परिचय
उदय प्रकाश (जन्म : 1 जनवरी 1952) हिंदी साहित्य की समकालीन धारा के एक ऐसे बहुआयामी रचनाकार हैं, जिन्होंने कविता, कहानी, पत्रकारिता और फिल्म—सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया। वे केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि विचारक, आलोचक और फिल्म निर्देशक भी रहे हैं। उनकी रचनाएँ आम आदमी की पीड़ा, संघर्ष और सपनों को गहरी संवेदना और तीक्ष्ण दृष्टि के साथ प्रस्तुत करती हैं।
उनकी कहानियाँ और कविताएँ हिंदी साहित्य की धरोहर मानी जाती हैं, जिनका अनुवाद अंग्रेज़ी, जर्मन, जापानी सहित कई भारतीय व अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में हो चुका है। "मोहनदास" जैसी चर्चित कहानी ने उन्हें वैश्विक पहचान दिलाई और इसके लिए उन्हें 2010 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवरी 1952 को मध्य प्रदेश के शहडोल ज़िले के छोटे से गाँव सीतापुर में हुआ। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े उदय प्रकाश ने जीवन के प्रारंभिक अनुभवों को ही अपनी रचनात्मकता की आधारभूमि बनाया।
उन्होंने विज्ञान विषय से स्नातक की पढ़ाई की और आगे सागर विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि स्वर्ण पदक सहित प्राप्त की। सन् 1975-76 में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में शोध छात्र रहे। इस दौरान वे वामपंथी विचारधारा से जुड़े, यहाँ तक कि कम्युनिस्ट पार्टी को समर्थन देने के आरोप में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि बाद में उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी और पूरी तरह साहित्य, पत्रकारिता और रचनात्मक कार्यों में मन लगाया।
साहित्यिक यात्रा
उदय प्रकाश का साहित्यिक संसार बेहद व्यापक है। उनकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थ, राजनीतिक चेतना, सांस्कृतिक बदलाव और मानवीय संबंधों की गहरी पड़ताल दिखाई देती है।
उनकी कहानियाँ जैसे – "मोहनदास", "पीली छतरी वाली लड़की", "तिरिछ", और "दरियायी घोड़ा" – भारतीय समाज के उन पहलुओं को सामने लाती हैं जिन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। वहीं उनकी कविताएँ जैसे – "सुनो कारीगर" और "अबूतर कबूतर" – जीवन और श्रम की गहराई को संवेदनशील अंदाज़ में व्यक्त करती हैं।
प्रमुख रचनाएँ
कविता संग्रह
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सुनो कारीगर
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अबूतर कबूतर
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रात में हारमोनियम
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एक भाषा हुआ करती है
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कवि ने कहा
कहानी संग्रह
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दरियायी घोड़ा (1989)
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तिरिछ (1989)
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पॉलगोमरा का स्कूटर (1997)
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पीली छतरी वाली लड़की (2001)
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दत्तात्रेय के दुःख (2002)
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मोहनदास (2006)
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वारेन हेस्टिंग्स का साँड
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और अंत में प्रार्थना
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राम सजीवन की प्रेमकथा
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दिल्ली की दीवार
निबंध और आलोचना
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ईश्वर की आंख
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नयी सदी का पंचतंत्र
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तेरी मेरी बात (साक्षात्कार संग्रह)
अनुवाद और अंतरराष्ट्रीय पहचान
उदय प्रकाश की रचनाओं का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
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The Girl with the Golden Parasol (Penguin India, अनुवाद : जेसन ग्रुनेबॉम)
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Mohan Das (अनुवाद : प्रतीक कंज़ीलाल)
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Das Maedchen mit dem gelben Schirm (जर्मन अनुवाद)
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Und am Ende ein Gebet (अनुवाद : आंद्रे पेंज़)
उन्होंने लोर्का, नेरूदा, रोम्यां रोलां, इतालो काल्विनो, कवाफ़ी, और अन्य विश्व साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद कर साहित्य को और समृद्ध किया।
रंगमंच और सिनेमा
उदय प्रकाश की कहानियों पर आधारित कई नाटकों और फिल्मों का निर्माण हुआ।
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"तिरिछ" का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रसन्ना ने किया।
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"वॉरेन हेस्टिंग्स का साँड" का मंचन अरविंद गौड़ द्वारा अस्मिता थिएटर में हुआ, जिसे 80 से अधिक बार प्रस्तुत किया गया।
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"मोहनदास" पर फीचर फिल्म बनी जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार जीते।
साथ ही, उन्होंने दूरदर्शन के लिए "कृषि-कथा" (15 कड़ियों की शृंखला) और राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानियों पर आधारित लघु फिल्में भी निर्देशित कीं।
पुरस्कार और सम्मान
उदय प्रकाश को साहित्य और कला में योगदान के लिए अनेक सम्मान मिले।
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भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार
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श्रीकांत वर्मा पुरस्कार
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ओमप्रकाश सम्मान
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मुक्तिबोध सम्मान
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वनमाली सम्मान
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द्विजदेव सम्मान
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पहल सम्मान
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रूस का प्रतिष्ठित पूश्किन सम्मान
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SAARC Writers Award
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PEN Grant (The Girl with the Golden Parasol के अनुवाद हेतु)
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महाराष्ट्र फाउंडेशन पुरस्कार (तिरिछ अणि इतर कथा)
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2010 का साहित्य अकादमी पुरस्कार (मोहनदास के लिए)
उदय प्रताप की शायरी ग़ज़लें,नज़्मे
ग़ज़ल
हम ने माना कि महका के घर रख दिया
कितने फूलों का सर काट कर रख दिया
तुम मिरे पास हो रात हैरान है
चाँद किस ने इधर का उधर रख दिया
एक लम्हे को सूरज ठहर सा गया
हाथ उस ने मिरे हाथ पर रख दिया
दे के कस्तूरी हिरनों की तक़दीर में
प्यास का एक लम्बा सफ़र रख दिया
तुम ने ये क्या किया बत्तियों की जगह
इन चराग़ों में आँधी का डर रख दिया
अपना चेहरा न पोंछा गया आप से
आईना बे-वजह तोड़ कर रख दिया
आख़िरी फ़ैसला वक़्त के हाथ है
सच ने तलवार के आगे सर रख दिया
देने वाले ये हस्सास नाज़ुक सा दिल
मेरे सीने में क्यूँ ख़ास कर रख दिया
तुम 'उदय' चीज़ क्या हो कि इस प्यार ने
देवताओं का दिल तोड़ कर रख दिया
नज़्म -1
कुछ बन जाते हैं
तुम मिसरी की डली बन जाओ
मैं दूध बन जाता हूँ
तुम मुझमें
घुल जाओ।
तुम ढाइ साल की बच्ची बन जाओ
मैं मिसरी धुला दूध हूँ मीठा
मुझे एक साँस पी जाओ।
अब मैं मैदान हूँ
तुम्हारे सामने दूर तक फैला हुआ।
मुझमें दौड़ो। मैं पहाड़ हूँ।
मेरे कंधों पर चढ़ो और फिसलो।
मैं सेमल का पेड़ हूँ
मुझे ज़ोर-ज़ोर से झकझोरो और
मेरी रूई को हवा की तमाम परतों में
बादलों के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह
उड़ जाने दो।
ऐसा करता हूँ कि मैं
अख़रोट बन जाता हूँ
तुम उसे चुरा लो
और किसी कोने में छुपकर
तोड़ो।
गेहूँ का दाना बन जाता हूँ मैं,
तुम धूप बन जाओ
मिट्टी-हवा-पानी बनकर
मुझे उगाओ
मेरे भीतर के रिक्त कोषों में
लुका-छिपी खेलो या कोंपल होकर
मेरी किसी भी गाँठ से
कहीं से भी
तुरत फूट जाओ।
तुम अँधेरा बन जाओ
मैं बिल्ली बनकर दबे पाँव
चलूँगा चोरी-चोरी।
क्यों न ऐसा करें
कि मैं चीनी मिट्टी का प्याला बन जाता हूँ
और तुम तश्तरी
और हम कहीं से
गिरकर एक साथ
टूट जाते हैं सुबह-सुबह।
या मैं ग़ुब्बारा बनता हूँ
नीले रंग का
तुम उसके भीतर की हवा बनकर
फैलो और
बीच अकाश में
मेरे साथ फूट जाओ।
या फिर...
ऐसा करते हैं
कि हम कुछ और बन जाते हैं
मसलन...।
नज़्म -2
नज़्म -3
नज़्म -4
नज़्म -5
निष्कर्ष:-
उदय प्रकाश हिंदी साहित्य के उन गिने-चुने रचनाकारों में से हैं जिनकी कलम ने हाशिए पर खड़े लोगों को आवाज़ दी। उनकी रचनाएँ केवल कहानियाँ या कविताएँ नहीं बल्कि समाज के आईने की तरह हैं, जो हमारी संवेदनाओं और वास्तविकताओं को उजागर करती हैं।
उनकी लेखनी ने हिंदी साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दीं और उसे वैश्विक स्तर तक पहुँचाया। इसीलिए, उदय प्रकाश को न केवल हिंदी साहित्य का एक सशक्त हस्ताक्षर माना जाता है, बल्कि वे भारतीय बौद्धिक और सांस्कृतिक परंपरा के महत्वपूर्ण स्तंभ भी हैं।ये भी पढ़ें
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