डॉ. नुसरत महदी, एक ऐसा नाम जो उर्दू अदब की दुनिया में न केवल अपने अदबी कारनामों से बल्कि अपनी इंतेज़ामी सलाहियत और सक़ाफ़ती शऊर से भी एक मुनफ़रिद मक़ाम रखता है। उनका जन्म 1 मार्च 1970 को निगीना (उत्तर प्रदेश) के एक मोहतर्म, इल्मी ख़ानदान में हुआ। इब्तिदाई तालीम अपने वतन से मुकम्मल करने के बाद उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से स्नातक की तालीम हासिल की। वह तीन ज़बानों—उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी में मास्टर (एम.ए.) हैं, जो उनकी बहुज़बानी सलाहियत और अदबी गहराई को उजागर करता है। इसके इलावा, उन्हें लंदन (यूके) की अशक्रॉफ्ट यूनिवर्सिटी की जानिब से डॉक्टरेट की इज़ाज़ी डिग्री से नवाज़ा गया।
इस वक़्त वह हुकूमत-ए-मध्य प्रदेश के रूहानियत डिपार्टमेंट के तहत ‘राज्य आनंद संस्थान’ की डायरेक्टर की हैसियत से खिदमत अंजाम दे रही हैं और भोपाल में मुक़ीम हैं।
उर्दू अदब में ख़िदमात
उर्दू अदब की रवायात में ख़वातीन का किरदार इंतिहाई अहम रहा है। बीसवीं सदी के आख़िरी हिस्से में कुछ ऐसी शायरात उभर कर सामने आईं जिन्होंने अपनी शायरी में औरत की जज़्बात-ओ-एहसासात को न सिर्फ़ नक़्श किया बल्कि अपने वजूद की पहचान को भी बुलंद किया। डॉ. नुसरत महदी इन्हीं शायरात में से एक हैं, जिनकी ग़ज़लें और नज़्में अपनी एहसासात, गहराई और हुस्न-ए-बयान के लिए मुमताज़ मानी जाती हैं। उनकी तख़लीक़ात उन अदब दोस्त अफराद के लिए बेमिसाल धरोहर हैं जो उर्दू अदब की नफ़ासत और पाकीज़गी से वाक़िफ़ हैं।
इंतेज़ामी और सक़ाफ़ती ज़िम्मेदारियाँ
डॉ. मेहदी ने एक अर्से तक मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की सेक्रेटरी की हैसियत से ख़िदमत अंजाम दी और अपनी इंतेज़ामी सलाहियत से अकादमी की साख़ में बेमिसाल इज़ाफ़ा किया। ‘उर्दू हफ़्ता’ का इनइक़ाद उनके दौर में एक अहम इब्तिदा बनी, जिसके ज़रिए उन्होंने ज़बान और अदब को मक़बूल बनाने में अहम किरदार अदा किया।
इसके इलावा, वह कई अहम ओहदों पर भी फ़ाइज़ रही हैं, जिनमें शामिल हैं:
- साबिक़ा नायब डायरेक्टर, अल्लामा इक़बाल अदबी सेंटर, सक़ाफ़ती शोबा, मध्य प्रदेश।
- क़ौमी कौंसिल बराए फरोग़-ए-उर्दू ज़बान, नई दिल्ली की कार्यकारी बोर्ड की साबिक़ा रुक्न।
- नेशनल बुक ट्रस्ट, हिंदुस्तान की मुशावरती कौंसिल की साबिक़ा रुक्न।
- CCRT (वज़ारत-ए-सक़ाफ़त) उर्दू पैनल, दिल्ली की रुक्न।
- मध्य प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड की साबिक़ा चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव ऑफ़िसर।
- रियासती हज कमेटी की साबिक़ा एक्ज़ीक्यूटिव ऑफ़िसर।
शायरी और अदबी ख़ुसूसियात
डॉ. मेहदी की शायरी मुआशरे की तल्ख़ियों, अफ़रा-तफ़री और एहतिजाज को एक जीती-जागती तसवीर का रूप देती है। उनके अशआर में तल्ख़ हक़ीक़तें भी शीरीं अंदाज़ में पेश की जाती हैं। क़ारी और सामेइन उनकी शायरी में न सिर्फ़ अल्फ़ाज़ की दिलकशी महसूस करते हैं, बल्कि उनके गहरे मफ़हूम से भी मुतास्सिर होते हैं।
वह सिर्फ़ शायरा ही नहीं, बल्कि अफ़साना निगार, ड्रामा निगार, मक़ाला निगार और नाक़िद भी हैं। उन्होंने मुतअद्दिद आलमी सेमिनार, उर्दू कांफ़्रेंस, वर्कशॉप्स और मुशावरत जलसों में शरीक होकर अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई, सऊदी अरब, पाकिस्तान, बहरीन, क़तर, कुवैत, मस्कट समेत कई मुल्कों का सफ़र किया।
अहम तख़लीक़ात
शायरी मजमूआ:
- साया साया धूप
- अबला-पा
- मैं भी तो हूँ (देवनागरी)
- घर आने को है
- हिसार-ए-ज़ात से परे
- फरहाद नहीं होने के (देवनागरी)
नस्री अदब:
- 1857 की जंग-ए-आज़ादी
- इंतिख़ाब-ए-सुख़न
एज़ाज़ात और इनामात
डॉ. नुसरत मेहदी को क़ौमी और आलमी सतह पर कई मोहतबर इनामात से नवाज़ा गया है, जिनमें अहम यह हैं:
- अंतरराष्ट्रीय परफ़ॉर्मेंस अवार्ड (Urdu Center International, Los Angeles, California, USA, 2018)
- भारत के सबसे उभरते हुए शायर और लेखक अवार्ड, (International Chamber of Media and Entertainment Industry & Asian Academy of Arts)
- सुमरन गीत ऐज़ाज़ (2017, सुमरन साहित्यिक संस्था, भोपाल)
- अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (2017, अभिनव कला परिषद, भोपाल)
- सुरजन कला प्रेरक ऐज़ाज़ (2016, लोक कला मंडल, उदयपुर)
- अख़्तर-उल-ईमान अवार्ड (2016, इक़बाल मेमोरियल एजुकेशन सोसाइटी, निगीना, उत्तर प्रदेश)
- मदर टेरेसा गोल्ड मेडल (2015)
- भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक गोल्ड मेडल (2015)
- परवीन शाकिर अवार्ड (2014, अमरावती नगर निगम, महाराष्ट्र)
- मज़हर सईद ख़ान अवार्ड (2014)
- अमर शहीद अश्फ़ाक़ उल्लाह अवार्ड (2010, भोपाल)
- नुशूर अवार्ड (2008, बज़्म-ए-नुशूर, कानपुर)
- ख़ातून-ए-अवध अवार्ड (2006, लखनऊ)
नुसरत मेहदी की शायरी,ग़ज़लें,नज़्में
1-ग़ज़ल
2-ग़ज़ल
3-ग़ज़ल
4-ग़ज़ल
नज़्म
तब्सरा:-
डॉ. नुसरत मेहदी का नाम सिर्फ़ उर्दू अदब के एक चमकते हुए सितारे की तरह नहीं, बल्कि एक पूरी तहज़ीब, एक पूरी सोच, और एक मुकम्मल फिक्र की तरह लिया जाता है। उनकी शायरी में न केवल मोहब्बत, समाजी मसाइल और रूहानी गहराइयाँ नज़र आती हैं, बल्कि उसमें एक बाग़ी तेवर भी महसूस होता है, जो ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़तों को बेबाकी से उजागर करता है। उनके अशआर किसी एक अहद या सरहद तक महदूद नहीं, बल्कि एक आलमी पैग़ाम लिए हुए हैं, जहाँ अदब महज़ एक अल्फ़ाज़ का खेल नहीं, बल्कि इंसानियत की गहरी समझ और उसकी बेहतरी की तहरीक बन जाता है।
उनकी नज्मों और ग़ज़लों में जज़्बात की पाकीज़गी, तसव्वुर की बुलंदी और बयान की हुस्न-आफ़रिनी का बेहतरीन संगम नज़र आता है। उनकी नस्र, चाहे तारीख़ी हो या तनक़ीदी, एक ऐसे इल्मी और तहकीकी सफ़र का अहसास कराती है, जो पढ़ने वाले को सिर्फ़ मालूमात नहीं, बल्कि सोचने और समझने की नई राहें देता है।
उनकी शक़्सियत, उनका फिक्र और उनका अदबी सफ़र इस बात की तसदीक़ करता है कि सच्चे अदीब और मुफक्किर का काम महज़ लिखना नहीं होता, बल्कि एक नई सोच और तहज़ीब की बुनियाद डालना होता है। डॉ. नुसरत महदी ने यही किया—अपनी शायरी से, अपनी ख़िदमात से और अपनी बेहतरीन क़लमी कारगुज़ारियों से। वह उर्दू अदब की उन हस्तियों में से हैं, जिनका तज़्किरा महज़ तारीख़ के सफ़हों तक महदूद नहीं रहेगा, बल्कि आने वाली नस्लों की जबान और दिलों में ज़िंदा रहेगा।
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