जीवनी कृष्ण बिहारी नूर, उर्दू हिंदी का ब कमाल शायर

जीवनी  कृष्ण बिहारी 'नूर' उर्दू हिंदी का ब कमाल शायर 


कृष्ण बिहारी 'नूर' भारतीय साहित्यिक समुदाय में अपनी मशहूरी पाने वाले एक
 मशहूर ग़ज़ल शायर थे। उनका जन्म गौस नगर, लखनऊ में कुंज बिहारी लाल
 श्रीवास्तव के परिवार में हुआ। उन्होंने अमीनाबाद में स्कूली शिक्षा प्राप्त की और
 लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की।
नूर को उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में दक्षता के लिए जाना जाता था। वह फ़ज़ल 
नकवी के शिष्य थे, जिन्होंने उनके काव्य कौशल को आकार देने में महत्वपूर्ण
 भूमिका निभाई। 
नूर की ग़ज़लें अक्सर प्यार, लालसा, आध्यात्मिकता और जीवन के रहस्यमय पहलुओं 
पर आधारित थीं। उनकी कविता ने मानवीय भावनाओं की गहरी समझ प्रदर्शित की 
और मानवीय अनुभव की जटिलताओं में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान की।


जीवन परिचय 

नाम- कृष्ण बिहारी 'नूर'
जन्म तिथि - 8 नवंबर, सन 1926
जन्म स्थान- गौस नगर लखनऊ
पिता का नाम- बाबू कुंजबिहारीलाल श्रीवास्तव
पत्नी का नाम - शकुन्तला देवी
शिक्षा - अमीनाबाद इण्टर कॉलेज में स्कूली शिक्षा प्राप्त की,लखनऊ विश्वविद्यालय से B.A.  की उपाधि हासिल की
व्यवसाय -सरकार के RLO विभाग सहायक मैनेजर के पद पर कार्य किया,और 30 नवंबर 1984 को सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
देहान्त - 30 मई, 2003 को नूर साहब के निधन आंत की बीमारी के इलाज के दौरान, ग़ज़ियाबाद के एक अस्पताल में होगया



कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब की प्रकाशित पुस्तकें 

1-दुख-सुख (उर्दू)
2-तपस्या (उर्दू)
3-समंदर मेरी तलाश में है (हिंदी)
3-हुसैनियत की छाँव में
4-तजल्ली-ए-नूर
5-मेरे मुक्तक (कविता संग्रह)
6-मेरे गीत (कविता संग्रह)
6-मेरे गीत तुम्हारे हैं (कविता संग्रह)
7-मेरी लम्बी कविताएँ (कविता संग्रह)
8-दो औरतें (कहानी संग्रह)
9-पूरी हक़ीकत पूरा फ़साना (कहानी संग्रह)
10-नातूर (कहानी संग्रह)
11-यह बहस जारी रहेगी (एकांकी नाटक)
12-एक दिन ऐसा होगा (एकांकी नाटक)
13-गांधी के देश में (एकांकी नाटक)
14-रेखा उर्फ नौलखिया (उपन्यास)
15-पथराई आँखों वाला यात्री (उपन्यास)
16-पारदर्शियाँ (उपन्यास)
17-सागर के इस पार से उस पार से (यात्रा वृतांत) ये भी पढ़ें 



1-ग़ज़ल 

आग है पानी है मिट्टी है हवा है मुझ में

और फिर मानना पड़ता है ख़ुदा है मुझ में

अब तो ले दे के वही शख़्स बचा है मुझ में

मुझ को मुझ से जो जुदा कर के छुपा है मुझ में

जितने मौसम हैं सभी जैसे कहीं मिल जाएँ

इन दिनों कैसे बताऊँ जो फ़ज़ा है मुझ में

आइना ये तो बताता है मैं क्या हूँ लेकिन

आइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में

अब तो बस जान ही देने की है बारी ऐ 'नूर'

मैं कहाँ तक करूँ साबित कि वफ़ा है मुझ में

2-ग़ज़ल 

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं 

और क्या जुर्म है पता ही नहीं 

इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं 

मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं 

ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है 

दूसरा कोई रास्ता ही नहीं 

सच घटे या बढ़े तो सच न रहे 

झूट की कोई इंतिहा ही नहीं 

ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ 

ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं 

जिस के कारन फ़साद होते हैं 

उस का कोई अता-पता ही नहीं 

कैसे अवतार कैसे पैग़मबर 

ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं 

चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो 

आईना झूट बोलता ही नहीं 

अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है 

'नूर' संसार से गया ही नहीं 

3-ग़ज़ल 

तेज़ हो जाता है ख़ुशबू का सफ़र शाम के बाद 

फूल शहरों में भी खिलते हैं मगर शाम के बाद 

उस से दरयाफ़्त न करना कभी दिन के हालात 

सुब्ह का भूला जो लौट आया हो घर शाम के बाद 

दिन तिरे हिज्र में कट जाता है जैसे-तैसे 

मुझ से रहती है ख़फ़ा मेरी नज़र शाम के बाद 

क़द से बढ़ जाए जो साया तो बुरा लगता है 

अपना सूरज वो उठा लेता है हर शाम के बाद 

तुम न कर पाओगे अंदाज़ा तबाही का मिरी 

तुम ने देखा ही नहीं कोई शजर शाम के बाद 

मेरे बारे में कोई कुछ भी कहे सब मंज़ूर 

मुझ को रहती ही नहीं अपनी ख़बर शाम के बाद 

यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी 

मुझ को लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद 

तीरगी हो तो वजूद उस का चमकता है बहुत 

ढूँड तो लूँगा उसे 'नूर' मगर शाम के बाद 

CONCLUSION:-

कृष्ण बिहारी नूर एक महान हिंदी-उर्दू कवि थे। उनकी कविताओं की प्रशस्ति और 
प्रशंसा देश-विदेश में थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय साहित्य में
 महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कविताओं में सुंदर अभिव्यक्ति और गहरी भावनाएं 
होती थीं। उनकी कविताओं में आम जनता के जीवन के मुद्दों, प्यार, दर्द, उम्मीद और 
संघर्ष को उन्मुक्त तरीके से प्रकट किया गया। नूर साहब की कविताओं के रंग-बिरंगे 
वाक्य और गाहे अर्थ उनके अद्वितीय कला संग्रह को बढ़ाते थे। हिंदी और उर्दू के माध्यम
 से, उन्होंने लोगों के दिलों में छूने वाली कविताएं बनाईं।उनका योगदान हिंदी-उर्दू साहित्य 
 की धरोहर माना जाता है, और वे एक महान कवि के रूप में सदैव याद किए जाएंगे।


नूर साहब के शिष्यों में गुलशन बरेलवी (लखनऊ), डॉ. कुमार बेचैन (गाजियाबाद), 
तुफैल चतुर्वेदी, डॉ. मधुरिमा सिंह (लखनऊ), देवकीनंदन 'शांत' (लखनऊ), 
इम्तियाज अली 'राज' भारती (लखनऊ), ज्योति 'किरण' शामिल थे। 'सिन्हा (लखनऊ),
 कृष्ण कुमार 'नाज़' (मुरादाबाद), दीपक जैन 'दीप' (गुना), अरविन्द 'असर' (मध्य प्रदेश),
 हमीदुल्ला खान 'कमर' (लखनऊ), रवीन्द्र कुमार 'निर्मल' (लखनऊ) , और ओम शंकर 'असर' (झाँसी)।


कृष्ण बिहारी 'नूर' एक महान कवि थे जिन्होंने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
 उनकी आसान हिंदी शैली पाठकों को पसंद आई और उनकी काव्य प्रतिभा महत्वाकांक्षी
 लेखकों और उत्साही लोगों को प्रेरित करती रही है। उनके शिष्य, जो उनकी शिक्षाओं से 
प्रभावित हुए, हिंदी कविता की समृद्ध विरासत को संरक्षित और प्रचारित करते हुए, उनकी
 विरासत को आगे बढ़ाते हैं। 30 मई, 2003 को नूर साहब के निधन से एक युग का अंत हो 
गया, लेकिन उनके शब्द और उनका प्रभाव उन लोगों के दिलों में हमेशा रहेगा जो उनके 
काम की प्रशंसा करते हैं।यहभीपढ़ें

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