खामोश ग़ाज़ीपुरी:एक जज़्बाती शायर की जीवनी

पूरा नाम: मुज्‍जफर हुसैन

उपनाम: खामोश गाजीपुरी

जन्म: 20 जुलाई 1932

जन्मस्थान: मुहल्ला सट्टी मस्जिद, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

निधन: 1981 (49 वर्ष की आयु में)


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

खामोश गाजीपुरी, जिनका असली नाम मुज्‍जफर हुसैन था, का जन्म 20 जुलाई 1932 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सट्टी मस्जिद इलाके में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्मे खामोश बचपन से ही गंभीर और संवेदनशील स्वभाव के थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मदरसा चश्माये रहमत में हुई, जहाँ से उन्होंने अपना शैक्षणिक सफर शुरू किया। बाद में वह इसी मदरसे में प्राइमरी सेक्शन में शिक्षक बन गए। यहीं से उन्होंने जीवन के प्रति अपनी गहरी समझ और संवेदनशीलता को शायरी के माध्यम से अभिव्यक्त करना शुरू किया।

साहित्यिक सफर और पहचान

खामोश गाजीपुरी के शायरी का सफर उस दौर के प्रमुख शायरों के साथ शुरू हुआ, जब साहित्य में साहिर लुधियानवी, शकील बदायूंनी, फैज़ अहमद फैज़, कैफी आज़मी और मजरूह सुल्तानपुरी जैसे महान शायर अपनी पहचान बना रहे थे। खामोश ने अपनी शायरी के जरिए सामाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं को बेहद सजीव और संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया। उनकी शायरी में प्रेम, दर्द, और समाज के प्रति विरोध की भावना गहराई से झलकती थी।

कुछ साहित्यकारों का मानना है कि खामोश गाजीपुरी की शायरी राही मासूम रजा जैसे मशहूर शायरों से भी बेहतर थी। खामोश गाजीपुरी की गज़लें और नज़्में न सिर्फ साहित्य प्रेमियों के दिलों में जगह बना पाईं, बल्कि उन्होंने श्रोताओं को भी प्रभावित किया।

विवाद और संघर्षपूर्ण जीवन

खामोश गाजीपुरी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उनकी शराब की लत और अन्य व्यक्तिगत समस्याओं के कारण उन्हें समाज और व्यक्तिगत जीवन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब मदरसा चश्माये रहमत, जहाँ वह शिक्षक थे, ने उन्हें आदर्श शिक्षक न होने के कारण नौकरी से निकाल दिया। इसके बावजूद, उन्होंने शायरी में अपनी पहचान बनाई, और उसी मदरसे में उनके सम्मान में मुशायरों का आयोजन किया जाने लगा।

एक अन्य विवाद 1951 में दिल्ली की मशहूर पत्रिका 'शमा' में छपी उनकी गज़ल से जुड़ा है। यह गज़ल फिल्म "मुगल-ए-आज़म" के एक गीत में बिना किसी क्रेडिट के इस्तेमाल की गई थी। उस गज़ल के बोल थे:

"हमें काश तुमसे मुहब्बत न होती

कहानी हमारी हकीकत न होती..."

शकील बदायूंनी, जो फिल्म के गीतकार थे, ने इस गज़ल का उपयोग किया। खामोश के मित्रों ने शकील को नोटिस भेजा, हालांकि खामोश खुद इसके खिलाफ थे। अंततः, शकील ने खामोश को माफीनामा और 3500 रुपये भेजे, जो दोनों की दोस्ती का प्रतीक था।

व्यक्तिगत जीवन और निधन

खामोश गाजीपुरी का व्यक्तिगत जीवन शराब की लत और कई कठिनाइयों से घिरा रहा। अपनी संवेदनशील प्रवृत्ति और निजी संघर्षों के चलते उन्होंने शराब का सहारा लिया, जो उनकी असमय मौत का कारण बनी। अत्यधिक शराब के सेवन से मात्र 49 वर्ष की उम्र में 1981 में उनका निधन हो गया। यह साहित्य जगत के लिए एक बड़ी क्षति थी, क्योंकि खामोश जैसे संवेदनशील और सजीव शायर का जाना साहित्यिक दुनिया के लिए एक अपूरणीय नुकसान था।

खामोश ग़ाज़ीपुरी की शायरी ग़ज़लें,नज़्मे 


1-ग़ज़ल 

उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं

हर शब ए ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं


चश्म ए साक़ी से पियो या लब ए साग़र से पियो

बे-ख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं


नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है

उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं


शैख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सज्दे

उस के सज्दों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं


सब की नज़रों में हो साक़ी ये ज़रूरी है मगर

सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं


मय कशी के लिए ख़ामोश भरी महफ़िल में

सिर्फ़ ख़य्याम का घर हो ये ज़रूरी तो नहीं


2-ग़ज़ल 


हमें काश तुमसे मुहब्बत न होती
कहानी हमारी हकीकत न होती

न दिल तुम को देते न मजबूर होते
न दुनिया न दुनिया के दस्तूर होते

कयामत से पहले कयामत न होती

हमीं बढ़ गए इश्क़ में हद से आगे
ज़माने ने ठोकर लगाई तो जागे

अगर मर भी जाते तो हैरत न होती

तुम्हीं फूंक देते नशेमन हमारा
मुहब्बत पे अहसान होता तुम्हारा

जमाने से कोइ शिकायत न होती

निष्कर्ष

खामोश गाजीपुरी एक ऐसे शायर थे, जिनकी शायरी ने प्रेम, समाज और जीवन के संघर्षों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया। उनकी शायरी ने न सिर्फ उनके समय के श्रोताओं और पाठकों को प्रभावित किया, बल्कि आज भी उनकी रचनाएँ साहित्य प्रेमियों के दिलों में बसी हैं। उनके जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों ने उनकी शायरी को और भी मार्मिक और गहन बनाया। हालाँकि, उनका जीवन व्यक्तिगत समस्याओं और शराब की लत के कारण बाधित हुआ, फिर भी उनका साहित्यिक योगदान अविस्मरणीय है।


खामोश गाजीपुरी की शायरी में प्रेम, दर्द और समाज के प्रति उनकी भावना सजीव रूप में देखी जा सकती है। उनके द्वारा छोड़ी गई साहित्यिक धरोहर उन्हें हिंदी-उर्दू साहित्य के अमर शायरों में से एक बनाती है। उनके जीवन और साहित्य से हम यह सीख सकते हैं कि संघर्षों और कठिनाइयों के बीच भी, सृजनशीलता और संवेदनशीलता के साथ समाज को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया जा सकता है।ये भी पढ़ें 

Note-खामोश ग़ाज़ीपुरी साहब के बारे में हमे ज़्यादा मालूमात अभी फ़राहम नहीं हो सकी हे 

हम अभी रिसर्च कर रहे हैं जैसे जैसे ज़्यादा मालूमात मिलती रहेगी हम इस बायोग्राफी में 

जोड़ते रहेंगे 

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