डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद: उर्दू ज़बान और अदब के अज़ीम सिपाही

 डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद (1 अगस्त 1935 – 19 अक्टूबर 2020) उर्दू अदब की दुनिया का एक ऐसा रौशन सितारा थे, जिन्होंने अपनी तहरीरों, शायरी, और तालीमी खिदमतों के ज़रिए उर्दू ज़बान को नई बुलंदियां अता कीं। वह न सिर्फ एक आला दर्जे के शायर और लेखक थे, बल्कि एक बेहतरीन शिक्षक और साहित्य के वाहक भी थे। उनकी ज़िंदगी उर्दू अदब के जौहर को सहेजने और इसे अवाम तक पहुंचाने की कोशिशों से भरी हुई थी।


करियर और उर्दू अदब में योगदान

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद ने अपने अदबी सफर की शुरुआत कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से की। उन्होंने यहाँ "बज़्म-ए-अदब" नाम की एक अदबी तंजीम क़ायम की, जो उर्दू साहित्य प्रेमियों और छात्रों के लिए एक बेहतरीन मंच साबित हुई। उनकी कोशिशों का नतीजा यह हुआ कि कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के निसाब में उर्दू को एक मुक़ाम हासिल हुआ।

उन्हें 26 साल तक कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में उर्दू विभाग के टीचर इन-चार्ज के तौर पर काम करने का मौका मिला। उन्होंने न सिर्फ उर्दू तालीम को बढ़ावा दिया, बल्कि इसे नई नस्लों के दिलों में भी जगह दी। उनकी मेहनत और लगन का सबूत यह है कि आज हरियाणा जैसे सूबे में उर्दू ज़बान और अदब की खुशबू फैली हुई है।

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद की बेहतरीन तसानीफ़

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद ने अपने अदबी सफर में उर्दू और हिंदी की कई बेहतरीन किताबें लिखीं, जो उनकी शायरी, नस्र और तालीम से जुड़ी सोच की गहराई को उजागर करती हैं। उनकी कुछ मशहूर किताबें और मज़मुए हैं:

  1. हर्फ़-ए-राज़हर्फ़-ए-आशना, और आज़ार-ए-ग़म-ए-इश्क़ – उर्दू शायरी के बेहतरीन मज़मुए।
  2. ज़ख़्म आरज़ूओं के – देवनागरी लिपि में उर्दू शायरी का संग्रह।
  3. उर्दू टेक्स्ट बुक – यह किताब 1986 से हरियाणा के सातवीं जमात के स्कूलों के निसाब का हिस्सा है।
  4. अली पानीपती की ग़ज़लें – देवनागरी स्क्रिप्ट में एक संग्रह।
  5. लावा – क़ैस जलंधरी की एक तवील नज़्म का संपादन।
  6. देश-विदेश की कहानियांदूध का मुलाया (हिंदी में), और दूध की क़ीमत (उर्दू में) – यह किताबें दुनिया भर की लोक कथाओं का बेहतरीन संग्रह हैं।
  7. उजालों के सफ़ीर – शोध और आलोचना पर आधारित लेखों का संकलन।

डॉ. चाँद की तहरीरें उर्दू और हिंदी अदब की बेहतरीन मिसालें हैं। उनकी किताबें इंसानी जज्बात, मोहब्बत, और अदब की नज़ाकत से लबरेज़ हैं।

अवार्ड्स और सम्मान

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद को उनके अदबी सफर और उर्दू की खिदमतों के लिए कई आला दर्जे के अवार्ड्स और सम्मानों से नवाज़ा गया। उनकी कुछ अहम उपलब्धियां इस तरह हैं:

  • अदबी संगम (1986) और अखिल भारतीय तरुण संगम (1997) द्वारा उनके अदबी योगदान का सम्मान।
  • एस.एम.एच. बर्नी अवार्ड (1995) – हरियाणा उर्दू अकादमी द्वारा।
  • नसीम-ए-लय्या अवार्ड (2004) – इंटरनेशनल बज़्म-ए-इल्म-ओ-फ़न, लय्या, पाकिस्तान की जानिब से।
  • ख्वाजा अल्ताफ़ हुसैन हाली अवार्ड (2006) – हरियाणा वक़्फ़ बोर्ड द्वारा।
  • महताब-ए-सुख़न का ख़िताब (2006) – नवरंग अदबी इदारा, लुधियाना द्वारा।
  • भारत एक्सीलेंस अवार्ड (2009) – फ्रेंडशिप फोरम ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली द्वारा।
  • अब्र सीमाबी अवार्ड (2010) – साहित्य सभा, कैथल, हरियाणा द्वारा।

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद की अदबी विरासत

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद की तहरीरें और शायरी अदब की दुनिया में एक अमूल्य धरोहर हैं। उनकी शायरी में इंसानी जज्बातों की गहराई, मोहब्बत का दर्द, और समाज की हकीकतें झलकती हैं। बच्चों के लिए लिखी गई उनकी किताबें न सिर्फ मनोरंजन का ज़रिया हैं, बल्कि तालीम का बेहतरीन साधन भी हैं।

डॉ. चाँद की जिंदगी उर्दू अदब और तालीम के लिए वक्फ़ थी। उनकी लिखावट ने उर्दू अदब को न सिर्फ सहेजा, बल्कि इसे नई नस्लों तक पहुँचाया। वह एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने उर्दू को हिंदुस्तानी अदब में एक खास मक़ाम दिलाया।

FAQ

  • डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद का योगदान उर्दू अदब और तालीम में।
  • कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में उर्दू शिक्षा का प्रवर्तन।
  • उर्दू और हिंदी किताबों के लेखक।
  • बच्चों के लिए तालीमी साहित्य का सृजन।
  • उर्दू अदब के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार।


डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद की शायरी,ग़ज़लें 


1-ग़ज़ल 



हमारे शहर-ए-अदब में चली हवा क्या है
ये कैसा दौर है यारब हमें हुआ क्या है

उसी ने आग लगाई है सारी बस्ती में
वही ये पूछ रहा है कि माजरा क्या है

ये तेरा ज़र्फ़ कि तू फिर भी बद-गुमाँ न हुआ
सिवाए दर्द के मैं ने तुझे दिया क्या है

लपक के छीन ले हक़ अपना कम-सवादों से
बढ़ा के हाथ उठा जाम देखता क्या है

भुला दिया है जो तुम ने तो कोई बात नहीं
मगर मैं जानता आख़िर मिरी ख़ता क्या है

अजीब शख़्स है किरदार माँगता है मिरा
सिवाए इस के मिरे पास अब बचा क्या है

कुरेद कर मेरे ज़ख़्मों को यूँ सवाल न कर
तुझे ख़बर है तो फिर मुझ से पूछता क्या है

मता-ए-ग़म को बचा रख छुपा के सीने में
तू इस ख़ज़ाने को औरों में बाँटता क्या है

हज़ार ने'मतें उस ने तुझे अता की हैं
अब और 'चाँद' तू इस दर से माँगता क्या है

2-ग़ज़ल 



जो नेकियों से बदी का जवाब देता है
ख़ुदा भी उस को सिला बे-हिसाब देता है

उसी के हुक्म से घर-बार उजड़ भी जाते हैं
वही फिर उन को बसाने के ख़्वाब देता है

बशर पे क़र्ज़ जो होते हैं कार-हा-ए-जहाँ
तमाम-उम्र वो उन का हिसाब देता है

ग़रज़ ये है न हो फ़िक्र-ओ-अमल में कोताही
ख़ुदा दिलों को अगर इज़्तिराब देता है

क़ुसूर इस में भी है वालदैन का शायद
जो बच्चा उन को पलट कर जवाब देता है

कटी है उम्र अज़ाबों में देखना है अब
मज़ीद क्या दिल-ए-ख़ाना-ख़राब देता है

वो आज़माता है काँटों से सब्र इंसाँ का
फिर उस के बा'द महकते गुलाब देता है

सवाल दीद-ओ-मुलाक़ात कर चुके हैं 'चाँद'
अब आगे देखिए वो क्या जवाब देता है

3-ग़ज़ल 


मजबूरी लाचारी लिख
हाँ रूदाद हमारी लिख

ग़ैरों को इल्ज़ाम न दे
अपनों की अय्यारी लिख

सोच जो हल्की है तो क्या
ग़ज़लें भारी भारी लिख

ऐब न गिनवा औरों के
अपनी ''कार-गुज़ारी'' लिख

पहले झूटे वादे कर
फिर अपनी लाचारी लिख

चाहे हक़ीक़त कुछ भी हो
अपना पलड़ा भारी लिख

उजड़े घर के आँगन में
हरी-भरी फुलवारी लिख

हर मंसब हर ओहदे पर
अपनी दा'वे-दारी लिख

मात-पिता को दे बन-वास
ख़ुद को आज्ञाकारी लिख

'चाँद' की ख़सलत में यारब
कुछ तो दुनिया-दारी लिख

4-ग़ज़ल 


मैं ने कब अपनी वफ़ाओं का सिला माँगा था
इक तबस्सुम ही तिरा बहर-ए-ख़ुदा माँगा था

क्या ख़बर थी कि मिरी नींदें उजड़ जाएँगी
मैं ने खोए हुए ख़्वाबों का पता माँगा था

दस्त-ए-गुल-चीं ने भी गुलशन से वही फूल चुना
मैं ने जिस गुल के लिए दस्त-ए-सबा माँगा था

शिद्दत-ए-ग़म में दु'आ की थी तुझे भूलने की
अब भरे ज़ख़्म तो नादिम हूँ ये क्या माँगा था

बस इसी बात पे बरहम है ज़माना मुझ से
अपने बद-ख़्वाहों का भी मैं ने भला माँगा था

इक गुज़ारिश भी न हो पाई क़ुबूल उस के हुज़ूर
ग़ालिबन मैं ने ही कुछ हद से सिवा माँगा था

चूड़ियाँ टूटीं तो ज़ख़्मों से लहू-रंग हुई
जिस हथेली ने ज़रा रंग-ए-हिना माँगा था

तू ने हर ग़म से नवाज़ा है तिरा ख़ास करम
मुझ को तो ये भी नहीं याद कि क्या माँगा था

आफ़तें सहने का यारा भी तो देता यार अब
और तो कुछ भी नहीं उस के सिवा माँगा था

ये अलग बात मिला कर्ब-ए-मुसलसल वर्ना
हम ने जो माँगा वो ब-सिद्क़-ओ-सफ़ा माँगा था

ज़ेहन पर 'चाँद' फिर इक बर्क़ सी लहराने लगी
दिल ने माज़ी के निहाँ-ख़ानों से क्या माँगा था

तब्सरा:-

डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद का नाम उर्दू अदब की तारीख़ में एक ऐसी रौशन दास्तान की तरह लिखा जाएगा, जिसने उर्दू ज़बान को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का बेहतरीन फर्ज़ अदा किया। उनकी तहरीरें सिर्फ अल्फ़ाज़ का मजमुआ नहीं, बल्कि दिलों की गहराईयों से निकली हुई वो आवाज़ें हैं, जो मोहब्बत, दर्द, इंसानियत और अदब के जज़्बात को बयान करती हैं। उनके कलाम में न सिर्फ रूहानी मिठास थी, बल्कि उर्दू की वह नफासत और बुलंदी भी थी, जो हर दौर में इस ज़बान को ज़िंदा रखती है।

उनका शायराना और नस्री अदब ऐसा आईना है, जिसमें एक तरक्कीपसंद सोच और अदबी तबस्सुर झलकता है। बच्चों के लिए लिखी गई उनकी किताबें एक नई पीढ़ी को तालीम, तमीज़ और अदब के उसूल सिखाती हैं। उनके "हर्फ़-ए-राज़" और "हर्फ़-ए-आशना" जैसे मजमुए शायरी की वह मिसालें हैं, जो हर दौर में दिलों को छूती रहेंगी।

डॉ. चाँद की शख्सियत सिर्फ एक लेखक और शिक्षक की नहीं थी, बल्कि वह उर्दू अदब के लिए एक मिशाल और मज़बूत इमारत की तरह थे। उनका हर लफ्ज़, हर किताब, और हर कोशिश एक पैग़ाम है कि अदब सिर्फ किताबों तक महदूद नहीं, बल्कि यह समाज और तहज़ीब की रूह है।

आज जब हम उर्दू ज़बान और अदब को सहेजने की बात करते हैं, तो डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद जैसे फनकारों की खिदमतों को याद करना ज़रूरी है। उनका तहरीरी और तालीमी सरमाया एक ऐसे ख़ज़ाने की तरह है, जो आने वाली नस्लों को उर्दू अदब की खुशबू से महका देगा।

यह कहना गलत नहीं होगा कि डॉ. मोहिंदर प्रताप चाँद जैसे फनकार वक़्त और सरहदों से परे होते हैं। उनकी यादें और उनका अदब हमेशा ज़िंदा रहेगा।

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