेवाला पल जाने वाला है" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
1981: "थोड़ी बेवफाई" के गीत "हजार राहें मुड़ के देखी" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
1984: "मासूम" के गीत "तुझसे नाराज नहीं जिंदगी" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
1990: "उस्ताद अमजद अली खान" के लिए सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र।
1992: "लेकिन" के गीत "यारा सिली सिली" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
1999: "दिल से" के गीत "छैय्या छैय्या" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
2003: "साथिया" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
2011: "इश्किया" के गीत "दिल तो बच्चा है जी" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
2013: "जब तक है जान" के गीत "छल्ला" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार।
अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर)
2008: "स्लमडॉग मिलियनेयर" के गीत "जय हो" के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल गीत।
ग्रैमी पुरस्कार:
2010: "स्लमडॉग मिलियनेयर" के गीत "जय हो" के लिए मोशन पिक्चर, टेलीविजन या अन्य दृश्य मीडिया के लिए सर्वश्रेष्ठ गीत।
साहित्य अकादमी पुरस्कार:
2002: उर्दू में लघु कथाएँ "धुआँ" के लिए।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार
2013: भारतीय फिल्म उद्योग में उनके कवि, गीतकार और फिल्म निर्देशक के रूप में योगदान के लिए।
प्रमुख कार्य और उपलब्धियाँ
गुलज़ार साहब ने कई महत्वपूर्ण फिल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें "आंधी", "मौसम", "गुड्डी", "खामोशी", "गोलमाल", "माचिस", "दिल से", "साथिया" और "स्लमडॉग मिलियनेयर" शामिल हैं। उनके गीतों में गहरे भावनात्मक और काव्यात्मक तत्व होते हैं, जिन्हें किशोर कुमार, लता मंगेशकर, और आशा भोसले जैसे महान गायकों ने गाया है।
गुलज़ार साहब ने 1982 में शेक्सपियर के नाटक "द कॉमेडी ऑफ एरर्स" पर आधारित फिल्म "अंगूर" का निर्देशन किया। उन्होंने टीवी धारावाहिकों का भी निर्देशन किया, जिनमें "मिर्ज़ा ग़ालिब" और "तहरीर मुंशी प्रेमचंद की" शामिल हैं।यह भी पढ़ें
गुलज़ार साहब की ग़ज़लें और नज़्मे
1-ग़ज़ल
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बातें करते हैं तारे
रात काटे कोई किधर तन्हा
डूबने वाले पार जा उतरे
नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हम ने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा
2-ग़ज़ल
एक पर्वाज़ दिखाई दी है
तेरी आवाज़ सुनाई दी है
सिर्फ़ इक सफ़्हा पलट कर उस ने
सारी बातों की सफ़ाई दी है
फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है
आग में क्या क्या जला है शब भर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है
3-ग़ज़ल
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
4-नज़्म
किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
बड़ी हसरत से तकती हैं
जो क़द्रें वो सुनाती थीं
कि जिन के सेल कभी मरते नहीं थे
वो क़द्रें अब नज़र आती नहीं घर में
जो रिश्ते वो सुनाती थीं
वो सारे उधड़े उधड़े हैं
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ़्ज़ों के मअ'नी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे तुंड लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मअ'नी नहीं उगते
बहुत सी इस्तेलाहें हैं
जो मिट्टी के सकोरों की तरह बिखरी पड़ी हैं
गिलासों ने उन्हें मतरूक कर डाला
ज़बाँ पर ज़ाइक़ा आता था जो सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है पर्दे पर
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रेहल की सूरत बना कर
नीम सज्दे में पढ़ा करते थे छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और
महके हुए रुकए
किताबें माँगने गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उन का क्या होगा
वो शायद अब नहीं होंगे!
Conclusion:-
गुलज़ार साहब का योगदान भारतीय सिनेमा और साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय और अमूल्य है। उन्होंने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति, भावनात्मक गहराई और सामाजिक चेतना से लोगों के दिलों को छुआ है। उनकी रचनाएँ हमेशा से ही एक अलग पहचान रखती हैं, चाहे वह गीत, कविता, कहानी या फिल्म निर्देशन हो। उनके द्वारा अर्जित पुरस्कार और सम्मान उनकी कड़ी मेहनत, प्रतिभा और समर्पण का प्रमाण हैं।
गुलज़ार साहब ने न केवल भारतीय फिल्म उद्योग को समृद्ध किया, बल्कि साहित्यिक जगत में भी एक अमिट छाप छोड़ी। उनकी कविताएँ और गीत समय की सीमाओं को पार करते हुए आज भी उतने ही प्रभावशाली और सजीव हैं जितने उनके रचने के समय थे। उनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती हैं और उन्हें एक नई दृष्टि प्रदान करती हैं।
गुलज़ार साहब की यात्रा एक प्रेरणा है, जो यह सिखाती है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और सच्ची कला के प्रति जुनून के साथ कोई भी व्यक्ति महान ऊंचाइयों को छू सकता है। उनकी जीवन गाथा एक उदाहरण है कि किस प्रकार एक सच्चा कलाकार अपनी कला के माध्यम से समाज को बेहतर बना सकता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध विरासत छोड़ सकता है।यह भी पढ़ें