ज़िंदगी की पेशबंदी
शीन काफ़ निज़ाम, जिनका असल नाम शिव किशन बिस्सा है, 1945 या 1946 में राजस्थान के जोधपुर शहर में पैदा हुए। अपनी तहज़ीब और सादगी के लिए मशहूर इस शहर ने उन्हें वह माहौल दिया, जिसमें अदब, तहज़ीब, और इल्म के ख़ूबसूरत रंग निखरते हैं। "शीन काफ़ निज़ाम" महज़ एक तख़ल्लुस नहीं, बल्कि उर्दू अदब की उस रूह का इज़हार है, जो उनकी हर एक ग़ज़ल, नज़्म और तहरीर में महसूस होती है।
शीन काफ़ निज़ाम की परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई जहाँ भाषा और साहित्य का गहरा असर था। उन्होंने अपनी शायरी और तहरीरों में उर्दू के शफ़्फ़ाक़ हुस्न को इस क़दर संजोया कि हर लफ़्ज़ जैसे तहज़ीब और मोहब्बत का पैकर बन गया।
अदबी सफर और रचनात्मक इफ़्तख़ार
शीन काफ़ निज़ाम की शायरी दिल की गहराइयों और ज़हन की गूंज का मज़हर है। उनकी शायरी में मोहब्बत, जज़्बात, तल्ख़ हक़ीक़तें, और इंसानी तजुर्बों का ऐसा मेल है, जो हर एक क़ारी के दिल में घर कर लेता है। उनकी चंद मशहूर किताबें हैं:- लम्हों की सलीब
- दश्त में दरिया
- नाद
- साया कोई लंबा न था
- बयाज़ें खो गई हैं
- गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियां
- रास्ता ये कहीं नहीं जाता
- और भी है नाम रास्ते का
- सायों के साए में
इन तमाम रचनाओं में गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियां को एक ख़ास मक़ाम हासिल है। इसे 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया, जो उनकी अदबी कामयाबियों का बेहतरीन सबूत है। उनकी नज़्में और ग़ज़लें उर्दू अदब में मोहब्बत और ग़म के जज़्बात का बेहतरीन इज़हार करती हैं।
तहक़ीक़ और तदवीन का फ़न
शीन काफ़ निज़ाम सिर्फ़ एक आला दर्जे के शायर ही नहीं, बल्कि उर्दू अदब के बेहतरीन मोहक़्क़िक़ और माहिर तदवीनकार भी हैं। उन्होंने उर्दू अदब की बड़ी हस्तियों और उनकी तसनीफ़ात को एक नया अक्स दिया।-
तदवीन और इदारे के शाहकार
- दीवान-ए-ग़ालिब और दीवान-ए-मीर को देवनागरी लिपि में तदवीन करके ग़ालिब और मीर जैसे उस्तादों को नए क़ारी से जोड़ा।
- मशहूर पाकिस्तानी शायर मुनीर नियाज़ी की शायरी का नागरी में इंतिख़ाब।
- मीराजी की शायरी को न सिर्फ़ तदवीन किया बल्कि उसे अदबी नक़द के साथ पेश किया।
- ग़ालिबियत और गुप्ता रज़ा: अल्लामा कालिदास गुप्ता रज़ा के इल्मी कारनामों पर तहरीर।
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तहक़ीक़ और नक़द
- भीड़ में अकेला: मख़मूर सईदी की ज़िंदगी और अदबी सफर का जायज़ा।
- लफ़्ज़ दर लफ़्ज़: लुग़त और अदब के बारीक पहलुओं पर दिलचस्प नक़द।
- मानी दर मानी: उर्दू अदब के तहक़ीक़ी और फलसफ़ाई जहान का बयान।
- तज़्किरा मआसिर शोअरा-ए-जोधपुर: जोधपुर के मशहूर शायरों की तसनीफ़ और ज़िंदगी पर एक तवारीखी दस्तावेज़।
इज़ाज़ और इनामात
शीन काफ़ निज़ाम की अदबी खिदमतों को कई बड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया। उनके कुछ अहम इज़ाज़ात और इनामात ये हैं:- महमूद शिरानी पुरस्कार (1999-2000)
- भाषा भारती पुरस्कार, मैसूर (2001)
- बेगम अख्तर ग़ज़ल पुरस्कार, दिल्ली (2006)
- राष्ट्रीय इक़बाल सम्मान (2006-2007)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (2010)
- जेएनवीयू गौरव रत्न (2015)
- आचार्य विद्यानीवास मिश्र स्मृति सम्मान, बनारस (2016)
- संस्कृति सौरभ सम्मान, कोलकाता (2018)
- गंगाधर राष्ट्रीय पुरस्कार (2021)
- राजस्थान रत्न पुरस्कार (2022)
- पद्म श्री (2025)
हर इनाम उनके काम का तसदीक़ है और उनकी अदबी शख़्सियत का एतराफ़।
उर्दू अदब पर असर
शीन काफ़ निज़ाम का अदबी सफर उर्दू ज़ुबान और तहज़ीब के उन पहलुओं को उजागर करता है, जिन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। उनकी शायरी एक पुल है, जो जज़्बात और ज़हनियत के दरमियान राब्ता क़ायम करती है।उनकी तहरीरों और रचनाओं ने उर्दू अदब को न सिर्फ़ नए आयाम दिए बल्कि इसे एक ऐसे मुस्तक़बिल की तरफ़ मोड़ा जहाँ अदब, तहज़ीब और इंसानियत का मेल है।
शीन काफ़ निज़ाम की शायरी,ग़ज़लें,नज़्मे
1-ग़ज़ल
मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे
सीपियाँ हैं तो फिर गुहर रख दे
बे-ख़बर की कहीं ख़बर रख दे
हासिल-ए-ज़हमत-ए-सफ़र रख दे
मंज़िलें भर दे आँख में उस की
उस के पैरों में फिर सफ़र रख दे
चंद-लम्हे कोई तो सुस्ता ले
राह में एक दो शजर रख दे
गर शजर में समर नहीं मुमकिन
उस में साया ही शाख़-भर रख दे
कल के अख़बार में तू झूटी ही
एक तो अच्छी सी ख़बर रख दे
तू अकेला है बंद है कमरा
अब तो चेहरा उतार कर रख दे
2-ग़ज़ल
3-ग़ज़ल
4-ग़ज़ल
5-ग़ज़ल
1-नज़्म
2-नज़्म
तब्सरा :-
शीन काफ़ निज़ाम की ज़िंदगी और अदबी खिदमत यह साबित करती हैं कि शायरी सिर्फ़ लफ़्ज़ों का एक सलीका नहीं, बल्कि वह तहज़ीब, जज़्बात और इंसानी तजुर्बों की एक गूंजती हुई धड़कन है। उनकी शायरी महज़ अल्फ़ाज़ का तजुर्बा नहीं, बल्कि एक ऐसा नज़रिया है, जो ज़िंदगी की तल्ख़ियों और हुस्न को एक जाम में पेश करता है।
उनकी रचनाओं में उर्दू ज़ुबान का वह नूर छुपा है, जो हर लफ़्ज़ को एक नयी जान बख़्शता है। उनका हर शे'र अपने अंदर एक कायनात समेटे हुए है, जहाँ मोहब्बत की शिद्दत, हकीकत की तल्ख़ी और इंसानी जज़्बात की गहराई क़ारी के दिल को छू लेती है।
शीन काफ़ निज़ाम का अदबी वजूद उर्दू अदब के लिए एक ऐसी रहनुमाई है, जो आने वाली नस्लों को तालीम, तहज़ीब और तफ़क़्कुर का रास्ता दिखाएगी। उनका नाम उन चंद हस्तियों में शुमार होगा, जिन्होंने शायरी को एक नया फलसफ़ा और एक नयी मक़बूलियत दी।
वह उर्दू अदब के उस शम्स की मानिंद हैं, जिसकी रोशनी न सिमटती है और न बुझती है। उनकी अदबी विरासत वक़्त के हर इम्तेहान में कामयाब होकर हमेशा रोशन रहेगी।ये भी पढ़ें
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