आग़ाज़-ए-हयात और तालीमी पृष्ठभूमि
27 अक्टूबर को जन्मी सीमा नयन बचपन से ही लफ़्ज़ों की जादूगरी में खो जाने वाली शख़्सियत रही हैं।
उनका ज़हन कोमल, दिल जज़्बाती और नज़र हमेशा ख़ूबसूरती की तलाश में रही।
उन्होंने अपनी तालीम में एम.ए. और बी.एड. की डिग्रियाँ हासिल कीं, और इल्म को अमल में बदलते हुए आज वे सोफ़िया कॉन्वेंट की एक समर्पित अध्यापिका हैं।
लेकिन उनका असल मक़सद सिर्फ़ तालीम देना नहीं था, बल्कि ज़िंदगी को अल्फ़ाज़ों में बयान करना था।
उन्होंने किताबों से जो सीखा, वही उन्होंने क़लम से जिया।
अदबी सफ़र : रूह से निकले अल्फ़ाज़ों का दरिया
सीमा नयन का अदबी सफ़र एक इबादत की तरह है।
उनकी ग़ज़लों, गीतों और छंदों में दिल की सच्चाई और रूह की पाकीज़गी महसूस होती है।
उनकी रचनाएँ कोई बनावटी तर्जुमान नहीं, बल्कि ज़िंदगी के जिए हुए लम्हों का दस्तावेज़ हैं।
वे जब लिखती हैं तो वक़्त ठहर जाता है, और जब बोलती हैं तो अल्फ़ाज़ ख़ुद-ब-ख़ुद झुक जाते हैं।
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| Seema Mishra "Nayan" |
उनकी मशहूर कृतियाँ:
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“नयनामृत” – छंदाधारित सृजन, जिसमें हर पंक्ति किसी रूहानी तरन्नुम की तरह लगती है।
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| Nayanamrit Title Cover |
“अल्फ़ाज़-ए-नयन” – ग़ज़लों का एक ऐसा गुलदस्ता, जिसमें मोहब्बत, दर्द, उम्मीद और इंसानियत की ख़ुशबू रची-बसी है।
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| Alfaz-e- Nayan Title Cover |
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“जज़्बात” – दिल की आवाज़ और आत्मा का इज़हार, जिसमें हर शेर एक अहसास की तरह धड़कता है।
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| Jazbat Book Title Cover |
साझा संग्रहों में उन्होंने अपनी कलम से जो नूर फैलाया, वह काबिले-तारीफ़ है —
काव्य सरिता, महकते स्पंदन, मेरी माटी मेरा देश, हर कदम साथ हैं, शब्द साक्षी हैं, इक्कीसवीं सदी के श्रेष्ठ ग़ज़लकार, हौसलों के हमसफ़र, काव्य गंगा, जगमगाते खद्योत, नवकुंभ सिंधु, हमारे श्री राम, और अंतस के दीप — हर संग्रह में उनके लफ़्ज़ अपनी अलग पहचान छोड़ते हैं।
अंदाज़-ए-बयान और सुख़न की ख़ासियत
सीमा नयन की रचनाओं की असल ख़ूबी है उनका अंदाज़-ए-बयान।
उनकी ग़ज़लों में उर्दू की नज़ाकत, हिन्दी की मिठास और दिल की सच्चाई एक साथ घुली होती है।
वे जब मोहब्बत की बात करती हैं तो एहसास में इबादत का रंग उतर आता है —
देख नाकाम जो हंसती है यह दुनिया तुझ पर,वक्त बदले तो नज़र इनकी बदल जाएगी।
उनकी शायरी में “इश्क़” सिर्फ़ एक तजुर्बा नहीं, बल्कि एक रूहानी सफ़र है —
जहाँ दर्द, वफ़ा, ख़्वाब और उम्मीद सब एक साथ चलते हैं।
सीमा नयन की कलम सिर्फ़ इश्क़ की नहीं, इंसानियत की भी पैग़मबर है।
उनकी ग़ज़लों में समाज के तल्ख़ हक़ीक़तों का ज़िक्र भी है —
गरीबी, नफ़रत, टूटते रिश्ते, और इंसान के अंदर की ख़ामोश चीख़ — सब उनके अल्फ़ाज़ों में ज़िंदा हैं।
एहतराम और इज़्ज़त के मरहले
सीमा नयन को न सिर्फ़ उनकी रचनाओं के लिए सराहा गया, बल्कि उन्हें अदबी दुनिया में कई अज़ीम इज़्ज़तों से भी नवाज़ा गया है।
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| Getting Certificate For Longer Poem |
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| The Book of World Records Certificate |
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The Book of World Records द्वारा सबसे लंबे काव्य पाठ की सम्मानित प्रतिभागी।
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अंतर्राष्ट्रीय ग़ज़ल कुंभ की प्रतिष्ठित और सम्मानित शायरा।
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नवकुंभ साहित्य सेवा संस्थान की उप सचिव, जहाँ वे साहित्य की ख़िदमत में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
उनकी रचनाएँ सामना, अमर उजाला, ग्राम टुडे, इंदौर समाचार, साहित्यिक सांध्यलोक दैनिक पब्लिकेशन और क़तर के ‘दी साहित्य’ जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों में लगातार छपती हैं।
मुख्य सम्मान:
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नवकुंभ साहित्य सेवा संस्थान द्वारा — साहित्य श्री, साहित्य अभ्युदय, और साहित्य रत्न सम्मान
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ग्वालियर साहित्य कला परिषद् एवं अकादमी द्वारा — श्रेष्ठ ग़ज़लकार सम्मान
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ग्राम टुडे द्वारा — टीजीटी साहित्य सम्मान
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साहित्य उपवन रचनाकार मंच द्वारा — ग़ज़ल गुलफ़ाम सम्मान
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शक्ति सदन फाउंडेशन द्वारा — काव्य सिरोमणि सम्मान
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काव्यांगन मंच द्वारा — काव्य गौरव सम्मान
इन सबके अलावा, वे देश-विदेश के अनगिनत मंचों से सम्मान पत्रों और पुरस्कारों से नवाज़ी जा चुकी हैं — जो उनके अदबी क़द और मक़ाम का सबूत हैं।
असर-ए-सुख़न : समाज और अदब पर उनके अल्फ़ाज़ों का असर
सीमा नयन का लेखन महज़ तख़्लीक़ नहीं, बल्कि एक तहज़ीब है।
वे समाज के दर्द को महसूस करती हैं, और अपने अल्फ़ाज़ों से उस दर्द को मरहम देती हैं।
उनकी शायरी में “नारी” का स्वर बेहद शफ़्फ़ाफ़ और मज़बूत है —
वो औरत को सिर्फ़ हुस्न या त्याग का प्रतीक नहीं, बल्कि सोचने, समझने और कहने वाली ज़िंदा रूह के रूप में पेश करती हैं।
उनके अल्फ़ाज़ औरत की ख़ामोशी को आवाज़ देते हैं,
और इंसानियत को उसका असल चेहरा दिखाते हैं।
क़यामत के किसी लम्हे में पूछेगा ख़ुदा उनसे।कई दिल क़त्ल करने का लगा है दाग दामन में।
उनका लेखन एक ऐसे दौर में उम्मीद की शमा है, जहाँ संवेदनाएँ अक़्सर सियासत में गुम हो जाती हैं।
सीमा नयन की शायरी,कवितायेँ,ग़ज़लें
ग़ज़ल-1
खींचते हैं बात कितनी या ख़ुदा बस भी करें,
क्यों वज़ाहत देके बनते पारसा बस भी करें।
ले उसूलों का बड़ा सा बोझ शाने पर चले,
क्यों बदलना चाहते सब काएदा बस भी करें।
डूबने को ख़ुद ब ख़ुद तैयार हैं जब कश्तियां,
खामखां क्यों बन रहे हैं नाख़ुदा बस भी करें।
कर सकें आराम से उस की ही बस हामी भरें
करते क्यों जो हो न पूरा वाएदा बस भी करें।
बज़्म में बस एक मेरा दिल जलाने के लिए
कर रहे ग़ैरों से कितना राब्ता बस भी करें।
असलियत ज़ाहिर हुआ करती यहां हर हाल में,
फ़िर छिपाने से भला क्या फ़ायदा बस भी करें।
दिल बज़िद है आपका आज़ाद करने पर मुझे
पर कहां ये दिल रिहाई चाहता बस भी करें।
ग़ज़ल-2
मेरी हर बात पे यूॅं तेरा बिफरना क्या है,
यार अब तू ही बता दे मुझे करना क्या है।
साथ चलना है की ये हाथ छुड़ाना मुझसे,
फ़ैसला आज सुना रोज़ ही मरना क्या है।
अहमियत दे के बिगाड़ा है मुझे तूने ही,
तुझसे उल्फ़त है तो ज़िद भी है वगरना क्या है।
तू तो कहता था तिरा इश्क़ अमानत मेरी,
फिर तुझे देख रकीबों का सॅंवरना क्या है।
रुख़सती का जो किया तूने इरादा तो दिल,
अश्क़ भर कर के यूॅं मुड़ मुड़ के ठहरना क्या है।
सिन्फ़ -ए-आहान बना ख़ुद को न नाज़ुक बन तू,
ऐसे हर बात पे रो रो के बिखरना क्या है।
वक्त जो भी हो गुज़रता है गुज़र जायेगा,
सोच कर कल की नयन आज ये डरना क्या है।
ग़ज़ल-3
ग़ज़ल-4
ग़ज़ल-5
तब्सरा:-
एहसास की तहज़ीब और लफ़्ज़ों की सादगी – सीमा नयन के फ़न पर एक मुतअदिल नज़र
सीमा नयन का नाम आज के दौर की उन शायराओं में शुमार किया जा सकता है जिन्होंने न ग़ज़ल को महज़ ज़हन की रियाज़त बनाया, न एहसास को लफ़्ज़ों की कैद में रखा। उन्होंने अपने जज़्बात को एक सलीके और तहज़ीब के साथ पेश किया — जैसे कोई नर्म हवा पुराने वक़्तों की ख़ुशबू लेकर आती हो।
उनकी शायरी में न कोई दिखावटी लफ़्फ़ाज़ी है, न कोई इम्तिहानी पेचीदगी। सादगी और तासीर उनके अशआर की जान है। ‘नयनामृत’, ‘अल्फ़ाज़-ए-नयन’ और ‘जज़्बात’ जैसे संग्रह इस बात की गवाही देते हैं कि सीमा नयन अपने तख़लीक़ी सफ़र में तवाज़ुन को क़ायम रखती हैं — जज़्बात और अक़्ल, दोनों का सुबूत पेश करती हुईं।
उनकी शायरी में मोहब्बत, इंसानियत, औरत की नर्म रूह, और ज़िन्दगी की आम सच्चाइयाँ एक ख़ामोश लहजे में झलकती हैं। कहीं कोई तिलिस्म नहीं, बस वो सादगी है जो दिल को छूकर गुज़र जाती है।
अकसर यह देखा गया है कि आज का दौर या तो हद से ज़्यादा बयानबाज़ी चाहता है या फिर अलंकारिक पेचीदगियाँ। मगर सीमा नयन ने अपनी राह अलग चुनी है — उन्होंने न शोर मचाया, न तर्क की दीवारें खड़ी कीं; बस अपने अल्फ़ाज़ से एहसास को ज़िन्दा रखा। यही उनकी पहचान है।
साहित्यिक दृष्टि से अगर देखा जाए, तो सीमा नयन का काम किसी इंक़लाब की सूरत तो नहीं, मगर वह एक ख़ामोश तब्दीली का एहसास ज़रूर छोड़ता है। उन्होंने साबित किया कि शायरी का मक़सद हर बार हैरतअंगेज़ होना नहीं, बल्कि इंसानी रूह से रु-ब-रु होना भी है।
उनकी रचनाओं में कहीं-कहीं परंपरा की झलक है, तो कहीं नया लहजा भी। यही मेल उन्हें समकालीन साहित्य में एक अलग मुक़ाम देता है।
उनकी कलम में वो संजीदगी है जो अनुभव से आती है, और वो नरमी जो दिल से निकलती है।
कुल मिलाकर, सीमा नयन की शायरी को “रूह की जुबान” कहा जा सकता है — जो न इश्क़ में बिखरती है, न ज़िन्दगी में झुकती; बस एहसास के एक मुतअदिल सफ़र पर चलती है।ये भी पढ़ें
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