Dr Kavita Kiran — जज़्बातों की रौशनी में भीगी हुई एक रौशन शख़्सियत

 डॉ. कविता "किरण" – वो नामवर शायरा जिनका तख़य्युल आसमान की वुसअतों को छू लेता है और जिनकी आवाज़ दिलों के निहाँख़ानों में उतर कर जज़्बात को झंझोड़ देती है। वो सिर्फ़ एक शायरा नहीं, बल्कि अदब का पूरा कारवाँ हैं। ग़ज़ल, नज़्म, दोहा, माहिया, हाइकू, ग़ीत, अफ़साना और छंद – हर फ़न में उनकी क़लम से ख़ुशबू बिखरती है। उनकी शख़्सियत का हुस्न यही है कि वो ब-एक वक़्त उर्दू की लताफ़त, हिंदी की शाइस्तगी, राजस्थानी मिट्टी की ख़ुशबू और अंग्रेज़ी के जदीद आहंग को अपनी तख़्लीक़ात में समेट लेती हैं।

तालीमी पस-ए-मनज़र

राजस्थान की ख़ुशबूदार मिट्टी में जनमी, फालना (पाली ज़िला) की रूहानी फ़िज़ाओं में पली-बढ़ी कविता “किरण” ने तालीम का पहला क़दम जिस सफ़ा पर रखा, वहीं से इल्म और अदब का कारवां शुरू हुआ। एम.कॉम. की डिग्री हासिल करने के बाद, उनकी इल्मी सलाहियतों और अदबी ख़िदमात को देखते हुए उन्हें डी.लिट् की मानद उपाधि से नवाज़ा गया—जो इस बात का सबूत है कि उनके अल्फ़ाज़ सिर्फ़ लिखे नहीं जाते, बल्कि रूह की तहों में उतर जाते हैं।

अदबी जहान और तसानीफ़

उनके अदबी सफ़र की झलक उनकी किताबों की तवील फ़हरिस्त में नुमायाँ है। "दर्द का सफ़र" जैसी पुरसोज़ ग़ज़लों से लेकर "तुम कहते हो तो" की शाइराना नज़ाकत तक, "चुपके-चुपके" की लमहाती कैफ़ियात से लेकर "बख़्त री बातां" और "बोली रा बाण" की राजस्थानी ग़ज़लों और गीतों तक – हर किताब एक नई दुनिया, नया ज़ाविया और नया तख़य्युल पेश करती है।

उनकी क़लम ने "तुम्हीं कुछ कहो ना", "ये तो केवल प्यार है", "सूली उपर सेज", "पैली पैली प्रीत", "तू ही तू", "कुछ तो है", "उफ़!", "व्यर्थ नहीं हूँ मैं", और हालिया मजमुआ "मैं जानूँ या तू जाने" जैसी तसानीफ़ को जन्म दिया।
कई और किताबें ज़ेर-ए-तह़रीर हैं – जिनमें दोहे, मुख़्तसर कहानियाँ, बच्चों के लिए बालगीत और याददाश्तें शामिल हैं।

अदबी और सक़ाफ़ती ख़िदमात

डॉ. "किरण" क़ौमी और बैनी-उल-अक़वामी मुशायरों में एक रोशन सितारा हैं। उनकी आवाज़ सिर्फ़ हिंदुस्तान तक महदूद नहीं रही बल्कि दुबई, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, आयरलैंड, स्कॉटलैंड और अमरीका तक जा पहुँची। दिल्ली के ताऐख़िक लाल क़िला की फ़िज़ाओं में उनका कलाम बारहा गूंज चुका है।
उनकी तख़्लीक़ात आकाशवाणी, दूरदर्शन और मुख़्तलिफ़ टीवी चैनलों से बारहा नशर की गईं। उनका क़लाम बेशुमार मोअतबर रिसालों और जऱाएद में छप चुका है।

इनआमात और एज़ाज़ात

  1. भारतीय उच्चायोग, लंदन से इज़्ज़त

  2. हिंदी गौरव सम्मान, न्यूयॉर्क, USA

  3. टेपा सम्मान, उज्जैन

  4. काव्य रत्न सम्मान, पानीपत

  5. रोटरी क्लब, गेंगटोक

  6. हिन्दी अकादमी, दिल्ली

  7. राजस्थानी भाषा सेवा-सम्मान, बीकानेर

  8. कर्णधार सम्मान, राजस्थान पत्रिका

  9. राजस्थानी महिला साहित्यकार सम्मान, चुरू

  10. हिन्दी साहित्य संगम पुरस्कार, बोकारो

  11. सर्वविधा सर्वश्रेष्ठ कवयित्री अवार्ड

  12. हुड़दंग-2009, इलाहाबाद

  13. साहित्य शिरोमणि अवार्ड, अहमदाबाद

  14. मीरा शिखर सम्मान, मेवाड़

  15. महादेवी वर्मा सम्मान, उन्नाव

  16. मालद्वीप साहित्य सम्मान, बरेली

  17. सृजन सम्मान, उदयपुर

  18. डिजिटल इंफ्लुएंसर अवार्ड, एफ.एम. तड़का

  19. ग्लोबल प्रोग्रेसिव वुमन अवार्ड

  20. हिंदी काव्य शिरोमणि, श्रीनाथद्वारा

  21. कल्कि गौरव अवार्ड, कल्कि फाउंडेशन

  22. राजस्थान समरसता रत्न अवार्ड

  23. अणुव्रत लेखक सम्मान, पाली

  24. मिसेज इंडिया राजस्थान अवार्ड 2019

  25. ब्रांड एम्बेसडर – "पॉलीथिन हटाओ, पर्यावरण बचाओ"

  26. इंडियन आइकॉन अवार्ड 2022

  27. हिंदी काव्य गौरव सम्मान, न्यूयॉर्क

  28. साहित्य भूषण सम्मान, कोलकाता (2023)

  29. पद्यभूषण सम्मान, काशीपुर

  30. विपुलम विदुषी सम्मान, लखनऊ (2024)

दीगर अहम उपलब्धियाँ

  1. लाल क़िले से कई बार शायरी और काव्य पाठ

  2. सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग द्वारा विशेष सम्मान

  3. पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा पटना में इज़्ज़त अफ़ज़ाई

  4. भारत-नेपाल मैत्री संघ के ज़रिये नेपाल में हिंदुस्तान की नुमाइंदगी (2006)

  5. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की जानिब से नेपाल में काव्य पाठ (2010)

  6. लोकगीत गायन के कई ऑडियो कैसेट्स मुन्तशिर हो चुके हैं


सम्मान और पुरस्कार: 

  • अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मान (यूएसए)

  • ‘शब्द यात्रा’ पुरस्कार

  • महिला काव्य मंच द्वारा 'श्रेष्ठ कवयित्री' सम्मान

  • ऑल इंडिया मुशायरों में विशेष आमंत्रण

सिनेमाई दुनिया में अदबी दस्तक

वो फ़िल्मों की दुनिया में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुकी हैं। "आओ प्यार करें", "गुंडागर्दी", और कन्नड़ फ़िल्म "मेलोडी ड्रामा" में उनका अदबी स्पर्श देखने को मिला, जो इस बात का सुबूत है कि उनका हुनर सतरंगी है और सरहदों से आज़ाद।

सामाजिक तहरीक की सदा

सिर्फ़ शायरी ही नहीं, वो समाज के लिए भी एक रौशनी हैं। "मिसेज इंडिया राजस्थान अवार्ड 2019" से नवाज़ी गईं और "पॉलीथिन हटाओ, पर्यावरण बचाओ" जैसे आंदोलनों की ब्रांड एंबेसडर बनकर उन्होंने अपनी अदबी आवाज़ को सामाजिक सरोकारों से जोड़ा।

डिजिटल ज़माने में रूहानी तहरीर

आज सोशल मीडिया पर उनका हर प्लेटफॉर्म एक अदबी क़िला है जहाँ तहरीरें नर्म हवा की तरह दिलों में उतरती हैं। फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर उनकी मौजूदगी नई नस्ल के लिए इल्म और एहसासात का ख़ज़ाना है।

राब्ता बराए तअल्लुक़ात:

डॉ. कविता “किरण”
नेहरू कॉलोनी, फालना – ज़िला पाली, राजस्थान – 306116
मोबाइल: 09414523730, 09829317780
ईमेल: kavitakiran2008@gmail.com
यूट्यूब: TheKavitaKiran
फेसबुक: Dr.KavitaKiran
इंस्टाग्राम: dr_kavita_kiran
ट्विटर: kavitakiran

कविता किरण की शायरी ,ग़ज़लें नज़्मे और गीत 

ग़ज़ल -1 

तेरी नज़रों से उतर जाएं हमारा क्या है

पर वफ़ाओं के कतर जाएं हमारा क्या है


इम्तहां इश्क़ में हमसे न दिये जायेंगे

क़ौल से अपने मुकर जाएं हमारा क्या है


हम कलंदर हैं हमारा न भरोसा कुछ भी

जो न करना हो वो कर जायें हमारा क्या है


हम तो दीवाने हैं उस रब के बहुत मुमकिन है

इश्क़ में हद से गुज़र जायें हमारा क्या है


तुम तो जी भरके जियो जान! तुम्हारी ख़ातिर

हम तो जीते जी ही मर जायें हमारा क्या है


कोई मंज़िल है 'किरण' घर न ठिकाना कोई

हम कहीं जाएं किधर जाएं हमारा क्या है

ग़ज़ल -2

धड़कनें देख-भाल कर रख दूँ

ला तेरा दिल सम्हालकर रख दूँ


दिल है क्या चीज़ तेरे क़दमों में

मैं कलेजा निकाल कर रख दूँ


तेरे होंठो की प्यास की ख़ातिर

सारे दरिया उछाल कर रख दूँ


आँच है इस क़दर इरादों में

मैं समुन्दर उबालकर रख दूँ


आने वाली है रौनके-महफ़िल

मय पियाले में डालकर रख दूँ


जी तो करता है ऐ "किरण" तुझको 

आफताबों में ढाल कर रख दूँ

ग़ज़ल -3

ख़ुदा तौफ़ीक़ दे मुझसे कुछ ऐसा काम हो जाये

कि तेरे नेक बन्दों में मेरा भी नाम हो जाये

 

जो तेरा हो गया उसकी लगेगी क्या कोई क़ीमत

नज़र जिस पर पडे तेरी वही बे-दाम हो जाये

 

मेरे मौला! मेरे हक़ में कोई ऐसा करिश्मा कर

सज़ा जो भी मिले मुझको वही ईनाम हो जाये

 

ख़ुदा ने तेरे हाथों में अजब तासीर बख़्शी है

अगर तू ज़ह्र भी छू ले तो वो भी जाम हो जाए

 

कोई चक्कर चला ऐसा कोई तदबीर ऐसी कर

नक़ाब उठने न पाए और जलवा आम हो जाये

 

दबे वो राज़ हैं दिल में ज़माने के ख़ुदाओं के

अगर लब खोल दूँ अपने तो क़त्ले-आम हो जाये

 

तेरे पहलू में मेरे रात-दिन करवट बदलते हैं

तेरे पहलू में ही मेरी सुब्ह से शाम हो जाये

 

अगर पर्दा हटा ले तू जमाल-ओ-हुस्न के मालिक

मरीज़े-इश्क को तेरे ज़रा आराम हो जाये


मुझे तो तेरे सजदे में ही अपना सर झुकाना है

बला से फिर जो होना हो ‘किरण’ अंजाम हो जाये


तुझे भी उसके सजदे में 'किरण' सर को झुकाना है

भले तो मीर ग़ालिब या उमर खय्याम हो जाये

ग़ज़ल -4

किसी की सिम्त जब पत्थर उछालें

तो पहले अपने सर को भी बचा लें


बहुत आसाँ है औरों को परखना

कभी ख़ुद को भी थोड़ा आज़मा लें


मुहब्बत से मसायल हल हुए हैं

दिलों से आप नफरत को निकालें 


किसी के होंठ पर रख दें तबस्सुम

किसी के पाँव का कांटा निकालें


हर इक रिश्ता यहाँ पर क़ीमती है

ख़फ़ा हैं जो उन्हें चलकर मना लें


कोई अपना मिले ग़र राह में तो

न उसको देखकर दामन बचा लें


भुला बैठे हैं इक अरसे से जिन को 

किसी दिन चाय पर उनको बुला लें


समझना एक दूजे को कठिन पर

जहाँ तक निभ सकें रिश्ते निभा लें


न पछताना पड़े अपने किये पर

समझकर सोचकर हर फैसला लें


दुआ लेकर किसी मजबूर दिल की

चलो हम भी "किरण" नेकी कमा लें


किसी की सिम्त जब पत्थर उछालें

तो पहले अपने सर को भी बचा लें


बहुत आसाँ है औरों को परखना

कभी ख़ुद को भी थोड़ा आज़मा लें


मुहब्बत से मसायल हल हुए हैं

दिलों से आप नफरत को निकालें 


किसी के होंठ पर रख दें तबस्सुम

किसी के पाँव का कांटा निकालें


हर इक रिश्ता यहाँ पर क़ीमती है

ख़फ़ा हैं जो उन्हें चलकर मना लें


कोई अपना मिले ग़र राह में तो

न उसको देखकर दामन बचा लें


भुला बैठे हैं इक अरसे से जिन को 

किसी दिन चाय पर उनको बुला लें


समझना एक दूजे को कठिन पर

जहाँ तक निभ सकें रिश्ते निभा लें


न पछताना पड़े अपने किये पर

समझकर सोचकर हर फैसला लें


दुआ लेकर किसी मजबूर दिल की

चलो हम भी "किरण" नेकी कमा लें

ग़ज़ल -5

मुहब्बत और किसी अनजान से उफ़

उलझना और दिले-नादान से उफ़


अचानक फोन क्या आया किसी का  

लगी हैं धड़कनें सब कान से उफ़


वो जिस शिद्दत से मुझको चाहता है

चली जाऊँ न अपनी जान से उफ़


मैं उसकी ख्वाहिशों को कैसे टालूं

वो देखे है बड़े अरमान से उफ़


मैं उसकी जान हूँ जाऊँ तो कैसे

वो जीता है मुझे जी-जान से उफ़


मुहब्बत जब से है रूहों में उतरी

महकते हैं बदन लोबान-से उफ़


"किरण" इस इश्क़ में इंसां तो इंसां

फ़रिश्ते भी गए ईमान से उफ़

ग़ज़ल -6

नज़र का ज़ायका महंगा पड़ेगा

तुम्हें ये मयकदा महंगा पड़ेगा


मुहब्ब्त से मिलेगा मुफ़्त में ही

ख़रीदो मत ख़ुदा महंगा पड़ेगा


चिरागों से तुम्हारी दोस्ती है

हवा से राब्ता महंगा पड़ेगा


हवा में ख़ूब उड़ते फिर रहे हो

ज़मीं से फ़ासला महंगा पड़ेगा


नज़रिया तो हमारा भी वही है

तुम्हारा ज़ाविया महंगा पड़ेगा


मुख़ालिफ हो न जाये ये ज़माना

वफ़ा पर तब्सिरा महंगा पड़ेगा


ज़रूरी है ज़रा सी बेवफ़ाई

वफ़ा का फ़लसफ़ा महंगा पड़ेगा


मुहब्बत का सफ़र जोखिम भरा है

"किरण" ये रास्ता महँगा पड़ेगा

तब्सरा 

डॉ. कविता किरण की ज़िंदगी और फ़न का यह तजज़िया, सिर्फ़ एक सवानिह नहीं — बल्कि एक मक़बूल और मुअत्तर सिम्फ़नी है जो दिल और दिमाग़ को बराबर से मुतअस्सिर करती है। ये कहानी नहीं, एक रूहानी सफ़र है — जिसमें इल्म की रोशनी, अदब की ख़ुशबू, और फ़न की रवानी बेतरीन अंदाज़ में घुली हुई है।

उनकी ज़िंदगी के हर मोड़ पर तजुर्बे की वो जौहर दिखती है जो सिर्फ़ नसीब वालों को हासिल होती है। एक तरफ़ वो मज़हबी और अकादमिक दुनिया की बुलंदियों को छूती हैं, जहाँ उन्होंने रिसर्च, तालीम और अदबी ख़िदमात से अपनी एक ख़ास पहचान बनाई; और दूसरी जानिब वो शोब-ए-फ़न, ख़ासकर गीत-निगारी में, अपने नाज़ुक अहसासात और बारीक जज़्बात को इस तरह पिरोती हैं कि अल्फ़ाज़ भी गुनगुनाने लगते हैं।

"हाथों में आ गया जो रूमाल आपका..."
ये महज़ एक फ़िल्मी गीत नहीं, बल्कि एक तह-दिल से निकली हुई पुकार है, एक ऐसा जज़्बा जो मोहब्बत की शिद्दत और बेख़ुदी का बेमिसाल इज़हार है। इस तरह के सैंकड़ों नग़मे उनके कलम की रवानियों से ज़िंदा हुए — हर एक मिसरा जैसे दिल की रगों से निकलता है, हर एक तराना जैसे ज़िन्दगी की धड़कनों में शामिल हो जाता है।


डॉ. कविता किरण की ज़ात एक ऐसा चिराग़ है जो कई महफ़िलों को रोशन करता है। वो एक मुअलिमा हैं, एक मुफक्किर हैं, एक शायरा हैं, एक गीतकार हैं — और सबसे बढ़कर, एक सच्ची इंसान हैं। उनकी ज़िंदगी एक किताब है, जिसे पढ़ते हुए इंसान तालीम, फ़न, तहज़ीब और जज़्बात की नई तशरीह करना सीखता है।

उनकी तहरीरात में जो रचनात्मक वुसअत है, जो दिलनवाज़ नर्मियां हैं, वो आज के दौरे-जदीद में बहुत कम देखने को मिलती हैं। उनके फ़िक्री अहतेमाम, औरत की हयात के गहरे पहलुओं को जिस हुस्न से बयान करते हैं — वह एक शायराना अदलिया का हिस्सा बन जाता है।

अख़्ततामिया:

डॉ. कविता किरण महज़ एक नाम नहीं, एक मर्ज़-ए-शऊर हैं — एक ऐसा आईना जिसमें हम अपनी तहज़ीब, अपनी हुस्न-ए-अदब, और अपनी रूही तश्नगी का अक्स देख सकते हैं।
उनकी बायोग्राफ़ी को पढ़ना एक रूहानी तजुर्बा है — एक ऐसा सफ़र जिसमें तालीम, फ़न, जज़्बात और इंसानियत का बेपनाह हुस्न झलकता है।ये भी पढ़ें 

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