मनीष शुक्ला की शायरी में इंसानियत की झलक

 श्री मनीष शुक्ला का जन्म 1971 में उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ। अपनी प्रतिभा, शायरी के लिए वक़्फ़ और समाज को बेहतर दिशा देने की सोच के साथ वो आज अदब और इंतेज़ामी दुनिया में एक मक़बूल नाम बन चुके हैं। आप एक सीनियर इंतेज़ामी अफ़सर के साथ-साथ मशहूर उर्दू शायर भी हैं। मौजूदा वक़्त में मनीष शुक्ला उत्तर प्रदेश अकादमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट में फ़ाइनेंस अफ़सर और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के डायरेक्टर के ओहदे पर फ़ायज़ हैं।


इब्तिदाई ज़िन्दगी और तालीम

सीतापुर की इस सरज़मीन में पैदा हुए श्री मनीष शुक्ला की तालीम लखनऊ यूनिवर्सिटी में मुकम्मल हुई। आपने मानवविज्ञान (एंथ्रोपोलॉजी) में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया, जिस से उनके शख्सियत में बसी हुई हस्सासियत और समाज की समझ का असर उनकी शायरी में भी झलकता है।

अदबी सफर और शायरी की शुरुआत

गुज़िश्ता बीस बरस से उर्दू अदब में बरसर-ए-पैकार मनीष शुक्ला ने ग़ज़ल की शक्ल में अपने ख्यालात और जज़्बात का इज़हार किया। उनकी पहली किताब "ख़्वाब पत्थर हो गए" 2012 में शाए हुई, जिस ने अदबी दुनिया में उनकी पहचान को और भी मज़बूत किया। उनकी ग़ज़लें पढ़ने वालों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती हैं, और इनमें ज़िंदगी की उलझनों का बेहतरीन अंदाज़ में बयान मिलता है।

इनामात की फ़हरिस्त

श्री मनीष शुक्ला को उर्दू अदब में अपने ला-जवाब किरदार के लिए कई बड़े एज़ाज़ात से नवाज़ा गया है। इन में से कुछ ख़ास इनामात निम्नलिखित हैं:

युवा रत्न सम्मान (2012) – अदबी मैदान में उनकी नौजवानी की ताक़त और किरदार के लिए

साकिब अवार्ड (2014) – उर्दू ग़ज़लों में नए अंदाज़ और परिपक्वता के लिए

नसीम अहमद सिद्दीक़ी अवार्ड (2015) – उर्दू अदब में उनकी खिदमत के लिए

दिवंगत देवल मिश्रा स्मृति सम्मान (2016) – समाज और अदब के मैदान में योगदान के लिए

सृजन सम्मान (2016) – अदबी ख़िदमतों के लिए

रोटरी एक्सीलेंस अवार्ड (2016) – अदब और समाजी खिदमत के मैदान में ख़ास किरदार के लिए

उनको उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी इनाम और फ़िराक़ गोरखपुरी अवार्ड भी दिया गया है, जो सुबाई सतह पर दिए जाने वाले उर्दू अदब के अहम एज़ाज़ात में से एक हैं। ये तमाम एज़ाज़ात उनकी शायरी की बुलंदी और उर्दू अदब के लिए उनके खालिस लगाव को बयाँ करते हैं।

अदबी मंचों पर हाज़री

श्री मनीष शुक्ला पिछले 15 सालों से आलमी सतह पर होने वाले मुशायरों में अपनी दिलकश शायरी से लोगों को अपना दीवाना बना रहे हैं। उनके कलाम ऑल इंडिया रेडियो और मुख्तलिफ़ टीवी चैनलों पर अक्सर प्रसारित होते हैं, और उनकी ग़ज़लें हिंदुस्तान की मुख़्तलिफ़ उर्दू और हिंदी मैगज़ीन्स और अख़बारों में छपती हैं। जश्न-ए-अदब आलमी अदबी मेले में उन्होंने 2013 से बराबर शिरकत की है, और नई दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और रायबरेली में इस मेले में अपनी शायरी का जलवा बिखेरा है। इसके अलावा, वे 2016 में जश्न-ए-रेख्ता में भी बतौर उर्दू शायर शिरकत कर चुके हैं, जो रेख्ता तंज़ीम की जानिब से मुनक्कद किया जाने वाला उर्दू अदब का एक अहम मेला है।

उनकी शायरी की ख़ास बातें और समाजी असर

श्री मनीष शुक्ला की शायरी में उनकी हस्सासियत, समाज की ख़ूबियाँ और ज़िंदगी के तजुर्बात नज़र आते हैं। उनकी ग़ज़लों में समाज के मुख्तलिफ़ पहलुओं को उजागर करने की सलाहियत है। उनके अशआर में सादगी और गहराई का अनोखा संगम देखने को मिलता है। उनकी ग़ज़लों में सिर्फ मोहब्बत और ग़म की बातें ही नहीं होतीं, बल्कि समाज में हो रहे तब्दीलियों और इंसानी ताल्लुक़ात पर उनकी सोच भी झलकती है।

मनीष शुक्ला की शायरी,ग़ज़लें 


1-ग़ज़ल 

जीने की तय्यारी छोड़

यार मिरे हुश्यारी छोड़


सीधे अपनी बात पे आ

ये लहजा दरबारी छोड़


या दुनिया का ख़ौफ़ हटा

या फिर हम से यारी छोड़


चेहरा गुम हो जाएगा

ख़ुद से ये अय्यारी छोड़


दीवानों से हाथ मिला

अब ये दुनिया-दारी छोड़


लौट के घर भी जाना है

मंसब-ए-तख़्त-सवारी छोड़


अपने दिल से पूछ ज़रा

चल तू बात हमारी छोड़


2-ग़ज़ल 

मुख़ालिफ़ीन को हैरान करने वाला हूँ

मैं अपनी हार का एलान करने वाला हूँ


सुना हे दश्त में वहशत सुकून पाती है

सो अपने आप को वीरान करने वाला हूँ


फ़ज़ा में छोड़ रहा हूँ ख़याल का ताइर

सुकूत-ए-अर्श को गुंजान करने वाला हूँ


मिटा रहा हूँ ख़िरद की तमाम तश्बीहें

जुनूँ का रास्ता आसान करने वाला हूँ


हक़ीक़तों से कहो होशियार हो जाएँ

मैं अपने ख़्वाब को मीज़ान करने वाला हूँ


कोई ख़ुदा-ए-मोहब्बत को बा-ख़बर कर दे

मैं ख़ुद को इश्क़ में क़ुर्बान करने वाला हूँ


सजा रहा हूँ तबस्सुम का इक नया लश्कर

हुजूम-ए-यास का नुक़सान करने वाला हूँ


3-ग़ज़ल 


भटकता कारवाँ है और मैं हूँ

तलाश-ए-राएगाँ है और मैं हूँ


बताऊँ क्या तुम्हें हासिल सफ़र का

अधूरी दास्ताँ है और मैं हूँ


नया कुछ भी नहीं क़िस्से में मेरे

वही बोझल समाँ है और मैं हूँ


हर इक जानिब तिलिस्माती मनाज़िर

नज़र का इम्तिहाँ है और मैं हूँ


कोई शाहिद नहीं सज्दों का मेरे

जबीं पर इक निशाँ है और मैं हूँ


शिकस्ता बाल-ओ-पर तकते हैं मुझ को

फ़सील-ए-आसमाँ है और मैं हूँ


दुआ माँगूँ कहाँ किस दर पे जा के

दयार-ए-बे-अमाँ है और मैं हूँ


बहुत धुँदली नज़र आती है दुनिया

उमीदों का धुआँ है और मैं हूँ


भटकता हूँ ज़मीं पर सर-बरहना

फ़लक का साएबाँ है और मैं हूँ


4-ग़ज़ल 


तू मुझ को सुन रहा है तो सुनाई क्यूँ नहीं देता
ये कुछ इल्ज़ाम हैं मेरे सफ़ाई क्यूँ नहीं देता

मिरे हँसते हुए लहजे से धोका खा रहे हो तुम
मिरा उतरा हुआ चेहरा दिखाई क्यूँ नहीं देता

नज़र-अंदाज़ कर रक्खा है दुनिया ने तुझे कब से
किसी दिन अपने होने की दुहाई क्यूँ नहीं देता

मैं तुझ को देखने से किस लिए महरूम रहता हूँ
अता करता है जब नज़रें रसाई क्यूँ नहीं देता

कई लम्हे चुरा कर रख लिए तू ने अलग मुझ से
तू मुझ को ज़िंदगी-भर की कमाई क्यूँ नहीं देता

ख़ुद अपने-आप को ही घेर कर बैठा है तू कब से
अब अपने-आप से ख़ुद को रिहाई क्यूँ नहीं देता

मैं तुझ को जीत जाने की मुबारकबाद देता हूँ
तू मुझ को हार जाने की बधाई क्यूँ नहीं देता


5-ग़ज़ल 


इक अंधी दौड़ थी उकता गया था
मैं ख़ुद ही सफ़ से बाहर आ गया था

न दिल बाज़ार में उस का लगा फिर
जिसे घर का पता याद आ गया था

फ़क़त अब रेत की चादर बिछी है
सुना है उस तरफ़ दरिया गया था

उसी ने राह दिखलाई जहाँ को
जो अपनी राह पर तन्हा गया था

मुझे जलना पड़ा मजबूर हो कर
अंधेरा इस क़दर गहरा गया था

कोई तस्वीर अश्कों से बना कर
फ़सील-ए-शहर पर चिपका गया था

समझ आख़िर में आया वाहिमा था
जो कुछ अब तक सुना समझा गया था

इख़तिताम

श्री मनीष शुक्ला की अदबी ज़िंदगी का अक्स उनकी शायरी में देखा जा सकता है। उन्होंने अपने तजुर्बात और जज़्बात को इस तरह अशआर में ढाला है कि हर पढ़ने वाला उनसे इत्तेफ़ाक़ महसूस करता है। उनके अशआर में मोहब्बत, दर्द, उम्मीद और हक़ीक़त की आवाज़ होती है। इंतेज़ामी अफ़सर होने के बावजूद अदब के लिए उनका जज़्बा बताता है कि अगर इंसान का दिल अदब से महब्बत रखता हो तो मसरूफ़ियात भी उसकी राह में रुकावट नहीं बनतीं।

उनकी शायरी का सफर, सिर्फ जज़्बात का इज़हार नहीं, बल्कि समाज की तल्ख़ सच्चाइयों को भी सामने लाता है। उन्होंने अपनी शायरी में समाज की हक़ीक़तों को क़लमबंद कर के उसे आम अवाम तक पहुँचाया है। उनके अशआर समाज और नई नस्ल के लिए एक सीख हैं और उनकी तहरीर में सबको जोड़ने की ताक़त है। अपने लफ़्ज़ों के ज़रिए वो लोगों के दिलों में एक न भूलने वाली छाप छोड़ने का हुनर रखते हैं।

इस तरह श्री मनीष शुक्ला एक ऐसे अज़ीम शायर हैं, जिन्होंने अदब की दुनिया को एक नई दिशा दी और अपने कलाम के ज़रिए अदब और समाज दोनों में ही अपनी मौजूदगी को हमेशा के लिए दर्ज कर दिया।ये भी पढ़ें 


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