डॉ. कुमार विश्वास, जो की एक प्रमुख हिंदी कवि हैं, का जन्म 10 फरवरी 1970 को पंजाब, भारत में हुआ। उनका पूरा नाम कुमार विश्वास पंडेय है। वे एक प्रसिद्ध कवि, लेखक, वक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें अपनी कविता और भाषण कौशल के लिए विख्यात किया जाता है।
बचपन से ही कुमार विश्वास को कविता और लेखन में रुचि थी। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा को दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरा किया और यहां परंपरागत विषयों के साथ-साथ साहित्य और कविता में भी रुचि बढ़ाई। उनकी पीएचडी शोध का विषय "अधुनिक हिंदी कविता में वात्सल्य एवं स्त्रीत्व की प्रासंगिकता" था।
कुमार विश्वास की प्रसिद्धता उनके कविता-वाचन के माध्यम से हुई। उनकी पहली कविता संग्रह किताब 'कोई दीवाना कहता है' जारी हुई, जिसे बहुत प्रशंसा मिली और वह बहुत लोकप्रिय हुई। उसके बाद कविता संग्रह 'कहानी खत्म हो गई' और 'तर्कश्रेष्ठ' भी प्रकाशित हुए।
जीवन परिचय
वास्तविक नाम - कुमार विश्वास
जन्मतिथि = 10 फ़रवरी सन 1970
पिता का नाम - डॉ चंद्रपाल शर्मा ,RSS पिलखुआ डिग्री कालेज में प्रवक्ता रहे
माता का नाम - श्री मति रमा शर्मा
पत्नी - मंजू शर्मा
जन्म स्थान - पिलखुआ ग़ज़िआबाद उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीयता - भारतीय
स्कूल /विद्यालय - लाला गंगा सहाय स्कूल, पिलखुवा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज, पिलखुवा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
शिक्षा - M.A. हिंदी ,कोरवी लोक गीतों में P.hd
राजनैतिक जीवन - कुमार विश्वास अगस्त 2011 के दौरान जनलोकपाल आन्दोलन के लिए गठित टीम अन्ना के एक सक्रिय सदस्य रहे हैं,नवंबर 2012 में, जब उन्होंने औपचारिक रूप से आम आदमी पार्टी की स्थापना की
कॅरियर - कुमार विश्वास ने अपना करियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 में शुरू किया। आज कुमार विश्वास हिन्दी कविता मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] उन्होंने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। विश्वास मंच के कवि होने के साथ साथ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गीतकार भी हैं। उनके द्वारा लिखे गीत अगले कुछ दिनों में फ़िल्मों में दिखाई पड़ेगी। उन्होंने आदित्य दत्त की फ़िल्म 'चाय-गरम' में अभिनय भी किया है
पुरस्कार व् सम्मान
1-वर्ष 1994 में 'काव्य-कुमार' अवार्ड से सम्मानित किया गया
2- वर्ष 2006 में 'साहित्य श्री' अवार्ड से सम्मानित किया गया
3 - वर्ष 2010 में डॉ. उर्मिलेश 'गीत-श्री' अवार्ड से सम्मानित किया गया
4 - वर्ष 2004 में 'डॉ. सुमन अलंकरण' अवार्ड से सम्मानित किया गया
5 - डॉ. कुमार विश्वास को मंगलायतन विश्वविद्यालय द्वारा डी-लिट की उपाधि से सम्मानित किया गया
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डॉ कुमार विश्वास विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक पहलों में भी शामिल रहे हैं।
उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें कविता संग्रह और निबंध शामिल हैं, और
अपने कविता पाठ के एल्बम जारी किए हैं। उनकी कविता अक्सर सामाजिक
मुद्दों, देशभक्ति और प्रेम को संबोधित करती है।
कुमार विश्वास ने निम्नलिखित पुस्तकें लिखी हैं
"कोई दीवाना कहता है" (हिन्दी कविता संग्रह)
"रागिनी" (हिन्दी कविता संग्रह)
"कविता कोश" (हिन्दी कविता संग्रह)
"फिर मेरी याद" (हिन्दी कविता संग्रह)
"खुदकलामी" (हिन्दी कविता संग्रह)
"विश्वासघाट" (हिन्दी कविता संग्रह)
"तर्पण" (हिन्दी काव्य संग्रह)
1-कविता
कोई दीवाना कहता हे कोई पागल समझता हे
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता
में तुझसे दूर केसा तू मुझसे दूर कैसी हे
ये तेरा दिल समझता हे या मेरा दिल समझता हे
के मोहब्बत एक एहसासो की पवन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहां सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आसूं हैं
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे आगे
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे
समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आसु प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आसु प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
2-ग़ज़ल
फिर मिरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मिरे फेसबुक पे आ कर वो
ख़ुद को बैनर बना रही होगी
अपने बेटे का चूम कर माथा
मुझ को टीका लगा रही होगी
फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी
जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी
3-ग़ज़ल
रंग दुनिया ने दिखाया है निराला देखूँ
है अँधेरे में उजाला तो उजाला देखूँ
आइना रख दे मिरे सामने आख़िर मैं भी
कैसा लगता है तिरा चाहने वाला देखूँ
कल तलक वो जो मिरे सर की क़सम खाता था
आज सर उस ने मिरा कैसे उछाला देखूँ
मुझ से माज़ी मिरा कल रात सिमट कर बोला
किस तरह मैं ने यहाँ ख़ुद को सँभाला देखूँ
जिस के आँगन से खुले थे मिरे सारे रस्ते
उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ
4-गीत
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
Conclusion:-
डॉ कुमार विश्वास निस्संदेह समकालीन युग में एक उल्लेखनीय कवि हैं।
उनके साहित्यिक कार्यों, मोहक प्रदर्शनों और व्यापक दर्शकों पर प्रभाव
ने उन्हें व्यापक मान्यता और प्रशंसा अर्जित की है। अपनी अनूठी शैली
और गहन छंदों के साथ, डॉ कुमार विश्वास खुद को कविता की दुनिया में
एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे हैं।
डॉ. कुमार विश्वास की कविता के उल्लेखनीय पहलुओं में से एक उनका
लोगों से गहरे भावनात्मक स्तर पर जुड़ने की क्षमता है। उनके शब्दों में
मजबूत भावनाओं को जगाने की शक्ति है, जो उनकी कविता को प्रासंगिक
और प्रभावशाली बनाती है। अपनी रचनाओं के माध्यम से, वह अक्सर
सामाजिक मुद्दों, प्रेम, देशभक्ति और मानवीय भावनाओं को संबोधित
करते हैं, अपने श्रोताओं को मोहित करते हैं और एक स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।
हिंदी साहित्य में डॉ. कुमार विश्वास का योगदान और भाषा को बढ़ावा
देने और संरक्षित करने के उनके प्रयास सराहनीय हैं। उन्होंने अपने
प्रदर्शन और विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से, विशेष रूप से
युवा पीढ़ी के बीच हिंदी कविता को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण