आग़ाज़-ए-हयात
तालीम व तर्बियत
तालीम मुकम्मल करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बतौर लेक्चरर तालीमी ख़िदमत अंजाम दी और बाद में मेरठ कॉलेज में सत्रह साल तक उर्दू पढ़ाई। इस दौरान उन्होंने सैंकड़ों तलबा को सिर्फ़ ज़बान नहीं, बल्कि अदब की रूह से भी वाक़िफ़ कराया।
अदबी सफ़र की शुरुआत
उन्होंने कई शानदार मज़मूए (कविता संग्रह) लिखे, जिनमें शामिल हैं —
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इकाई
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आमद
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आहट
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इमेज
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कुल्लियाते बशीर बद्र
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उजाले अपनी यादों के (देवनागरी लिपि में लिखी ग़ज़लें)
उनकी ग़ज़लों ने उर्दू शायरी को एक नया लहजा दिया — सादा, मगर गहरा; रूमानी, मगर हकीक़ती।
तन्क़ीदी (आलोचनात्मक) कारनामे
बशीर बद्र सिर्फ़ शायर नहीं थे, बल्कि उर्दू तन्क़ीद (आलोचना) के अहम नामों में भी शुमार होते हैं। उन्होंने "आज़ादी के बाद उर्दू ग़ज़ल का तन्क़ीदी मुताला" और "बीसवीं सदी में ग़ज़ल" जैसी किताबें तहरीर कीं, जिनमें उन्होंने आज़ाद हिंदुस्तान की ग़ज़ल का गहराई से जायज़ा लिया।उनका तन्क़ीदी अंदाज़ बेहद सूझबूझ और इल्मी था — वो हर ग़ज़ल में न सिर्फ़ जज़्बात तलाश करते थे, बल्कि अदबी ज़मीन की नब्ज़ को भी पहचानते थे।
उर्दू शायरी की दुनिया में बशीर बद्र वो नाम हैं जिन्होंने मोहब्बत और एहसास को लफ़्ज़ों में ढाल कर एक नई तहज़ीब दी। उनकी अदबी खिदमतों का एतराफ़ न सिर्फ़ हिंदुस्तान बल्कि आलमी सतह पर भी किया गया। नीचे उनके कुछ अहम अवार्ड्स और एज़ाज़ात का ज़िक्र पेश है:
पद्मश्री – भारत सरकार (Padma Shri, Government of India, 1999)
सन 1999 में हुकूमत-ए-हिंद ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा — ये एज़ाज़ उनके अदब, इंसानियत और मोहब्बत के पैग़ाम की पहचान है।
साहित्य अकादमी अवार्ड (Sahitya Akademi Award for “Aas”, 1999)
उन्हें उनके मशहूर ग़ज़ल-संग्रह “आस” पर साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। इस किताब ने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा और नई ज़ुबान दी।
उर्दू अकादमी के सदर (President, Urdu Academy)
उन्होंने उर्दू अकादमी के अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए नई नस्ल में उर्दू की मुहब्बत और ज़बान की नफ़ासत को जिंदा रखा।
एस.वी.पी. नेशनल पुलिस अकादमी, हैदराबाद (SVP National Police Academy, Hyderabad)
इस अकादमी ने बशीर बद्र को अदब और समाज के लिए उनकी शानदार सेवाओं के एतराफ़ में ख़ास अवार्ड से नवाज़ा।
मौलाना चिराग़ हसन हसरत अवार्ड (Maulana Chirag Hasan Hasrat Award, 2000)
सन 2000 में मौलाना चिराग़ हसरन हसरत अवार्ड कमेटी, पुंछ (जम्मू-कश्मीर) ने उन्हें “चिराग़ हसरत अवार्ड” से सरफ़राज़ किया।
बिहार उर्दू अकादमी (Bihar Urdu Academy Award)
बिहार उर्दू अकादमी ने भी उन्हें उर्दू ज़बान और शायरी की बे-मिसाल खिदमत के लिए इज़्ज़त अफ़ज़ाई का एज़ाज़ दिया।
कुलीयाते बशीर बद्र पाकिस्तान में शाया (Publication in Pakistan)
उनका अहम मजमूआ “कुलीयाते बशीर बद्र” पाकिस्तान में भी मंशी किया गया, जो उनकी शायरी की आलमी मक़बूलियत का सबूत है।
मीर एकेडमी अवार्ड व ‘Poet of the Year 1980’ (New York)
उन्हें “मीर एकेडमी अवार्ड” और “Poet of the Year – 1980” (New York) के खिताब से भी नवाज़ा गया — जो उनके अशआर की आलमी रौशनी की गवाही देता है।
आलमी सफ़र व अदबी महफ़िलें (Global Recognition and Literary Travels)
उनकी ग़ज़लों की शोहरत ने उन्हें अमरीका, दुबई, पाकिस्तान, क़तर और कई दूसरे मुल्कों की सैर कराई, जहाँ उनकी अदबी महफ़िलों में उन्हें दिल से सुना गया और बेइंतहा मोहब्बत से सराहा गया।
ज़िंदगी का दर्दनाक मोड़
1987 के मेरठ दंगे उनकी ज़िंदगी का सबसे दर्दनाक दौर साबित हुए। उस आग में उनका घर, उनका ख़ज़ाना-ए-किताब, उनके न प्रकाशित दीवान — सब जल गए। जो कुछ उन्होंने बरसों में लिखा था, वो सब राख बन गया। मगर इस हादसे ने उनके इरादे को बुझाया नहीं। उन्होंने उस राख से एक नई रौशनी पैदा की और हमेशा के लिए भोपाल को अपना ठिकाना बना लिया।डॉ बशीर बद्र साहब की शायअ शुदा किताबें (Published Books)
अवाम और अदब में मक़बूलियत
बशीर बद्र का असर सिर्फ़ किताबों तक सीमित नहीं रहा। विवध भारती के मशहूर रेडियो शो “उजाले अपनी यादों के” का नाम उनके इसी शे’र से लिया गया।2015 की फ़िल्म “मसान” में भी उनके अशआर शामिल किए गए, जो एक ख़ास तहज़ीबी एहसास की झलक पेश करते हैं।
ज़िंदगी का आख़िरी पड़ाव
आख़िरी बरसों में बशीर बद्र डीमेंशिया जैसी बीमारी से दो-चार थे। कहा जाता है कि अब उन्हें अपने मुशायरों के वो सुनहरे लम्हे याद नहीं रहते थे — मगर उनकी शायरी अब भी ज़िंदा है।हर नया शायर जब कोई ताज़ा ग़ज़ल कहता है, उसमें कहीं न कहीं बशीर बद्र की ख़ुशबू महसूस होती है।
डॉ बशीर बद्र साहब की शायरी,ग़ज़लें
1 -ग़ज़ल
2 -ग़ज़ल
तब्सरा:-
बयान दिया। वो सिर्फ़ एक शायर नहीं, बल्कि एहसासात के फ़लसफ़ी, जज़्बात के मुजस्सिम और लफ़्ज़ों के जादूगर हैं। उनकी शायरी में ज़िंदगी के हर रंग की झलक मिलती है — ख़ुशी भी, ग़म भी, उम्मीद भी और इंतज़ार भी।
उनकी शायरी का असल कमाल ये है कि वो मुश्किल बात को भी इतनी सादगी और ख़ूबसूरती से कहते हैं कि हर सुनने वाला अपने दिल में उतरता हुआ महसूस करता है। मोहब्बत और इंसानियत उनका मरकज़ रही — चाहे वो ग़ज़लें हों, नज़्में हों या दोहे।
बशीर बद्र साहब का फ़न इस बात की गवाही देता है कि शायरी सिर्फ़ अल्फ़ाज़ का खेल नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई और ज़िंदगी का आईना है। उन्होंने अपने कलाम से न सिर्फ़ उर्दू अदब को ज़िंदा रखा, बल्कि उसे एक नई रूह और नई पहचान दी।
उनकी ज़िंदगी संघर्षों और कामयाबियों का संगम है। मुश्किलात के बावजूद उन्होंने अपनी पहचान मोहब्बत और अमन के पैग़ाम से कायम रखी। वो आज भी नौजवान नस्ल के लिए एक मिसाल हैं — कि इल्म, अदब और एहसास का मेल ही एक इंसान को अज़ीम बनाता है।-ये भी पढ़ें




