डॉ राही मासूम रज़ा एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक, कवि और नाटककार थे जिन्होंने साहित्य
और भारतीय सिनेमा की दुनिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1 सितंबर, 1927 को गाजीपुर,
उत्तर प्रदेश, भारत में जन्मे, रज़ा सांस्कृतिक रूप से समृद्ध वातावरण में पले-बढ़े, जिसने
कहानी कहने और लिखने के उनके जुनून को पोषित किया।
रजा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाजीपुर में पूरी की और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम
विश्वविद्यालय में उच्च अध्ययन किया। साहित्य के प्रति उनके गहरे प्रेम ने उन्हें उर्दू
शायरी और कथा साहित्य की दुनिया में जाने के लिए प्रेरित किया। उन्हें मानवीय
भावनाओं की गहरी समझ थी और उन्हें अपने लेखन में कैद करने की एक अनूठी
क्षमता थी, जिससे वह अपने समय के साहित्यिक हलकों में एक प्रिय व्यक्ति बन गए।
1950 के दशक में, रज़ा ने एक लेखक के रूप में अपना करियर शुरू किया, विभिन्न
उर्दू प्रकाशनों और साहित्यिक पत्रिकाओं में योगदान दिया। उनकी कविताओं और
कहानियों ने पाठकों को प्रभावित किया और उनकी उल्लेखनीय प्रतिभा को प्रदर्शित किया।
उन्होंने नाटक के लिए अपने प्यार को अपनी सहज कहानी कहने की क्षमताओं के साथ
जोड़ते हुए कई नाटक भी लिखे। उनकी रचनाएँ उनके शक्तिशाली आख्यानों, विशद चरित्र
चित्रण और विचारोत्तेजक विषयों के लिए लोकप्रिय हुईं।
भारतीय सिनेमा की दुनिया में रज़ा की प्रतिभा पर किसी का ध्यान नहीं गया। जव उन्होंने
बॉलीवुड फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखना शुरू किया और फिल्म उद्योग में बड़ी सफलता
हासिल की। उनके सबसे उल्लेखनीय योगदानों में से एक कमाल अमरोही द्वारा निर्देशित
फिल्म समीक्षकों द्वारा प्रशंसित "पाकीज़ा" (1972) की पटकथा और संवाद थे। अपने
काव्यात्मक संवादों और उत्तम कहानी कहने के लिए जानी जाने वाली यह फिल्म एक
कालातीत क्लासिक बन गई।
हालाँकि, रज़ा की सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक उपलब्धि महाकाव्य टीवी श्रृंखला
"महाभारत"के रूप में आई, जो 1980 के दशक के अंत में प्रसारित हुई।उन्होंने
प्राचीन भारतीय महाकाव्य को टेलीविजन प्रारूप में रूपांतरित करने के लिए निर्देशक
रवि चोपड़ा के साथमिलकर काम किया। रज़ा के त्रुटिहीन लेखन कौशल ने महाभारत
के पात्रों को जीवंत करदिया, और श्रृंखला एक सांस्कृतिक घटना बन गई, जिसने पूरे
देश के दर्शकों को आकर्षित किया। उनके संवादों और कथा शैली को उनकी गहराई
और भावनात्मक प्रभाव के लिए अपारप्रशंसा मिली।
दुख की बात है कि 15 मार्च, 1992 को डॉ. राही मासूम रज़ा का निधन हो गया, जो अपने
पीछे उत्कृष्ट कृतियों की एक विरासत छोड़ गए। भारतीय साहित्य और सिनेमा में उनका
लेखन और योगदान उनकी अपार प्रतिभा और स्थायी प्रभाव का प्रमाण है |
जीवन परिचय
नाम - राही मासूम
उप नाम - "रज़ा"
जन्म-1 सितम्बर, सन -1925
जन्म स्थान - गाव गंगोली, गाजीपुर उत्तरप्रदेश
पिता का नाम -बशीर हसन आबिदी
माता का नाम -नफ़ीसा बेगम
वैवाहिक- नय्यर नैय्यर रजा के साथ लव मैरिज
शिक्षा-राही की प्रारम्भिक शिक्षा ग़ाज़ीपुर में हुई,
सन -1960 अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से M.A. किया,
1964 में उन्होंने अपने शोधप्रबन्ध तिलिस्म-ए-होशरुबा में
भारतीय सभ्यता और संस्कृति विषय पर P.hd की
व्यवसाय -अलीगढ मुस्लिम युनिवेर्सिटी, अलीगढ के उर्दू विभाग में प्रोफेसर,
लेखक,कवि ,कहानी कार,पट फिल्मो की कथा लेखक,टी TV सीरियल,नाटक
देहान्त (वफात ) - इस प्रतिभाशाली मशहूर शायर का निधन 15 मार्च, 1992 को हुआ
राही मासूम रज़ा साहब की प्रकाशित पुस्तकें
1-आधा गॉंव
2-दिल एक सादा कागज़
3-नीम का पेड़
4-क़यामत
5-टोपी शुक्ला
6-कटराबी आरज़ू
7-ओस की बूँद
8-कारोबार ए तमन्ना
9-असंतोष के दिन
10-ग़रीब ए शहर
11-नया साल
12-अजनबी शहर अजनबी रास्ते
13-यास यागना चंगेज़ी
14-अट्ठारह सो सत्तावन
15-मौजे-गुल
16-मौजे सबा
17-रक्से-मय

राही मासूम रज़ा साहब के मशहूर गज़ले
1-ग़ज़ल
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक क़तरा होगा चाँद
रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद
चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद
2-ग़ज़ल
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
दामन-ए-मौज-ए-सबा ख़ाली हुआ
बू-ए-गुल दश्त-ए-वफ़ा में खो गई
हाए इस परछाइयों के शहर में
दिल सी इक ज़िंदा हक़ीक़त खो गई
हम ने जब हँस कर कहा मम्नून हैं
ज़िंदगी जैसे पशेमाँ हो गई
3-ग़ज़ल
हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग
उस बस्ती के बाज़ारों में रोज़ कहें अफ़्साने लोग
यादों से बचना मुश्किल है उन को कैसे समझाएँ
हिज्र के इस सहरा तक हम को आते हैं समझाने लोग
कौन ये जाने दीवाने पर कैसी सख़्त गुज़रती है
आपस में कुछ कह कर हँसते हैं जाने पहचाने लोग
फिर सहरा से डर लगता है फिर शहरों की याद आई
फिर शायद आने वाले हैं ज़ंजीरें पहनाने लोग
हम तो दिल की वीरानी भी दिखलाते शरमाते हैं
हम को दिखलाने आते हैं ज़ेहनों के वीराने लोग
उस महफ़िल में प्यास की इज़्ज़त करने वाला होगा कौन
जिस महफ़िल में तोड़ रहे हों आँखों से पैमाने लोग
नज़्म-1
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो।
मेरे उस कमरे को लूटो
जिस में मेरी बयाज़ें जाग रही हैं
और मैं जिस में तुलसी की रामायण से सरगोशी कर के
कालिदास के मेघदूत से ये कहता हूँ
मेरा भी एक सन्देशा है
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो।
लेकिन मेरी रग रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है,
मेरे लहू से चुल्लु भर कर
महादेव के मुँह पर फैंको,
और उस जोगी से ये कह दो
महादेव! अपनी इस गंगा को वापस ले लो,
ये हम ज़लील तुर्कों के बदन में
गाढ़ा, गर्म लहु बन बन के दौड़ रही है।
Conclusion:-
रज़ा की प्रतिभा कविता, नाटकों और उपन्यासों सहित विभिन्न साहित्यिक रूपों में
दिखाई दी। कहानी कहने की कला में उनकी महारत और जटिल विषयों में तल्लीन
करने की उनकी क्षमता ने उन्हें अलग कर दिया। उनके सबसे उल्लेखनीय योगदानों
में से एक महाकाव्य टेलीविजन श्रृंखला "महाभारत" की पटकथा और संवाद थे।
प्राचीन भारतीय महाकाव्य के उनके अनुकूलन ने पात्रों की बारीकियों और उनकी
दुविधाओं को पकड़ने में उनके असाधारण कौशल का प्रदर्शन किया।
साहित्य में रज़ा के योगदान ने उन्हें कई सम्मान और पहचान दिलाई, जिसमें उनके
उपन्यास "टोपी शुक्ला" के लिए 1993 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी
शामिल है। उनका काम आकांक्षी लेखकों और कवियों को प्रेरित करना जारी रखता
है, और उनका लेखन उर्दू साहित्य के समृद्ध काल का एक अभिन्न अंग है।
साहित्य में रज़ा के योगदान ने उन्हें कई सम्मान और पहचान दिलाई, जिसमें उनके
उपन्यास "टोपी शुक्ला" के लिए 1993 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी
शामिल है। उनका काम आकांक्षी लेखकों और कवियों को प्रेरित करना जारी रखता है,
और उनका लेखन उर्दू साहित्य के समृद्ध काल एक अभिन्न अंग है।
राही मासूम रज़ा निस्संदेह एक महान कवि और लेखक थे, जिन्होंने भारत के
साहित्यिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। मानवीय अनुभव को पकड़ने
की उनकी क्षमता, उनकी अंतर्दृष्टिपूर्ण कहानी, और भावनाओं की उनकी गहरी
समझ आज भी पाठकों के साथ प्रतिध्वनित होती है। एक महान शायर (महान कवि)
और लेखक (लेखक) के रूप में उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए साहित्य
की दुनिया को प्रेरित और समृद्ध करती रहेगी।ये भी पढ़ें
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