दस बड़े शायरों के बड़े शेर

 उर्दू और हिंदी साहित्य की शायरी का प्रभाव आज भारत में बहुत व्यापक है। करोड़ों लोग इस अद्भुत कला को सराहते हैं और इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा मानते हैं। शिक्षाविद्, प्रोफेसर, मोटिवेशनल स्पीकर, राजनेता, और अन्य प्रमुख हस्तियां अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए अक्सर शानदार और उच्च गुणवत्ता वाली शायरी का उपयोग करते हैं। यहां तक कि फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्हें बेहतरीन शायरी याद न हो या जो अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से पेश करने के लिए उम्दा शेर न इस्तेमाल करते हों।


दस बड़े शायरों के बड़े शेर जेसे, वसीम बरेलवी,डॉ राहत इन्दोरी,मुनव्वर राना,जॉन एलिया 

शायरी की यह लोकप्रियता हर वर्ग में देखी जा सकती है, चाहे वह राजनीतिक मंच हो, शैक्षिक संस्थान हो या मनोरंजन का क्षेत्र हो। शायरी न केवल भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है बल्कि यह समाज की समस्याओं और खुशियों को भी बखूबी दर्शाती है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि शायरी आज भी हमारी भाषा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हर दिल को छू जाती है और हर विचार को नया रंग देती है।

1-डॉ वसीम बरेलवी 


जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा

किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

तू छोड़ रहा है, तो खता इसमें तेरी क्या

हर शख्स मेरा साथ, निभा भी नहीं सकता।

अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा 

उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा 

हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें 

ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें 

परों में सिमटा तो ठोकर में था ज़माने की 

उड़ा तो एक ज़माना मिरी उड़ान में था 

डॉ वसीम बरेलवी की जीवनी और शायरी 

डॉ राहत इन्दोरी 


शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम 

आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे 

हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं 

मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं 

मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना 

लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना 
सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए 

सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए 

अभी ग़नीमत है सब्र मेरा, अभी लबालब भरा नहीं हूं

वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मैं मरा नहीं हूं

डॉ राहत इन्दोरी  की जीवनी और शायरी 

मुनव्वर राना


चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 

मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है 

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है 

माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है 

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई 

मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई 

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है 

तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना 

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर 

मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते 

मुनव्वर राना की जीवनी और शायरी 

डॉ बशीर बद्र


आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा 

कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा 

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी 

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता 


पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला 

मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा 

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 

तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में 

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा 

मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा 
डॉ बशीर बद्र की जीवनी और शायरी 


कृष्ण बिहारी 'नूर' 

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं 

और क्या जुर्म है पता ही नहीं 

आइना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर 

आइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में 

ज़मीर काँप तो जाता है आप कुछ भी कहें 

वो हो गुनाह से पहले कि हो गुनाह के बा'द 

अव्वल ओ आख़िर के कुछ औराक़ मिलते ही नहीं 

है किताबए ज़िंदगी बे इब्तिदा बे इंतिहा 

जिस का कोई भी नहीं उस का ख़ुदा है यारो 

मैं नहीं कहता किताबों में लिखा है यारो 

कृष्ण बिहारी नूर की जीवनी और शायरी 

अहमद फ़राज़


किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल 

कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा  

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे 

तू बहुत देर से मिला है मुझे 

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं 

सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं 

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से 

वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला 

रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं 

चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं 

अहमद फ़राज़ की जीवनी और शायरी 

जॉन एलिया 


मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ 

कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से 

दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते 

अब कोई शिकवा हम नहीं करते

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का 

वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे 

मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले 

अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को 

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम 

बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
जॉन एलिया की जीवनी और शायरी 

डॉ कुमार विश्वास 


जब से मिला है साथ मुझे आप का हुज़ूर 

सब ख़्वाब ज़िंदगी के हमारे सँवर गए 

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है 

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है 

फिर मिरी याद आ रही होगी 

फिर वो दीपक बुझा रही होगी 

समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता

ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता

तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
डॉ कुमार विश्वास की जीवनी और शायरी 

जावेद अख्तर 


ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया 

कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए 

मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है 

मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ 

थीं सजी हसरतें दुकानों पर 

ज़िंदगी के अजीब मेले थे 

तुम को देखा तो ये ख़याल आया 

ज़िंदगी धूप तुम घना साया 

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है 

किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता 
जावेद अख्तर की जीवनी और शायरी 


अदा जाफरी


एक आईना रू ब रू है अभी 

उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी 

आ देख कि मेरे आँसुओं में 

ये किस का जमाल आ गया है 

आप ही मरकज़ ए निगाह रहे 

जाने को चार सू निगाह गई 

मस्ती भरी हवाओं के झोंके न पूछिए 

फ़ितरत है आज साग़र ओ मीना लिए हुए 

किन मंज़िलों लुटे हैं मोहब्बत के क़ाफ़िले 

इंसाँ ज़मीं पे आज ग़रीब उल वतन सा है 
अदा जाफरी की जीवनी और शायरी 



Conclusion:-

शायरी की लोकप्रियता भारत के हर वर्ग में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, चाहे वह राजनीति, शिक्षा, या मनोरंजन का क्षेत्र हो। यह सिर्फ भावनाओं के अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम नहीं है, बल्कि समाज की समस्याओं और खुशियों को भी गहराई से दर्शाती है। इसलिए, यह कहना उचित है कि शायरी आज भी हमारी भाषा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लोगों के दिलों को छूने के साथ-साथ उनके विचारों को नया रंग भी देती है।
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