फ़हमीदा रियाज़, पाकिस्तान की हिंदी कवयित्री उर्दू लेखिका

फहमीदा रियाज़  पाकिस्तान की एक प्रमुख प्रगतिशील उर्दू कवयित्री, लेखक, और मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर गहरा प्रभाव डाला और महिला सशक्तिकरण की जोरदार वकालत की। फहमीदा की रचनाएँ उनकी निडरता और साहस को दर्शाती हैं, जिसने उन्हें एक विवादास्पद लेकिन अत्यधिक सम्मानित साहित्यकार बना दिया।


फहमीदा रियाज़ पाकिस्तान की मशहूर महिला कवियित्री और उर्दू लेखिक थीं, 
जिन्हें उनकी मजबूत नारीवादी और विरोधी प्रवृत्ति के लिए जाना जाता था। 
उन्होंने 28 जुलाई, 1945 को भारत में जन्म लिया था, जबकि वो समय भारत
के  विभाजन से पहले था, और उनका परिवार मेरठ, यूपी के एक साहित्यिक 
परिवार से संबंध रखता था। उनके पिता का सिंध में तबादला होने के बाद 
उनका परिवार हैदराबाद में बस गया। उनके पिता की मृत्यु हो गई जब वह
 चार साल की थी और इसलिए उन्हें उनकी  मां ने पाला था। शिक्षा पूरी करने के
 बाद उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में न्यूसकास्टर के रूप में काम करना शुरू कर
 दिया। वह बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर चुकी थी, और उन्होंने अपनी
 खुद की उर्दू मैगज़ीन  'आवाज़' चलाई। 'आवाज़' बाद में अपने क्रांतिकारी 
दृष्टिकोण वाले आलेख प्रकाशित करने के कारण प्रतिबंधित कर दी गई। इसके
 परिणामस्वरूप, उनके परिवार कोसत्ताधारी सरकार पर स्वतंत्र दृष्टिकोण वाले 
लेखों को लेकर आठ साल तक निर्वासितहोना पड़ा।यहभीपढ़ें


 उन्होंने राष्ट्रीय पुस्तक मंडल और उर्दू शब्दकोश बोर्ड में प्रबंध निदेशक का पद भी
 संभाला। फहमीदा ने 'गोदावरी', 'खत-ए मरमूज़', 'खाना-ए आब ओ गिल','पत्थर की ज़बान',
 'धूप', 'बदन दरीदा', 'कराची', 'अधूरा आदमी', 'खुले दरीचे से','काफ़िले परिंदों के', 
'गुलाबी कबूतर' आदि कई पुस्तकों की रचना की है। इसके अलावा, उन्होंने मौलाना 
जलालुद्दीन रूमी की मसनवी का पर्शियान से उर्दू में, शाह अब्दुल लतीफ भिटाई और
 शेख अयाज़ की कामें सिन्धी से उर्दू में, और रूमी की शायरी कोउर्दू में अनुवाद भी किया है।




जीवन परिचय 

नाम - फहमीदा रियाज़ 
उप नाम - "रियाज़"
जन्म तिथि - 28 जुलाई, सन 1946 
जन्म स्थान - मेरठ उत्तर प्रदेश ( ब्रिटिश  भारत )
पिता का नाम- रियाज़ उद दीन अहमद 
माता का नाम - हुसना बेग़म 
पति का नाम - जफर अली उजान
शिक्षा - प्राथमिक शिक्षा ,उर्दू ,सिंधी ,फ़ारसी पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हुयी,
कम उम्र में ही शादी करके लंदन चली गयी,वही से ग्रैजुएशन किया,
लंदन में ही उन्होंने बीबीसी की उर्दू रेडिओ रेडिओ सर्विस में भी काम किया 
व्यवसाय - BBC रेडिओ एंकर,पाकिस्तान रेडिओ न्यूज़ रीडर,लेखक कवी अध्यापक
देहांत ( वफ़ात ) -21 नवंबर सन 2018,लाहौर पाकिस्तान


अवार्ड एवं  सम्मान 

1-उर्दू साहित्य-कविता के लिए शेख अयाज़ पुरस्कार
2-में सितारा ए इम्तियाज़ सन 2010
3-उर्दू साहित्य-कविता के लिए प्रेसिडेंशियल प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस अवार्ड
4-अल मुफ़्ता पुरस्कार
5-हेमेट हेलमैन पुरस्कार - ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा
6-कमाल-ए-फन अवार्ड शोध कार्यों में लाइफ टाइम अचीवमेंट लिए क्षेत्र का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार है। पुरस्कार की कीमत पाकिस्तानी  500,000 रुपये,सन 1997यहभीपढ़ें



फहमीदा रियाज़ की प्रकाशित पुस्तकें 

1-बदन दरीदा 
2-धूप 
3-अधूरा आदमी 
4-खत ए मरमूज़ 
5-में मिटटी की मूरत 
6-पत्थर की ज़बान-1 
7-मेरी नज़्मे 
8-सब लाल ओ गौहर 
9-आदमी की ज़िंदगी 
10-ख़ातिर ए ज़िंदगी 
11-एक था अज़्दहा 
12-काफ़िले परिंदों के
13-कराची
14-गुलाबी कबूतर 
15-खाना-ए आब ओ गिल





शायरा कवित्रि फहमीदा रियाज़ की कुछ ग़ज़लें और नज़्मे 

1-ग़ज़ल 

मुद्दत से ये आलम है दिल का हँसता भी नहीं रोता भी नहीं 

माज़ी भी कभी दिल में न चुभा आइंदा का सोचा भी नहीं 

वो मेरे होंट पे लिक्खा है जो हर्फ़ मुकम्मल हो न सका 

वो मेरी आँख में बस्ता है जो ख़्वाब कभी देखा भी नहीं 

चलते चलते कुछ थम जाना फिर बोझल क़दमों से चलना 

ये कैसी कसक सी बाक़ी है जब पाँव में वो काँटा भी नहीं 

धुँदलाई हुई शामों में कोई परछाईं सी फिरती रहती है 

मैं आहट सुनती हूँ जिस की वो वहम नहीं साया भी नहीं 

तज़ईन-ए-लब-ओ-गेसू कैसी पिंदार का शीशा टूट गया 

थी जिस के लिए सब आराइश उस ने तो हमें देखा भी नहीं 

2-ग़ज़ल 

कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में 

वो शोख़ रंग भी धीमे पड़े हवाओं में 

मैं तेज़-गाम चली जा रही थी उस की सम्त 

कशिश अजीब थी उस दश्त की सदाओं में 

वो इक सदा जो फ़रेब-ए-सदा से भी कम है 

न डूब जाए कहीं तुंद-रौ हवाओं में 

सुकूत-ए-शाम है और मैं हूँ गोश-बर-आवाज़ 

कि एक वा'दे का अफ़्सूँ सा है फ़ज़ाओं में 

मिरी तरह यूँही गुम-कर्दा-राह छोड़ेगी 

तुम अपनी बाँह न देना हवा की बाँहों में 

नुक़ूश पाँव के लिखते हैं मंज़िल-ए-ना-याफ़्त 

मिरा सफ़र तो है तहरीर मेरी राहों में 


1-नज़्म 

तुम बिल्कुल हम जैसे निकले 

अब तक कहाँ छुपे थे भाई 

वो मूरखता वो घामड़-पन 

जिस में हम ने सदी गँवाई 

आख़िर पहुँची द्वार तुहारे 

अरे बधाई बहुत बधाई 

प्रेत धर्म का नाच रहा है 

क़ाएम हिन्दू राज करोगे 

सारे उल्टे काज करोगे 

अपना चमन ताराज करोगे 

तुम भी बैठे करोगे सोचा 

पूरी है वैसी तय्यारी 

कौन है हिन्दू कौन नहीं है 

तुम भी करोगे फ़तवा जारी 

होगा कठिन यहाँ भी जीना 

दाँतों आ जाएगा पसीना 

जैसी-तैसी कटा करेगी 

यहाँ भी सब की साँस घुटेगी 

भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा 

अब जाहिल-पन के गुन गाना 

आगे गढ़ा है ये मत देखो 

वापस लाओ गया ज़माना 

मश्क़ करो तुम आ जाएगा 

उल्टे पाँव चलते जाना 

ध्यान न दूजा मन में आए 

बस पीछे ही नज़र जमाना 

एक जाप सा करते जाओ 

बारम-बार यही दोहराओ 

कैसा वीर महान था भारत 

कितना आली-शान था भारत 

फिर तुम लोग पहुँच जाओगे 

बस परलोक पहुँच जाओगे 

हम तो हैं पहले से वहाँ पर 

तुम भी समय निकालते रहना 

अब जिस नर्क में जाओ वहाँ से 

चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना 


2-नज़्म 

दिल्ली! तिरी छाँव बड़ी क़हरी 

मिरी पूरी काया पिघल रही 

मुझे गले लगा कर गली गली 

धीरे से कहे'' तू कौन है री?'' 

मैं कौन हूँ माँ तिरी जाई हूँ 

पर भेस नए से आई हूँ 

मैं रमती पहुँची अपनों तक 

पर प्रीत पराई लाई हूँ 

तारीख़ की घोर गुफाओं में 

शायद पाए पहचान मिरी 

था बीज में देस का प्यार घुला 

परदेस में क्या क्या बेल चढ़ी 

नस नस में लहू तो तेरा है 

पर आँसू मेरे अपने हैं 

होंटों पर रही तिरी बोली 

पर नैन में सिंध के सपने हैं 

मन माटी जमुना घाट की थी 

पर समझ ज़रा उस की धड़कन 

इस में कारूंझर की सिसकी 

इस में हो के डालता चलतन! 

तिरे आँगन मीठा कुआँ हँसे 

क्या फल पाए मिरा मन रोगी 

इक रीत नगर से मोह मिरा 

बसते हैं जहाँ प्यासे जोगी 

तिरा मुझ से कोख का नाता है 

मिरे मन की पीड़ा जान ज़रा 

वो रूप दिखाऊँ तुझे कैसे 

जिस पर सब तन मन वार दिया 

क्या गीत हैं वो कोह-यारों के 

क्या घाइल उन की बानी है 

क्या लाज रंगी वो फटी चादर 

जो थर्की तपत ने तानी है 

वो घाव घाव तन उन के 

पर नस नस में अग्नी दहकी 

वो बाट घिरी संगीनों से 

और झपट शिकारी कुत्तों की 

हैं जिन के हाथ पर अँगारे 

मैं उन बंजारों की चीरी 

माँ उन के आगे कोस कड़े 

और सर पे कड़कती दो-पहरी 

मैं बंदी बाँधूँ की बांदी 

वो बंदी-ख़ाने तोड़ेंगे 

है जिन हाथों में हाथ दिया 

सो सारी सलाख़ें मोड़ेंगे 

तू सदा सुहागन हो माँ री! 

मुझे अपनी तोड़ निभाना है 

री दिल्ली छू कर चरण तिरे 

मुझ को वापस मुड़ जाना है 

Conclusion:-

तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अमृता प्रीतम के अनुरोध पर फ़हमीदा
 रियाज़ को राजनीतिक शरण की अनुमति दी। इसके तुरंत बाद, उनके पति उनके
 साथ देहली में आ गए, जहाँ उन्होंने सात 7 वर्ष निर्वासन में बिताए।
फहमीदा रियाज़, उर्दू की महान कवित्री थीं, जिन्होंने सरल हिंदी में शानदार शब्दों की 
सृजन की। उनकी कविताएं सरलता और गहराई से भरी होती थीं, जो हर एक को
 सम्मोहित करती थीं। फहमीदा रियाज़ ने उर्दू साहित्य में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई
 और आज भी उनकी कविताओं का प्रभाव दिलों में बसा हुआ है। उनकी रचनाएं हमेशा
 हमारी साथ रहेंगी और उर्दू के सौंदर्य को प्रसन्नता से ग्रहण करने का अवसर देती रहेंगी।
 हम फहमीदा रियाज़ को सम्मान करते हैं और उनकी कविताओं के रंगीन विश्व में खो 
जाने का दुःख भी महसूस करते हैं।यहभीपढ़ें


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