जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज रखते हैं नर्म अपना:शबीना अदीब

 शबीना अदीब की पैदाइश 27 दिसंबर 1974 को उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक छोटे से गाँव 'मकनपुर' में हुआ थी  जो सांस्कृतिक लिहाज़ से बहुत दौलतमंद है।उनके वालिद (पिता) का नाम अज़ीज़ अहमद था और वालिदा (माता) का रब्बो बेगम था 



शबीना अदीब की शुरूआती ज़िंदगी 

  शबीना अदीब ने महज 15 साल की उम्र से ही शेर-ओ-शायरी का हुनर दिखाना शुरू कर दिया था। हालांकि, उनके माता-पिता उनकी शायरी के खिलाफ थे, लेकिन उनके दादा और नाना ने हमेशा उन्हें उर्दू अदब और शायरी के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और उनका हौसला बढ़ाया। साल 2007 में शबीना की पहली किताब 'तुम मेरे पास हो' प्रकाशित हुई। शबीना अदीब शायर हक बनारसी को अपना उस्ताद मानती हैं, और मिर्जा गालिब, हक बनारसी, मीर तकी मीर, जोश मलिहाबादी, और राहत इंदौरी जैसे शायरों के कलाम को बेहद पसंद करती हैं। शबीना अदीब आज की नौजवान पीढ़ी के बीच एक मशहूर शायरा हैं। वह अक्सर मुशायरों में हिस्सा लेती हैं, जहां युवा पीढ़ी उन्हें दिलचस्पी के साथ सुनती है।

तालीम (शिक्षा)

शबीना अदीब की औपचारिक तालीम उत्तर प्रदेश के पारंपरिक स्कूलिंग सिस्टम में हुई। उन्होंने अपनी इब्तिदाई तालीम बरेली में हासिल की और इसके बाद उन्होंने उर्दू मोअल्लिम की डिग्री हासिल की हे  हालाँकि उनके तालीमी मैदान के बारे में ज़्यादा तफसीलात मौजूद नहीं हैं, लेकिन ये बात यक़ीनी है कि उनकी तालीम ने उन्हें एक शायरा के तौर पर संवारने में एहम किरदार अदा किया।

अदबी (साहित्य)  सफ़र

शबीना अदीब की शायरी की दुनिया में दख़ल मुशायरों (कविता सभाओं) में शिरकत के साथ हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी अनूठी अंदाज़ और उनके अश'आर की जज़्बाती गहराई के कारण जल्दी ही शोहरत हासिल की। उनकी शायरी में इश्क़, ग़म, और इंसानी एहसासात की पेचीदगियों के मौज़ूआत खास तौर से दिखाई देते हैं, जो श्रोताओं के दिलों को छूते हैं।

अंदाज़-ए-बयाँ और मौज़ूआत

शबीना अदीब की शायरी सादगी और असर के लिहाज़ से बेहतरीन है, उनकी शायरी में जज़्बाती गहराई पाई जाती है। वो अक्सर इश्क़, ग़म, समाजी मसाइल, और औरतों के मसाइल पर लिखती हैं। उनके गहरे एहसासात को आसान और खूबसूरत ज़बान में बयान करने की सलाहियत ने उन्हें शायरी के दीवानों ने दिलों में एक ख़ास जगह दी है।

अहम तख्लीकात (प्रकाशित पुस्तके)

शबीना अदीब ने अपने ग़ज़ल और नज़्म के मजमुओं के ज़रिए उर्दू शायरी के मैदान में अहम किरदार अदा किया है। उनकी कुछ मशहूर तख्लीकात इस तरह हैं:

"दिल की बात": ग़ज़लों का एक मजमूआ, जो इश्क़ और दिल टूटने की पेचीदगियों को खूबसूरती से बयाँ करता है।

"आइना-ए-ग़ज़ल": इस किताब में उनके ग़ज़ल कहने के हुनर को बयान किया गया है, जिसमें इंसानी मनोविज्ञान की गहराईयों को उकेरा गया है।

"शबीना अदीब के ग़ज़ल": ये किताब उनकी सबसे मशहूर ग़ज़लों का मजमूआ है, जो उनके शायरी के हुनर का सबूत है।

एज़ाज़ और अवॉर्ड्स (पुरुस्कार व सम्मान)

शबीना अदीब के उर्दू शायरी में दिए गए योगदान को मुख्तलिफ़ प्लेटफॉर्म्स पर सराहा गया है। उन्हें अपने काम के लिए भारत और विदेशों में कई इनामात और एज़ाज़ात हासिल हुए हैं। आलमी मुशायरों में उनकी शिरकत ने उन्हें आलमी सतह पर भी पहचान दिलाई है, और वो मौजूदा दौर की उर्दू शायरी की सबसे क़ाबिल एहतिराम आवाज़ों में से एक बन गई हैं।

ज़ाती ज़िन्दगी

शबीना अदीब की शादी 11 जुलाई 1997 को मशहूर शायर जौहर कानपुरी से हुई। यह जानकारी उनके व्यक्तिगत और साहित्यिक जीवन के तालमेल को दर्शाती है।उनकी एक बेटी है, जिसका नाम तूबा जौहर है।हालाँकि शबीना अदीब ज़्यादातर अपनी शायरी के लिए जानी जाती हैं, लेकिन वो एक मख़लिस खानदानी औरत भी हैं। वो अपनी ज़ाती ज़िन्दगी और अदबी शौक़ को बेहतरीन अंदाज़ में सँभालती हैं, जो उनके पक्के इरादे और अज़्म का सबूत है। एक मर्द हावी मैदान में शायरा होने के बावजूद, उन्होंने एक ताक़तवर आवाज़ के तौर पर खुद को साबित किया है, और कई औरतों को अपने शौक़ की पैरवी करने के लिए प्रेरित किया है।

उर्दू शायरी में किरदार

शबीना अदीब का उर्दू शायरी पर गहरा असर है। उन्होंने अपने कामों से न सिर्फ़ अदबी रवायत को दौलतमंद किया है, बल्कि आने वाली नस्लों की ख़्वातीन  (महिला) शायराओं के लिए भी राह बनाई है। उनकी शायरी आज भी प्रेरणा का ज़रिया है और समाजी क़दरों को चैलेंज करती है।

विरासत

शबीना अदीब की विरासत सब्र, रचनात्मकता, और जुनून की है। उन्होंने उर्दू शायरी की दुनिया में एक अमिट निशान छोड़ा है, और उनकी शायरी आने वाले सालों तक शायरी के चाहने वालों के दिलों में ताज़ा रहेगी। लोगों के साथ गहरे जज़्बाती रिश्ते कायम करने की उनकी सलाहियत ये यक़ीनी बनाती है कि उनकी शायरी हमेशा मौजूदा और असरअंदाज़ रहेगी।

शबीना अदीब की शायरी,ग़ज़लें, नज़्मे 

1-ग़ज़ल 

ख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई-नई है,
अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है।

अभी न आएँगी नींद तुमको, अभी न हमको सुकूँ मिलेगा
अभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा, अभी मुहब्बत नई नई है।

बहार का आज पहला दिन है, चलो चमन में टहल के आएँ
फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है।

जो खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना,
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है।

ज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा के आके बैठे हो पहली सफ़ में
अभी क्यों उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है।

बमों की बरसात हो रही है, पुराने जांबाज़ सो रहे हैं
ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिसकी ताक़त नई नई है।


2-ग़ज़ल 


तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो
दिल दुखे जिससे अब ऐसी न कोई बात कहो

रोज़ी रोटी के लिए अपना वतन मत छोड़ो
जिसको सींचा है लहू से वो चमन मत छोड़ो

जाके परदेस में चाहत को तरस जाओगे
ऐसी बेलौस मोहब्बत को तरस जाओगे

फूल परदेस में चाहत का नहीं खिलता है
ईद के दिन भी गले कोई नहीं मिलता है

तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो
मैं कभी तुमसे करूंगी न कोई फरमाइश

ऐश ओ आराम की जागेगी न दिल में ख्वाहिश
फातिमा बीबी की बेटी हूँ भरोसा रखो

मैं तुम्हारे लिए जीती हूँ भरोसा रखो
लाख दुःख दर्द हों हंस-हंस के गुज़ार कर लूंगी

पेट पर बाँध के पत्थर भी बसर कर लूंगी
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो

तुम अगर जाओगे परदेस सजा कर सपना
और जब आओगे चमका के मुकद्दर अपना

मेरे चेहरे की चमक ख़ाक में मिल जायेगी
मेरी जुल्फों से ये खुशबू भी नहीं आएगी

हीरे और मोती पहन कर भी न सज पाऊँगी
सुर्ख जूड़े में भी बेवा सी नज़र आऊंगी

तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो
दर्दे फुरकत गम-ए-तन्हाई न सह पाउंगी

मैं अकेली किसी सूरत भी न रह पाऊंगी
मेरे दामन के लिए बाग़ में कांटे न चुनो

तुमने जाने की अगर ठान ली दिल में तो सुनो
अपने हाथों से मुझे ज़हर पिला कर जाना

मेरी मिट्टी को भी मिट्टी में मिलकर जाना
तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो


3-ग़ज़ल 


मेरे मसीहा मैं जी उठूंगी दुआएं दे दे दवा से पहले
हयात में नूर बनके आ जा ग़मों की काली घटा से पहले 

वो बेवफ़ा हो गया है फिर भी उसी की यादों में गुम रहूंगी 
ये कैसे भूलूं कि उसने मुझसे वफ़ा भी की है जफ़ा से पहले 

जो चाहते हैं मदद सभी से ज़लील होते हैं वो जहां में
नवाज़ती है उन्हीं को दुनिया जो मांगते हैं ख़ुदा से पहले 

वतन बचाने का वक़्त है ये मकां बचाने की फ़िक्र छोड़ो
मेरे भी हाथों में दे दो परचम मेरे बुज़ुर्गों हिना से पहले 

ख़ताएं मुझसे हुई हैं लेकिन मुझे यक़ीं है तू बख़्श देगा
मैं हश्र के दिन पुकार लूंगी तेरे करम को सज़ा से पहले 


4-ग़ज़ल 



तू किसी रास्ते का मुसाफ़िर रहे तेरी एक एक ठोकर उठा लाऊँगी 
अपनी बेचैन पलकों से चुन चुन के मैं तेरे रस्ते के पत्थर उठा लाऊँगी 

मैं वरक़ प्यार का मोड़ सकती नहीं ज़िंदगी मैं तुझे छोड़ सकती नहीं 
तू अगर मेरे घर तक नहीं आएगा मैं तिरे पास ही घर उठा लाऊँगी 

आंसुओं का ये मौसम चला जाएगा मेरे लब पर तबस्सुम भी आ जाएगा 
मुझ को दिल की ज़मीं से तुम आवाज़ दो आसमाँ अपने सर पे उठा लाऊँगी 

मेरे हर ख़्वाब की तू ही ता'बीर है तू ही मेरे ख़यालों की तस्वीर है 
तेरी आँखों से देखूँगी मैं ज़िंदगी तेरी पलकों से मंज़र उठा लाऊँगी 

ये ज़माना है सहरा-सिफ़त हम-नशीं चंद क़तरे भी इस से न मिल पाएँगे 
देख तू मुझ से कह कर किसी रोज़ तो तेरी ख़ातिर समुंदर उठा लाऊँगी 

तेरे माथे की इक इक शिकन की क़सम मैं अयादत को रस्मन नहीं आई हूँ 
मेरे बीमार तेरी दवा के लिए अपना इक एक ज़ेवर उठा लाऊँगी 


तब्सरा 

शबीना अदीब का शायरी का सफर एक नाजुक मगर तवील काव्यिक राह है, जिसमें तन्हाई के एहसास, मोहब्बत का जोश, और समाजी पेचिदगियों का अनोखा बयान मिलता है। उनकी शायरी में एक तरफ दिल के जज़्बातों की गहराई है, तो दूसरी तरफ हकीकत का तल्ख़ अंदाज़ भी झलकता है। उनके अश’आर में इश्क़ और जुदाई का ऐसा संगम है कि जैसे वो खुद अपनी शायरी के कैनवस पर दर्द और सुकून के रंग भर रही हों।

उनकी गज़लें, जैसे "तुम मुझे छोड़ के मत जाओ मेरे पास रहो" और "ख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें", में मुहब्बत का नर्म और पुरकैफ रंग उभरता है, जहां रिश्तों की बारीकियाँ और जज़्बाती पहलू बखूबी बयान हुए हैं। ये शेर महज अल्फ़ाज़ नहीं, बल्कि दिल के असीम एहसासात हैं, जो हर एक मोहब्बत करने वाले दिल के करीब महसूस होते हैं। उनके क़लाम में एक खामोश आवाज़ है जो सीधे दिल तक पहुँचती है, जैसे किसी ने दिल के सबसे गहरे गोशों को छू लिया हो।

शबीना की शायरी का तास्सुर बहुत बारीकी से बुना हुआ है। उनकी ग़ज़लों में समाजी पेचिदगियों, औरत के मसाइल, और इंसानी फितरत का बड़ा हसीन मगर तल्ख़ बयान मिलता है। एक क़तरे में समुंदर जैसा ये हुनर उनकी शायरी में हर शेर में झलकता है। उनके लहजे की सादगी और असर उनकी शायरी को हर एक शख्स के दिल में बसा देती है।

शबीना अदीब की शायरी की रवानी और तरन्नुम वाकई में काबिले-तारीफ है, जहाँ अल्फ़ाज़ मुहब्बत का पैगाम और एहसासात का एहतराम रखते हैं। उनका ये हुनर उन्हें एक खास मकाम पर खड़ा करता है, और उर्दू अदब में उनकी आवाज़ को न सिर्फ़ मान बल्कि एक अहम मुकाम देता है।ये भी पढ़ें

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