नून मीम राशिद की शायरी और जीवनी

 नून मीम राशिद का असली नाम नजर मुहम्मद राशिद था। उनका जन्म 1 अगस्त 1910 को पाकिस्तान के पंजाब के अलीपुर चट्ठा गाँव में हुआ था।



प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

 राशिद  के परिवार का उर्दू साहित्य से गहरा संबंध था। उनके पिता राजा फ़ैजल इलाही चिश्ती ने उन्हें उर्दू के महान शायरों जैसे हाफ़िज़ शिराज़ी, सादी, ग़ालिब और इक़बाल की शायरी से परिचित कराया। राशिद की प्रारंभिक शिक्षा गुजरांवाला में हुई और बाद में वे लाहौर चले गए, जहां उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।


साहित्यिक करियर

राशिद ने अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत ताजवर नजीबाबादी की उर्दू पत्रिका 'शाहकार' के संपादन से की। उन्होंने मुल्तान के कमिश्नर ऑफिस में कारकुन के रूप में काम करते हुए अपनी पहली आज़ाद नज़्म 'जुर्रते परवाज़' लिखी। 1939 में वे ऑल इंडिया रेडियो के समाचार संपादक बने और बाद में प्रोग्राम डायरेक्टर के पद पर पहुंचे। 1940 में उनका पहला काव्य संग्रह 'मावरा' प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान रेडियो में रीजनल डायरेक्टर के रूप में काम किया और बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ में नौकरी करने के लिए न्यूयॉर्क चले गए। 1973 में इंग्लैंड में सेवानिवृत्त हुए।


उर्दू शायरी में योगदान

नून मीम राशिद ने उर्दू शायरी को  रदीफ़ और बहर के पारंपरिक बंधनों से मुक्त किया। उन्होंने उर्दू शायरी में नई भावनाओं और संवेदनाओं को शामिल किया, जिससे उर्दू साहित्य में एक नई धारा की शुरुआत हुई। उनकी शायरी में जदीदियत और उर्दू की मिठास का अद्भुत संगम था, जो पाठकों को नई सोच और ताजगी प्रदान करता था। उन्होंने उर्दू शायरी को पारंपरिक विषयों से आगे बढ़ाकर आधुनिकता की दिशा में अग्रसर किया।


प्रमुख कृतियाँ

राशिद की पब्लिश्ड किताबों  में 'मावरा', 'ईरान में अजनबी', 'ला मुसावी इंसान', और 'गुमान का मुमकिन' शामिल हैं। उनकी कविता "ज़िंदगी से डरते  हो" को 2010 में बॉलीवुड फिल्म 'पीपली लाइव' में भारतीय बैंड इंडियन ओशन द्वारा संगीतबद्ध किया गया था।


इंतेक़ाल, निधन

नून मीम राशिद का निधन 9 अक्तूबर 1975 को लंदन, इंग्लैंड में हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार दाह संस्कार के रूप में किया गया, जो उनकी क्रांतिकारी सोच का प्रतीक था। उनकी याद में पाकिस्तान के गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर के एक सभागार का नाम "नून मीम राशिद हॉल" रखा गया। राशिद की शायरी और साहित्यिक योगदान ने उर्दू साहित्य को एक नया दृष्टिकोण और आयाम प्रदान किया, जिससे वे उर्दू साहित्य के महान कवियों में गिने जाते हैं।ये भी पढ़ें



नून मीम राशिद की शायरी,ग़ज़लें नज़्में 

1-ग़ज़ल 

पंकज उदास साहब ने इस ग़ज़ल को गाकर और भी खूबसूरत बना दिया 

निकलो न बेनक़ाब ज़माना ख़राब है
और उसपे ये शबाब, ज़माना ख़राब है

सब कुछ हमें ख़बर है नसीहत न कीजिये
क्या होंगे हम ख़राब, ज़माना ख़राब है

पीने का दिल जो चाहे उन आँखों से पीजिए
मत पीजिए शराब, ज़माना ख़राब है

मतलब छुपा हुआ है यहां हर सवाल में
दो सोचकर जवाब, ज़माना ख़राब है

राशिद तुम आ गये हो ना आखिर फ़रेब में
कहते न थे जनाब, ज़माना ख़राब है

2-ग़ज़ल 

हसरत ए इंतिज़ार ए यार न पूछ 

हाए वो शिद्दत ए इंतिज़ार न पूछ 

रंग ए गुलशन दम ए बहार न पूछ 

वहशत ए क़ल्ब ए बे क़रार न पूछ 

सदमा ए अंदलीब ए ज़ार न पूछ 

तल्ख़ अंजामी ए बहार न पूछ 

ग़ैर पर लुत्फ़ मैं रहीन ए सितम 

मुझ से आईना ए बज़्म ए यार न पूछ 

दे दिया दर्द मुझ को दिल के एवज़ 

हाए लुत्फ़ ए सितम शिआर न पूछ 

फिर हुई याद ए मय कशी ताज़ा 

मस्ती ए अब्र ए नौ बहार न पूछ 

मुझ को धोका है तार ए बिस्तर का 

ना तवानी ए जिस्म ए यार न पूछ 

मैं हूँ ना आशना ए वस्ल हुनूज़ 

मुझ से कैफ़ ए विसाल ए यार न पूछ 

3-ग़ज़ल 

तू आशना ए जज़्बा ए उल्फ़त नहीं रहा 

दिल में तिरे वो ज़ौक़ ए मोहब्बत नहीं रहा 

फिर नग़्मा हा ए क़ुम तो फ़ज़ा में हैं गूँजते 

तू ही हरीफ़ ए ज़ौक़ ए समाअत नहीं रहा 

आईं कहाँ से आँख में आतिश चिकानियाँ 

दिल आश्ना ए सोज़ ए मोहब्बत नहीं रहा 

गुल हा ए हुस्न ए यार में दामन कश ए नज़र 

मैं अब हरीस ए गुलशन ए जन्नत नहीं रहा 

शायद जुनूँ है माइल ए फ़र्ज़ानगी मिरा 

मैं वो नहीं वो आलम ए वहशत नहीं रहा 

मम्नून हूँ मैं तेरा बहुत मर्ग ए ना गहाँ 

मैं अब असीर ए गर्दिश ए क़िस्मत नहीं रहा 

जल्वागह ए ख़याल में वो आ गए हैं आज 

लो मैं रहीन ए ज़हमत ए ख़ल्वत नहीं रहा 

क्या फ़ाएदा है दावा ए इश्क़ ए हुसैन से 

सर में अगर वो शौक़ ए शहादत नहीं रहा 

4-ग़ज़ल 


सोचता हूँ कि बहुत सादा ओ मासूम है वो 

मैं अभी उस को शनासा ए मोहब्बत न करूँ 

रूह को उस की असीर ए ग़म ए उल्फ़त न करूँ 

उस को रुस्वा न करूँ वक़्फ़-ए-मुसीबत न करूँ 

सोचता हूँ कि अभी रंज से आज़ाद है वो 

वाक़िफ़ ए दर्द नहीं ख़ूगर ए आलाम नहीं 

सहर ए ऐश में उस की असर ए शाम नहीं 

ज़िंदगी उस के लिए ज़हर भरा जाम नहीं 

सोचता हूँ कि मोहब्बत है जवानी की ख़िज़ाँ 

उस ने देखा नहीं दुनिया में बहारों के सिवा 

निकहत ओ नूर से लबरेज़ नज़ारों के सिवा 

सब्ज़ा ज़ारों के सिवा और सितारों के सिवा 

सोचता हूँ कि ग़म ए दिल न सुनाऊँ उस को 

सामने उस के कभी राज़ को उर्यां न करूँ 

ख़लिश ए दिल से उसे दस्त ओ गरेबाँ न करूँ 

उस के जज़्बात को मैं शो'ला ब दामाँ न करूँ 

सोचता हूँ कि जला देगी मोहब्बत उस को 

वो मोहब्बत की भला ताब कहाँ लाएगी 

ख़ुद तो वो आतिश ए जज़्बात में जल जाएगी 

और दुनिया को इस अंजाम पे तड़पाएगी 

सोचता हूँ कि बहुत सादा ओ मासूम है वो 

मैं उसे वाक़िफ़‌‌‌‌ ए उल्फ़त न करूँ 

5 -नज़्म 


वक़्त के दरिया में उट्ठी थी अभी पहली ही लहर 

चंद इंसानों ने ली इक वादी ए पिन्हाँ की राह 

मिल गई उन को वहाँ 

आग़ोश ए राहत में पनाह 

कर लिया तामीर इक मौसीक़ी ओ इशरत का शहर 

मशरिक ओ मग़रिब के पार 

ज़िंदगी और मौत की फ़र्सूदा शह राहों से दूर 

जिस जगह से आसमाँ का क़ाफ़िला लेता है नूर 

जिस जगह हर सुब्ह को मिलता है ईमा ए ज़ुहूर 

और बुने जाते हैं रातों के लिए ख़्वाब के जाल 

सीखती है जिस जगह पर्वाज़ हूर 

और फ़रिश्तों को जहाँ मलता है आहंग ए सुरूर 

ग़म नसीब अहरीमनों को गिर्या ए आह ओ फ़ुग़ाँ 

काश बतला दे कोई 

मुझ को भी इस वादी ए पिन्हाँ की राह 

मुझ को अब तक जुस्तुजू है 

ज़िंदगी के ताज़ा जौलाँ गाह की 

कैसी बे ज़ारी सी है 

ज़िंदगी के कोहना आहंग ए मुसलसल से मुझे 

सर ज़मीन ए ज़ीस्त की अफ़्सुर्दा महफ़िल से मुझे 

देख ले इक बार काश 

उस जहाँ का मंज़र ए रंगीं निगाह 

जिस जगह है क़हक़हों का इक दरख़्शंदा वफ़ूर 

जिस जगह से आसमाँ का क़ाफ़िला लेता है नूर 

जिस की रिफ़अत देख कर ख़ुद हिम्मत ए यज़्दाँ है चूर 

जिस जगह है वक़्त इक ताज़ा सुरूर 

जिस जगह अहरीमनों का भी नहीं कुछ इख़्तियार 

मश्रिक ओ मग़रिब के पार 

Conclusion:-

नून मीम राशिद की शायरी उर्दू साहित्य में एक नवीन और क्रांतिकारी धारा के रूप में उभरती है। उन्होंने पारंपरिक रदीफ़ और बहर से उर्दू शायरी को मुक्त किया, जो अपने समय के उर्दू कवियों के लिए एक नई दिशा थी। उनकी शायरी का स्वरूप न केवल शब्दों के जादू से भरा हुआ है, बल्कि उसमें नए विचार, जज़्बात और समाज के प्रति जागरूकता भी बखूबी झलकती है।

राशिद की शायरी में एक विशेष प्रकार की आधुनिकता दिखाई देती है, जिसमें उन्होंने जीवन के उलझनों, माज़ी के सवालात और मानवता के मूल्यों को बड़े प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी कविताएँ मात्र प्रेम और सौंदर्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे जीवन के गहरे और कठिन सवालों को भी उठाती हैं।

राशिद की कविताओं में व्यक्त की गई भावनाएँ और विचार उनके व्यक्तिगत अनुभवों और समाज के प्रति उनकी दृष्टिकोण का परिणाम हैं। उन्होंने समाज की ग़लत रस्मो और अन्याय को चुनौती दी और अपनी कविताओं के माध्यम से एक नए दृष्टिकोण को उजागर किया।

उनकी शायरी में एक विशेष प्रकार की गहराई और गंभीरता है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। वे शब्दों के साथ खेलने की कला में माहिर थे और उनकी कविताएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को उकेरती हैं।

नून मीम राशिद की शायरी को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है कि वे केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अपने पूरे व्यक्तित्व से लिख रहे हैं। उनकी शायरी में एक ऐसा जादू है जो पाठकों को उनके विचारों में खो जाने पर मजबूर करता है।

कुल मिलाकर, नून मीम राशिद की शायरी को एक ऐसे कवि के रूप में देखा जा सकता है जिसने उर्दू साहित्य को एक नई ऊँचाई दी और समाज के प्रति अपनी गहरी समझ और संवेदनाओं को अभिव्यक्त किया। उनकी शायरी उर्दू साहित्य में हमेशा जीवंत रहेगी और नई पीढ़ी के कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।ये भी पढ़ें



और नया पुराने