आलोक श्रीवास्तव की अनोखी जीवन यात्रा
आलोक श्रीवास्तव, एक प्रतिष्ठित भारतीय कवि, गीतकार, और पत्रकार हैं, जिनका जन्म 30 दिसंबर 1971 को मध्य प्रदेश के शाजापुर में हुआ। वे अपनी बेहतरीन साहित्यिक कृतियों और उत्कृष्ट लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताओं और कहानियों में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं का जीवंत चित्रण मिलता है। उनके दो प्रमुख साहित्यिक संग्रह "आमीन" (2007) और "आफरीन" (2012) ने उन्हें एक नई पहचान दिलाई। आलोक श्रीवास्तव ने अपने साहित्यिक योगदान के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए, जिनमें 'अंतरराष्ट्रीय पुश्किन पुरस्कार' और 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' प्रमुख हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
आलोक श्रीवास्तव का संबंध मध्य प्रदेश के विदिशा से है, जहाँ उन्होंने अपने जीवन का प्रारंभिक काल बिताया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद हिंदी साहित्य में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की, जिसने उनकी साहित्यिक यात्रा को दिशा दी। बचपन से ही साहित्य और लेखन के प्रति उनका गहरा लगाव था। उन्होंने छोटी उम्र में ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था, जो बाद में उनके साहित्यिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गईं।
साहित्यिक करियर
आलोक श्रीवास्तव का साहित्यिक करियर उनके पहले कविता संग्रह "आमीन" (2007) से आरंभ हुआ, जो राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। "आमीन" एक ग़ज़ल संग्रह है, जो मानवीय मूल्यों और रिश्तों की गहराई को दर्शाता है। इस संग्रह को 2009 में मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इसके बाद, उन्हें 2011 में अंतरराष्ट्रीय पुश्किन पुरस्कार भी मिला। "आमीन" का चौथा संस्करण फरवरी 2015 में नई दिल्ली वर्ल्ड बुक फेयर में नामवर सिंह और जावेद अख्तर द्वारा जारी किया गया।
2012 में उनकी दूसरी पुस्तक "आफरीन," जो एक कहानी संग्रह है, प्रकाशित हुई। इसे जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में चित्रा मुद्गल और उदय प्रकाश द्वारा जारी किया गया। "आफरीन" को पाठकों और आलोचकों द्वारा व्यापक सराहना मिली और यह नवभारत टाइम्स की '2013 की सबसे लोकप्रिय पुस्तकों' की सूची में शामिल हुई।
अन्य साहित्यिक कार्य और संगीत
आलोक श्रीवास्तव ने न केवल साहित्य में बल्कि संगीत की दुनिया में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उनकी कविताओं और गीतों को जगजीत सिंह, पंकज उधास, शंकर महादेवन, सोनू निगम, आदेश श्रीवास्तव, रेखा भारद्वाज, शान, कैलाश खेर, ऋचा शर्मा, जावेद अली, उस्ताद राशिद खान, शुभा मुद्गल और अमिताभ बच्चन जैसी मशहूर हस्तियों ने अपनी आवाज़ दी है। उन्होंने "पतंग" (2011), "वोडका डायरीज" (2018), और ए.आर. रहमान की "अटकेन चटकेन" (2020) जैसी फिल्मों के लिए गीत भी लिखे हैं।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के लिए "आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे" और "लखनऊ मेट्रो" के थीम गीत भी लिखे हैं। उनकी रचनाओं का अनुवाद रूसी, गुजराती, मराठी, उर्दू, मैथिली सहित कई भाषाओं में किया गया है, जिससे उनकी कृतियों को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।
पत्रकारिता में योगदान
आलोक श्रीवास्तव ने लगभग 15 वर्षों तक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकारिता में भी अपनी सेवाएँ दी हैं। उन्होंने 'आज तक', 'इंडिया टीवी', और 'दूरदर्शन' जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संगठनों के साथ काम किया। 1990 के दशक में उन्होंने "इंडिया टुडे" के साथ स्वतंत्र पत्रकारिता की शुरुआत की और बाद में 2005 में इंडिया टीवी से टीवी पत्रकारिता की दिशा में कदम बढ़ाया। वे 'आज तक' से जुड़े और धर्म, खेल, राजनीति पर कई महत्वपूर्ण टीवी कार्यक्रमों का निर्माण किया। जुलाई 2014 में, उन्होंने दूरदर्शन राष्ट्रीय चैनल के राष्ट्रीय सलाहकार के रूप में कार्यभार संभाला।
पुरस्कार और सम्मान
आलोक श्रीवास्तव को उनके साहित्यिक और पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें प्रमुख हैं:
2009: 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' और 'हेमंत स्मृति कविता सम्मान'
2011: रूस के मॉस्को में 'अंतरराष्ट्रीय पुश्किन पुरस्कार'
2014: वाशिंगटन, अमेरिका में 'अंतरराष्ट्रीय हिंदी पुरस्कार'
2015: यूनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ कॉमन्स में 'हिंदी ग़ज़ल पुरस्कार'
2017: 'फ़िराक़ गोरखपुरी पुरस्कार'
2018: मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा 'सम्भुल्ला सुखन पुरस्कार'
आलोक श्रीवास्तव की शायरी,ग़ज़लें
1-ग़ज़ल
अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले
तवाफ़ करता हुआ मौसम ए बहार चले
लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले
यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बे-शुमार चले
नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे
कि मेरे बा'द मिरा ज़िक्र बार बार चले
ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार का है
यहीं सँभाल के पहना यहीं उतार चले
ये जुगनुओं से भरा आसमाँ जहाँ तक है
वहाँ तलक तिरी नज़रों का इक़्तिदार चले
यही तो एक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले
2-ग़ज़ल
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
बच कर चले हमेशा मगर क़ाफ़िलों से हम
होने को फिर शिकार नई उलझनों से हम
मिलते हैं रोज़ अपने कई दोस्तों से हम
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम
मंज़िल की है तलब तो हमें साथ ले चलो
वाक़िफ़ हैं ख़ूब राह की बारीकियों से हम
जिन के परों से सुब्ह की ख़ुशबू के रंग हैं
बचपन उधार लाए हैं उन तितलियों से हम
गुज़रे हमारे घर की किसी रहगुज़र से वो
पर्दे हटाए देखें उन्हें खिड़कियों से हम
अब तो हमारे बीच कभी दूरियाँ भी हों
तंग आ गए हैं रोज़ की नज़दीकियों से हम
जब भी कहा कि याद हमारी कहाँ उन्हें
पकड़े गए हैं ठीक तभी हिचकियों से हम
3-ग़ज़ल
रोज़ ख़्वाबों में आ के चल दूँगा
तेरी नींदों में यूँ ख़लल दूँगा
मैं नई शाम की अलामत हूँ
ख़ाक सूरज के मुँह पे मल दूँगा
अब नया पैरहन ज़रूरी है
ये बदन शाम तक बदल दूँगा
अपना एहसास छोड़ जाऊँगा
तेरी तन्हाई ले के चल दूँगा
तुम मुझे रोज़ चिट्ठियाँ लिखना
मैं तुम्हें रोज़ इक ग़ज़ल दूँगा
4-ग़ज़ल
निष्कर्ष
आलोक श्रीवास्तव ने अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है। उनकी कविताओं और कहानियों ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनके साहित्यिक योगदान ने उन्हें न केवल भारतीय साहित्य में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण हस्ती के रूप में स्थापित किया है। आलोक श्रीवास्तव आज भी अपनी रचनाओं के माध्यम से साहित्य प्रेमियों के दिलों में बसे हुए हैं और उनका योगदान हिंदी साहित्य को समृद्ध करता रहेगा।
यह विस्तृत जीवनी आलोक श्रीवास्तव की साहित्यिक यात्रा, उनकी उपलब्धियों और उनके अद्वितीय व्यक्तित्व का संपूर्ण परिचय प्रस्तुत करती है, जो उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बनाती है।ये भी पढ़ें