कमर जलालाबादी: शायर, गीतकार, लेखक,पत्रकार

 क़मर जलालाबादी, जिनका असली नाम ओम प्रकाश भंडारी था, का जन्म 9 मार्च 1917 को पंजाब, भारत के अमृतसर ज़िले के एक गाँव जालालाबाद में हुआ था। उनका परिवार पंजाबी था, और उन्होंने मात्र सात साल की उम्र में ही उर्दू में कविता लिखना शुरू कर दिया था।



प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

क़मर जलालाबादी, जिनका असली नाम ओम प्रकाश भंडारी था, का जन्म 9 मार्च 1917 को पंजाब, भारत के अमृतसर ज़िले के एक गाँव जालालाबाद में हुआ था। उनका परिवार पंजाबी था, और उन्होंने मात्र सात साल की उम्र में ही उर्दू में कविता लिखना शुरू कर दिया था। घर से कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं मिला, लेकिन एक घुमंतू कवि, अमर चंद अमर, ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया। अमर चंद ने ही उन्हें "क़मर" का तख़ल्लुस दिया, जिसका मतलब "चाँद" है, और "जलालाबादी" उनके नाम के साथ जोड़ा गया, ताकि उनके पैतृक नगर का संकेत हो। उस समय यह आम प्रचलन था कि लेखक अपने नाम के साथ अपने नगर का नाम जोड़ते थे।

शिक्षा और प्रारंभिक करियर

क़मर जलालाबादी ने अमृतसर में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने लाहौर के कई समाचार पत्रों जैसे डेली मिलाप, डेली प्रताप, निराला, और स्टार सहकार के लिए लेखन किया। उनकी पत्रकारिता ने उनके साहित्यिक करियर की नींव रखी और आगे चलकर उन्हें फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने में मदद की।

फ़िल्मी दुनिया में आगमन

1940 के दशक के शुरुआती दिनों में क़मर जलालाबादी फ़िल्मी दुनिया की ओर आकर्षित हुए और पुणे चले गए। 1942 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म ज़मींदार के गीत लिखे, जो पंचोली पिक्चर्स का प्रोडक्शन था। इस फ़िल्म के गीत, ख़ासकर शमशाद बेगम का गाया हुआ "दुनिया में ग़रीबों को आराम नहीं मिलता," बहुत पसंद किया गया और यह उनकी सफल जीवन यात्रा का प्रारंभ बना।

मुंबई में करियर

ज़मींदार की सफलता के बाद क़मर जलालाबादी मुंबई (तब बंबई) चले गए, जहाँ उन्होंने लगभग चार दशकों तक गीत लिखे। इस दौरान उन्होंने एस.डी. बर्मन, मदन मोहन, सी. रामचंद्र, और ओ.पी. नैयर जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। उनके गीत मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, किशोर कुमार, गीता दत्त, और आशा भोसले जैसे मशहूर गायकों ने गाए।

प्रमुख कार्य

क़मर जलालाबादी के लेखन में उनकी विविधता साफ झलकती है। उनके कुछ यादगार शुरुआती गीतों में रेणुका (1947) का "सुनती नहीं दुनिया कभी फरियाद किसी की" और मुलाक़ात (1947) की ग़ज़ल "दिल किस लिए रोता है... प्यार की दुनिया में, ऐसा ही होता है" शामिल हैं। फ़िल्म प्यार की जीत (1948) का उनका गीत "इक दिल के टुकड़े हज़ार हुए, कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा" उनकी निजी जिंदगी के अनुभवों और दर्शन को दर्शाता है।

गीतकार के रूप में कौशल

क़मर जलालाबादी हर प्रकार के गीत लिखने में निपुण थे। उन्होंने एक तरफ़ दिलकश गीत लिखे, जैसे आँसू (1953) का "सुन मेरी साँवरी मुझको कहीं तुम भूल न जाना," तो दूसरी ओर उन्होंने हास्य गीत भी लिखे, जैसे पहली तारीख (1954) का "खुश है ज़माना आज पहली तारीख है," जिसे किशोर कुमार ने जोश के साथ गाया। यह गीत रेडियो सीलोन पर हर महीने की पहली तारीख को दशकों तक बजता रहा और आज भी लोकप्रिय है।



विरासत और योगदान

अपने लंबे करियर के दौरान, क़मर जलालाबादी ने लगभग 156 फ़िल्मों के लिए गीत लिखे और उनके कुल लगभग 700 गीत मशहूर हुए। उन्होंने कई फ़िल्म कंपनियों के लिए काम किया और फिल्म जगत में अपने योगदान से एक अमिट छाप छोड़ी।

कमर जलालाबादी की शायरी,ग़ज़लें,गीत 

1-ग़ज़ल 

आवाज़ दे रही है ये किस की नज़र मुझे 

शायद मिले किनारा वहीं डूब कर मुझे 

चाहा तुझे तो ख़ुद से मोहब्बत सी हो गई 

खोने के बाद मिल गई अपनी ख़बर मुझे 

हर हर क़दम पे साथ हूँ साया हूँ मैं तिरा 

ऐ बेवफ़ा दिखा तो ज़रा भूल कर मुझे 

दुनिया को भूल कर तिरी दुनिया में आ गया 

ले जा रहा है कौन इधर से उधर मुझे 

दुनिया का हर नज़ारा निगाहों से छीन ले 

कुछ देखना नहीं है तुझे देख कर मुझे 

2-ग़ज़ल//गीत 

फिल्म (उपकार) गायक ( मुकेश )

दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुज़री है 

हाँ उन के दिलों से ये पूछो अरमानों पे क्या गुज़री है 

औरों को पिलाते रहते हैं और ख़ुद प्यासे रह जाते हैं 

ये पीने वाले क्या जानें पैमानों पे क्या गुज़री है 

मालिक ने बनाया इंसाँ को इंसान मोहब्बत कर बैठा 

वो ऊपर बैठा क्या जाने इंसानों पे क्या गुज़री है 

3-ग़ज़ल//गीत 

फिल्म ( चंगेज़ खान ) गायक ( मोहम्मद रफ़ी )

मोहब्बत ज़िंदा रहती है मोहब्बत मर नहीं सकती 

अजी इंसान क्या ये तो ख़ुदा से डर नहीं सकती 

ये कह दो मौत से जा कर के इक दीवाना कहता है 

मिरी रूह-ए-मोहब्बत मुझ से पहले मर नहीं सकती 

चली आ ओ मिरी जान-ए-तमन्ना दिल की महफ़िल में 

तू मुझ से दूर हो उल्फ़त गवारा कर नहीं सकती 

4-ग़ज़ल 

इक हसीन ला-जवाब देखा है 

रात को आफ़्ताब देखा है 

गोरा मुखड़ा ये सुर्ख़ गाल तिरे 

चाँदनी में गुलाब देखा है 

नर्गिसी आँख ज़ुल्फ़ शब-रंगी 

बादलों का जवाब देखा है 

झूमते जाम सा छलकता बदन 

एक जाम-ए-शराब देखा है 

हम तो मिल कर न मिल सके तुम को 

तुम को देखा कि ख़्वाब देखा है 

Conclusion:-


क़मर जलालाबादी उर्दू शायरी और हिंदी फ़िल्मी गीतों की दुनिया में एक ऐसा नाम है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी शायरी में सादगी, गहराई, और जज़्बातों की सच्चाई झलकती है। उन्होंने अपनी कलम से न केवल फ़िल्मों को सजाया, बल्कि अपने गीतों के ज़रिए लोगों के दिलों को भी जीता।

उनके लिखे नगमे, चाहे वो दर्द से भरे हों या खुशियों से, हर मिज़ाज के लोगों को अपनी तरफ़ खींचते हैं। क़मर साहब की शायरी में जो ज़िंदादिली और ज़ज्बा था, वो आज भी सुनने वालों के दिलों को छू जाता है।

वो न केवल एक बेहतरीन शायर और गीतकार थे, बल्कि एक ऐसे इंसान भी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। उनका योगदान अदबी दुनिया में एक रोशनी की तरह है, जो हमेशा हमारे दिलों में रौशन रहेगा। क़मर जलालाबादी का नाम, उनकी शायरी और गीतों के साथ, हिंदी सिनेमा और उर्दू अदब की तहज़ीब का एक अहम हिस्सा बना रहेगा।ये भी पढ़ें

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