पूरा नाम और जन्म: अज़ीज़ उर रहमान, तख़ल्लुस नबील, का जन्म 26 जून 1976 को मुंबई में हुआ। वे उर्दू शायरी की दुनिया में अपनी अनोखी शैली के लिए जाने जाते हैं।
अज़ीज़ नबील: उर्दू शायरी की लोकप्रिय आवाज़
जीवन परिचय
पूरा नाम और जन्म: अज़ीज़ उर रहमान, तख़ल्लुस नबील, का जन्म 26 जून 1976 को मुंबई में हुआ। वे उर्दू शायरी की दुनिया में अपनी अनोखी शैली के लिए जाने जाते हैं।
शिक्षा: अज़ीज़ नबील ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन किया और चेन्नई के इंस्टीट्यूट ऑफ मटेरियल मैनेजमेंट से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।
प्रवास और जीवन: 1999 से अज़ीज़ नबील क़तर की राजधानी दोहा में रोज़गार के सिलसिले में रह रहे हैं। उनकी शायरी में प्रवास का दुख और अपनी मिट्टी से बिछड़ने की पीड़ा गहराई से झलकती है।
शायरी का अंदाज़: अज़ीज़ नबील की शायरी में तन्हाई, ख़्वाब, ख़ामोशी, और इंसान की भावनाओं की गहराई का सुंदर मेल होता है। उनके कलाम में वजूद और ख़ुदा के रहस्यों को जानने की चाहत भी दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ पाठकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ती हैं।
प्रकाशित कृतियाँ और साहित्यिक योगदान:
अब तक अज़ीज़ नबील के दो काव्य संग्रह, "ख़्वाब समंदर" (2011) और "आवाज़ के पर खुलते हैं" (2019) प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी शायरी का एक चयन "पहली बारिश" (2019) के नाम से देवनागरी लिपि में राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्रसिद्ध शायरों पर शोध और संपादन का कार्य किया है, जिसके अंतर्गत चार प्रमुख पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं:
- फ़िराक़ गोरखपुरी: शख़्सियत, शायरी और शनाख़्त
- इरफ़ान सिद्दीक़ी: हयात, ख़िदमात और शे'री कायनात
- पंडित बृजनरायन चकबस्त: शख़्सियत और फ़न
- पंडित आनंद नरायन मुल्ला: शख़्सियत और फ़न
संपादकीय कार्य: अज़ीज़ नबील 'दस्तावेज़' पत्रिका के प्रधान संपादक हैं, जिसके चार विशेष अंक प्रकाशित हो चुके हैं:
उर्दू के अहम ग़ैर मुस्लिम शोअरा व अदबा
उर्दू की अहम ख़ुदनविश्त आप बीतियां
इक्कीसवीं सदी के रफ़्तगां के नाम
साहित्यिक और सामाजिक योगदान: अज़ीज़ नबील का पैतृक संबंध उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (मऊ अइमा) से है, और वे भिवंडी (ठाणे ज़िला), महाराष्ट्र में स्थायी रूप से रहते हैं। वे क़तर की "अंजुमन मुहिब्बान-ए-उर्दू हिंद" के जनरल सेक्रेटरी और बहरीन की "मजलिस-ए-फ़ख़्र-ए-बहरीन बराए फ़रोग़-ए-उर्दू" के विशेष सलाहकार भी हैं।
मान्यता और सम्मान: 2020 में "अज़ीज़ नबील की अदबी ख़िदमात" पर पाकिस्तान की लीड्स यूनिवर्सिटी, लाहौर से एक छात्र को एम.फिल की उपाधि मिली, जो उनकी साहित्यिक महत्ता को दर्शाता है।ये भी पढ़ें
अज़ीज़ नबील की शायरी,ग़ज़लें
1-ग़ज़ल
आँखों के ग़म-कदों में उजाले हुए तो हैं
बुनियाद एक ख़्वाब की डाले हुए तो हैं
तलवार गिर गई है ज़मीं पर तो क्या हुआ
दस्तार अपने सर पे सँभाले हुए तो हैं
अब देखना है आते हैं किस सम्त से जवाब
हम ने कई सवाल उछाले हुए तो हैं
ज़ख़्मी हुई है रूह तो कुछ ग़म नहीं हमें
हम अपने दोस्तों के हवाले हुए तो हैं
गो इंतिज़ार-ए-यार में आँखें सुलग उठीं
राहों में दूर दूर उजाले हुए तो हैं
हम क़ाफ़िले से बिछड़े हुए हैं मगर 'नबील'
इक रास्ता अलग से निकाले हुए तो हैं
2-ग़ज़ल
मैं दस्तरस से तुम्हारी निकल भी सकता हूँ
ये सोच लो कि मैं रस्ता बदल भी सकता हूँ
तुम्हारे बाद ये जाना कि मैं जो पत्थर था
तुम्हारे बाद किसी दम पिघल भी सकता हूँ
क़लम है हाथ में किरदार भी मिरे बस में
अगर मैं चाहूँ कहानी बदल भी सकता हूँ
मिरी सिरिश्त में वैसे तो ख़ुश्क दरिया है
अगर पुकार ले सहरा उबल भी सकता हूँ
उसे कहो कि गुरेज़ाँ न यूँ रहे मुझ से
मैं एहतियात की बारिश में जल भी सकता हूँ
3-ग़ज़ल
ख़ामुशी टूटेगी आवाज़ का पत्थर भी तो हो
जिस क़दर शोर है अन्दर कभी बाहर भी तो हो
बुझ चुके रास्ते सन्नाटा हुआ रात ढली
लौट कर हम भी चले जाएँ मगर घर भी तो हो
बुज़दिलों से मैं कोई मारका जीतूँ भी तो क्या
कोई लश्कर मिरी जुरअत के बराबर भी तो हो
मुस्कुराना किसे अच्छा नहीं लगता ऐ दोस्त
मुस्कुराने का कोई लम्हा मयस्सर भी तो हो
रात आएगी नए ख़्वाब भी उतरेंगे मगर
नींद और आँख का रिश्ता कभी बेहतर भी तो हो
छोड़ कर ख़्वाब का सय्यारा कहाँ जाऊँ 'नबील'
कुर्रा-ए-शब पे कोई जागता मंज़र भी तो हो
4-ग़ज़ल
मैं जैसे वक़्त के हाथों में इक ख़ज़ाना था
किसी ने खो दिया मुझ को किसी ने पाया मुझे
न जाने कौन हूँ किस लम्हा ए तलब में हूँ
'नबील' चैन से जीना कभी न आया मुझे
मैं एक लम्हा था और नींद के हिसार में था
फिर एक रोज़ किसी ख़्वाब ने जगाया मुझे
उसी ज़मीं ने सितारा किया है मेरा वजूद
समझ रहे हैं ज़मीं वाले क्यूँ पराया मुझे
जहाँ कि सदियों की ख़ामोशियाँ सुलगती हैं
किसी ख़याल की वहशत ने गुनगुनाया मुझे
इक आरज़ू के तआक़ुब में यूँ हुआ है 'नबील'
हवा ने रेत की पलकों पे ला बिठाया मुझे