परिचय
सैयद नासिर रज़ा काज़मी (8 दिसंबर 1925 – 2 मार्च 1972) उर्दू साहित्य के उन चुनिंदा शायरों में से एक हैं, जिनकी रचनाएँ आज भी अदब की दुनिया में रोशनी की मानिंद चमकती हैं। उनका जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब के अंबाला शहर में हुआ। विभाजन के बाद उन्होंने पाकिस्तान के लाहौर को अपना घर बनाया और वहीं अपनी शायरी और साहित्यिक गतिविधियों को नया आयाम दिया।
नासिर काज़मी की शायरी में सादगी, गहराई और भावना का अनूठा संगम मिलता है। उनके द्वारा उपयोग किए गए सरल और रोज़मर्रा के शब्द जैसे "चाँद", "रात", "बारिश", "मौसम", "याद", "तन्हाई", और "दरिया" एक नई ज़िंदगी पाते हैं। छोटी बहर (छोटे छंदों) में रची उनकी शायरी ने उर्दू अदब में एक नई पहचान बनाई। उनकी रचनाएँ आज भी न केवल पाकिस्तान बल्कि भारत में भी बेहद लोकप्रिय हैं। उनकी शायरी को भारतीय सिनेमा और पाकिस्तान टेलीविज़न पर अक्सर जगह मिलती रही है।
प्रारंभिक जीवन और करियर
नासिर काज़मी का जन्म 8 दिसंबर 1925 को ब्रिटिश भारत के अंबाला शहर में हुआ। 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान वे लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने "औराक़-ए-नौ" और "ख़याल" जैसी मशहूर साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके साथ ही उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में स्टाफ एडिटर के रूप में अपनी सेवाएँ दीं।
शुरुआत में, नासिर काज़मी को एक उदास और तन्हाई पसंद शायर माना जाता था, लेकिन उनकी शायरी में रोमांस और उम्मीद की झलक भी बखूबी मिलती है। उनका लेखन दिल की गहराइयों को छू लेने वाला और प्रकृति के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाने वाला था। उन्होंने स्वयं कहा था कि प्रकृति के खूबसूरत लम्हों को शायरी के ज़रिए हमेशा के लिए जिंदा रखा जा सकता है।
नासिर काज़मी पर
अख्तर शीरानी और
हफ़ीज़ होशियारपुरी की शायरी का गहरा प्रभाव पड़ा। उनके आदर्शों में मीर तक़ी मीर का नाम प्रमुख था। मीर की शायरी की गहराई और संवेदनशीलता ने नासिर की रचनाओं को एक नई दिशा दी।
प्रमुख कृतियाँ
नासिर काज़मी ने कई अद्वितीय कृतियाँ लिखीं, जो आज भी उर्दू साहित्य के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ मानी जाती हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं:
1. बर्ग-ए-नै (1952)
2. दीवान (1972)
3. पहली बारिश (1975)
4. हिज्र की रात का सितारा
5. निशात-ए-ख्वाब (1977)
6. वो तेरा शायर, वो तेरा नासिर
इन किताबों में उनकी शायरी का हर पहलू नज़र आता है। छोटी बहर में लिखी उनकी शायरी दिल को छू लेने वाली होती है। उनके कलाम में इंसानी भावनाओं, तन्हाई, और प्रकृति का सुंदर चित्रण मिलता है।
व्यक्तिगत जीवन और परिवार
नासिर काज़मी का व्यक्तिगत जीवन भी साहित्यिक योगदानों से भरा रहा। उनके बड़े बेटे, बसीर सुल्तान काज़मी मशहूर शायर और नाटककार हैं। वे उर्दू और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखते हैं और इंग्लैंड में बसे हैं। उन्हें साहित्य में योगदान के लिए MBE से नवाज़ा गया।
उनके छोटे बेटे, हसन सुल्तान काज़मी, एक प्रतिष्ठित शायर और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे। उन्होंने लाहौर के प्रतिष्ठित कॉलेजों में पढ़ाया और 2015 में सेवानिवृत्त हुए।
निधन और विरासत
नासिर काज़मी का निधन 2 मार्च 1972 को लाहौर में हुआ। पेट के कैंसर के कारण उनका देहांत हुआ। उन्हें लाहौर के मोमिनपुरा कब्रिस्तान में दफन किया गया।
उनके योगदान को याद करते हुए पाकिस्तान पोस्ट ने 2013 में उनके नाम पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। नासिर काज़मी की शायरी आज भी उर्दू अदब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी रचनाएँ पाठकों और सुनने वालों के दिलों में गहरी जगह बनाए हुए हैं।
साहित्यिक योगदान और महत्व
नासिर काज़मी की शायरी में तन्हाई, प्रेम, और प्रकृति का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। उनकी छोटी बहर की शायरी ने उर्दू अदब को नया आयाम दिया। उनकी कविताएँ पढ़ने और सुनने वाले को एक अलग दुनिया में ले जाती हैं। उनकी शायरी न केवल उनके समय में बल्कि आज भी उर्दू साहित्य में एक मील का पत्थर मानी जाती है।
उनकी कृतियों का अनुवाद और प्रस्तुति विभिन्न मंचों पर होती रहती है। उनके शेर और ग़ज़लें संगीत और फिल्म जगत में भी उपयोग की जाती रही हैं।
संदर्भ पुस्तकें और अन्य रचनाएँ
1. सन सत्तावन मेरी नज़र में
2. ख़ुश्क चश्मे के किनारे
3. नासिर काज़मी की डायरी
नासिर काज़मी की विरासत
नासिर काज़मी ने उर्दू साहित्य को जो गहराई और सादगी दी, वह उन्हें अन्य शायरों से अलग करती है। उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों को प्रेरणा देती हैं। उनके योगदानों को याद करते हुए, उनकी शायरी अदब की दुनिया में हमेशा के लिए अमर हो गई है।
1-ग़ज़ल
अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तन्हा हूँ
तेरी गली में सारा दिन
दुख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाए कौन
मैं तेरा आईना हूँ
मेरा दिया जलाए कौन
मैं तिरा ख़ाली कमरा हूँ
तेरे सिवा मुझे पहने कौन
मैं तिरे तन का कपड़ा हूँ
तू जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रस्ता हूँ
आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ
अपनी लहर है अपना रोग
दरिया हूँ और प्यासा हूँ
2-ग़ज़ल
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
आज मुश्किल था सँभलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया
तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा
मर रहेंगे अगर अब याद आया
फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया
बैठ कर साया-ए-गुल में 'नासिर'
हम बहुत रोए वो जब याद आया
3-ग़ज़ल
ग़म है या ख़ुशी है तू
मेरी ज़िंदगी है तू
आफ़तों के दौर में
चैन की घड़ी है तू
मेरी रात का चराग़
मेरी नींद भी है तू
मैं ख़िज़ाँ की शाम हूँ
रुत बहार की है तू
दोस्तों के दरमियाँ
वज्ह-ए-दोस्ती है तू
मेरी सारी उम्र में
एक ही कमी है तू
मैं तो वो नहीं रहा
हाँ मगर वही है तू
'नासिर' इस दयार में
कितना अजनबी है तू
4-ग़ज़ल
इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम
दो-क़दम और मिरे साथ चलो
अभी देखा नहीं जी-भर के तुम्हें
अभी कुछ देर मिरे पास रहो
मुझ सा फिर कोई न आएगा यहाँ
रोक लो मुझ को अगर रोक सको
यूँ न गुज़रेगी शब-ए-ग़म 'नासिर'
उस की आँखों की कहानी छेड़ो
5-ग़ज़ल
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
ख़ुदा करे कोई तेरे सिवा न पहचाने
मिटी मिटी सी उमीदें थके थके से ख़याल
बुझे बुझे से निगाहों में ग़म के अफ़्साने
हज़ार शुक्र कि हम ने ज़बाँ से कुछ न कहा
ये और बात कि पूछा न अहल-ए-दुनिया ने
ब-क़द्र-ए-तिश्ना-लबी पुर्सिश-ए-वफ़ा न हुई
छलक के रह गए तेरी नज़र के पैमाने
ख़याल आ गया मानूस रहगुज़ारों का
पलट के आ गए मंज़िल से तेरे दीवाने
कहाँ है तू कि तिरे इंतिज़ार में ऐ दोस्त
तमाम रात सुलगते हैं दिल के वीराने
उमीद-ए-पुर्सिश-ए-ग़म किस से कीजिए 'नासिर'
जो अपने दिल पे गुज़रती है कोई क्या जाने
तब्सरा
नासिर काज़मी उर्दू अदब की दुनिया का वो चमकता हुआ सितारा हैं जिनकी शायरी का हर शेर दिल की गहराइयों में उतर जाता है। उनकी शायरी में तन्हाई, यादें, और फितरत के रंग इस कदर रच-बस गए हैं कि उनकी रचनाएँ वक्त के साथ और भी मानीखेज हो जाती हैं। नासिर काज़मी ने छोटी बहर में ग़ज़लों को एक नया आयाम दिया और अपनी सादगी भरी ज़ुबान से अदब के हर तबके को अपनी तरफ खींचा।
उनकी शायरी की ख़ासियत उनकी गहराई और आम ज़िंदगी के जज़्बात को नायाब अंदाज़ में पेश करना है। "चाँद", "रात", "बारिश" जैसे अल्फ़ाज़ उनकी ग़ज़लों में महज़ शब्द नहीं, बल्कि एहसास बनकर उभरते हैं। नासिर काज़मी की रचनाएँ इस बात का सुबूत हैं कि सादा और आसान लफ़्ज़ों में भी बेपनाह गहराई लाई जा सकती है।
उनका अदबी सफर, उनकी क़िताबें, और उनके छोड़े हुए नक़्श आज भी उर्दू साहित्य के लिए मशाल की मानिंद हैं। नासिर काज़मी का नाम हमेशा उर्दू शायरी की रूहानी खूबसूरती और सादगी का मिसाल रहेगा। उनके कलाम की गूँज आज भी अदब के चाहने वालों के दिलों में ज़िंदा है।ये भी पढ़ें