परिचय:
जगन्नाथ आज़ाद (5 दिसंबर 1918 - 24 जुलाई 2004) भारतीय उर्दू साहित्य के एक महान कवि, लेखक, और आलोचक थे। उनकी काव्य और साहित्यिक यात्रा ने उर्दू भाषा और साहित्य को एक नई दिशा दी। वे न केवल एक प्रसिद्ध कवि थे, बल्कि अल्लामा इक़बाल के जीवन और उनके कार्यों के प्रमुख विशेषज्ञ भी थे। उनके योगदान को साहित्यिक दुनिया में हमेशा याद रखा जाएगा। उनकी रचनाएँ, साहित्यिक आलोचनाएँ और यात्रा वृत्तांत भारतीय साहित्य के अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
जगन्नाथ आज़ाद का जन्म 5 दिसंबर 1920 को पंजाब के मियांवाली जिले के एक छोटे से गाँव, ईसा खेल में हुआ था। उस समय पंजाब भारत का हिस्सा था, लेकिन 1947 में विभाजन के बाद यह इलाका पाकिस्तान में चला गया। उनका साहित्यिक जीवन उनके पिता, तिलोक चंद महरूम से प्रेरित हुआ, जो स्वयं एक प्रसिद्ध शायर थे और उर्दू साहित्य के बड़े नामों के साथ जुड़े हुए थे। उनका काव्य प्रेम और उर्दू साहित्य से गहरा लगाव उनके पिता की शिक्षाओं और मुशायरे में भागीदारी से विकसित हुआ।
आज़ाद की प्रारंभिक शिक्षा मियांवाली में हुई। इसके बाद उन्होंने रावलपिंडी के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। कॉलेज में रहते हुए वे न केवल एक अच्छे छात्र थे, बल्कि उन्होंने 'गॉर्डनियन' कॉलेज पत्रिका के संपादक के रूप में अपनी साहित्यिक और पत्रकारिता की यात्रा की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने गॉर्डन कॉलेज से एमए की डिग्री प्राप्त की और फिर पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) से फारसी और उर्दू साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
पत्रकारिता और सरकारी सेवाएं:
जगन्नाथ आज़ाद का पत्रकारिता से गहरा जुड़ाव था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा था। कॉलेज के दिनों में वे 'गॉर्डनियन' के संपादक रहे और इसके बाद लाहौर से प्रकाशित 'अदबी दुनिया' नामक उर्दू मासिक पत्रिका के संपादक बने। भारत विभाजन के बाद, वे दिल्ली आ गए और उर्दू दैनिक ‘मिलाप’ में सहायक संपादक के रूप में काम किया। उनके लेख और संपादकीय उर्दू साहित्य और पत्रकारिता में एक मील का पत्थर साबित हुए।
इसके अलावा, वे भारतीय सरकार के श्रम मंत्रालय में रोजगार समाचार के संपादक के रूप में भी कार्यरत रहे। बाद में उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग में सहायक संपादक के पद पर कार्य किया। उनकी कार्यशैली और उनके समर्पण ने उन्हें सरकारी विभागों में एक प्रमुख स्थान दिलाया, जहां वे कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे। उन्होंने खाद्य और कृषि मंत्रालय, पर्यटन और जहाजरानी मंत्रालय, और सीमा सुरक्षा बल में भी अपनी सेवाएँ दीं।
साहित्यिक कार्य और अल्लामा इक़बाल पर योगदान:
जगन्नाथ आज़ाद का साहित्यिक कार्य उर्दू कविता और आलोचना के क्षेत्र में अनमोल योगदान के रूप में माना जाता है। वे अल्लामा इक़बाल के जीवन और विचारों के विशेषज्ञ थे। उनके द्वारा लिखी गई इक़बाल की जीवनी 'रूदाद-ए-इकबाल' भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई। इस पुस्तक को पाँच खंडों में लिखा गया था, जो इक़बाल के जीवन, उनके दर्शन और उनके काव्य पर विस्तृत प्रकाश डालते हैं। इसके अलावा, उन्होंने 'इक़बाल: माइंड एंड आर्ट' जैसी पुस्तकें भी लिखीं, जिसमें इक़बाल के दर्शन, राजनीति, धर्म और कला पर गहन विश्लेषण किया गया है।
आज़ाद का मानना था कि इक़बाल का काव्य और दर्शन न केवल भारतीय उपमहाद्वीप, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने इक़बाल की रचनाओं का गहरा अध्ययन किया और उन्हें उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया। उनका यह योगदान आज भी साहित्यिक हलकों में सराहा जाता है।
यात्रा वृत्तांत और साहित्यिक शैली:
जगन्नाथ आज़ाद ने उर्दू साहित्य में यात्रा वृत्तांतों की परंपरा को भी शुरू किया। उन्होंने अपनी कई यात्राओं के दिलचस्प और विस्तृत विवरण अपनी विशिष्ट शैली में लिखे, जो न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे विभिन्न देशों और संस्कृतियों के बारे में गहरी समझ प्रदान करते हैं। उनकी प्रमुख यात्रा वृत्तांतों में 'पुश्किन के देस में' (पुश्किन की भूमि में) और 'कोलंबस के देस में' (कोलंबस की भूमि में) शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने यूरोप, कनाडा, ब्रिटेन और पाकिस्तान की यात्रा के बारे में भी लिखा, जिनमें उनकी गहरी और सटीक समझ और लेखन कौशल की झलक मिलती है।
भारत और पाकिस्तान के संबंधों में योगदान:
जगन्नाथ आज़ाद का जीवन और कार्य भारतीय और पाकिस्तानी साहित्य और संस्कृति के बीच एक पुल की तरह था। विभाजन के बाद, उन्होंने भारतीय और पाकिस्तानी साहित्यकारों के बीच सद्भावना को बढ़ावा दिया। उनका यह मानना था कि दोनों देशों के साहित्यकारों को एक दूसरे के कार्यों और दृष्टिकोणों का सम्मान करना चाहिए। वे इस विश्वास के थे कि राजनीति और विभाजन कभी भी साहित्यिक और सांस्कृतिक संबंधों को नहीं तोड़ सकते।
उनका कश्मीर के साथ भी गहरा संबंध था। श्रीनगर में अपनी सरकारी सेवा के दौरान, उन्होंने कश्मीर के नेताओं और नागरिकों के साथ सच्ची मित्रता और समझ विकसित की। उनका उद्देश्य कश्मीर में शांति और एकता को बढ़ावा देना था, और इस दिशा में उनका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
सम्मान और पुरस्कार:
जगन्नाथ आज़ाद को उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पाकिस्तान सरकार ने उन्हें उर्दू साहित्य में उनके योगदान के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से नवाजा। भारत सरकार ने उन्हें भारत-सोवियत सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा, कई साहित्यिक संस्थाओं और विश्वविद्यालयों ने उन्हें साहित्यिक कार्यों के लिए सम्मानित किया।
निधन और धरोहर:
24 जुलाई 2004 को जगन्नाथ आज़ाद का निधन हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ और उनका साहित्यिक योगदान आज भी जीवित है। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें यह सिखाता है कि साहित्य न केवल एक भाषा का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि वह समाज, संस्कृति और विचारों का भी प्रतीक है। उनकी लिखी हुई किताबें, आलोचनाएँ और यात्रा वृत्तांत भविष्य की पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर के रूप में बची रहेंगी।
जगन्नाथ आज़ाद साहब की शायरी,ग़ज़लें,नज़्में
1-ग़ज़ल
इक नज़र ही देखा था शौक़ ने शबाब उन का
दिन को याद है उन की रात को है ख़्वाब उन का
गिर गए निगाहों से फूल भी सितारे भी
मैं ने जब से देखा है आलम-ए-शबाब उन का
नासेहों ने शायद ये बात ही नहीं सोची
इक तरफ़ है दिल मेरा इक तरफ़ शबाब उन का
ऐ दिल उन के चेहरे तक किस तरह नज़र जाती
नूर उन के चेहरे का बन गया हिजाब उन का
अब कहूँ तो मैं किस से मेरे दिल पे क्या गुज़री
देख कर उन आँखों में दर्द-ए-इज़्तिराब उन का
हश्र के मुक़ाबिल में हश्र ही सफ़-आरा है
इस तरफ़ जुनूँ मेरा उस तरफ़ शबाब उन का
2-ग़ज़ल
अब मैं हूँ आप एक तमाशा बना हुआ
गुज़रा ये कौन मेरी तरफ़ देखता हुआ
कैफ़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ की लज़्ज़त जिसे मिली
हासिल उसे विसाल नहीं है तो क्या हुआ
ख़ाशाक-ए-ज़िंदगी तो मिला उस के साथ साथ
तेरा करम कि दर्द का शोला अता हुआ
दर तक तिरे ख़ुदी ने न आने दिया जिसे
आँखों से अश्क बन के वो सज्दा अदा हुआ
शीरीनी-ए-हयात की लज़्ज़त में है कमी
कुछ इस में ज़हर-ए-ग़म न अगर हो मिला हुआ
कुछ कम नहीं हों लज़्ज़त-ए-फ़ुर्क़त से फ़ैज़-याब
हासिल अगर विसाल नहीं है तो क्या हुआ
अब इस मक़ाम पर है मिरी ज़िंदगी कि है
हर दोस्त एक नासेह-ए-मुश्फ़िक़ बना हुआ
ये भी ज़रा ख़याल रहे आज़िम-ए-हरम
रस्ते में बुत-कदे का भी दर है खुला हुआ
वो क़द्द-ए-नाज़ और वो चेहरे का हुस्न ओ रंग
जैसे हो फूल शाख़ पे कोई खिला हुआ
पेश-ए-नज़र थी मंज़िल-ए-जानाँ की जुस्तुजू
और फिर रहा हूँ अपना पता ढूँडता हुआ
कह कर तमाम रात ग़ज़ल सुब्ह के क़रीब
'आज़ाद' मिस्ल-ए-शम-ए-सहर हूँ बुझा हुआ
3-ग़ज़ल
मैं दिल में उन की याद के तूफ़ाँ को पाल कर
लाया हूँ एक मौज-ए-तग़ज़्ज़ुल निकाल कर
पैमाना-ए-तरब में कहीं बाल आ गया
मैं गरचे पी रहा था बहुत ही सँभाल कर
महफ़िल जमी हुई है तिरी राह में कोई
ऐ गर्दिश-ए-ज़माना बस इतना ख़याल कर
आज़ाद जिंस-ए-दिल को फ़क़त इक नज़र पे बेच
सौदा गिराँ नहीं न बहुत क़ील-ओ-क़ाल कर
ख़त के जवाब में न लगा इतनी देर तू
मेरा अगर नहीं है तो अपना ख़याल कर
क्यूँ मैं ने दिल दिया है किसे मैं ने दिल दिया
ऐ अक़्ल आज मुझ से न इतने सवाल कर
ऐ दिल ये राह-ए-इश्क़ है राह-ए-ख़िरद नहीं
इस पर क़दम बढ़ा तू ज़रा देख भाल कर
फिर इश्क़ बज़्म-ए-हुस्न की जानिब रवाँ है आज
दीवानगी को अक़्ल के साँचे में ढाल कर
'आज़ाद' फिर दकन का समुंदर है और तू
ले जा दिल ओ नज़र का सफ़ीना सँभाल कर
4-ग़ज़ल
नशे में हूँ मगर आलूदा-ए-शराब नहीं
ख़राब हूँ मगर इतना भी मैं ख़राब नहीं
कहीं भी हुस्न का चेहरा तह-ए-नक़ाब नहीं
ये अपना दीदा-ए-दिल है कि बे-हिजाब नहीं
वो इक बशर है कोई नूर-ए-आफ़ताब नहीं
मैं क्या करूँ कि मुझे देखने की ताब नहीं
ये जिस ने मेरी निगाहों में उँगलियाँ भर दीं
तो फिर ये क्या है अगर ये तिरा शबाब नहीं
मिरे सुरूर से अंदाजा-ए-शराब न कर
मिरा सुरूर ब-अंदाजा-ए-शराब नहीं
5-ग़ज़ल
तेरा ख़याल है दिल-ए-हैराँ लिए हुए
या ज़र्रा आफ़्ताब का सामाँ लिए हुए
देखा उन्हें जो दीदा-ए-हैराँ लिए हुए
दिल रह गया जराहत-ए-पिन्हाँ लिए हुए
मैं फिर हूँ इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ का मुंतज़िर
इक याद-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ लिए हुए
मैं छेड़ने लगा हूँ फिर अपनी नई ग़ज़ल
आ जाओ फिर तबस्सुम-ए-पिन्हाँ लिए हुए
क्या बेबसी है ये कि तिरे ग़म के साथ साथ
मैं अपने दिल में हूँ ग़म-ए-दौराँ लिए हुए
फ़ुर्क़त तिरी तो एक बहाना थी वर्ना दोस्त
दिल यूँ भी है मिरा ग़म-ए-पिन्हाँ लिए हुए
अब क़ल्ब-ए-मुज़्तरिब में नहीं ताब-ए-र्द-ए-हिज्र
अब आ भी जाओ दर्द का दरमाँ लिए हुए
सिर्फ़ एक शर्त-ए-दीदा-ए-बीना है ऐ कलीम
ज़र्रे भी हैं तजल्ली-ए-पिन्हाँ लिए हुए
मैं ने ग़ज़ल कही है जिगर की ज़मीन में
दिल है मिरा नदामत-ए-पिन्हाँ लिए हुए
आज़ाद ज़ौक़-ए-दीद न हो ख़ाम तो यहाँ
हर आईना है जल्वा-ए-जानाँ लिए हुए
1-नज़्म
इस दौर में तू क्यूँ है परेशान-ओ-हिरासाँ
क्या बात है क्यूँ है मुतज़लज़ल तेरा ईमाँ
दानिश-कदा-ए-दहर की ऐ शम-ए-फ़रोज़ाँ
ऐ मतला-ए-तहज़ीब के ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ
हैरत है घटाओं में तेरा नूर हो तरसाँ
भारत के मुसलमाँ
तू दर्द-ए-मोहब्बत का तलबगार अज़ल से
तू मेहर-ओ-मुरव्वत का परस्तार अज़ल से
तू महरम-ए-हर-लज़्ज़त-ए-असरार अज़ल से
विर्सा तेरा रानाई-ए-अफ़कार अज़ल से
रानाई-ए-अफ़कार को कर फिर से ग़ज़ल-ख़्वाँ
भारत के मुसलमाँ
हरगिज़ न भला 'मीर' का 'ग़ालिब' का तराना
बन जाए कहीं तेरी हक़ीक़त न फ़साना
क़ज़्ज़ाक़-ए-फ़ना को तो है दरकार बहाना
ताराज न हो 'क़ासिम'-ओ-'सय्यद' का ख़ज़ाना
ऐ 'क़ासिम'-ओ-'सय्यद' के ख़ज़ाने के निगहबाँ
भारत के मुसलमाँ
'हाफ़िज़' के तरन्नुम को बसा क़ल्ब-ओ-नज़र में
'रूमी' के तफ़क्कुर को सजा क़ल्ब-ओ-नज़र में
'सादी' के तकल्लुम को बिठा क़ल्ब-ओ-नज़र में
दे नग़्मा-ए-'ख़य्याम' को जा क़ल्ब-ओ-नज़र में
ये लहन हो फिर हिन्द की दुनिया में हो अफ़्शाँ
भारत के मुसलमाँ
तूफ़ान में तू ढूँढ रहा है जो किनारा
अमवाज का कर दीदा-ए-बातिन से नज़ारा
मुमकिन है कि हर मौज बने तेरा सहारा
मुमकिन है कि हर मौज नज़र को हो गवारा
मुमकिन है कि साहिल हो पस-ए-पर्दा-ए-तूफ़ाँ
भारत के मुसलमाँ
ज़ाहिर की मोहब्बत से मुरव्वत से गुज़र जा
बातिन की अदावत से कुदूरत से गुज़र जा
बे-कार दिल-अफ़गार क़यादत से गुज़र जा
इस दौर की बोसीदा सियासत से गुज़र जा
और अज़्म से फिर थाम ज़रा दामन-ए-ईमाँ
भारत के मुसलमाँ
इस्लाम की ता'लीम से बेगाना हुआ तू
ना-महरम-ए-हर-जुरअत-ए-रिंदाना हुआ तू
आबादी-ए-हर-बज़्म था वीराना हुआ तू
तू एक हक़ीक़त था अब अफ़्साना हुआ तू
मुमकिन हो तो फिर ढूँढ गँवाए हुए सामाँ
भारत के मुसलमाँ
अजमेर की दरगाह-ए-मुअ'ल्ला तेरी जागीर
महबूब-ए-इलाही की ज़मीं पर तिरी तनवीर
ज़र्रात में कलियर के फ़रोज़ाँ तिरी तस्वीर
हांसी की फ़ज़ाओं में तिरे कैफ़ की तासीर
सरहिंद की मिट्टी से तिरे दम से फ़रोज़ाँ
भारत के मुसलमाँ
हर ज़र्रा-ए-देहली है तिरे ज़ौ से मुनव्वर
पंजाब की मस्ती असर-ए-जज़्ब-ए-क़लंदर
गंगोह की तक़्दीस से क़ुद्दूस सरासर
पटने की ज़मीं निकहत-ए-ख़्वाजा से मोअ'त्तर
मद्रास की मिट्टी में निहाँ ताज-ए-शहीदाँ
भारत के मुसलमाँ
'बस्तामी'ओ-'बसरी'-ओ-'मुअर्रा'-ओ-'ग़ज़ाली'
जिस इल्म की जिस फ़क़्र की दुनिया के थे वाली
हैरत है तू अब है उसी दुनिया में सवाली
है गोशा-ए-पस्ती में तिरी हिम्मत-ए-आली
अफ़्सोस-सद-अफ़्सोस तिरी तंगी-ए-दामाँ
भारत के मुसलमाँ
मज़हब जिसे कहते हैं वो कुछ और है प्यारे
नफ़रत से परे इस का हर इक तौर है प्यारे
मज़हब में तअ'स्सुब तो बड़ा जौर है प्यारे
अक़्ल-ओ-ख़िरद-ओ-इल्म का ये दौर है प्यारे
इस दौर में मज़हब की सदाक़त हो नुमायाँ
भारत के मुसलमाँ
इस्लाम तो मेहर और मोहब्बत का बयाँ है
इख़्लास की रूदाद-ए-मुरव्वत का बयाँ है
हर शो'बा-ए-हस्ती में सदाक़त का बयाँ है
एक ज़िंदा-ओ-पाइंदा हक़ीक़त का बयाँ है
क्यूँ दिल में तिरे हो न हक़ीक़त ये फ़रोज़ाँ
भारत के मुसलमाँ
इस्लाम की ता'लीम फ़रामोश हुई क्यूँ
इंसान की ताज़ीम फ़रामोश हुई क्यूँ
अफ़राद की तंज़ीम फ़रामोश हुई क्यूँ
ख़ल्लास की अक़्लीम फ़रामोश हुई क्यूँ
हैरत में हूँ मैं देख के ये आलम-ए-निस्याँ
भारत के मुसलमाँ
माहौल की हो ताज़ा हवा तुझ को गवारा
दरकार है तहज़ीब को फिर तेरा सहारा
कर आज नए रंग से दुनिया का नज़ारा
चमकेगा फिर इक बार तिरे बख़्त का तारा
हो जाएगी तारीकी-ए-माहौल गुरेज़ाँ
भारत के मुसलमाँ
निष्कर्ष:
जगन्नाथ आज़ाद का साहित्यिक जीवन भारतीय और पाकिस्तानी साहित्य का गौरव है। उनके कार्यों ने न केवल उर्दू साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और समाज को भी एक नई दिशा दी। उनके द्वारा किया गया काम साहित्यिक दृष्टि से अमूल्य है, और उनकी रचनाएँ उर्दू प्रेमियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। उनका योगदान साहित्य, संस्कृति और शांति के क्षेत्र में अनमोल रहेगा।