सफर में धूप तो होगी, जो तुम भी निकल सको चलो निदा फ़ाज़ली शायरी और बायोग्राफी


निदा फ़ाज़ली एक प्रसिद्ध उर्दू शायर, गीतकार और गीतकार थे जिन्होंने साहित्य और

 संगीत की दुनिया पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। 12 अक्टूबर, 1938 को दिल्ली, भारत 

में मुक्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली के रूप में जन्मे, वह अपने समय के सबसे प्रसिद्ध उर्दू

 कवियों में से एक बन गए। उनकी हृदयस्पर्शी और विचारोत्तेजक कविता जीवन के सभी

 क्षेत्रों के लोगों को पसंद आई, जिससे वे उर्दू साहित्य के क्षेत्र में एक प्रिय व्यक्ति बन गए।

निदा फ़ाज़ली की परवरिश पर उनके परिवार के समृद्ध सांस्कृतिक और साहित्यिक माहौल

 का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके पिता, हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद उबैदुल्लाह कासमी, एक धार्मिक

 विद्वान थे, जबकि उनकी माँ, कनीज़ फातिमा, एक प्रसिद्ध उर्दू कवयित्री थीं। छोटी उम्र से 

ही निदा फ़ाज़ली भाषा और साहित्य की सुंदरता से परिचित हो गए, जिससे उनकी अपनी 

रचनात्मक यात्रा शुरू हो गई।



अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान, निदा फ़ाज़ली मुंबई (पूर्व में बॉम्बे) चले गए और जीवंत फिल्म 

उद्योग का हिस्सा बन गए। इसी माहौल में उन्होंने एक गीतकार के रूप में अपना करियर शुरू 

किया और हिंदी सिनेमा की दुनिया में अपनी काव्य प्रतिभा का योगदान दिया। उन्होंने कई 

प्रतिष्ठित संगीत संगीतकारों और निर्देशकों के साथ मिलकर ऐसे गीत लिखे, जिन्होंने अपनी 

गहन भावनाओं और विचारोत्तेजक कल्पना से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके कुछ 

उल्लेखनीय कार्यों में फिल्म "सरफरोश" से "होशवालों को खबर क्या" और फिल्म "सूर" से

 "आ भी जा" शामिल हैं।


फिल्म उद्योग में अपने काम के अलावा, निदा फ़ाज़ली ने उर्दू शायरी के क्षेत्र में भी उत्कृष्ट 

प्रदर्शन किया। उनके गीतों में आत्मनिरीक्षण की गहरी भावना थी, जिसमें प्रेम, जीवन, 

आध्यात्मिकता और सामाजिक मुद्दों जैसे विषयों की खोज की गई थी। उनमें अपने मार्मिक

 शब्दों के माध्यम से पाठकों और श्रोताओं के दिलों को छू लेने की अद्वितीय क्षमता थी। 

निदा फ़ाज़ली की शायरी में मानवीय स्थिति और समाज में व्यक्तियों के संघर्षों के प्रति 

उनकी संवेदनशीलता झलकती है।येभीपढ़ें


अपने शानदार करियर के दौरान, निदा फ़ाज़ली को उर्दू साहित्य में उनके योगदान के 

लिए कई प्रशंसाएँ और मान्यताएँ मिलीं। उनके कविता संग्रह "खोया हुआ सा कुछ" के 

लिए उन्हें 1998 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार 

सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उनके काम को दुनिया भर 

के विद्वानों और कविता प्रेमियों द्वारा मनाया और अध्ययन किया जा रहा है।


निदा फ़ाज़ली की कलात्मक विरासत उनके लेखन से भी आगे तक फैली हुई है। उन्हें

 प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह जैसे अन्य उल्लेखनीय कलाकारों और कलाकारों 

के साथ सहयोग के लिए जाना जाता था। साथ में, उन्होंने ऐसी उत्कृष्ट रचनाएँ बनाईं, 

जिनमें गहन कविता के साथ भावपूर्ण संगीत का मिश्रण था, जिसने ग़ज़ल शैली पर एक 

अमिट छाप छोड़ी।


दुखद बात यह है कि निदा फ़ाज़ली का 8 फरवरी, 2016 को मुंबई में साहित्यिक और 

संगीत योगदान का खजाना छोड़कर निधन हो गया। उनकी कविता लोगों को प्रेरित 

करती रहती है, हमें गहरी भावनाओं और सार्वभौमिक सच्चाइयों को व्यक्त करने के

 लिए शब्दों की शक्ति की याद दिलाती है। एक कवि, गीतकार और दार्शनिक के रूप

 में निदा फ़ाज़ली की विरासत जीवित है, यह सुनिश्चित करते हुए कि मानवीय अनुभव 

में उनकी गहन अंतर्दृष्टि आने वाली पीढ़ियों तक गूंजती रहेगी।


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जीवन परिचय 

नाम - मुक्तिदा हसन
उप नाम- "निदा फ़ाज़ली "
पिता का नाम-हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद उबैदुल्लाह कासमी ( इस्लामिक विध्वान )
माता का नाम- कनीज़ फातिमा
पत्नी -निदा फ़ाज़ली साहब ने दो शादिया की थी ,उनकी एक पत्नी मालती जोशी हैं जिससे उन्हें एक बेटी ,तहरीर हैं 
जन्म- 12 अक्टूबर, सन-1938
जन्म स्थान- दिल्ली 
शिक्षा- स्कूली शिक्षा ग्वालियर से प्राप्त की, इसके बाद ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई की।
व्यवसाय- निदा फाजली 1964 में मुंबई आए और धर्मयुग मैगज़ीन , ब्लिट्ज जैसे न्यूज़ पेपर। में काम किया। उनकी शायरी फिल्म इंडस्ट्री और हिंदी और उर्दू साहित्य के लेखकों को आकर्षित किया।येभीपढ़ें

निदा फ़ाज़ली की प्रकाशित पुस्तकें 

1-लफ़्ज़ों के फूल ( पहला दीवान ए ग़ज़ल ) 
2-मोर नाच
3-आँख और ख़्वाब के दरमियाँ
4-खोया हुआ सा कुछ (1998 में साहित्य अकादमी से अवार्ड )
5-आँखों भर आकाश
6-सफ़र में धूप तो होगी

समाने हयात/बायोग्राफी 

दीवारों के बीच
दीवारों के बाहर
निदा फ़ाज़ली (संपादक - कन्हैया लाल नंदन)

संपादित

बशीर बद्र- नयी ग़ज़ल का एक नाम
जाँनिसार अख़्तर-एक जवान मौत
दाग़ देहलवी -ग़ज़ल का एक स्कूल
मुहम्मद अलवी-शब्दों का चित्रकार
जिगर मुरादाबादी- मुहब्बतों का शायर

मेमॉयर /संस्मरण

मुलाक़ातें
सफ़र में धूप तो होगी
तमाशा मेरे आगे

अवार्ड्स व् सम्मान 

1-खोया हुआ सा कुछ (कविता संग्रह) के लिए उर्दू में साहित्य अकादमी पुरस्कार सन 1998
2-सुर के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का स्टार स्क्रीन अवार्ड सन 2003
3-बॉलीवुड मूवी पुरस्कार - सुर के लिए आ भी जा के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार सन 2003 
4-पद्म श्री; भारत सरकार सन 2013

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निदा फ़ाज़ली की ग़ज़लें और नज़्मे 


1-ग़ज़ल 


कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 

कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता 

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो 

जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता 

कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें 

छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता 

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं 

ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता 

चराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है 

ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता 

2-ग़ज़ल 


सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो 

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो 

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं 

तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो 

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता 

मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो 

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा 

ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो 

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें 

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो 

3-ग़ज़ल 


बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ 

याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ 

बाँस की खर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे 

आधी सोई आधी जागी थकी दो-पहरी जैसी माँ 

चिड़ियों की चहकार में गूँजे राधा मोहन अली अली 

मुर्ग़े की आवाज़ से बजती घर की कुंडी जैसी माँ 

बीवी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में 

दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ 

बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई 

फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ 

1-नज़्म 


सूनी सूनी थी फ़ज़ा 

मैं ने यूँही 

उस के बालों में गुँधी ख़ामोशियों को छू लिया 

वो मुड़ी 

थोड़ा हँसी 

मैं भी हँसा 

फिर हमारे साथ 

नदियाँ वादियाँ 

कोहसार बादल 

फूल कोंपल 

शहर जंगल 

सब के सब हँसने लगे 

इक मोहल्ले में 

किसी घर के 

किसी कोने की 

छोटी सी हँसी ने 

दूर तक फैली हुई दुनिया को 

रौशन कर दिया है 

ज़िंदगी में 

ज़िंदगी का रंग फिर से भर दिया है 


CONCLUSION:-येभीपढ़ें

निदा फ़ाज़ली, एक महान शायर थे। उनकी कविताएं, उनकी शेरों में गहराई और 
भावनाओं की संवेदनशीलता को स्पष्टता से प्रकट करती थी। उनकी रचनाएं समाज 
की समस्याओं, प्यार, जीवन के मुद्दों और मानवता की मूलभूत अस्तित्व को छूने का
 कमाल था। निदा फ़ाज़ली की लिखी हुई शेरों की महक हमेशा बनी रहेगी और उनकी 
कविताओं का सानिध्य सदैव हमारे दिलों में बसा रहेगा। उनके इस विशेष शैली और
 रचनात्मकता ने उन्हें शायरी की दुनिया में एक अद्वितीय स्थान दिलाया है। निदा फ़ाज़ली
 के शब्दों में वो राग है, वो भाव है, जो हमेशा हमें सोचने और आत्मसात करने का संदेश 
देता है। उनकी कविताएं हमें एक नया सोचने का दृष्टिकोण प्रदान करती हैं और हमारे 
अंतर्मन की गहराइयों में जगह बनाती हैं। निदा फ़ाज़ली के रचनाकारी के बारे में यह कहना
 काफी है कि उन्होंने हमारे जीवन में शायरी की एक नयी परिभाषा दी है और हमें शब्दों
 की जदूगरी में खींच लिया है। निदा फ़ाज़ली की एक सरल लेकिन गहरी शैली हमेशा हमारे 
बीच बसी रहेगी और उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
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