Anwar Jalalpuri Poet: पद्मश्री,यश भारती,माटी रतन,से सम्मानित, अनवर जालालपुरी की अदबी और तहज़ीबी विरासत

अनवर जलालपुरी: तार्रुफ़ (जीवन परिचय)

अनवर जलालपुरी (6 जुलाई 1947 – 2 जनवरी 2018) उर्दू अदब के एक माए-नाज़ शायर, मुतर्ज़िम(अनुवादक ) और दानिशवर(बुद्धिजीवी ) थे, जिनका ताल्लुक़ उत्तर प्रदेश के क़स्बे जलालपुर से था। उनकी शख़्सियत न सिर्फ़ उर्दू शायरी के मैदान में एक दरख़्शां(उज्ज्वल) सितारे की हैसियत रखती थी, बल्कि वो सांस्कृतिक हम-आहंगी और मज़हबी रवादारी की एक बुलंद मिसाल भी थे।

उनका सबसे नुमाया कारनामा “उर्दू शायरी में गीता” के नाम से भगवद गीता का संस्कृत से उर्दू में तर्जुमा (अनुवाद) है। यह अमल सिर्फ़ एक अदबी ख़िदमत नहीं, बल्कि एक फ़िक्री और तहज़ीबी पुल था जिसने मज़ाहिब और सक़ाफ़तों के दरमियान तफ़हीम (समझ ) व एहतिराम की नई राहें हमवार कीं। अनवर जलालपुरी ने अपने इल्म, फ़रासत और हुस्ने-बयान से ये साबित किया कि उर्दू ज़बान मोहब्बत, अमन और इंसानियत की ज़बान है।


इब्तिदाई ज़िंदगी और तालीम

अनवर जलालपुरी का पैदाइश 6 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के खुशनुमा क़स्बे जलालपुर में हुआ। इब्तिदाई तालीम उन्होंने आज़मगढ़ में हासिल की, जहाँ उन्होंने उर्दू और अरबी के साथ-साथ जदीद तालीम में भी गहरी दिलचस्पी ली। इस के बाद उनका रुख़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) की जानिब हुआ, जहाँ से उन्होंने आला तालीम हासिल की।

अलीगढ़ के अदबी माहौल ने उनके ज़ेहन और ज़ौक़ को नई रवानी बख़्शी, और यहीं से उन्होंने अदब और शायरी के मैदान में अपना सफ़र शुरू किया। अपनी ख़ास फ़िक्र, नफ़ासत और लहजे की बदौलत अनवर जलालपुरी ने बहुत जल्द उर्दू अदब में एक अहम और मुक़द्दस पहचान कायम कर ली।

अदबी कारनामा और तख़लीक़ी सफ़र

अनवर जलालपुरी की अदबी ज़िंदगी ग़ैरमामूली कारनामों से भरी हुई है, मगर उन तमाम में सबसे बुलंद और यादगार उनका भगवद गीता का उर्दू तरजुमा है। उन्होंने इस तर्जुमा को महज़ नज़्म की शक्ल नहीं दी, बल्कि उसे एक शेरी लहजे में ढाल कर ऐसा मानीख़ेज़ रूप दिया कि उर्दू-ज़बां बोलने वाला तबक़ा भी इसके हिकमत-ओ-दानाई भरे पैग़ाम को आसानी से समझ और महसूस कर सका। यह तर्जुमा उनके अदबी तसव्वुर, मज़हबी रवादारी और सक़ाफ़ती यकजहती की ज़िंदा मिसाल है। उन्होंने गीता को सिरफ़ एक मज़हबी किताब के तौर पर नहीं देखा, बल्कि उसे इंसानियत के लिए रहनुमाई का ज़रिया समझते हुए उर्दू ज़बान में पेश किया, ताकि हर शख़्स उसके पैग़ाम को अपने दिल में उतार सके।

उनका दूसरा अहम योगदान उनकी शायरी और ख़ुत्बों के ज़रिए उर्दू अदब में गंगा-जमुनी तहज़ीब और सक़ाफ़ती मेल-मिलाप का पैग़ाम आम करना था। उनके अशआर और नज़्में मज़हबी हम-आहंगी, इन्सानी बराबरी और समाजी यकजहती के ख़ूबसूरत तर्जुमान हैं — जो आज भी मोहब्बत और अमन का सबक़ देती हैं।

एहतराम और इज़्ज़त-अफ़ज़ाई

अनवर जलालपुरी को उनके अदबी और सक़ाफ़ती ख़िदमात के एतिराफ़ में मुतअद्दिद बुलंद इज़्ज़तें और एहम एवार्डात से नवाज़ा गया। उनके इंतिक़ाल के बाद उन्हें हिंदुस्तान की हुकूमत की जानिब से मुल्क़ का चौथा सबसे बड़ा सिविल अवार्ड “पद्मश्री” अता किया गया — जो उनकी फ़िक्र, इल्म और इंसानियतपरस्त अदब की बुलंदी का सबूत है।

इसके अलावा, उत्तर प्रदेश हुकूमत ने उन्हें सूबे के सबसे बड़े अदबी एवार्ड “यश भारती अवॉर्ड” से भी सरफ़राज़ किया। वहीं, शहीद शोध संस्थान ने उन्हें “माटी रतन सम्मान” अता करके उनकी ज़मीन से जुड़ी इंसानियत, मोहब्बत और तहज़ीब की ख़िदमतों को सलाम किया।

ये तमाम एज़ाज़ात अनवर जलालपुरी की उस रोशन विरासत का इतराफ़ हैं, जिसने उर्दू अदब को न सिर्फ़ बुलंदी अता की, बल्कि इंसानियत की रूह को भी नए मआनी दिए।

इंतिक़ाल और यादगार विरासत

2 जनवरी 2018 को अनवर जलालपुरी इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए। उनका इंतिक़ाल दिमाग़ी फ़ालिज़ (ब्रेन स्ट्रोक) के सबब हुआ। उनकी रुख़्सती ने न सिर्फ़ उर्दू अदब की दुनिया में गहरा सन्नाटा छोड़ दिया, बल्कि पूरे हिन्दुस्तानी अदबी और सक़ाफ़ती हल्क़ों में ग़म और अफ़सोस की लहर दौड़ा दी।

अनवर जलालपुरी की तख़लीक़ात, उनकी फ़िक्र, और इंसानियत की बुलंदी पर मबनी उनके ख़यालात हमेशा अदब की दुनिया में ज़िंदा रहेंगे। गीता का उर्दू तर्जुमा उनका वो अमर कारनामा है जिसे मज़हबी और तहज़ीबी मुक़ालमे का पुल कहा जा सकता है — एक ऐसा पुल जो लफ़्ज़ों, ज़बानों और दिलों को जोड़ता है।

उनका नाम हमेशा उस शायर के तौर पर याद किया जाएगा जिसने उर्दू अदब को मोहब्बत, रवादारी और इन्साफ़ की नई ज़बान बख़्शी।

अनवर जलालपुरी की शायरी ग़ज़लें

1-ग़ज़ल 

ज़ुल्फ़ को अब्र का टुकड़ा नहीं लिख्खा मैं ने

आज तक कोई क़सीदा नहीं लिख्खा मैं ने


जब मुख़ातब किया क़ातिल को तो क़ातिल लिख्खा

लखनवी बन के मसीहा नहीं लिख्खा मैं ने


मैं ने लिख्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरह

जिस्म को उस के अजंता नहीं लिख्खा मैं ने


कभी नक़्क़ाश बताया कभी मेमार कहा

दस्त-फ़नकार को कासा नहीं लिख्खा मैं ने


तू मिरे पास था या तेरी पुरानी यादें

कोई इक शेर भी तन्हा नहीं लिख्खा मैं ने


नींद टूटी कि ये ज़ालिम मुझे मिल जाती है

ज़िंदगी को कभी सपना नहीं लिख्खा मैं ने


मेरा हर शेर हक़ीक़त की है ज़िंदा तस्वीर

अपने अशआर में क़िस्सा नहीं लिख्खा मैं ने


2-ग़ज़ल 

शादाब ओ शगुफ़्ता कोई गुलशन न मिलेगा

दिल ख़ुश्क रहा तो कहीं सावन न मिलेगा


तुम प्यार की सौग़ात लिए घर से तो निकलो

रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा


अब गुज़री हुई उम्र को आवाज़ न देना

अब धूल में लिपटा हुआ बचपन न मिलेगा


सोते हैं बहुत चैन से वो जिन के घरों में

मिट्टी के अलावा कोई बर्तन न मिलेगा


अब नाम नहीं काम का क़ाएल है ज़माना

अब नाम किसी शख़्स का रावन न मिलेगा


चाहो तो मिरी आँखों को आईना बना लो

देखो तुम्हें ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा


3-ग़ज़ल 

मैं हर बे जान हर्फ़  ओ लफ़्ज़ को गोया बनाता हूँ

कि अपने फ़न से पत्थर को भी आईना बनाता हूँ


मैं इंसाँ हूँ मिरा रिश्ता 'ब्राहीम' और 'आज़र' से

कभी मंदिर कलीसा और कभी काबा बनाता हूँ


मिरी फ़ितरत किसी का भी तआवुन ले नहीं सकती

इमारत अपने ग़म-ख़ाने की मैं तन्हा बनाता हूँ


न जाने क्यूँ अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है

मैं काग़ज़ हाथ में लेकर फ़क़त चेहरा बनाता हूँ


मिरी ख़्वाहिश का कोई घर ख़ुदा मालूम कब होगा

अभी तो ज़ेहन के पर्दे पे बस नक़्शा बनाता हूँ


मैं अपने साथ रखता हूँ सदा अख़्लाक़ का पारस

इसी पत्थर से मिट्टी छू के मैं सोना बनाता हूँ


मैं हर बे जान हर्फ़  ओ लफ़्ज़ को गोया बनाता हूँ

कि अपने फ़न से पत्थर को भी आईना बनाता हूँ


मैं इंसाँ हूँ मिरा रिश्ता 'ब्राहीम' और 'आज़र' से

कभी मंदिर कलीसा और कभी काबा बनाता हूँ


मिरी फ़ितरत किसी का भी तआवुन ले नहीं सकती

इमारत अपने ग़म ख़ाने की मैं तन्हा बनाता हूँ


न जाने क्यूँ अधूरी ही मुझे तस्वीर जचती है

मैं काग़ज़ हाथ में लेकर फ़क़त चेहरा बनाता हूँ


मिरी ख़्वाहिश का कोई घर ख़ुदा मालूम कब होगा

अभी तो ज़ेहन के पर्दे पे बस नक़्शा बनाता हूँ


मैं अपने साथ रखता हूँ सदा अख़्लाक़ का पारस

इसी पत्थर से मिट्टी छू के मैं सोना बनाता हूँ



4-ग़ज़ल 


पराया कौन है और कौन अपना सब भुला देंगे

मता ए ज़िंदगानी एक दिन हम भी लुटा देंगे


तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ

कि आगे वाले तो हरगिज़ न तुम को रास्ता देंगे


जलाए हैं दिए तो फिर हवाओं पर नज़र रक्खो

ये झोंके एक पल में सब चराग़ों को बुझा देंगे


कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है

ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे


गिला शिकवा हसद कीना के तोहफ़े मेरी क़िस्मत हैं

मिरे अहबाब अब इस से ज़ियादा और क्या देंगे


मुसलसल धूप में चलना चराग़ों की तरह जलना

ये हंगामे तो मुझ को वक़्त से पहले थका देंगे


अगर तुम आसमाँ पर जा रहे हो शौक़ से जाओ

मिरे नक़्श ए क़दम आगे की मंज़िल का पता देंगे

तब्सरा:-

अनवर जलालपुरी उर्दू अदब के उस माए-नाज़ शायर और दानीशवर थे जिनका हर अल्फ़ाज़ अपनी नफ़ासत और फ़न की गहराई से रोशन था। उनकी शख़्सियत सिर्फ़ एक उर्दू शायर के तौर पर ही नहीं, बल्कि तहज़ीब, फ़िक़्र और इंसानियत की बुलंद मिसाल के तौर पर भी हज़ारों दिलों में बसती थी। उनके अल्फ़ाज़ में मोहब्बत, अमन और रवादारी की ऐसी मिठास थी जो सुनने वाले के दिल को छू जाती और फिक़्री तासीर छोड़ जाती।

उनका सबसे नुमाया कारनामा “उर्दू शायरी में गीता” का तर्जुमा है, जिसमें उन्होंने भगवद गीता के महा संदेश को उर्दू शायरी के रंग में ढाल कर पेश किया। यह तर्जुमा सिर्फ़ एक फ़नकारी नहीं, बल्कि इंसानियत और तहज़ीब का पुल है जिसने मज़ाहबों और सक़ाफ़तों के बीच समझ और एहतराम की नई राहें खोलीं। उनके शब्दों की क़ुव्वत और उनके अंदाज़ की नज़ाकत ने साबित कर दिया कि उर्दू केवल मोहब्बत और इन्साफ़ की ज़बान है।

उनकी इब्तिदाई तालीम आज़मगढ़ में हुई, और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अदबी माहौल ने उनके ज़ेहन को नई रवानी और शायरी को नयी उड़ान दी। यहीं से उनकी शख़्सियत ने वह मुक़ाम पाया जहाँ उनका फ़न और फ़िक्र दोनों एक साथ खिल उठे। उनका लहज़ा, उनकी नज़ाकत, और उनका फ़िक़्री अंदाज़ मशायरे की महफ़िलों में हमेशा एक ख़ास रौनक़ लाता रहा।

उनकी अदबी ज़िंदगी की सबसे बुलंद मिसाल उनका गीता का तर्जुमा है, जिसे उन्होंने नज़्म के शेरी अंदाज़ में पेश किया ताकि हर उर्दू बोलने वाला इसके हिकमत-ओ-दानाई भरे पैग़ाम को आसानी से महसूस कर सके। इसके अलावा उनकी शायरी और ख़ुत्बे गंगा-जमुनी तहज़ीब, मज़हबी हम-आहंगी और इंसानी बराबरी का खूबसूरत तर्जुमा हैं। उनके अशआर और नज़्में आज भी अमन, मोहब्बत और इंसानियत का सबक़ देती हैं।

अनवर जलालपुरी को उनकी अदबी और तहज़ीबी ख़िदमतों के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से, उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती से, और शहीद शोध संस्थान ने माटी रतन सम्मान से नवाज़ा। ये तमाम एज़ाज़ात उनकी फ़िक्र, इल्म और इंसानियतपरस्त अदब की बुलंदी का प्रमाण हैं।

उनको अक्सर मशायरे की नज़ामत का शर्फ हासिल होता रहा। उनके अल्फ़ाज़ की ख़ूबसूरती और लहज़े की शान ने हर महफ़िल को रोशन कर दिया। उनकी मौजूदगी में मशायरा एक अमर यादगार बन जाता और हर शायर और समाईन (श्रोतागण) उनके अंदाज़ और फ़न के कायल हो जाते। अनवर जलालपुरी की निज़ामत को मशायरे की कामयाबी की ज़मानत माना जाता था।

2 जनवरी 2018 को उनका इंतिक़ाल हुआ, लेकिन उनकी तख़लीक़ात, उनकी फ़िक्र और उनके अल्फ़ाज़ हमेशा उर्दू अदब में ज़िंदा रहेंगे। उनका नाम हमेशा उस शायर के तौर पर याद किया जाएगा जिसने उर्दू अदब को मोहब्बत, रवादारी और इंसानियत की नई ज़बान दी।ये भी पढ़ें 

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