शकील बदायुनी एक सुपरहिट गीतकार की जीनवी
शकील बदायुनी एक मशहूर शायर और गीतकार थे जिनके शब्दों ने हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में जीवन और गहराई ला दी। 3 अगस्त, सन1916 को भारत के उत्तर प्रदेश के बदायूँ में जन्मे शकील ने छोटी उम्र से ही उर्दू साहित्य के प्रति गहरा जुनून विकसित कर लिया था। शायरी के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें अपने समय के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवियों में से एक बना दिया।
शकील बदायूँनी का असली नाम शकील अहमद खान था, और वह शायरी और उर्दू अदब में गहराई से जुड़े परिवार से थे। उनके पिता, मोहम्मद जमाल अहमद सोख्ता, स्वयं एक प्रसिद्ध उर्दू कवि थे, और उनके पैतृक वंश में कई निपुण कवि और विद्वान थे। इस बौद्धिक रूप से उत्तेजक माहौल में पले-बढ़े, शकील को कम उम्र से ही उर्दू शायरी की समृद्धि और सुंदरता से अवगत कराया गया, जिससे उनकी रचनात्मक संवेदनाएं विकसित हुईं।येभीपढ़ें
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, शकील ने अलीगढ़ के एक कॉलेज में शिक्षक के रूप में अपनी व्यावसायिक यात्रा शुरू की। हालाँकि, उनकी सच्ची पुकार साहित्य की दुनिया में थी, विशेष रूप से शायर और फिल्म गीत के क्षेत्र में। उनकी असाधारण प्रतिभा और उर्दू शायरी की गहरी समझ ने फिल्म उद्योग का ध्यान खींचा और शकील ने जल्द ही बॉलीवुड की दुनिया में कदम रखा।
1940 के दशक में, शकील बदायूँनी ने अब्दुल रशीद कारदार द्वारा निर्देशित फिल्म "दर्द" (1947) में गीतकार के रूप में अपनी शुरुआत की। शकील द्वारा लिखे गए फिल्म के गाने दर्शकों को बहुत पसंद आए और उन्हें एक ऐसे गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया जिस पर हमेशा ध्यान देना चाहिए। "मेला" (1948) और "अंदाज़" (1949) जैसी फिल्मों में संगीत निर्देशक नौशाद अली के साथ उनके सहयोग ने उद्योग में उनकी स्थिति को और मजबूत किया। गहरी भावनाओं को व्यक्त करने और अपनी शायरी के माध्यम से एक दृश्य के सार को पकड़ने की शकील की क्षमता ने उन्हें एक लोकप्रिय गीतकार बना दिया।
शकील बदायूँनी के काम के परिभाषित पहलुओं में से एक जटिल और विचारोत्तेजक गीतों को मधुर रचनाओं में पिरोने की उनकी काबिलियत थी। क्लासिकल शायरी की उनकी गहरी समझ और उर्दू भाषा पर उनकी पकड़ ने उनके गीतों को कालजयी कृति बना दिया। उनके पास प्यार, लालसा, दर्द और अलगाव की मानवीय भावनाओं को पकड़ने का एक अनोखा तरीका था, जो जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रभावित करता था।
अपने पूरे करियर के दौरान, शकील बदायुनी ने कई हिट फिल्मों के लिए गीत लिखे, जैसे "मुगल-ए-आजम" (1960), "गंगा जमुना" (1961), "लीडर" (1964), और "तीसरी कसम" (1966), यह सिर्फ कुछ नाम हैं। हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्ण युग में उनका योगदान अतुलनीय था और उनके काम ने भारतीय सिनेमा के परिदृश्य को आकार देने में अभिन्न भूमिका निभाई।
दुख की बात है कि शकील बदायूँनी की यात्रा तब छोटी हो गई जब 20 अप्रैल, 1970 को 53 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके असामयिक निधन ने कविता और संगीत की दुनिया में एक खालीपन छोड़ दिया, लेकिन उनकी गीतात्मक विरासत जीवित रही। आज भी, उनके गीत उर्दू शायरी के रत्नों के रूप में प्रतिष्ठित हैं, उनकी गीतात्मक सुंदरता और भावनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं।येभीपढ़ें
शकील बदायुनी एक मशहूर शायर और गीतकार थे जिनके शब्दों ने हिंदी फिल्म संगीत
की दुनिया में जीवन और गहराई ला दी। 3 अगस्त, सन1916 को भारत के उत्तर प्रदेश के
बदायूँ में जन्मे शकील ने छोटी उम्र से ही उर्दू साहित्य के प्रति गहरा जुनून विकसित कर
लिया था। शायरी के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें अपने समय के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवियों में
से एक बना दिया।
शकील बदायूँनी का असली नाम शकील अहमद खान था, और वह शायरी और उर्दू
अदब में गहराई से जुड़े परिवार से थे। उनके पिता, मोहम्मद जमाल अहमद सोख्ता,
स्वयं एक प्रसिद्ध उर्दू कवि थे, और उनके पैतृक वंश में कई निपुण कवि और विद्वान
थे। इस बौद्धिक रूप से उत्तेजक माहौल में पले-बढ़े, शकील को कम उम्र से ही उर्दू
शायरी की समृद्धि और सुंदरता से अवगत कराया गया, जिससे उनकी रचनात्मक
संवेदनाएं विकसित हुईं।येभीपढ़ें
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, शकील ने अलीगढ़ के एक कॉलेज में शिक्षक के रूप
में अपनी व्यावसायिक यात्रा शुरू की। हालाँकि, उनकी सच्ची पुकार साहित्य की दुनिया
में थी, विशेष रूप से शायर और फिल्म गीत के क्षेत्र में। उनकी असाधारण प्रतिभा और
उर्दू शायरी की गहरी समझ ने फिल्म उद्योग का ध्यान खींचा और शकील ने जल्द ही
बॉलीवुड की दुनिया में कदम रखा।
1940 के दशक में, शकील बदायूँनी ने अब्दुल रशीद कारदार द्वारा निर्देशित फिल्म "दर्द"
(1947) में गीतकार के रूप में अपनी शुरुआत की। शकील द्वारा लिखे गए फिल्म के गाने
दर्शकों को बहुत पसंद आए और उन्हें एक ऐसे गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया जिस
पर हमेशा ध्यान देना चाहिए। "मेला" (1948) और "अंदाज़" (1949) जैसी फिल्मों में संगीत
निर्देशक नौशाद अली के साथ उनके सहयोग ने उद्योग में उनकी स्थिति को और मजबूत
किया। गहरी भावनाओं को व्यक्त करने और अपनी शायरी के माध्यम से एक दृश्य के सार
को पकड़ने की शकील की क्षमता ने उन्हें एक लोकप्रिय गीतकार बना दिया।
शकील बदायूँनी के काम के परिभाषित पहलुओं में से एक जटिल और विचारोत्तेजक गीतों
को मधुर रचनाओं में पिरोने की उनकी काबिलियत थी। क्लासिकल शायरी की उनकी गहरी
समझ और उर्दू भाषा पर उनकी पकड़ ने उनके गीतों को कालजयी कृति बना दिया। उनके
पास प्यार, लालसा, दर्द और अलगाव की मानवीय भावनाओं को पकड़ने का एक अनोखा
तरीका था, जो जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रभावित करता था।
अपने पूरे करियर के दौरान, शकील बदायुनी ने कई हिट फिल्मों के लिए गीत लिखे, जैसे
"मुगल-ए-आजम" (1960), "गंगा जमुना" (1961), "लीडर" (1964), और "तीसरी कसम"
(1966), यह सिर्फ कुछ नाम हैं। हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्ण युग में उनका योगदान अतुलनीय
था और उनके काम ने भारतीय सिनेमा के परिदृश्य को आकार देने में अभिन्न भूमिका निभाई।
दुख की बात है कि शकील बदायूँनी की यात्रा तब छोटी हो गई जब 20 अप्रैल, 1970 को 53 वर्ष
की आयु में उनका निधन हो गया। उनके असामयिक निधन ने कविता और संगीत की दुनिया में
एक खालीपन छोड़ दिया, लेकिन उनकी गीतात्मक विरासत जीवित रही। आज भी, उनके गीत उर्दू
शायरी के रत्नों के रूप में प्रतिष्ठित हैं, उनकी गीतात्मक सुंदरता और भावनात्मक गहराई के लिए
जाने जाते हैं।येभीपढ़ें
जीवन परिचय
नाम -शकील अहमद
उप नाम - "बदायुनी"
जन्म - 3 अगस्त सन 1916
जन्म स्थान- जनपद बदायूँ उत्तर प्रदेश
पिता का नाम- मोहम्मद जमाल अहमद "सोख्ता" (एक शायर थे )
पत्नी - सलमा बेगम से निकाह सन 1940 में
शिक्षा- अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से B.A. सन 1942
व्यवसाय - आपूर्ति विभाग में आपूर्ति अधिकारी के रूप में अपनी पहली नौकरी की,
नौकरी के साथ ही शायरी का शोक परवान चढ़ता गया,दिल्ली में मुशायरों में शिरकत
करते रहे,मुशायरों में मिली कामयाबी से उत्साहित होकर सन 1946 में नौकरी
छोड़कर बॉम्बे (मुंबई ) चले आये
मृत्यु (वफ़ात) -शकील बदायूँनी की वफ़ात 54 वर्ष की उम्र मे सन1970 को हुईयेभीपढ़ें
शकील बदायुनी के 15 यादगार नगमे
शकील साहब ने अपने करियर में कई यादगार गीत लिखे। उनके कुछ बहुत मशहूर
गीत इन फिल्मो में बैजू बावरा (1952), ऐतिहासिक कामयाब फिल्म मुगल-ए-आजम (1960)
और साहिब बीबी और गुलाम (1962) शामिल हैं।
1-प्यार किया तो डरना क्या? (मुग़ल-ए-आज़म)
2-चौदवीं का चांद हो (चौदवीं का चांद)
3-दिल लगा कर हम ये समझे (जिंदगी और मौत)4--मेरे मेहबूब तुझे मेरी (मेरे मेहबूब) (1963)
4-जाने बहार हुस्न तेरा बेमिसाल है (प्यार किया तो डरना क्या)
5-एक शहंशाह ने बनवा के हसीन ताज महल (लीडर)
6-बेकरार कर के हमें (बीस साल बाद)
7-लो आ गई उनकी याद (दो बदन)
8-ना जाओ सइयां (साहब बीबी और गुलाम)
9-मेरी बात रही मेरे मन में (सही बीबी और गुलाम)
10-आज पुरानी राहों से (आदमी)
11-जब दिल से दिल टकराता है (संघर्ष )
12-एक बार ज़रा फिर कहे दो (बिन बादल बरसात)
13-तुम्हें पा के
हम ने (गहरा दाग)
14-सुहानी रात ढल चुकी (दुलारी)
15-मन तरपत हरि दर्शन को आज (बैजू बावरा)
शकील बदायुनी को अवार्ड्स व सम्मान
1 - में फ़िल्म चौदहवीं का चाँद (1960) के गीत चौदहवीं का चाँद हो के लिए
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार अवार्ड् सन 1961
2 - फ़िल्म घराना (1961) के गीत हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं के लिए फ़िल्मफ़ेयर
सर्वश्रेष्ठ गीतकार अवार्ड् सन 1962
3 - फ़िल्म बीस साल बाद (1962) के गीत कहीं दीप जले के लिए फ़िल्मफ़ेयर
सर्वश्रेष्ठ गीतकार अवार्ड् सन 1963
शकील बदायुनी की ग़ज़लें,गीत और नज़्मे
1-ग़ज़ल
तसवीर बनता हुँ तिरी हुन-ए-जिगर से
देखा है तुझे मैंने मोहब्बत की नज़र से
जितने भी मिले रंग वो सब भर दिये तुझमें
इक रंग-ए-वफ़ा और है ला.यूं वो किधर से
सावन तीरी जुल्फों से घटा मांग के लाया
बिजली ने चुराया, है तंग तेरी नज़र से
मैं दिल में बुला कर तुझे रुहसत न करुंगा
मुश्किल है तेरा लौट के जाना मेरे घर से
2-ग़ज़ल
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे
वो वक़्त भी ख़ुदा न दिखाए कभी मुझे
उन की नदामतों पे हो शर्मिंदगी मुझे
रोने पे अपने उन को भी अफ़्सुर्दा देख कर
यूँ बन रहा हूँ जैसे अब आई हँसी मुझे
यूँ दीजिए फ़रेब-ए-मोहब्बत कि उम्र भर
मैं ज़िंदगी को याद करूँ ज़िंदगी मुझे
रखना है तिश्ना-काम तो साक़ी बस इक नज़र
सैराब कर न दे मिरी तिश्ना-लबी मुझे
पाया है सब ने दिल मगर इस दिल के बावजूद
इक शय मिली है दिल में खटकती हुई मुझे
राज़ी हों या ख़फ़ा हों वो जो कुछ भी हों 'शकील'
हर हाल में क़ुबूल है उन की ख़ुशी मुझे
1-नज़्म
ये नज़्म लीगढ छोड़ने के बाद लीखि थी
हम-नशीं रात की मग़्मूम ख़मोशी में मुझे
दूर कुछ धीमी सी नग़्मों की सदा आती है
जैसे जाती हुई अफ़्सुर्दा जवानी की पुकार
जिस को सुन सुन के मिरी रूह लरज़ जाती है
जैसे घटती हुई मौजों का उतरता हुआ शोर
मुतरिबा जैसे कोई दूर निकल जाती है
या हवाओं का तरन्नुम किसी वीराने में
जैसे तन्हाई में दोशीज़ा कोई गाती है
मैं बहुत ग़ौर से नग़्मात सुना करता हूँ
सच तो ये है कि मिरी जान पे बन जाती है
बार बार उठ के मैं जाता हूँ सदाओं की तरफ़
लेकिन इक शय है जो वापस मुझे ले आती है
चौंक उठता हूँ जब उस ख़्वाब से हैराँ हो कर
फिर मुझे दूसरी दुनिया ही नज़र आती है
आह, वो भूक के मारे हुए अफ़राद हँसें
जिन की सूरत पे क़नाअत भी तरस खाती है
जैसे उजड़ी हुई महफ़िल के कुछ अफ़्सुर्दा चराग़
रौशनी में जिन्हें हर गाम पे ठुकराती है
आह वो हज़रत-ए-इंसान ही का दर्द ओ सितम
जिस का इज़हार भी करते हुए शर्म आती है
वो तराने जो सुना करता हूँ तन्हाई में
उन तरानों में मुझे बू-ए-वफ़ा आती है
गाऊँगा नग़्मे वो तामीर-ए-मोहब्बत के लिए
मय-कदा छोड़ दिया जिन की इशाअत के लिए
1-फ़िल्मी गीत
फिल्म -मुग़ल ए आज़म
प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या
आज कहेंगे दिल का फ़साना जान भी ले ले चाहे ज़माना
मौत वही जो दुनिया देखे घुट घुट कर यूँ मरना क्या
उन की तमन्ना दिल में रहेगी शम' इसी महफ़िल में रहेगी
'इश्क़ में जीना 'इश्क़ में मरना और हमें अब करना क्या
छुप न सकेगा 'इश्क़ हमारा चारों तरफ़ हैं उन का नज़ारा
पर्दा नहीं जब कोई ख़ुदा से बंदों से पर्दा करना क्या
2-फ़िल्मी गीत
फिल्म - दो बदन
भरी दुनिया में आख़िर दिल को समझाने कहाँ जाएँ
मोहब्बत हो गई जिन को वो दीवाने कहाँ जाएँ
लगे हैं शम्अ पर पहरे ज़माने की निगाहों के
जिन्हें जलने की हसरत है वो परवाने कहाँ जाएँ
सुनाना भी जिन्हें मुश्किल छुपाना भी जिन्हें मुश्किल
ज़रा तू ही बता ऐ दिल वो अफ़्साने कहाँ जाएँ
नज़र में उलझनें दिल में है आलम बे-क़रारी का
समझ में कुछ नहीं आता सुकूँ पाने कहाँ जाएँ
CONCLUSION:-
शकील बदायूँनी की शायरी में मानवीय भावनाओं, प्रेम और जीवन की जटिलताओं
की गहरी समझ झलकती है। उनके शब्द दर्शकों के मन में गूंज गए और उन दृश्यों
का सार पकड़ लिया जिनके लिए वे लिखे गए थे। उनकी गीतात्मक रचनाओं ने लालसा,
जुनून और उदासी की भावना पैदा की, जिसने उन्हें कालजयी क्लासिक्स बना दिया।
उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में "मुगल-ए-आजम," "चौदहवीं का चांद," "मेरे महबूब,"
और "गज़ल" जैसी फिल्मों के गाने शामिल हैं। उनके गीतों की कालजयी सुंदरता आज
भी संगीत प्रेमियों और काव्य प्रेमियों द्वारा सराही और प्रशंसित है।
हिंदी सिनेमा और शायरी की दुनिया में शकील बदायूँनी का योगदान अमूल्य है। उन्होंने
अपने गहन और सार्थक गीतों से फ़िल्म संगीत को उच्च कलात्मक स्तर तक पहुँचाया।
उनके शब्द आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और उनके दिलों को छूते हैं, जिससे वे हिंदी
उर्दू भाषा के वास्तव में एक महान कवि और गीतकार बन गये हैं।येभीपढ़ें
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