तहज़ीब हाफी, जिनका असली नाम सैयद तहज़ीब-उल-हसन है, का जन्म 5 दिसंबर 1989 को हुआ था। वे अपने अद्वितीय शैली और मंत्रमुग्ध कर देने वाले काव्य पाठ के लिए जाने जाते हैं। तहज़ीब का जन्म पाकिस्तान के डेरा गाज़ी खान जिले के तहसील तौसा शरीफ के रेट्रा गाँव में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से प्राप्त की और फिर महरान विश्वविद्यालय से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। बाद में, उन्होंने बहावलपुर विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए किया।
तहज़ीब हाफी का कविता के प्रति आधुनिक और अपरंपरागत दृष्टिकोण उन्हें युवा पीढ़ी में विशेष लोकप्रिय बनाता है। वे न केवल एक कवि हैं, बल्कि एक ब्लॉगर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी हैं, जिनके इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्मों पर बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। तहज़ीब ने कई पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर होस्ट और प्रस्तुतकर्ता के रूप में भी काम किया है।
वे नए पीढ़ी के उर्दू कविता के प्रमुख आवाज़ों में से एक माने जाते हैं, और उनकी रचनाएँ अपनी ताजगी, मौलिकता, और समसामयिक मुद्दों की प्रासंगिकता के लिए प्रशंसा पाती हैं।ये भी पढ़ें
जीवन परिचय
नाम - सय्यद तहज़ीब उल हसन
उपनाम -स्थान - तहज़ीब हाफी
जन्म तिथि - 5 दिसंबर 1989
जन्म स्थान - तोनसा शरीफ़. डिस्ट्रिक्ट - डेरा ग़ाज़ी खान ,लाहौर ,पाकिस्तान
पिता का नाम- ग़ुलाम हसन ( मुलाज़मत प्राइवेट जॉब )
भाई बहिन -भाई बहिन- 2 भाई,मोहम्मद वकास ,मोहम्मद नजम
विवाह - अविवाहित
शिक्षा - मेहरान यूनिवर्सिटी हेदराबाद सेसॉफ्टवेयर इंजीनियर की डिग्री हासिल की ,बहावलपुर विश्वविद्यालय से उर्दू में M. A . ,M.Phil Urdu
प्रकाशित पुस्तकें
1- इंतेखाब
FAQ
1-Is Tehzeeb Hafi from India?
Ans. No Tezeeb Hafi from Pakistan.
2-Which city is Tehzeeb Hafi?
Asn.Tehzeeb Hafi Currently living in Hydrabad Pakistan.
3-How old is Tahzeeb Hafi?
Ans.Tehzeeb Hafi is 35 years old man.
तहज़ीब हाफी की कुछ ग़ज़लें
1- ग़ज़ल
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
2- ग़ज़ल
हम तुम्हारे ग़म से बाहर आ गए
हिज्र से बचने के मंतर आ गए
मैं ने तुम को अंदर आने का कहा
तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गए
एक ही औरत को दुनिया मान कर
इतना घूमा हूँ कि चक्कर आ गए
इम्तिहान-ए-इश्क़ मुश्किल था मगर
नक़्ल कर के अच्छे नंबर आ गए
3- ग़ज़ल
जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो
मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो
4 - नज़्म
तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझ से
तू किसी और ही मंज़र की महक लाई थी
डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म न भर जाएँ मिरे
और तू मुट्ठियाँ भर भर के नमक लाई थी
और ही तरह की आँखें थीं तिरे चेहरे पर
तू किसी और सितारे से चमक लाई थी
तेरी आवाज़ ही सब कुछ थी मुझे मोनिस-ए-जाँ
क्या करूँ मैं कि तू बोली ही बहुत कम मुझ से
तेरी चुप से ही ये महसूस किया था मैं ने
जीत जाएगा किसी रोज़ तिरा ग़म मुझ से
शहर आवाज़ें लगाता था मगर तू चुप थी
ये त'अल्लुक़ मुझे खाता था मगर तू चुप थी
वही अंजाम था जो 'इश्क़ का आग़ाज़ से है
तुझ को पाया भी नहीं था कि तुझे खोना था
चली आती है यही रस्म कई सदियों से
यही होता है यही होगा यही होना था
पूछता रहता था तुझ से कि बता क्या दुख है
और मिरी आँख में आँसू भी नहीं होते थे
मैं ने अंदाज़े लगाए कि सबब क्या होगा
पर मिरे तीर तराज़ू भी नहीं होते थे
जिस का डर था मुझे मा'लूम पड़ा लोगों से
फिर वो ख़ुश-बख़्त पलट आया तिरी दुनिया में
जिस के जाने पे मुझे तू ने जगह दी दिल में
मेरी क़िस्मत में ही जब ख़ाली जगह लिक्खी थी
तुझ से शिकवा भी अगर करता तो कैसे करता
मैं वो सब्ज़ा था जिसे रौंद दिया जाता है
मैं वो जंगल था जिसे काट दिया जाता है
मैं वो दर था जिसे दस्तक की कमी खाती है
मैं वो मंज़िल था जहाँ टूटी सड़क जाती है
मैं वो घर था जिसे आबाद नहीं करता कोई
मैं तो वो था कि जिसे याद नहीं करता कोई
ख़ैर इस बात को तू छोड़ बता कैसी है
तू ने चाहा था जिसे वो तिरे नज़दीक तो है
कौन से ग़म ने तुझे चाट लिया अन्दर से
आज-कल फिर से तू चुप रहती है सब ठीक तो है
तहज़ीब हाफी की कविता की एक अनोखी विशेषता यह है कि वे अपने दर्शकों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर जुड़ते हैं। वे अपने ह्रदयविदारक घटनाओं और संघर्षों के बारे में खुलकर लिखते हैं, जिससे उनकी कविता सजीव और प्रामाणिक बनती है। उनकी रचनाएँ पाठकों के मन में आत्मनिरीक्षण और संवेदना की भावना पैदा करती हैं। उर्दू शायरी में नए प्रवृत्तियों की स्थापना करने वाले कवियों में तहज़ीब हाफी का योगदान नकारा नहीं जा सकता, और उनका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। उनके बहुमुखी प्रतिभा, सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता, और अनूठी शैली ने उन्हें न केवल पाकिस्तान में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रमुख कवि के रूप में स्थापित किया है। युवा पीढ़ी के लिए वे प्रेरणा का स्रोत हैं, और उनकी कविताएँ, गाने और संगीत दिलों को छूते हुए सजीव और प्रासंगिक बने रहते हैं।ये भी पढ़ें