डॉ. मोहम्मद नवाज़ ख़ान, जिन्हें अदबी दुनिया में "नवाज़ देवबंदी" के नाम से जाना जाता है, 16 जून 1956 को देवबंद (भारत) की पवित्र सरज़मीन पर पैदा हुए — वही नगर जो इल्म-ओ-अदब और दीनी रौशनियों का मरकज़ माना जाता है। बचपन से ही उनमें शेर-ओ-शायरी और तहरीर-ओ-तस्नीफ़ का जौक़ पाया जाता था।
तार्रुफ़ (जीवन परिचय )
तालीम:
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D.Lit (Doctorate in Literature) – जामिआ उर्दू, अलीगढ़ से
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Ph.D (Urdu) – चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ से
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M.A (Urdu) – चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ से
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B.Com – चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ से
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आदीब कामिल – जामिआ उर्दू, अलीगढ़ से
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मुअल्लिम-ए-उर्दू – जामिआ उर्दू, अलीगढ़ से
डॉ. नवाज़ देवबंदी की ज़िंदगी इल्म, फ़िक्र और अदब का खूबसूरत संगम है — जहाँ तालीम उनकी पहचान है, और शायरी उनका पैग़ाम।
इनाम ओ इकराम (Awards & Honours)
डॉ. नवाज़ देवबंदी उर्दू अदब की उस बुलंद हुस्नत का नाम हैं जिन्होंने अपने फ़िक्र-ओ-फ़न से न सिर्फ़ मुल्क में बल्कि पूरी दुनिया में अपनी यگانाह पहचान बनाई। उनकी शायरी ने अदब की दुनिया को नए मियार दिए और उनके इल्मी व अदबी सफ़र ने उन्हें हर अदबी हल्के में इज़्ज़त और मक़बूलियत से नवाज़ा।
अदब में इज़्ज़त और सम्मान के निशान:
डॉ. नवाज़ देवबंदी को अब तक कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और एहतिरामी ख़िताबात से नवाज़ा गया है।
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सन 2016 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से "यश भारती पुरस्कार" से सरफ़राज़ किया गया — यह सम्मान उन्हें साहित्य और कला के क्षेत्र में उनके बे-मिसाल योगदान के लिए दिया गया।
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साल 2021 में उन्हें उनके अदबी कारनामों और ख़ूबसूरत तख़लीक़ात (काव्य रचनाओं) के लिए "ख़्वाजा युनुस अवार्ड" से सम्मानित किया गया। यह इनाम उनकी फ़िक्र की गहराई और अल्फ़ाज़ की शफ़्फ़ाफ़ी का ऐतराफ़ था।
सफ़र-ए-अदब की आलमी (विश्वव्यापी) गूँज
डॉ. नवाज़ देवबंदी ने भारत के विभिन्न शहरों में अब तक 5000 से अधिक काव्य गोष्ठियों, मुशायरों और कवि सम्मेलनों में हिस्सा लिया और अदबी फिज़ा को महकाया।उनका सफ़र सिर्फ़ मुल्क तक महदूद नहीं रहा — उन्होंने करीब 30 मुल्कों की लगभग 200 यात्राएँ कीं।
उनके अदबी कदम अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर, सऊदी अरब, कुवैत, क़तर, बहरीन, ओमान और पाकिस्तान तक पहुँचे।
इन यात्राओं ने उनके तजुर्बे, तसव्वुर और अदबी दायरे को न सिर्फ़ वसीअ किया बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर शायरी के रोशन सितारे की तरह मान्यता दी।
डॉ. नवाज़ देवबंदी आज उर्दू अदब के उन चुनिंदा नामों में शुमार हैं जिनके लफ़्ज़ सरहदों को पार कर दिलों तक अपना असर छोड़ जाते हैं।
मंस्हूरात व तसानीफ़ (प्रकाशित पुस्तकें)
2- सवानेह उलेमा ए हिन्द
3 - ज़र्रा नवाज़ी
डॉ नवाज़ देवबंदी साहब की कुछ मशहूर ग़ज़लें
ग़ज़ल-1
ग़ज़ल-2
ग़ज़ल-3
तब्सरा :-
डॉ. नवाज़ देवबंदी — एक ऐसा नाम जो उर्दू अदब की ख़ुशबू में रचा-बसा है, एक ऐसी शख़्सियत जिसके अल्फ़ाज़ दिलों को महकाते हैं और ख़याल ज़हन को रोशन कर देते हैं। देवबंद की पवित्र मिट्टी से उभरकर, जिसने इस मुल्क को दीनी इल्म और अदब के नायाब हीरे दिए, वहीं 16 जून 1956 को इस चमकते सितारे — डॉ. मोहम्मद नवाज़ ख़ान — ने आँखें खोलीं। यही वो शहर था जिसने "नवाज़ देवबंदी" के नाम से उन्हें अदबी दुनिया का एक अमर नाम बना दिया।
बचपन से ही उनमें तहरीर का सलीक़ा और शेर-ओ-शायरी का जुनून झलकता था। हर मिसरा, हर ख़याल उनकी रूह की गहराइयों से निकला हुआ महसूस होता है। तालीम का जुनून भी उनके भीतर कुछ कम न था। जामिआ उर्दू, अलीगढ़ से D.Lit. और चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ से Ph.D. हासिल करने के बाद उन्होंने न सिर्फ़ इल्म की बुलंदियों को छुआ बल्कि उसे अपने अदब में ढालकर उर्दू अदब के ख़ज़ाने को और भी रौशन कर दिया।
उनकी तालीम, उनका इल्मी सफ़र, और उनका फ़न — सब एक दूसरे के मुकम्मल आईने हैं। M.A. (Urdu), B.Com, "आदीब कामिल" और "मुअल्लिम-ए-उर्दू" जैसी डिग्रियों ने उनके ज़ेहन को वो गहराई दी जो बाद में उनकी शायरी में झलकती है।
नवाज़ देवबंदी का घराना भी अदब और इल्म की रूह से सराबोर है। बड़े भाई उम्र दराज़ ख़ान ख़ुद एक शायर और उनके पहले उस्ताद रहे। यही घर का अदबी माहौल था जिसने उन्हें शायरी की राह दिखाई। उनकी औलाद भी इस रोशनी की वारिस है — डॉ. आयशा नवाज़, डॉ. अहमद नवाज़ ख़ान और अब्दुल्लाह नवाज़ ख़ान — तीनों अपने-अपने मैदान में कामयाबी की मिसाल हैं।
अगर शायरी की दुनिया में उनकी मक़बूलियत की बात की जाए तो यह कहना मुनासिब होगा कि नवाज़ देवबंदी ने उर्दू अदब को नई ज़ुबान, नया अंदाज़ और नई रूह बख़्शी। उनके कलाम में मोहब्बत की मिठास है, सोच की गहराई है, और तहरीर की शफ़्फ़ाफ़ी। उनकी शायरी में तहज़ीब भी है और तासीर भी, इसलिए उनके अशआर सरहदों को पार कर दिलों में उतरते चले गए।
डॉ. नवाज़ देवबंदी ने अब तक 5000 से ज़्यादा मुशायरों और काव्य गोष्ठियों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के तक़रीबन 30 मुल्कों — अमरीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यू.ए.ई., सऊदी अरब, क़तर, ओमान और पाकिस्तान तक — उनकी शायरी की ख़ुशबू फैली हुई है। उन्होंने जहाँ भी कलाम पेश किया, वहाँ के अदबी माहौल को रौशन कर दिया।
आज डॉ. नवाज़ देवबंदी उर्दू शायरी के उस मर्तबे पर हैं जहाँ फ़िक्र, फ़न और फ़साहत एक साथ दिखाई देते हैं। उनके कलाम में सादगी भी है, असर भी — और यही उनकी शायरी की पहचान है।
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