ख़ुमार बाराबंकवी का खुमार कम नहीं हो सकता जीवनी और शायरी

खुमार बाराबंकवी एक प्रसिद्ध उर्दू कवि थे, जिन्हें उनकी नायाब ग़ज़लों  के लिए 
जाना जाता था। उन्हें "शहंशाह-ए-ग़ज़ल" और "आबरू-ए-ग़ज़ल" के ख़िताब  से 
भी नवाज़ा गया। उनकी ग़ज़लों में एक महानतम काव्यत्मकता और सुंदर अलंकारिक 
रचना का संगम था।



खुमार बाराबंकवी की पैदाइश  20 सितंबर, 1919 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी 
जिले में हुयी,उनका असली नाम मोहम्मद हैदर खान था। उनके परिवार मेंशायरी 
और उर्दू अदब का माहौल था। उनके पिता डॉ. ग़ुलाम हैदर 'बहार', के नाम से सलाम 
और मरसिया लिखते थे। उनके चाचा 'क़रार बाराबंकवी' भी बाराबंकी के मशहूर 
शायर थे,जो खुमार को बचपन से शायरी लिखने में मार्गदर्शन करते थे,और उनकी 
ग़ज़लों कीइस्लाह करते थे। उनके भाई काज़िम हैदर 'निग़र' भी एक शायर थे, जो 
शुरुआती उम्र में ही गुज़र गए थे।


खुमार एक ज़हीन छात्र थे और उन्होंने अपनी हाई स्कूल कक्षा को बाराबंकी के 
सरकारी कॉलेज से अच्छी उत्कृष्टता के साथ पास किया। उसके बाद उन्होंने 
अपनी इंटरमीडिएट कक्षाएं करने के लिए लखनऊ जाने का निर्णय लिया, जहां 
उनके जीवन में एक दिल लगी वक्त भी आया,और खुमार साहब ने शिक्षा छोड़ 
शायरी रुख इख्तियार करलिया


जीवन परिचय 

नाम - मोहम्मद हैदर खान 
उप नाम- "खुमार" बाराबंकवी ( खुमार शब्द का अर्थ हे -रूहानी नशा, हक़ीक़ी नशा ,इश्क़ का नशा )
जन्म - 15 सितंबर सन 1919
जन्म स्थान-पीरबटावन मोहल्ला,बाराबंकी,उत्तर प्रदेश 
उप नाम- खुमार बाराबंकवी 
व्यवसाय - शायरी, फ़िल्मी गीत
पिता का नाम-डॉ. गुलाम हैदर  'बहार' ( उर्दू शायर थे )
शिक्षा- गवर्नमेंट कॉलेज बाराबंकी से कई विषयों में विशेष योग्यता के साथ हाई स्कूल पास किया।
 इसके बाद वह अपनी इंटरमीडिएट कक्षाओं के लिए लखनऊ चले गए ,लखनऊ कॉलेज से B.A. 
की पढ़ाई अधूरी छोड़ कर,पूरा समय शायरी को देदिया
मृत्यु - (वफ़ात ) 19 फरवरी सन 1999 

खुमार बाराबंकवी साहब की प्रकाशित पुस्तकें

1 -हदीस-ए-दीगरां
2-आतिश-ए-तर
3-रक्स-ए-माई
4-शब-ए-ताब
5-आहांग ए खुमार

खुमार बाराबंकवी साहब ने इन हिंदी फिल्मो में गीत लिखे लिखे 

1-शाहजहां
2-दिल की बस्ती
3-रूप लेखा
4-आधी रात
5-मेहरबानी
6-हलचल
7-जवाब
8- रुखसाना
9-शहजादा
10-कैप्टन शेरू
11-महफिल
12-मेंहदी
13-कातिल
हालाँकि वह एक सफल गीत-लेखक थे, फिर भी वह फिल्मों के लिए गीत लिखने में 
समय देने के बजाय हमेशा मुशायरों में भाग लेना पसंद करते थे। इसके अलावा वह 
फिल्मों में शायरी के गिरते स्तर से नाराज थे, इसलिए उन्होंने काफी समय तक खुद 
को बॉलीवुड से दूर रखा। संगीत निर्देशक नौशाद के आग्रह पर, वह के. आसिफ की
 'लव एंड गॉड' के लिए गीत लिखने के लिए सहमत हुए, लेकिन जल्द ही उन्होंने 
फिल्म उद्योग छोड़ दिया और बाराबंकी में बस गए।



अवार्ड व् सम्मान 
1-उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी अवार्ड 
2-जिगर मुरादाबादी, उर्दू अवार्ड
3-उर्दू सेंटर कीनिया और अकादमी नवाये मीर उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद अवार्ड 
 4-मल्टी कल्चरल सेंटर ओसो कनाडा अवार्ड 
5-अदबी संगम न्यूयार्क, दीन दयाल जालान सम्मान वाराणसी
6-कमर जलालवी एलाइड्स कालेज अवार्ड ,पाकिस्तान
 7-दुबई में ख़ुमार की प्रसिद्धि और कामयाबी के लिये जश्न मनाया गया-सन 1992 
8-बाराबंकी जिले में जश्न-ए-खुमार का आयोजन किया गया। जिसमें तत्कालीन राज्यपाल
मोतीलाल वोरा ने एक लाख की धनराशि व प्रशस्ति पत्र उन्हें देकर सम्मानित किया था सन 1993येभीपढ़ें


खुमार बाराबंकवी साहब कुछ यादगार ग़ज़लें 

1-ग़ज़ल 

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है 

दिया जल रहा है हवा चल रही है 

सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है 

तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है 

खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है 

जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है 

वो मौजूद हैं और उन की कमी है 

मोहब्बत भी तन्हाई-ए-दाइमी है 

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं 

नया है ज़माना नई रौशनी है 

अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो 

ख़मोशी जफ़ाओं की ताईद भी है 

मिरे राहबर मुझ को गुमराह कर दे 

सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है 

'ख़ुमार'-ए-बला-नोश तू और तौबा 

तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है 

2-ग़ज़ल 

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं 

जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं 

वो हैं पास और याद आने लगे हैं 

मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं 

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं 

तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं 

हटाए थे जो राह से दोस्तों की 

वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं 

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को 

ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं 

हवाएँ चलीं और न मौजें ही उट्ठीं 

अब ऐसे भी तूफ़ान आने लगे हैं 

क़यामत यक़ीनन क़रीब आ गई है 

'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे हैं 

3-ग़ज़ल 


इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए 

दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए 

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम 

क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए 

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए 

अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए 

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ 

सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए 

वो जान ही गए कि हमें उन से प्यार है 

आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हम से पूछिए 

हँसने का शौक़ हम को भी था आप की तरह 

हँसिए मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए 

हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार' 

तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए 

4-ग़ज़ल 

पी पी के जगमगाए ज़माने गुज़र गए 

रातों को दिन बनाए ज़माने गुज़र गए 

जान-ए-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं 

आ जा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए 

क्या लाइक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तो 

पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए 

ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में 

रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए 

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास 

सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए 

मरने से वो डरें जो ब-क़ैद-ए-हयात हैं 

मुझ को तो मौत आए ज़माने गुज़र गए 

क्या क्या तवक़्क़ुआत थीं आहों से ऐ 'ख़ुमार' 

ये तीर भी चलाए ज़माने गुज़र गए 

CONLUSION :-

खुमार बराबंकवी एक महान उर्दू शायर थे। उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से अपनी 
अद्वितीय पहचान बनाई थी। उनकी शायरी में ज़रा हटके और आधुनिक अंदाज़ थे, जिसने
 उन्हें अन्य शायरों से अलग बनाया। उनकी कविताओं में भावुकता और आर्थिकता की 
अद्वितीयता थी, जो सुनने वाले के दिल में छाया छोड़ देती थी। खुमार बराबंकवी की शायरी
 आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है और उन्हें एक महान उर्दू शायर के रूप में मान्यता
 है। उनकी कविताएं शायरी के आदान-प्रदान में एक महत्वपूर्ण योगदान हैं, और उनकी 
रचनाओं ने उर्दू साहित्य को मजबूती से भरा है।येभीपढ़ें










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