इकबाल अशहर की पैदाइश 26 अक्टूबर 1965 को दिल्ली के कुचा चेलान इलाके में हुआ। आपके वालिद का नाम अब्दुल लतीफ और वालिदा का नाम सकीना खातून था। इकबाल अशहर के असलाफ़ अमरोहा, उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे, मगर आपके वालिद ने दिल्ली में अपना आशियाना बसाया।
इब्तेदायी ज़िंदगी:
इकबाल अशहर ने अपनी इब्तिदाई तालीम दिल्ली के स्कूलों में हासिल की। आपकी शायरी का सफर बहुत जल्दी, यानी कि सिर्फ 15 साल की उम्र में ही शुरू हो गया था। इकबाल अशहर ने ITM यूनिवर्सिटी, ग्वालियर में एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि वो बारहवीं तक कॉमर्स के तालिब-ए-इल्म थे। मगर उन्हें महसूस हुआ कि वो हिसाब किताब करने के लिए पैदा नहीं हुए, बल्कि उनका दिल शायरी की तरफ खिंचता था।
उनके घर वालों की ख्वाहिश थी कि वो C/A बनें, मगर उन्होंने शायरी को अपना मकसद-ए-हयात बना लिया। इकबाल साहब ने न्यूज़18 उर्दू के एक इंटरव्यू में कहा कि डॉ. बशीर बद्र और डॉ. वसीम बरेलवी को अपना आइडियल मानते हैं। लेकिन वो ये भी कहते हैं कि एक शायर के लिए सिर्फ किसी को अपना आइडियल मान लेना काफी नहीं होता। शायरी के मयार के लिए तन्कीदी शऊर का उजाला भी दरकार होता है, जिसके साए तले आप अपना शेरी सफर तय कर सकते हैं।
अदबी सफर और अहम काम:
इकबाल अशहर की शायरी का सफर दिल्ली की गलियों से शुरू हुआ और उनकी किताबों तक जा पहुंचा। उनकी अहम किताबों में शामिल हैं:
धनक तेरे ख्याल की (हिंदी और उर्दू, 2005): यह शायरी का मजमुआ इकबाल अशहर के जज़्बात और दर्द को ऐसे अंदाज़ में बयान करता है जो दिल को छू लेता है।
रतजगे (उर्दू, 2010): इस मजमुए में इकबाल अशहर की शायरी की गहराई और नज़ाकत का इज़हार होता है।
रतजगे (दूसरा एडिशन, 2013): यह दूसरा एडिशन भी बहुत पसंद किया गया और इकबाल अशहर के अदबी सफर को नई बुलंदियों तक ले गया।
ग़ज़ल सराय: इस मजमुए में इकबाल अशहर की बेहतरीन ग़ज़लों का इंतिखाब है।
उर्दू है मेरा नाम: इस किताब में इकबाल अशहर ने उर्दू ज़बान के लिए अपनी मोहब्बत और वफादारी का इज़हार किया है।
अदबी ख़िदमात:
इकबाल अशहर ने उर्दू शायरी के फरोग और उसकी तहज़ीब को महफूज़ करने में बहुत अहम किरदार अदा किया है। उन्होंने कई अदबी फेस्टिवल्स, मुशायरों, और तहज़ीबी प्रोग्रामों में हिस्सा लिया है। उनकी शायरी ने उर्दू ज़बान के आशिकों के दिल जीत लिए हैं और उनकी तालीम और तजुर्बात ने उन्हें आज के दौर का एक अहम शायर बना दिया है।
ज़िंदगी और इंसानी तजुर्बे:
इकबाल अशहर की शायरी में उनके शख्सी तजुर्बात और जज़्बात का गहरा असर है। उनके ज़िंदगी के अहवाल और महसूसात उनके अदबी कामों में नुमायां हैं। उनकी शायरी सिर्फ उनकी ज़ाती ज़िंदगी का आइना नहीं है, बल्कि पुरे उर्दू अदब की गहराई का इज़हार है।
इज्तिमाई असर और इज़्ज़त:
इकबाल अशहर की अदबी कामयाबी को बहुत सी इज़्ज़त और शोहरत मिली है। उनकी शायरी ने तहज़ीबी सरहदें पार करके लोगों के दिलों को छू लिया है। आज उन्हें उनकी अदबी खिदमतों की वजह से आज के दौर का एक बेहतरीन और कामयाब शायर माना जाता है।
इक़बाल अशहर की शायरी,ग़ज़लें,नज़्मे
1-ग़ज़ल
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
मुद्दतों ब'अद चला उन पे हमारा जादू
मुद्दतों ब'अद हमें बात बनानी आई
मुद्दतों ब'अद पशेमाँ हुआ दरिया हम से
मुद्दतों ब'अद हमें प्यास छुपानी आई
मुद्दतों ब'अद खुली वुसअत-ए-सहरा हम पर
मुद्दतों ब'अद हमें ख़ाक उड़ानी आई
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई
इतनी आसानी से मिलती नहीं फ़न की दौलत
ढल गई उम्र तो ग़ज़लों पे जवानी आई
2-ग़ज़ल
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
एक बादल से बड़ी आस लगा रक्खी है
तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊँ
इन चराग़ों ने मिरी नींद उड़ा रक्खी है
क्यूँ न आ जाए महकने का हुनर लफ़्ज़ों को
तेरी चिट्ठी जो किताबों में छुपा रक्खी है
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
तू ने ख़ुश्बू मिरे लहजे में बसा रक्खी है
ख़ुद को तन्हा न समझ लेना नए दीवानों
ख़ाक सहराओं की हम ने भी उड़ा रक्खी है
3-ग़ज़ल
कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की
क़दम न थे ज़मीं पे जब वो उम्र थी कमाल की
कई दिनों से फ़िक्र का उफ़ुक़ उदास उदास है
न जाने खो गई कहाँ धनक तिरे ख़याल की
रफ़ाक़तों के वो निशाँ न जाने खो गए कहाँ
वो ख़ुशबुओं की रहगुज़र वो रतजगों की पालकी
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
न इंतिहा ख़ुशी की है न इंतिहा मलाल की
वो रौशनी का ख़्वाब था मगर वही सराब था
उरूज में छुपी हुई थी इब्तिदा ज़वाल की
4-ग़ज़ल
रास्ता भूल गया एक सितारा अपना
चाँद ने बंद किया जब से दरीचा अपना
रोज़ आईना दिखाती है ज़माने भर को
ज़िंदगी देख ले तू भी कभी चेहरा अपना
अक्स तेरा कभी ओझल हो अगर मंज़र से
आईना ढूँढता रह जाए उजाला अपना
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना
ये सुलगता हुआ सहरा है निशानी उस की
रास्ता भूल गया था कोई दरिया अपना
5-नज़म
उर्दू है मिरा नाम मैं 'खुसरो ' की पहेली
मैं 'मीर' की हमराज़ हूँ 'ग़ालिब' की सहेली
दक्कन के 'वली' ने मुझे गोदी में खिलाया
'सौदा' के क़सीदों ने मेरा हुस्न बढ़ाया
है 'मीर' की अज़्मत कि मुझे चलना सिखाया
मैं दाग़ के आँगन में खिली बन के चमेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'खुसरो ' की पहेली
'ग़ालिब' ने बुलंदी का सफ़र मुझ को सिखाया
'हाली' ने मुरव्वत का सबक़ याद दिलाया
'इक़बाल' ने आईना-ए-हक़ मुझ को दिखाया
'मोमिन' ने सजाई मिरे ख़्वाबों की हवेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'खुसरो ' की पहेली
है 'ज़ौक़' की अज़्मत कि दिए मुझ को सहारे
'चकबस्त' की उल्फ़त ने मिरे ख़्वाब सँवारे
'फ़ानी' ने सजाए मिरी पलकों पे सितारे
'अकबर' ने रचाई मिरी बे-रंग हथेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'खुसरो ' की पहेली
क्यूँ मुझ को बनाते हो तअस्सुब का निशाना
मैं ने तो कभी ख़ुद को मुसलमाँ नहीं माना
देखा था कभी मैं ने भी ख़ुशियों का ज़माना
अपने ही वतन में हूँ मगर आज अकेली
उर्दू है मिरा नाम मैं 'खुसरो ' की पहेली
मशहूर शेर
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
इक आफ़्ताब के बे-वक़्त डूब जाने से केसी तरतीब से कागज़ पे गिरे हैं आंसू
एक भूली सी तस्वीर उभर आयी हे
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
वही बादल था मिरी प्यास बुझाने वाला
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
एक बादल से बड़ी आस लगा रक्खी है
Conclusion:-
इकबाल अशहर एक बेहतरीन और मयारी शायर हैं, जो अपनी शायरी से लोगों के दिलों को छू लेते हैं। उनकी ग़ज़लें और नज़्में ज़िंदगी के जज़्बात, मोहब्बत और दर्द को खूबसूरती से बयां करती हैं। इकबाल अशहर की शायरी ने उन्हें शायरी की दुनिया में एक खास मकाम पर पहुंचा दिया है। आज अदब की दुनिया
इक़बाल अशहर का नाम बड़े अदब-ओ- एहतराम से लिया जाता हे,दुनिया भर के मुशायरों में इक़बाल अशहर साहब को देखा जा सकता हे
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