कवित्री शायरा लता हया जीवनी और शायरी

       कवित्री ,शायरा लता हया जीवनी और शायरी



दोस्तों आज हम जिस शायरा (कवित्री ) की जीवनी और लेखन पर चर्चा करने जा रहे हैं ,वो किसी भी परिचय की मोहताज नहीं , वो शायरी की दुनिया की एक बहुत ही मशहूर शायरा 'लता हया' जी हैं 

 जीवन परिचय 

नाम- सुहासिनी हैदर 
उप नाम- "लता हया"
पति- नदीम हैदर 
पिता का नाम - सुब्रमण्यम स्वामी ( BJP LEADER)
व्यवसाय- उर्दू कवि, टेलीविजन अभिनेत्री और एक सामाजिक कार्यकर्ता 
जन्मतिथि-15 जून 
जन्मस्थान- जयपुर, राजस्थान, भारत 
राशि-राष्ट्रीयता भारतीय 
गृहनगर- महाराष्ट्र, मुंबई, भारत

     लता हया साहिबा की ज़िंदगी का सफर नामा 

  • इनका जन्म जयपुर में एक हिन्दू मारवाड़ी ब्राह्मण परिवार मे हुआ।
  • लता जी ने हिंदी टेलीविजन धारावाहिकों में एक अभिनेत्री के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।
  • इन्होने  कई हिंदी टेलीविजन धारावाहिकों जैसे अलिफ़ लैला, कृष्णा कुंती, जय संतोषी मां, कश्मकश, अधिकार, आदि में सरहानीय कार्य किया है।
  • इन्होने  डीडी इंडिया का धारावाहिक  'कसक' में भी कार्य किया है।
  • वर्ष 2009 में, उन्होंने एक टेलीविज़न श्रृंखला “मेरे घर आई एक नन्ही परी” में भी शानदार कार्य किया, जिसे कलर टीवी पर प्रसारित किया गया था।
  •  एक उर्दू धारावाहिक “सवेरा” में भी कार्य किया है, जिसे ईटीवी उर्दू में प्रसारित किया गया था।
  • उर्दू शायरी के  क्षेत्र में लता बहुचर्चित शायरा  के रूप में उभर के आईं। जिसके चलते उनकी किताब “हया” हिंदी और उर्दू दोनों भाषा में प्रकाशित हुई है।
  • लता जी मुशायरे और उर्दू कवि सम्मेलन में सक्रिय रूप से भाग लेती रहती हैं।

  • https://www.anthought.com/

लता हया साहिबा की मशहूर शायरी 

ग़ज़ल -1 

मैं ग़ज़ल हूँ मुझे जब आप सुना करते हैं चंद लम्हे मिरा ग़म बाँट लिया करते हैं जब वफ़ा करते हैं हम सिर्फ़ वफ़ा करते हैं और जफ़ा करते हैं जब सिर्फ़ जफ़ा करते हैं लोग चाहत की किताबों में छुपा कर चेहरे सिर्फ़ जिस्मों की ही तहरीर पढ़ा करते हैं लोग नफ़रत की फ़ज़ाओं में भी जी लेते हैं हम मोहब्बत की हवा से भी डरा करते हैं अपने बच्चों के लिए लाख ग़रीबी हो मगर माँ के पल्लू में कई सिक्के मिला करते हैं जो कभी ख़ुश न हुए देख के शोहरत मेरी मेरे अपने हैं मुझे प्यार किया करते हैं जिन के जज़्बात हूँ नुक़सान नफ़अ' की ज़द में उन के दिल में कई बाज़ार सजा करते हैं फिक्र-ओ-एहसास पे पर्दा है 'हया' का वर्ना हम ग़लत बात न सुनते न कहा करते हैं

ग़ज़ल -2

हर क़दम हादसे हर नफ़्स तल्ख़ियाँ

ज़िंदगी बर्क़ तूफ़ाँ ख़िज़ाँ आँधियाँ

रफ़्ता रफ़्ता यही बोझ लगने लगीं

क्यूँ बड़ी हो गईं माँ तिरी बेटियाँ

मेरी दुनिया तिरी ज़ात में क़ैद है

मुझ को ख़ैरात में दे आज़ादियाँ

तीरगी ख़ामुशी बेबसी तिश्नगी

हिज्र की रात में ख़ामियाँ ख़ामियाँ

आप ही आंधियों से उलझते रहे

मैं तो लाई थी दामन में पुरवाइयाँ

मैं किताबों में रख्खूँ ये फ़ितरत नहीं

फूल सूखे हुए बे-ज़बाँ तितलियाँ

ये सहीफ़ा नहीं मेरी रूदाद है

इस का उनवान है तल्ख़ियाँ तल्ख़ियाँ

याद क्या है कोई मुझ से पूछे 'हया'

एक एहसास की चंद परछाइयाँ


ग़ज़ल -3


मैं ने वीराने को गुलज़ार बना रक्खा है

क्या बुरा है जो हक़ीक़त को छुपा रक्खा है


दौर-ए-हाज़िर में कोई काश ज़मीं से पूछे

आज इंसान कहाँ तू ने छुपा रक्खा है


वो तो ख़ुद-ग़र्ज़ी है लालच है हवस है जिन का

नाम इस दौर के इंसाँ ने वफ़ा रक्खा है


वो मिरे सहन में बरसेगा कभी तो खुल कर

मैं ने ख़्वाहिश का शजर कब से लगा रक्खा है


मैं तो मुश्ताक़ हूँ आँधी में भी उड़ने के लिए

मैं ने ये शौक़ अजब दिल को लगा रक्खा है


मैं कि औरत हूँ मिरी शर्म है मेरा ज़ेवर

बस तख़ल्लुस इसी बाइ'स तो 'हया' रक्खा है


ग़ज़ल -4

मैं पी रही हूँ कि ज़हराब हैं मिरे आँसू

तिरी नज़र में फ़क़त आब हैं मिरे आँसू


तू आफ़्ताब है मेरा मैं तुझ से हूँ रौशन

तिरे हुज़ूर तो महताब हैं मिरे आँसू


वो ग़ालिबन उन्हें हाथों में थाम भी लेता

उसे ख़बर न थी सैलाब हैं मिरे आँसू


ख़याल रखते हैं तन्हाइयों का महफ़िल का

ये कितने वाक़िफ़-ए-आदाब हैं मिरे आँसू


छुपा के रखती हूँ हर ग़म को लाख पर्दों में

फ़सील-ए-ज़ब्त से नायाब हैं मिरे आँसू


सहीफ़ा जान के आँखों को पढ़ रहा है कोई

ये रस्म-ए-इजरा को बेताब हैं मिरे आँसू


मैं शायरी के हूँ फ़न्न-ए-अरूज़ से वाक़िफ़

ज़बर हैं ज़ेर हैं एराब हैं मिरे आँसू


जिसे पढ़ा नहीं तुम ने कभी मोहब्बत से

किताब-ए-ज़ीस्त का वो बाब हैं मिरे आँसू


'हया' के राज़ को आँखों में ढूँडने वालो

शनावरो सुनो गिर्दाब हैं मिरे आँसू


ग़ज़ल -5

हर क़दम हादसे हर नफ़्स तल्ख़ियाँ

ज़िंदगी बर्क़ तूफ़ाँ ख़िज़ाँ आँधियाँ


रफ़्ता रफ़्ता यही बोझ लगने लगीं

क्यूँ बड़ी हो गईं माँ तिरी बेटियाँ


मेरी दुनिया तिरी ज़ात में क़ैद है

मुझ को ख़ैरात में दे न आज़ादियाँ


तीरगी ख़ामुशी बेबसी तिश्नगी

हिज्र की रात में ख़ामियाँ ख़ामियाँ


आप ही आंधियों से उलझते रहे

मैं तो लाई थी दामन में पुरवाइयाँ


मैं किताबों में रख्खूँ ये फ़ितरत नहीं

फूल सूखे हुए बे-ज़बाँ तितलियाँ


ये सहीफ़ा नहीं मेरी रूदाद है

इस का उनवान है तल्ख़ियाँ तल्ख़ियाँ


याद क्या है कोई मुझ से पूछे 'हया'

एक एहसास की चंद परछाइयाँ


तब्सरा:- 

लता हया का साहित्यिक सफर उनकी शायरी में झलकता है, जहां हर शेर उनके दिल की गहराईयों का एहसास कराता है। उनकी शायरी में इंसानी जज़्बातों, रिश्तों और ज़िन्दगी के पेचो-खम का बड़ा ही बारीकी से वर्णन है। उनके अशआर में मोहब्बत, दर्द, अकेलापन और समाज के कड़वे सचों की झलक मिलती है। उनकी शायरी की खूबसूरती यह है कि वह हर शेर के ज़रिए एक कहानी कहती हैं, जो पाठकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ जाती है।

एक बेहतरीन शायरा के रूप में लता हया ने न सिर्फ मुशायरों और कवि सम्मेलनों में बल्कि अपने कलाम से उर्दू अदब में एक खास पहचान बनाई है। उनका हर लफ्ज़ उनके तजुर्बात और महसूसात का आईना है। उनकी ग़ज़लों में ऐसी सादगी और सच्चाई है जो सीधा दिल को छू जाती है। उनकी शायरी में जहाँ मोहब्बत का लहजा नर्म है, वहीं कुछ शेर सामाजिक मुद्दों पर बेबाकी से रौशनी डालते हैं।


लता हया का साहित्यिक योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर है। उनके द्वारा लिखी गयी किताब “हया” में उनकी गहरी सोच और समाज के प्रति उनका दृष्टिकोण देखने को मिलता है। उनकी शायरी का हर मिसरा पाठकों को ज़िन्दगी की सच्चाई और उसके हसीन पहलुओं से रूबरू कराता है। उन्होंने अपने कलाम के ज़रिए उर्दू अदब को एक नई रौनक दी है, और आज वे उर्दू अदब की एक मशहूर और मारूफ शायरा बन चुकी हैं। उनकी रचनाएँ साहित्य प्रेमियों को हमेशा प्रेरित करती रहेंगी और उर्दू शायरी की दुनिया में उनका नाम हमेशा रोशन रहेगा।ये भी पढ़ें 

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