अमजद इस्लाम अमजद: उर्दू साहित्य के महान कवि और लेखक


अमजद इस्लाम अमजद (4 अगस्त 1944 – 10 फरवरी 2023) पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध उर्दू कवि, गीतकार, और लेखक थे। उन्होंने उर्दू साहित्य में अपनी अनोखी और भावपूर्ण रचनाओं से एक खास पहचान बनाई। अमजद इस्लाम अमजद को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस (1987), सितारा-ए-इम्तियाज़ (1998), और हिलाल-ए-इम्तियाज़ (2023) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया।



प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

अमजद इस्लाम अमजद का जन्म 4 अगस्त 1944 को लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था। पाकिस्तान के बनने के बाद उनका परिवार वहीं बस गया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट इस्लामिया कॉलेज, सिविल लाइन्स, लाहौर से प्राप्त की और बाद में पंजाब यूनिवर्सिटी से उर्दू साहित्य में मास्टर की डिग्री हासिल की।

साहित्यिक करियर की शुरुआत

कॉलेज के दिनों से ही अमजद इस्लाम अमजद ने कविता और लेखन में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने गवर्नमेंट एम.ए.ओ. कॉलेज, लाहौर में उर्दू साहित्य के लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। 1975 में, वे पाकिस्तान टेलीविज़न कॉरपोरेशन (पीटीवी) से जुड़े और 1979 तक वहाँ काम किया। इस दौरान, उन्होंने कई चर्चित टेलीविजन नाटकों की पटकथा लिखी, जो पाकिस्तान में आज भी याद किए जाते हैं।

प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ

अमजद इस्लाम अमजद की कविताएँ प्रेम, पीड़ा, समाज और मानव जीवन की जटिलताओं को व्यक्त करती हैं। उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं:

  • "सातवां दर" (1978)
  • "जरा फिर से कहना" (1988)
  • "मोहब्बत ऐसा दरिया है" (2004)

उनके लिखे नाटकों में "वारिस," "दहलीज़," "समंदर," "रात," "वक्त," और "अपने लोग" शामिल हैं, जो सामाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं को दर्शाते हैं।



पत्रकारिता और लेखन

अमजद इस्लाम अमजद ने साहित्य के अलावा पत्रकारिता में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने उर्दू समाचार पत्र डेली एक्सप्रेस के लिए "चश्म-ए-तमाशा" नामक नियमित कॉलम लिखा, जिसमें उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए।

व्यक्तिगत जीवन

अमजद इस्लाम अमजद की शादी फिरदौस अमजद से हुई थी, और उनके एक पुत्र अली जीशान अमजद हैं। अमजद का परिवार उनके लिए प्रेरणा का स्रोत था, और उन्होंने अपने जीवन में सादगी और विनम्रता का पालन किया।

पुरस्कार और सम्मान

अमजद इस्लाम अमजद को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें शामिल हैं:

  • प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस (1987)
  • सितारा-ए-इम्तियाज़ (1998)
  • हिलाल-ए-इम्तियाज़ (2023)

निधन और विरासत

अमजद इस्लाम अमजद का निधन 10 फरवरी 2023 को लाहौर में हुआ। उनकी साहित्यिक धरोहर और उनकी रचनाएँ आज भी उर्दू साहित्य प्रेमियों के बीच जीवंत हैं। उनकी आधिकारिक वेबसाइट amjadislamamjad.com उनकी रचनाओं और जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

अमजद इस्लाम अमजद की शायरी,ग़ज़लें नज़्में 

1-ग़ज़ल 

चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन

राज़ों की तरह उतरो मिरे दिल में किसी शब
दस्तक पे मिरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन

पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूँ
बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन

ख़ुशबू की तरह गुज़रो मिरी दिल की गली से
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन

गुज़रें जो मेरे घर से तो रुक जाएँ सितारे
इस तरह मिरी रात को चमकाओ किसी दिन

2-ग़ज़ल 


जैसे मैं देखता हूँ लोग नहीं देखते हैं
ज़ुल्म होता है कहीं और कहीं देखते हैं

तीर आया था जिधर ये मिरे शहर के लोग
कितने सादा हैं कि मरहम भी वहीं देखते हैं

क्या हुआ वक़्त का दावा कि हर इक अगले बरस
हम उसे और हसीं और हसीं देखते हैं

उस गली में हमें यूँ ही तो नहीं दिल की तलाश
जिस जगह खोए कोई चीज़ वहीं देखते हैं

शायद इस बार मिले कोई बशारत 'अमजद'
आइए फिर से मुक़द्दर की जबीं देखते हैं

3-ग़ज़ल 


है सवा नेज़े पे सूरज का अलम
तेरे ग़म की साएबानी भी नहीं

मंज़िलें ही मंज़िलें हैं हर तरफ़
रास्ते की इक निशानी भी नहीं

आइने की आँख में अब के बरस
कोई अक्स ए मेहरबानी भी नहीं

आँख भी अपनी सराब आलूद है
और इस दरिया में पानी भी नहीं

जुज़ तहय्युर गर्द बाद ए ज़ीस्त में
कोई मंज़र ग़ैर फ़ानी भी नहीं

दर्द को दिलकश बनाएँ किस तरह
दास्तान ए ग़म कहानी भी नहीं

यूँ लुटा है गुलशन ए वहम ओ गुमाँ
कोई ख़ार ए बद गुमानी भी नहीं

4-ग़ज़ल 

इश्क़ ऐसा अजीब दरिया है
जो बिना साहिलों के बहता है

मुग़्तनिम हैं ये चार लम्हे भी
फिर न हम हैं न ये तमाशा है

ऐ सराबों में घूमने वाले
दिल के अंदर भी एक रस्ता है

ज़िंदगी इक दुकाँ खिलौनों की
वक़्त बिगड़ा हुआ सा बच्चा है

इस भरी काएनात के होते
आदमी किस क़दर अकेला है

आईने में जो अक्स है 'अमजद'
क्यों किसी दूसरे का लगता है

नज़्म 


मोहब्बत की एक नज़्म 

अगर कभी मेरी याद आए 

तो चाँद रातों की नर्म दिल-गीर रौशनी में 

किसी सितारे को देख लेना 

अगर वो नख़्ल-ए-फ़लक से उड़ कर 

तुम्हारे क़दमों में आ गिरे 

तो ये जान लेना वो इस्तिआ'रा था मेरे दिल का 

अगर न आए 

मगर ये मुमकिन ही किस तरह है 

कि तुम किसी पर निगाह डालो 

तो उस की दीवार-ए-जाँ न टूटे 

वो अपनी हस्ती न भूल जाए 

अगर कभी मेरी याद आए 

गुरेज़ करती हवा की लहरों पे हाथ रखना 

मैं ख़ुशबुओं में तुम्हें मिलूँगा 

मुझे गुलाबों की पत्तियों में तलाश करना 

मैं ओस-क़तरों के आईनों में तुम्हें मिलूँगा 

अगर सितारों में ओस-क़तरों में ख़ुशबुओं में न पाओ मुझ को 

तो अपने क़दमों में देख लेना मैं गर्द होती मसाफ़तों में तुम्हें मिलूँगा 

कहीं पे रौशन चराग़ देखो 

तो जान लेना कि हर पतंगे के साथ मैं भी बिखर चुका हूँ 

तुम अपने हाथों से उन पतंगों की ख़ाक दरिया में डाल देना 

मैं ख़ाक बन कर समुंदरों में सफ़र करूँगा 

किसी न देखे हुए जज़ीरे पे 

रुक के तुम को सदाएँ दूँगा 

समुंदरों के सफ़र पे निकलो 

तो उस जज़ीरे पे भी उतरना 

निष्कर्ष

अमजद इस्लाम अमजद ने अपनी कविताओं, नाटकों, और लेखों के ज़रिए उर्दू साहित्य को एक नई पहचान दी और उसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनकी रचनाएँ सिर्फ़ शब्दों का खेल नहीं हैं, बल्कि जीवन के अनुभवों, समाज की सच्चाइयों, और इंसानी भावनाओं की सच्ची तस्वीर हैं। उनका साहित्यिक योगदान उनके समय में ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी क़ीमती खज़ाना है। उन्होंने अपनी लेखनी से समाज के कई पहलुओं को उजागर किया और उर्दू साहित्य को एक नई दिशा दी।
अमजद इस्लाम अमजद का जीवन हमें सिखाता है कि साहित्य किस तरह से समाज को बदलने और प्रेरित करने की ताक़त रखता है। उनकी ग़ज़लें, नाटक और कविताएँ आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं और बार-बार पढ़ी जाती हैं। वे उर्दू साहित्य के एक बड़े लेखक और सच्चे समाज के चित्रकार थे। उनके योगदान की बदौलत उर्दू साहित्य को जो नया रास्ता मिला, वह हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेगा और हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहेगा।

Read More Articles :-

1-Domaining Hindi-English

2-News Hindi

3-Biographies-women

और नया पुराने