जावेद अख्तर साहब की पैदाइश 1945 में ग्वालियर में हुई , उनके पिता जान निसार अख्तर बॉलीवुड फिल्म गीतकार और उर्दू कवि थे उनके दादा मुज़्तर खैराबादी उर्दू एक उस्ताद शायर थे, जैसे उनके दादा के बड़े भाई बिस्मिल खैराबादी थे, जबकि उनके परदादा फ़ज़ल-ए-हक खैराबादी इस्लाम के एक धार्मिक विद्वान थे जिन्होंने 1857 में धार्मिक फतवा देकर, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की थी।
जावेद अख्तर गीतकार,शायर,सोशल एक्टिविस्ट
जावेद अख्तर का मूल नाम जादू था, जो उनके पिता द्वारा लिखी गई एक कविता की एक पंक्ति से लिया गया था: "लम्हा, लम्हा किसी जादू का फसाना होगा"। उन्हें जावेद का आधिकारिक नाम दिया गया था क्योंकि यह जादू शब्द के सबसे निकट था। उन्होंने अपना अधिकांश बचपन लखनऊ में बिताया और स्कूली शिक्षा प्राप्त की
जीवन परिचय
नाम - जावेद अख्तर
बचपन का नाम - जादू
पिता का नाम - जां निसार अख्तर
जन्म - 17 जनवरी 1945
जन्म स्थान - ग्वालियर, मध्य प्रदेश भारत
उम्र - 76 वर्ष
गृहनगर - ग्वालियर, मध्य प्रदेश
वर्तमान नगर - मुंबई, भारत
राष्ट्रियता - भारतीय
पेशा - गीतकार, स्क्रीनराइटर, कवी
धर्म - नास्तिक
वैवाहिक स्थिति - विवाहित
शौक - क्रिकेट देखना
लंबाई - 5 फ़ीट 5 इंच
राशि - मकर राशि
शिक्षा - कला में स्नातक
कुल संपत्ति - 35 मिलियन डॉलर
शायर जावेद अख्तर साहब की ज़िंदगी की सफर नामा
शायर जावेद अख्तर साहब का,जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 17 जनवरी सन 1945 को हुआ था। इनके पिता जां निसार अख्तर अपने ज़माने के बॉलीवुड के मशहूर शायर और गीतकार थे,अख्तर के चाचा, असरार-उल-हक "मजाज" भी एक उर्दू कवि थे और माँ सफ़िया अख्तर एक मशहूर लेखिका एवं शिक्षिका थी। इनके दादाजी मुज़्तर खैराबादी भी अंग्रेज के ज़माने के शायर थे। उनके चाचा, अंसार हरवानी, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सदस्य और संसद के निर्वाचित सदस्य थे। अख्तर की चाची, हमीदा सलीम, एक भारतीय लेखिका, अर्थशास्त्री और शिक्षिका भी थीं।
जावेद अख्तर साहब का नाता,शेरो शायरी, गीत, संगीत और उर्दू साहित्य से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। इस वजह से इनका भी रुझान बचपन ही से साहित्य कला और गीत संगीत जुड़ा रहा
इनके सर से माँ का साया बचपन ही में उठ गया था। इन्होने अपना बचपन अपने नाना-नानी के घर लखनऊ में बिताया, उसके बाद इन्हे इनके मौसी के घर अलीगढ भेज दिया गया। जहाँ से इन्होने अपनी शुरुआती पढाई लिखाई पूरी की। इनके माँ के इंतकाल के बाद इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली। और जावेद भी अब अपनी सौतेली माँ के पास भोपाल में ही रहने लगे। और भोपाल के ही सोफिया कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी की।
जावेद अख्तर साहब शादी
जावेद अख्तर साहब ने दो बार निकाह किया हे, इनकी पहली पत्नी हनी ईरानी से इनकी शादी साल 1972 में हुई थी, इनकी मुलाकात फिल्म सीता और गीता के सेट पर हुई थी। हालाकिं इस जोड़ी का तलाक वर्ष 1985 में ही हो गया था। जानकारी के लिए आपको बता दे हनी और जावेद अख्तर का बर्थडे एक ही दिन 17 जनवरी को पड़ता है।
जावेद अख्तर साहब और हनी के दो बच्चे है बेटा फरहान अख्तर और बेटी जोया अख्तर है। इसके बाद साल 1984 में जावेद ने दूसरी शादी अपने ज़माने की मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी से की। जो की मशहूर उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी साहब की बेटी है। जावेद अख्तर साहब शुरुआत के दिनों में कैफ़ी आज़मी के सहायक के तौर पर काम कर चुके है।
जावेद अख्तर साहब का करियर
बचपन से ही जावेद साहब पाकिस्तानी लेखक इबने सफी (असरार अहमद) के उर्दू नॉवेल से काफी प्रभावित थे। इसके आलावा जावेद कई सारी डिटेक्टिव नोवेल्स जैसे की जासूसी दुनिया, द हाउस ऑफ़ फियर इत्यादि पढ़ा करते थे । ये सब पढ़कर जावेद साहब बड़े हुए , जिसके वजह से इनकी दिलचस्पी शेरो शायरी, ग़ज़ल, गीत, संगीत, की दुनिया में धीरे धीरे बढ़ता चला गयी
जावेद अख्तर साहब को मिले सम्मान और अवार्ड्स
1- पदम् श्री, नागरिक पुरुस्कार से सम्मानित किया गया वर्ष 1999
2-पदम् भूषण, नागरिक पुरुस्कार से सम्मानित किया गया वर्ष 2007
3-उर्दू में साहित्य अकादमी पुरस्कार,इनकी किताब लावा के लिए
4-जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय द्वारा मानद डॉक्टरेट वर्ष 2013
5-रिचर्ड डॉकिन्स अवार्ड,मानवाधिकारों के लिए वर्ष 2020
6-निम्नलिखित फिल्मो में बेस्ट गीतकार के लिए जावेद अख्तर पांच राष्ट्रीय पुरुस्कार जित चुके है।
- फिल्म साज़ (1999)
- बॉर्डर (1997)
- गॉड मदर (1998)
- रिफ्यूजी (2000)
- लगान (2001)
- फिल्मफेयर पुरुस्कार 14 बार,जिनमे सात बार बेस्ट लिरिक्स के लिए और सात बार बेस्ट पटकथा के लिए। इसके अलावा इन्हे कई पुरुस्कार इन्हे मिल चुके है, जिनमे बेस्ट गीतकार ऑफ़ द ईयर, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड,आदि
जावेद अख्तर की शायरी
ग़ज़ल -1
अभी ज़मीर में थोड़ी सी जान बाक़ी है
अभी हमारा कोई इम्तिहान बाक़ी है
हमारे घर को तो उजड़े हुए ज़माना हुआ
मगर सुना है अभी वो मकान बाक़ी है
हमारी उन से जो थी गुफ़्तुगू वो ख़त्म हुई
मगर सुकूत सा कुछ दरमियान बाक़ी है
हमारे ज़ेहन की बस्ती में आग ऐसी लगी
कि जो था ख़ाक हुआ इक दुकान बाक़ी है
वो ज़ख़्म भर गया अर्सा हुआ मगर अब तक
ज़रा सा दर्द ज़रा सा निशान बाक़ी है
ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी
वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है
अब आया तीर चलाने का फ़न तो क्या आया
हमारे हाथ में ख़ाली कमान बाक़ी है
ग़ज़ल -2
तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
आज फिर दल ने इक तमन्ना की
आज फिर दिल को हम ने समझाया
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हम ने क्या खोया हम ने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया
ग़ज़ल -3
जिस्म दमकता, ज़ुल्फ़ घनेरी, रंगीं लब, आँखें जादू
संग-ए-मरमर, ऊदा बादल, सुर्ख़ शफ़क़, हैराँ आहू
भिक्षु-दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर
गुलशन ख़ुशबू, कोयल कूकू, मस्ती दारू, मैं और तू
ब़ाँबी नागिन, छाया आँगन, घुंघरू छन-छन, आशा मन
आँखें काजल, पर्बत बादल, वो ज़ुल्फ़ें और ये बाज़ू
रातें महकी, साँसें दहकी, नज़रें बहकी, रुत लहकी
सप्न सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछौना, वो पहलू
तुम से दूरी, ये मजबूरी, ज़ख़्म-ए-कारी, बेदारी,
तन्हा रातें, सपने क़ातें, ख़ुद से बातें, मेरी ख़ू
नज़्म
किसी का हुक्म है सारी हवाएँ
हमेशा चलने से पहले बताएँ
कि उन की सम्त क्या है
किधर जा रही हैं
हवाओं को बताना ये भी होगा
चलेंगी अब तो क्या रफ़्तार होगी
हवाओं को ये इजाज़त नहीं है
कि आँधी की इजाज़त अब नहीं है
हमारी रेत की सब ये फ़सीलें
ये काग़ज़ के महल जो बन रहे हैं
हिफ़ाज़त उन की करना है ज़रूरी
और आँधी है पुरानी इन की दुश्मन
ये सभी जनते हैं
किसी का हुक्म है दरिया की लहरें
ज़रा ये सर-कशी कम कर लें अपनी हद में ठहरें
उभरना फिर बिखरना और बिखर कर फिर उभरना
ग़लत है ये उन का हंगामा करना
ये सब है सिर्फ़ वहशत की अलामत
बग़ावत की अलामत
बग़ावत तो नहीं बर्दाश्त होगी
ये वहशत तो नहीं बर्दाश्त होगी
अगर लहरों को है दरिया में रहना
तो उन को होगा अब चुप-चाप बहना
किसी का हुक्म है
इस गुलिस्ताँ में बस इक रंग के ही फूल होंगे
कुछ अफ़सर होंगे जो ये तय करेंगे
गुलिस्ताँ किस तरह बनना है कल का
यक़ीनन फूल तो यक-रंगीं होंगे
मगर ये रंग होगा कितना गहरा कितना हल्का
ये अफ़सर तय करेंगे
किसी को ये कोई कैसे बताए
गुलिस्ताँ में कहीं भी फूल यक-रंगीं नहीं होते
कभी हो ही नहीं सकते
कि हर इक रंग में छुप कर बहुत से रंग रहते हैं
जिन्होंने बाग़-ए-यक-रंगीं बनाना चाहे थे
उन को ज़रा देखो
कि जब इक रंग में सौ रंग ज़ाहिर हो गए हैं तो
कितने परेशाँ हैं कितने तंग रहते हैं
किसी को ये कोई कैसे बताए
हवाएँ और लहरें कब किसी का हुक्म सुनती हैं
हवाएँ हाकिमों की मुट्ठियों में हथकड़ी में
क़ैद-ख़ानों में नहीं रुकतीं
ये लहरें रोकी जाती हैं
तो दरिया कितना भी हो पुर-सुकूँ बेताब होता है
और इस बेताबी का अगला क़दम सैलाब होता है
Conclusion :-
श्री जावेद अख्तर निस्संदेह हमारे समय के सबसे सम्मानित और प्रसिद्ध कवियों
और लेखकों में से एक हैं। अपनी गहन साहित्यिक प्रतिभा के साथ, उन्होंने कविता
और साहित्य की दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी है। अख्तर का काम समाज,
राजनीति और मानवीय भावनाओं के बारे में उनके गहन अवलोकन को दर्शाता है,
और उनके पास अपने पाठकों के दिल और दिमाग को छूने की एक अनूठी क्षमता है।
अपने पूरे करियर के दौरान, जावेद अख्तर ने अपने लेखन में बहुमुखी प्रतिभा का
प्रदर्शन किया है, विभिन्न शैलियों के बीच सहजता से परिवर्तन किया है। चाहे वह
उनकी विचारोत्तेजक कविता हो, फिल्मों के लिए शक्तिशाली गीत हों, या उनके
अंतर्दृष्टिपूर्ण निबंध हों, उन्होंने लगातार भाषा पर एक उल्लेखनीय पकड़ और
मानवीय अनुभवों के सार को पकड़ने की असाधारण क्षमता प्रदर्शित की है।
इसके अलावा, अख्तर का लेखन अक्सर प्रेम, सामाजिक न्याय और मानवीय रिश्तों
की पेचीदगियों के विषयों का पता लगाता है। उनकी काव्य अभिव्यक्तियाँ गहन
और सुलभ दोनों हैं, जो उनके काम को दर्शकों की एक विस्तृत श्रृंखला से संबंधित
बनाती हैं। अपनी असाधारण शिल्प कौशल के साथ, उन्होंने शास्त्रीय और
समकालीन कविता के बीच एक पुल बनाने में कामयाबी हासिल की है, जो
पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की संवेदनाओं को आकर्षित करता है।
अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के अलावा, जावेद अख्तर को सामाजिक और
राजनीतिक कारणों से उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए भी जाना जाता है।
उन्होंने सामाजिक न्याय, महिलाओं के अधिकारों और सांप्रदायिक सद्भाव
की वकालत करने के लिए अपने मंच और प्रभाव का इस्तेमाल किया है।
उनके विचारोत्तेजक भाषणों और लेखों ने उन्हें भारत के सांस्कृतिक और
राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख आवाज बना दिया है।
उनके अपार योगदान की पहचान में, जावेद अख्तर को कई राष्ट्रीय फिल्म
पुरस्कार, फिल्मफेयर पुरस्कार और भारत में सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में
से एक पद्म श्री सहित कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उनकी
रचनाओं ने लाखों लोगों के जीवन को छुआ है, कवियों, लेखकों और
कलाकारों की आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया है।
संक्षेप में, जावेद अख्तर की असाधारण प्रतिभा, बहुमुखी प्रतिभा और सामाजिक
सक्रियता ने कविता और साहित्य के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में
अपना स्थान पक्का कर लिया है। कला और संस्कृति की दुनिया पर एक
स्थायी प्रभाव छोड़ते हुए उनके गहन शब्द दर्शकों के बीच गूंजते रहते हैं।
एक कवि और लेखक के रूप में श्री जावेद अख्तर की विरासत आने
वाली पीढ़ियों को प्रेरित और आकर्षित करती रहेगी।ये भी पढ़ें