रुबीना अयाज़ उर्दू अदब की दुनिया में एक ऐसा उभरता हुआ नाम हैं, जो अपनी प्रभावशाली शायरी और बेहतरीन तरन्नुम (आवाज़ ) के लिए जानी जाती हैं। एक सितारे की तरह चमकते हुए उन्होंने अदबी महफ़िलों में अपनी खास पहचान बनाई है। 2 मई को जन्मीं रुबिना न सिर्फ अपने शहर, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी शायरी से लोगों के दिलों पर असर डाल रही हैं। नेपाल जैसे देशों के मुशायरों में शिरकत कर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और उर्दू साहित्य में एक अहम मुकाम हासिल किया है।
प्रारंभिक जीवन (इब्तेदाई ज़िंदगी )
रुबीना अयाज़ का ताल्लुक लखनऊ के एक सुसंस्कृत और शिक्षित परिवार से है। उनके पिता, मोहम्मद अयाज़, एक सरकारी कर्मचारी थे, जिनसे उन्होंने मेहनत, ईमानदारी और ज़िम्मेदारी जैसे अहम उसूल सीखे। उनकी माता, ज़ाकिरा बेगम, एक घरेलू महिला थीं, जिनका प्यार और मार्गदर्शन हमेशा रुबिना के साथ रहा। अपने परिवार से मिले संस्कार और साहित्यिक परिवेश ने उनकी शायरी को संवेदनशील और असरदार बनाने में अहम भूमिका निभाई।
शिक्षा और शायरी का आगाज़
रुबीना की शुरुआती तालीम वारिसिया गर्ल्स इंटर कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ में हुई, जहाँ से उन्होंने उर्दू अदब के प्रति अपनी दिलचस्पी को समझा। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने करामत हुसैन गर्ल्स पी.जी. कॉलेज, निशातगंज से बी.ए. किया और फिर लखनऊ विश्वविद्यालय से उर्दू में एम.ए. की डिग्री हासिल की। इस दौरान उन्होंने उर्दू अदब की गहराइयों में उतरकर साहित्य की बारीकियों को सीखा और अपने विचारों को शायरी के माध्यम से व्यक्त करना शुरू किया। 2017 में उनकी शायरी का आगाज़ हुआ, जिसने उन्हें अदब की महफ़िलों में एक नई पहचान दी।
मुशायरों में एक प्रभावशाली उपस्थिति
रुबीना अयाज़ की शायरी का सफर ऑल इंडिया और अंतरराष्ट्रीय मुशायरों में उनकी मौजूदगी से और भी खूबसूरत बना। उनके अंदाज़-ए-बयान और आवाज़ की गूँज ने हर महफ़िल में एक अलग ही समा बाँध दिया। नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मुशायरे में जब उन्होंने अपने अशआर पेश किए, तो उनकी शायरी की खनक ने वहाँ के श्रोताओं को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके लफ़्ज़ों में छिपा सच्चा जज़्बा और उनके अल्फाज़ की मिठास उन्हें एक सशक्त शायरा के रूप में पेश करती है। उनकी शायरी में मोहब्बत, उम्मीद, दर्द और समाज की हकीकत का खूबसूरत मेल देखने को मिलता है।
सम्मान और पुरस्कार
रुबीना अयाज़ को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। ये सम्मान उनके साहित्यिक सफर में उनके योगदान और मेहनत का साक्ष्य हैं:
1. कम्युनिटी अवार्ड (हेरा फाउंडेशन, कनाडा)
- उर्दू अदब और समाज के प्रति उनके योगदान को सराहने के लिए दिया गया।
2. साहित्य सम्मान 2020 (रुबरू फाउंडेशन)
- उनकी शायरी में गहराई और सादगी का संगम प्रस्तुत करने के लिए।
3. लता मंगेशकर सम्मान 2021 (नागरिक सुरक्षा संगठन, लखनऊ)
- उनके साहित्यिक योगदान और उनकी मर्मस्पर्शी शायरी को पहचान मिली।
4. अटल रत्न सम्मान 2021 (प्रिंट मीडिया वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन)
- समाज के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी और साहित्यिक योगदान को मान्यता दी गई।
5. शाहजहां जानो 'याद' दहलवी सम्मान 2022 (नागरिक सुरक्षा संगठन, लखनऊ)
- उर्दू अदब में उनके योगदान के लिए।
6. नारी शक्ति सम्मान 2024 (निहारिका साहित्य मंच, कंट्री इंडिया)
- महिलाओं की ताकत और उनकी साहित्यिक भूमिका का प्रतीक यह सम्मान उन्हें प्रेरणास्रोत के रूप में प्रस्तुत करता है।
शायरी की अनोखी शैली
रुबीना अयाज़ की शायरी में सादगी और गहराई का अनूठा तालमेल है। उनके लफ़्ज़ों में एक अद्भुत मिठास है जो सीधे दिल पर असर करती है। उनकी ग़ज़लें और नज़्में समाज के विविध पहलुओं, मोहब्बत और दर्द की कहानियाँ बयान करती हैं। वह अपने अशआरों के माध्यम से समाज की आवाज़ बनती हैं और हर शेर में गहराई से भरी हुई सोच को प्रस्तुत करती हैं। उनकी शायरी के ज़रिए हर पाठक और श्रोता को खुद की ज़िंदगी की एक झलक मिलती है, जो उन्हें और अधिक खास बनाती है।
अदबी सफर की नई ऊँचाईयाँ
रुबीना अयाज़ का यह अदबी सफर लगातार नई बुलंदियों को छूता जा रहा है। उनके चाहने वालों का कारवां दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, और उनके लफ़्ज़ों की महक दूर-दूर तक पहुँच रही है। उनके सम्मान और पुरस्कार ने उन्हें अदब की दुनिया में और भी प्रसिद्धि दिलाई है। आज उनकी शायरी उर्दू साहित्य में एक नई जान डाल रही है और साहित्यिक मंचों पर उनकी शायरी की गूंज सुनाई देती है।
रुबिना अयाज़ आज उर्दू शायरी की दुनिया में एक ऐसा नाम बन चुकी हैं जो अपने शायरी के अंदाज और एहसास से हर दिल में जगह बना रही हैं। उर्दू अदब का यह चमकता सितारा आने वाले समय में और भी ऊँचाइयों को छूने के इरादे से अपनी मेहनत और लगन को जारी रखे हुए है।
रुबीना अयाज़ की शायरी ग़ज़लें,नज़्मे
1-ग़ज़ल
2-ग़ज़ल
3-ग़ज़ल
4-ग़ज़ल
होती है जो रगों में वह हलचल उदास है,
दिल भी तेरे बग़ैर मुसलसल उदास है,
ऐसी मोहब्बतों की भी क्या होगी अब मिसाल,
लिपटे नहीं जो साँप तो संदल उदास है,
तुमने मेरे यकीन का ऐसे किया है कत्ल,
जो देख कर के शहर का मक़तल उदास है।
मशहूर है ज़माने में जंगल की ख़ामोशी,
लेकिन मेरी ख़मोशी पे जंगल उदास है।
गुलशन से दूर कर देंगे तक़मील-ए-हुस्न पर,
यह सोच कर कि नन्ही सी कोंपल उदास है।
क़तअ
एक मुद्दत से अपने काम पे हूँ,
जैसे ज़िंदा ही तेरे नाम पे हूँ,
इश्क़ का आख़िरी मक़ाम है मौत,
और मैं आख़िरी मक़ाम पे हूँ।
तब्सरा
रुबीना अयाज़ उर्दू साहित्य की दुनिया में एक चमकते सितारे की तरह उभर रही हैं। उनकी शायरी की गहराई, सादगी और तरन्नुम (आवाज़) ने उन्हें एक खास पहचान दिलाई है। मुशायरों में उनकी उपस्थिति हमेशा एक अलग ही समा बांध देती है, और उनकी शायरी में समाहित भावनाएँ श्रोताओं के दिलों तक पहुँचती हैं। हालांकि रुबिना अयाज़ ने अदबी दुनिया में कई अहम मुकाम हासिल किए हैं, उनका सफर यहीं नहीं रुकता। उनकी शायरी में और भी ऊँचाइयाँ छुपी हैं, जिन तक पहुँचने के लिए उन्हें और मेहनत और साधना की आवश्यकता है। वह एक उभरती हुई शायरा हैं, जिनका भविष्य उज्जवल है और उनकी कविताएँ और ग़ज़लें आने वाले समय में उर्दू साहित्य को और भी समृद्ध करेंगी।ये भी पढ़ें
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