Anjum Rehbar Poetess: वो शायरा जिसने दर्द को ग़ज़ल में और तन्हाई को तहरीर में बदल दिया,सुरीली आवाज़ की कामयाब शायरा

 अंजुम रहबर — एक ऐसा नाम जो अदब की दुनिया में नफ़ासत, एहसास और गहराई का दूसरा नाम बन चुका है। वो हिंदुस्तान की मुमताज़ शायरा और कवित्री हैं, जिन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों ज़बानों में अपने एहसासात को बेहद ख़ूबसूरती से बयान किया है। उनका पैदाइशी दिन 17 सितंबर 1962 है, और उनका जन्म मध्य प्रदेश के गुना ज़िले में हुआ। अंजुम रहबर की शायरी में समाजी, ज़ेहनी और ज़ाती मसाइल पर एक गहरा और सच्चा तजज़िया मिलता है। उनकी तहरीरों में ज़िंदगी, मोहब्बत, रिश्ते और रूहानियत जैसे विषयों पर एक वसीअ और असरअंगेज़ रोशनी पड़ती है।


उन्होंने अपने अदबी सफ़र की शुरुआत 1977 में की, जब उन्होंने पहली बार शायरी के मैदान में क़दम रखा। उसी वक़्त से वो मुशायरों और कवि सम्मेलनों का अहम हिस्सा बन गईं। उनकी शायरी में जज़्बात की गहराई और तसव्वुर की रंगीनी एक साथ मिलती है — जो शायरी को एक नया एहसास और एक नई पहचान देती है।

उनकी मशहूर नज़्में — “कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं” और “मलमल कच्चे रंगों की” — ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों तक पहुँचा दिया। इन अशआरों में उनके एहसास की नर्मी और तजुर्बे की गर्मी दोनों झलकती हैं।

अंजुम रहबर को उनके अदबी सफ़र और बेपनाह फ़नकाराना हुनर के लिए कई एज़ाज़ात से नवाज़ा गया है — जिनमें इंदिरा गांधी पुरस्कार, साहित्य भारती पुरस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार और गुना का गौरव पुरस्कार क़ाबिले ज़िक्र हैं।

मुशायरों और अदबी इज्लासों में उनकी मौजूदगी एक ख़ास रौनक पैदा करती है। वो ना सिर्फ़ अपने कलाम से लोगों के दिल जीतती हैं, बल्कि नई नस्ल के शायरों और शायराओं के लिए भी हौसले और रहनुमाई का ज़रिया बनती हैं।

अंजुम रहबर की शायरी में सिर्फ़ जज़्बात नहीं, बल्कि समाजी और तहज़ीबी मसाइल की गहराई भी झलकती है। उनके कलाम का असर सिर्फ़ हिंदुस्तान तक महदूद नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में महसूस किया जाता है।


साल 1977 में बतौर शायरा अपने करियर की शुरुआत करने के बाद अंजुम रहबर ने एबीपी न्यूज़, सब टीवी, सोनी पल, ईटीवी नेटवर्क और डीडी उर्दू जैसे क़ौमी चैनलों पर अपने कलाम पेश किए। साल 2013 में वो मशहूर शो “वाह! वाह! क्या बात है!” में भी नज़र आईं। आज वो न सिर्फ़ हिंदुस्तान में बल्कि दूसरे ममालिक में भी मुशायरों की रौनक बढ़ाने के लिए अक्सर बुलायी जाती हैं।

अंजुम रहबर — ज़िंदगी का एक ख़ूबसूरत तआरुफ़

नाम: अंजुम रहबर
उपनाम: अंजुम रहबर (यानी नाम ही उनकी पहचान बन गया)
पैदाइश: 17 सितंबर 1962, मध्य प्रदेश के गुना ज़िले में एक अदबी माहौल वाले घराने में हुई।
तारीख़-ए-पैदाइश: 17 सितंबर 1962

अंजुम रहबर की ज़िंदगी में मोहब्बत और तजुर्बे दोनों के रंग शामिल हैं। साल 1988 में उनका निकाह मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब से हुआ। लेकिन अफ़सोस, ये रिश्ता 1993 में जुदाई पर ख़त्म हो गया। उनकी संतान समीर राहत हैं, जो आज के दौर के जाने-माने म्यूज़िक डायरेक्टर हैं और अपने वालिद की तरह फ़न से जुड़े हुए हैं।

तालीम के लिहाज़ से अंजुम रहबर ने अपनी पढ़ाई में भी क़ामयाबी हासिल की। उन्होंने जीवाजी यूनिवर्सिटी, ग्वालियर से उर्दू में एम.ए. की डिग्री हासिल की — जिससे उनके अदबी सफ़र को एक मज़बूत बुनियाद मिली।

पेशा: फ़िल्म गीतकार और शायरा
अंजुम रहबर ने शायरी को अपना मक़सद-ए-ज़िंदगी बनाया। वो न सिर्फ़ उर्दू अदब की झिलमिलाती आवाज़ हैं, बल्कि फिल्मों के लिए नग़मे लिखकर भी अपनी पहचान क़ायम कर चुकी हैं।

मशहूर किताबें (Anjum Rehbar Books)

1️⃣ “मलमल कच्चे रंगों की” — जिसमें नज़्मों की नर्मी और एहसास की गहराई एक साथ रक़्स करती है।
2️⃣ “कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं” — ज़िंदगी के तल्ख़ और मीठे तजुर्बों को बयान करती एक बेहतरीन तहरीर।

इन किताबों ने अंजुम रहबर को उर्दू अदब की उन शायराओं में शामिल कर दिया, जिनके कलाम में जज़्बात, हक़ीक़त और ख़ूबसूरती का संगम है।


“मलमल कच्चे रंगों की”

एहतराम और एज़ाज़ात (पुरस्कार व सम्मान):

इंदिरा गांधी पुरस्कार
साहित्य भारती पुरस्कार
हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार
अखिल भारतीय कविवर विद्यापीठ पुरस्कार
दैनिक भास्कर पुरस्कार
चित्रांश फ़िकर गोरखपुरी पुरस्कार
राम रिख मनहर पुरस्कार
गुना का गौरव पुरस्कार

ये सारे एज़ाज़ात इस बात की गवाही देते हैं कि अंजुम रहबर ने अपने अल्फ़ाज़ से अदब की दुनिया में कैसा असर छोड़ा है।

🎭 कपिल शर्मा शो में शिरकत:

सोनी एंटरटेनमेंट के मशहूर कपिल शर्मा शो के होली स्पेशल एपिसोड में अंजुम रहबर साहिबा को ख़ास मेहमान के तौर पर बुलाया गया था। उन्होंने कपिल शर्मा के साथ मंच साझा किया और अपनी लाज़वाब ग़ज़लें पेश करके न सिर्फ़ दर्शकों के दिल जीत लिए, बल्कि उर्दू शायरी की नफ़ासत को आम लोगों तक पहुंचाया।

कपिल शर्मा के साथ अंजुम रहबर

🕊️ सियासी सफ़र की शुरुआत:

7 अगस्त 2023 को अंजुम रहबर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता हासिल की — ये एलान उन्होंने मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की मौजूदगी में किया। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अब तक उनका सफ़र कलाम के ज़रिए समाज की आवाज़ बनने का था, और अब वो सीधे तौर पर कौम और समाज की ख़िदमत के लिए अपने तजुर्बे और एहसास को अमल में लाना चाहती हैं।

मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ जी के साथ शायराअंजुम रहबर 

अंजुम रहबर की गजलें

1-ग़ज़ल 

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था 

वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था 

मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई 

जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था 

बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे 

घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था 

मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को 

हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था 

दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में 

मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था 

2-ग़ज़ल 

जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है 

उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है 

चाँद तारे मिरे क़दमों में बिछे जाते हैं 

ये बुज़ुर्गों की दुआओं का असर लगता है 

माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं 

सर पे आँचल नहीं होता है तो डर लगता है 

3-गीत  

एक सांवली सी लड़की
एक बावली सी लड़की
कच्ची है उम्र है जिसकी
कुछ दिन से जाने किसकी
चाहत में खो गयी है
दीवानी हो गयी है
एक सांवली सी लड़की
एक बावली सी लड़की.....
क्या जाने क्या ख्वाब किसका
आंखों मे है संभाले
कुछ सोचती है शब भर
मुंह पर लिहाफ डाले
घर वाले सोचते हैं
जल्दी से सो गयी है
एक सांवली सी लड़की..
एक बावली सी लड़की
सुधबुध है उसको खुद की
सुधबुध नहीं है घर की
हर दिन बदल रही है 
कुरती नए कलर की
बेरंग ओढ़नी भी
रंगीन हो गयी है
एक सांवली सी लड़की
एक बावली सी लड़की
वो ध्यान ही न देगी
क्या कह रही है टीचर 
इक नाम उंगलियों पर
लिखती रहेगी दिन भर
कुछ भी न पढ़ सकेगी
स्कूल तो गयी है
एक सांवली सी लड़की
एक बावली सी लड़की
खिड़की से झांकती है
मां से नजर बचाकर
बेचैन हो रही है
क्यूं घर की छत पे जाकर
क्या ढूंढती है जाने
क्या चीज खो गयी है
एक सांवली सी लड़की
एक बावली सी लड़की
नानी से अब कहानी 
सुनती कभी नहीं है
गुड़़ियों से, तितलियों से 
अब दोस्ती नहीं है
नाजुक कली भी अंजुम
गुलनार हो गयी है
एख सांवली सी लड़की
एक बावली सी लड़की
एक सांवली सी लडकी
एक बावली सी लडकी

4-ग़ज़ल 

कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं 

यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं 

वो बे-वफ़ा जो राह में टकरा गया कहीं 

कह दूँगी मैं भी साफ़ कि पहचानती नहीं 

समझाया बार-हा कि बचो प्यार-व्यार से 

लेकिन कोई सहेली कहा मानती नहीं 

मैं ने तुझे मुआ'फ़ किया जा कहीं भी जा 

मैं बुज़दिलों पे अपनी कमाँ तानती नहीं 

'अंजुम' पे हँस रहा है तो हँसता रहे जहाँ 

मैं बे-वक़ूफ़ियों का बुरा मानती नहीं 


तब्सरा:-

अंजुम रहबर उर्दू अदब की वो नफ़ीस आवाज़ हैं, जिनके अशआर में नर्मी भी है और असर भी। उनकी शायरी में ज़िंदगी की तहों से उठती वो सच्चाई है, जो दिल को छू जाती है। वो हर मिसरे में एक नया तजुर्बा, हर नज़्म में एक नई कहानी और हर शब्द में एक नई रूह फूंक देती हैं। उनकी शायरी सिर्फ़ अल्फ़ाज़ का संगम नहीं, बल्कि एक एहसास की तहज़ीब है — जहाँ मोहब्बत, तन्हाई, रूहानियत और औरत का वजूद एक साथ साँस लेते हैं।

मगर उनकी ज़िंदगी का सफ़र उतना आसान नहीं था। जब ज़िंदगी ने एक दर्दनाक मोड़ लिया और राहत इंदौरी जैसे मशहूर शायर से उनका रिश्ता जुदाई पर पहुँचा, तो दुनिया ने सोचा कि शायद अंजुम रहबर अब खामोश हो जाएंगी। लेकिन उन्होंने अपनी ख़ामोशी को ताक़त बना लिया। उन्होंने ग़म को ग़ज़ल में, और तन्हाई को तहरीर में ढाल दिया।
वो गिरी नहीं — बल्कि पहले से ज़्यादा बुलंदी के साथ उठीं। अपने अशआर में उन्होंने उस दर्द को भी ख़ूबसूरती से पिरो दिया, जो किसी और को मिटा सकता था। तलाक़ के बाद अंजुम रहबर ने जिस हिम्मत से अपने वजूद को संभाला, वो हर औरत के लिए मिसाल है — कि इश्क़ से ज़्यादा क़ीमती अपनी पहचान होती है।

फिर वो उसी जुनून और ताजगी के साथ अदब के मैदान में लौटीं। उनके कलाम में एक नयी रौशनी, एक नयी सच्चाई और एक नया सलीक़ा झलकने लगा। उन्होंने मुशायरों, कवि सम्मेलनों और टीवी मंचों पर फिर से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, और हर बार अपने कलाम से साबित किया कि असल हुनर वही है — जो टूटने के बाद भी और निखर जाए।

अंजुम रहबर — वो शायरा जिनकी तहरीर में दर्द भी है, मगर वो दर्द गुलाब की ख़ुशबू बनकर महकता है। उनकी शायरी वजूद की जंग का आईना है — और उनकी आवाज़, उर्दू अदब की हमेशा ज़िंदा रहने वाली धड़कन।ये भी पढ़ें

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