बुशरा फर्रुख (उर्दू: بشری فارخ; जन्म: 16 फरवरी 1957) पाकिस्तान की एक मशहूर उर्दू कवयित्री हैं। उनका जन्म पेशावर में हुआ और उन्होंने अपनी पहचान एक मजबूत आवाज़ के रूप में बनाई, खासकर उर्दू शायरी के क्षेत्र में। वह पाकिस्तान की उन गिनी-चुनी महिला कवियों में से एक हैं जिन्होंने न केवल उर्दू बल्कि पश्तो, हिन्दको और अंग्रेजी में भी अपनी रचनाओं से लोगों का दिल जीता। बुशरा फर्रुख ने रेडियो पाकिस्तान और पाकिस्तान टेलीविजन पर बतौर उद्घोषिका भी काम किया है।
पेशेवर जीवन
बुशरा फर्रुख एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं, जिन्होंने पाकिस्तानी टेलीविजन, रेडियो और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनके पेशेवर सफर की शुरुआत पाकिस्तान टेलीविजन (पीटीवी) से हुई, जहाँ उन्होंने पिशावर सेंट्रल में 10 वर्षों तक मेजबान के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इसके बाद, उन्होंने 35 साल तक ड्रामा आर्टिस्ट के रूप में काम किया। उनकी भाषा पर पकड़ और बहु-भाषीयता ने उन्हें उर्दू, पश्तो, हंदको और अंग्रेजी में अभिनय करने का अवसर दिया, जो कि एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
रेडियो पाकिस्तान में भी उन्होंने 35 वर्षों तक बतौर कमपीयर और ड्रामा आर्टिस्ट काम किया, जहाँ उनके कार्यक्रम युवाओं में काफी लोकप्रिय हुए। बुशरा फर्रुख के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव उनके पति फर्रुख सेर के निधन के बाद आया, जब वे पूरी तरह से शायरी की ओर मुड़ीं और साहित्यिक मंच पर अपनी एक अलग पहचान बनाई। वे "कारवां हावा लिटरेरी फोरम" की चेयरपर्सन हैं, और इस मंच के माध्यम से महिला लेखकों के प्रोत्साहन और उनकी साहित्यिक यात्रा को बढ़ावा देती हैं।
साहित्यिक योगदान
बुशरा फर्रुख की साहित्यिक यात्रा में नौ से अधिक काव्य संग्रह शामिल हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं:
- "अक क़यामत है लम्हा मौजूदा" - (उर्दू शायरी)
- "अधूरी मोहब्बत का पूरा सफर" - (उर्दू शायरी)
- "बहुत गहरी उदासी है" - (उर्दू शायरी)
- "मोहब्बतां दे मिज़ाज वखरे" - (हंदको शायरी)
- "जुदाई भी ज़रूरी है" - (उर्दू शायरी)
- "मुझे आवाज़ मत देना" - (उर्दू शायरी)
- "व-रफ़ाना लक ज़िक्रक" - (उर्दू नातिया काव्य संग्रह)
- "तो कुजा मैं कुजा" - (उर्दू नातिया काव्य संग्रह)
- "खुमैनी के ईरान में" - (उर्दू सफरनामा)
पुरस्कार और सम्मान
बुशरा फर्रुख को उनके अद्भुत साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। कुछ प्रमुख पुरस्कारों में शामिल हैं:
- अबासिन आर्ट्स काउंसिल लिटरेरी अवार्ड (2017-2018)
- सरदार अब्दुल रब निश्तर अवार्ड
- बज़्म-ए-बहार अदब सिल्वर जुबली अवार्ड (2005)
- पीटीवी उत्कृष्टता पुरस्कार (1998)
- और कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार
रेडियो पाकिस्तान:
उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में उद्घोषिका, कंपेयर और नाटक कलाकार के रूप में 35 साल काम किया।
महिला लेखक मंच:
उन्होंने 3 साल तक महासचिव और 1 साल के लिए मुख्य आयोजक के रूप में महिला लेखक मंच की सेवा की।
व्यवसायी महिला संघ:
2 साल तक पब्लिक रिलेशन ऑफिसर के रूप में काम किया।
इंस्टिट्यूट ऑफ कंप्यूटर मैनेजमेंट साइंसेज (ICMS):
1 साल तक आईसीएमएस में साहित्यिक विंग की प्रभारी के रूप में कार्य किया।
बुशरा फर्रुख की शायरी,ग़ज़लें
1-गज़ल
कहानी बात करती हे,फ़साना बात करता हे
फ़क़त ये दिल ही चुप हे,इक ज़माना बात करता हे
कभी हम से किसी का मुस्कुराना बात करता हे
कभी छुपकर कोई दर्द ए जगाना बात करता हे
मेरे दिल पर कभी तुम हाथ रखो तो ये जानो भी
कोई कैसे किसी से वाले हाना बात करता हे
मेरे बचपन में जो बिखरा मेरे अपनो के हाथो से
ख्यालों में अभी तक वो ठिकाना बात करता हे
उसे बंटना था सो बंटता गया हस्बे ज़रूरत वो
मगर आँखों में एक पूरा फ़साना बात करता हे
गुलो बुलबुल सबा तितली सितारे चांदनी झरने
के दिल से हर ख़्याल ए शायराना बात करता हे
सिसकता हे कहीं पलकों पे इक टुटा हुआ तारा
जब आँखों से कोई सपना सुहाना बात करता हे
भुला देता हे एक पल में ही सारे रख रखाव को
तेरे दिल से जो मेरा दिल दीवाना बात करता हे
जो तेरी याद के तीरों होता हे जिगर छलनी
तो इनकी ज़द पे आया हर निशाना बात करता हे
निगाहें फेर लेते हैं वो मुझको देखकर बुशरा
मगर आँखों में एक रोग पुराना बात करता हे
2-गज़ल
आपके वास्ते साया हे समर आपका हे
बीज बोया था कभी हमने, शजर आपका हे
आपके वास्ते दरवाज़ा खुला छोड़ दिया
दिल में घर करना हे कैसे, ये हुनर आपका हे
हम तो गुमनाम जज़ीरो के मुसाफ़िर ठेहरे
मंज़िलें आपकी हैं, और सफर आपका हे
सारे किरदार कहानी में कहीं रुक से गए
एक चलता हुआ क़िरदार मगर आपका हे
वादी ए चश्मे तमन्ना में बसे हर जानिब
आपके ख़ाब हैं मगर ये खाब आपका हे
जब ज़ुबा हो के ये कहते हैं दरों बाम सभी
आते जाते रहा कीजे के ये घर आपका हे
झाँकने लगती हे तल्खी किसी रोज़न से कहीं
थोड़ा थोड़ा मेरे लेहजे में असर आपका हे
3-गज़ल
ब ज़ाहिर तुझ से मिलने का कोई इम्काँ नहीं है
दिलासों से बहलता ये दिल ए नादाँ नहीं है
चमन में लाख भी बरसे अगर अब्र ए बहाराँ
तो नख़्ल ए दिल हरा होने का कुछ इम्काँ नहीं है
हवा-ए-वक़्त ने जिस बस्ती ए दिल को उजाड़ा है
उसे आबाद करना काम कुछ आसाँ नहीं है
वो इक दीवार है हाइल हमारे दरमियाँ जो
किसी रौज़न का उस में अब कोई इम्काँ नहीं है
अगरचे खा गई दीमक ग़मों की बाम ओ दर को
मगर टूटी अभी तक ये फ़सील ए जाँ नहीं है
तुम्हारी रूह 'बुशरा' क़ैद है तन के क़फ़स में
इसे आज़ाद करना मोजज़ा आसाँ नहीं है
4-गज़ल
तब्सरा
बुशरा फर्रुख का साहित्यिक और पेशेवर सफ़र एक मिसाल है, जो ख़वातीन के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी ज़िन्दगी में एक रचनात्मक गहराई और मुहब्बत के रंग दिखते हैं, जो उर्दू, पश्तो, और हंदको जैसी कई ज़बानों में बयाँ हुए हैं। उनके शायरी के मजमुए, जैसे "बहुत गहरी उदासी है" और "जुदाई भी ज़रूरी है", उन एहसासों और तजुर्बों को ज़ाहिर करते हैं जो लोगों के दिलों को छूते हैं। उनका काम सिर्फ़ लिखने तक महदूद नहीं रहा, बल्कि उन्होंने रेडियो और टेलीविजन में भी लंबा अरसा गुज़ारा, जहाँ उन्होंने एक मेज़बान और अदाकारा के तौर पर पाकिस्तान के मुआशरे पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।
बुशरा फर्रुख का अदबी सफर उनके शौहर फर्रुख सैर की वफात के बाद और भी गहरा हुआ। उन्होंने अपने ग़म को शायरी में ढालते हुए एक ऐसा मजमूआ पेश किया जिसने न सिर्फ़ पाकिस्तानी अदब में बल्कि बैरूनी मुमालिक में भी शोहरत पाई। उनकी रचनाओं में दिल की सच्चाई और जुबान की मिठास है, जो क़ारी को मुग्ध कर देती है। उन्होंने पाकिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की सबसे पहले किताब लिखने वाली शायरा होने का मान हासिल किया और मुल्क की सैंकड़ों अदबी और अदाकारी महफ़िलों में पाकिस्तान की नुमाइंदगी की।
बुशरा फर्रुख की ये कामयाबी उनके लिए कई मर्तबा एज़ाज़ भी लाईं। उनकी अदबी खिदमतों पर पाकिस्तान के मुख़्तलिफ़ युनिवर्सिटी में थीसिस लिखे गए और आज वो ख़वातीन के लिए "कारवां हव्वा लिटरेरी फ़ोरम" की चेयरपर्सन के तौर पर भी अदबी ख़िदमतें अंजाम दे रही हैं। उनके हुनर और ख़िदमतों को देखकर यक़ीनन कहा जा सकता है कि बुशरा फर्रुख का नाम पाकिस्तान की अदबी दुनिया में हमेशा याद किया जाएगा।ये भी पढ़ें