अम्मार इक़बाल: उर्दू शायरी का नया सितारा

 

नाम: अम्मार इक़बाल
तख़ल्लुस: अम्मार
राष्ट्रीयता: पाकिस्तानी
प्रसिद्धि: ग़ज़ल
जन्म: 25 फ़रवरी, 1986
जन्मस्थान: कराची, पाकिस्तान


तआर्रुफ़

अम्मार इक़बाल, उर्दू अदब की एक बुलंद और मक़बूल आवाज़, अपने ख़यालात की गहराई और समाजी सरोकारों पर मबनी शायरी के लिए जाने जाते हैं। उनकी शायरी का हर शेर एक नई सोच, एक नए ज़ाविये की दावत देता है। अम्मार का अदबी सफ़र महज़ अल्फ़ाज़ का खेल नहीं, बल्कि एक जद्दोजहद है, जो इंसानियत, अदब, और समाजी इंसाफ़ को बयां करती है। वो उर्दू ज़बान के फरोग़ और तहज़ीबी विरासत के अहम अलमबरदार हैं।




इब्तिदाई ज़िंदगी और तालीम

अम्मार इक़बाल का पैदाइश कराची के एक अदबी और तहज़ीबी माहौल में हुई। बचपन से ही उन्हें किताबों और अदब से ख़ास लगाव था। उनके वालिदैन ने उन्हें इल्मी और अदबी तालीम के ज़रिये उनकी सलाहियतों को उभारने का मौका दिया। अम्मार ने उर्दू अदब में आला तालीम हासिल की, जिसने उनके लफ़्ज़ों में तासीर और बयान में रवानी पैदा की। उनकी तालीम ने न सिर्फ़ उनके शायरी के अंदाज़ को सँवारा, बल्कि उनके अदबी सफ़र का मज़बूत बुनियाद भी रखा।


शायरी में करियर

अम्मार इक़बाल ने अपनी शायरी से उर्दू अदब को नए आयाम दिए हैं। उनकी शायरी मजमुए, जैसे “मकतल से जंग तक”, “तख़्लीक़-ए-कायनात” और “इश्क़ का क़ाफ़”, उर्दू अदब की दौलत में इज़ाफ़ा करते हैं। उनकी ग़ज़लों और नज़्मों में इंसानी जज़्बात, मोहब्बत, सियासत, और समाजी इंसाफ़ की गहरी झलक मिलती है। उनके अशआर मुताल्ला करने वालों को मुतास्सिर करने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर कर देते हैं।


शायरी का अंदाज़ और तख़लीक़ी ख़ुसूसियात

अम्मार इक़बाल की शायरी अपने दिलकश इस्तेआरों, बारीक तसव्वुरात, और गहराई लिए हुए अल्फ़ाज़ के लिए मशहूर है। उनकी ग़ज़लों में मोहब्बत और जज़्बात का सच्चा इज़हार मिलता है, जबकि उनकी नज़्में समाजी और सियासी मौज़ुआत पर एक नई सोच की दावत देती हैं। उनके अशआर में न सिर्फ़ तसव्वुर की ऊंचाई है, बल्कि तल्ख़ हक़ीक़तों का बयान भी है।


एज़ाज़ात और एहतिराम

अम्मार इक़बाल को उनके अदबी खिदमात के लिए मुतादिद एज़ाज़ात से सरफ़राज़ किया गया है। ‘आलमी उर्दू कॉन्फ्रेंस अवार्ड’ और ‘मशाइख़-ए-मक़बूल अवार्ड’ जैसे नामवर एज़ाज़ात उनके अदबी मक़ाम और शोहरत का सबूत हैं। ये एज़ाज़ उनकी शायरी की अहमियत और उनके फन के एतराफ़ को बयाँ करते हैं।


ज़ाती ज़िंदगी

अम्मार इक़बाल अपनी ज़ाती ज़िंदगी में एक मुनज़वी और सादगी पसंद शख्सियत हैं। अदबी महफ़िलों में उनकी मौजूदगी को खास पसंद किया जाता है, लेकिन वो अपनी निजी ज़िंदगी को अदबी दुनिया की चकाचौंध से अलग रखते हैं। उनकी शायरी उनकी शख्सियत का आईना है, जो उनकी सादगी और गहराई को पेश करती है।


अम्मार इक़बाल का समाजी और अदबी असर

अम्मार इक़बाल न सिर्फ़ एक शायर हैं, बल्कि उर्दू ज़बान और तहज़ीब के अलमबरदार भी हैं। उनकी शायरी इंसानियत, इंसाफ़ और मोहब्बत के पैग़ाम से भरपूर है। वो समाज में बदलाव लाने और अदब को नई रौशनी देने का जरिया बने हैं। उनकी शायरी मुताल्लीन के दिलों में ना सिर्फ़ जोश पैदा करती है, बल्कि उन्हें अदब की गहराईयों से वाकिफ़ कराती है।


अम्मार इक़बाल की शायरी,ग़ज़लें नज़्में 


1-ग़ज़ल 

रंग-ओ-रस की हवस और बस

मसअला दस्तरस और बस


यूँ बुनी हैं रगें जिस्म की

एक नस टस से मस और बस


सब तमाशा-ए-कुन ख़त्म शुद

कह दिया उस ने बस और बस


क्या है माबैन-ए-सय्याद-ओ-सैद

एक चाक-ए-क़फ़स और बस


उस मुसव्विर का हर शाहकार

साठ पैंसठ बरस और बस


2-ग़ज़ल 


ज़रा सी देर जले जल के राख हो जाए
वो रौशनी दे भले जल के राख हो जाए

वो आफ़्ताब जिसे सब सलाम करते हैं
जो वक़्त पर न ढले जल के राख हो जाए

मैं दूर जा के कहीं बाँसुरी बजाऊँगा
बला से रोम जले जल के राख हो जाए

वो एक लम्स-ए-गुरेज़ाँ है आतिश-ए-बे-सोज़
मुझे लगाए गले जल के राख हो जाए

कोई चराग़ बचे सुब्ह तक तो तारीकी
उसी चराग़-तले जल के राख हो जाए

3-ग़ज़ल 


अक्स कितने उतर गए मुझ में
फिर न जाने किधर गए मुझ में

मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ
ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में

मैं वो पल था जो खा गया सदियाँ
सब ज़माने गुज़र गए मुझ में

ये जो मैं हूँ ज़रा सा बाक़ी हूँ
वो जो तुम थे वो मर गए मुझ में

मेरे अंदर थी ऐसी तारीकी
आ के आसेब डर गए मुझ में

पहले उतरा मैं दिल के दरिया में
फिर समुंदर उतर गए मुझ में

कैसा मुझ को बना दिया 'अम्मार'
कौन सा रंग भर गए मुझ में

4-ग़ज़ल 

रात से जंग कोई खेल नईं
तुम चराग़ों में इतना तेल नईं

आ गया हूँ तो खींच अपनी तरफ़
मेरी जानिब मुझे धकेल नईं

जब मैं चाहूँगा छोड़ जाऊँगा
इक सराए है जिस्म जेल नईं

बेंच देखी है ख़्वाब में ख़ाली
और पटरी पर उस पे रेल नईं

जिस को देखा था कल दरख़्त के गिर्द
वो हरा अज़दहा था बेल नईं

5-ग़ज़ल 


रात से जंग कोई खेल नईं
तुम चराग़ों में इतना तेल नईं

आ गया हूँ तो खींच अपनी तरफ़
मेरी जानिब मुझे धकेल नईं

जब मैं चाहूँगा छोड़ जाऊँगा
इक सराए है जिस्म जेल नईं

बेंच देखी है ख़्वाब में ख़ाली
और पटरी पर उस पे रेल नईं

जिस को देखा था कल दरख़्त के गिर्द
वो हरा अज़दहा था बेल नईं


6-ग़ज़ल 


मुझ से बनता हुआ तू तुझ को बनाता हुआ मैं
गीत होता हुआ तू गीत सुनाता हुआ मैं

एक कूज़े के तसव्वुर से जुड़े हम दोनों
नक़्श देता हुआ तू चाक घुमाता हुआ मैं

तुम बनाओ किसी तस्वीर में कोई रस्ता
मैं बनाता हूँ कहीं दूर से आता हुआ मैं

एक तस्वीर की तकमील के हम दो पहलू
रंग भरता हुआ तू रंग बनाता हुआ मैं

मुझ को ले जाए कहीं दूर बहाती हुई तू
तुझ को ले जाऊँ कहीं दूर उड़ाता हुआ मैं

इक इबारत है जो तहरीर नहीं हो पाई
मुझ को लिखता हुआ तू तुझ को मिटाता हुआ मैं

मेरे सीने में कहीं ख़ुद को छुपाता हुआ तू
तेरे सीने से तिरा दर्द चुराता हुआ मैं

काँच का हो के मिरे आगे बिखरता हुआ तू
किर्चियों को तिरी पलकों से उठाता हुआ मैं

1-नज़्म 


मैं अपने बंद कमरे में पड़ा हूँ
और इक दीवार पर नज़रें जमाए

मनाज़िर के अजूबे देखता हूँ
उसी दीवार में कोई ख़ला है

मुझे जो ग़ार जैसा लग रहा है
वहाँ मकड़ी ने जाल बुन लिया है

और अब अपने ही जाल में फँसी है
वहीं पर एक मुर्दा छिपकिली है

कई सदियों से जो साकित पड़ी है
अब उस पर काई जमती जा रही है

और उस में एक जंगल दिख रहा है
दरख़्तों से परिंदे गिर रहे हैं

कुल्हाड़ी शाख़ पर लटकी हुई है
लक़ड़हारे पे गीदड़ हँस रहे

मुसलसल तेज़ बारिश हो रही है
किसी पत्ते से गिर कर एक क़तरा

अचानक एक समुंदर बन गया है
समुंदर नाव से लड़ने लगा है

मछेरा मछलियों में घिर गया है
और अब पतवार सीने से लगा कर

वो नीले आसमाँ को देखता है
जो यक-दम ज़र्द पड़ता जा रहा है

वो कैसे रेत बनता जा रहा है
मुझे अब सिर्फ़ सहरा दिख रहा है

और उस में धूम की चादर बिछी है
मगर वो एक जगह से फट रही है

वहाँ पर एक साया नाचता है
जहाँ भी पैर धरता है वहाँ पर

सुनहरे फूल खिलते जा रहे है
ये सहरा बाग़ बनता जा रहा है

और उस में तितलियाँ दिखती हैं
परों में जिन के नीली रौशनी है

वो हर पल तेज़ होती जा रही है
सो मेरी आँख में चुभने लगी है

सो मैं ने हाथ आँखों पर रखे हैं
और अब उँगली हटा कर देखता हूँ

कि अपने बंद कमरे में पड़ा हूँ
और इक दीवार के आगे खड़ा हूँ

इख़तिताम

अम्मार इक़बाल की शायरी उर्दू अदब का एक नायाब हिस्सा है। उनकी फिक्रअंगेज़ और जज़्बात से लबरेज़ शायरी ने उन्हें अदबी दुनिया में एक अलग पहचान दी है। वो उर्दू अदब के उन शायरों में से हैं, जो अपने लफ़्ज़ों के ज़रिये सोचने पर मजबूर करते हैं और दिलों पर गहरा असर छोड़ते हैं। अम्मार इक़बाल का नाम यक़ीनन उर्दू अदब की तारीख़ में सुनहरे हरूफ से लिखा जाएगा।

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