Sardar Anjum Poet: की शख़्सियत और तख़लीक़ात का जायज़ा,पद्म भूषण से ‘मिलेनियम पीस अवार्ड तक

जीवन परिचय  

सरदार अंजुम (1941 – 10 जुलाई 2015) का नाम उर्दू अदब की दुनिया में एक बेमिसाल शायर, फ़लसफ़ी और फ़िक्रो-अंदेश शख़्सियत के तौर पर लिया जाता है। उन्होंने अपनी ख़ूबसूरत तख़लीक़ात और गहरी फ़िक्र के ज़रिए उर्दू अदब में एक नई रहगुज़र पैदा की। सरदार अंजुम ने अपनी कलम से ऐसे लफ़्ज़ तराशे जो दिलों को छू लेने वाले और इंसानियत के पैग़मबर साबित हुए।
उन्होंने पच्चीस से ज़्यादा किताबें तहरीर कीं और उनकी कई ऑडियो कैसेट्स व रिकॉर्ड्स भी जारी हुए जो उनकी शायरी के अनमोल ख़ज़ाने का हिस्सा हैं।
आप पंजाब यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के सरबराह रहे और पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के चांसलर के नामज़द अरकान में भी शामिल थे।
अपनी फ़िल्म "कर्ज़दार" के ज़रिए उन्होंने हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरमियान अमन व मोहब्बत का पुल क़ायम करने की कोशिश की।
सरदार अंजुम का इंतेक़ाल 10 जुलाई 2015 को पंचकुला (हरियाणा) में हुआ — मगर उनकी शायरी आज भी दिलों में मोहब्बत, अमन और इंसानियत की रौशनी बिखेर रही है।


फन-ओ-सक़ाफ़त के सच्चे हमदर्द ( कला और संस्कृति के सच्चे हितेषी )

डॉ. सरदार अंजुम ने अपनी कलम और शायरी के ज़रिए फनकारों के हुक़ूक़ की हिमायत की। उन्होंने हुकूमत से बार-बार फ़नकारों के लिए मदद और तहफ़्फ़ुज़ की मांग की। उनके नज़दीक, फनकार समाज की बुनियाद होते हैं, जो अवाम को उम्मीद और हौसला देते हैं। एक बार उन्होंने कहा था, "जहां हुकूमतें नाकाम होती हैं, वहां फनकार अवाम की मदद के लिए आगे आते हैं। अगर उनके लिए कोई खड़ा नहीं होगा, तो वो कैसे ज़िंदा रहेंगे?"
उन्होंने फनकारों के हक़ में अपनी वफादारी दिखाते हुए ‘शिरोमणि उर्दू साहित्यकार पुरस्कार’, जिसमें 2.5 लाख रुपये की इनाम राशि थी, यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि यह रकम दूसरे शायरों के भले के लिए इस्तेमाल की जाए। अंजुम साहब ने यह भी सुझाव दिया था कि हुकूमत ऐसी स्कीम बनाए जिसमें 70 साल से ज़्यादा उम्र के शायरों को मेडिकल इंश्योरेंस मिले। उन्होंने कहा था, "यह वक्त की मांग है।

इनआमात और एज़ाज़ात ( पुरुस्कार और सम्मान )

पद्म भूषण (2005): सरदार अंजुम को अदब और तालीम के मैदान में बेहतरीन योगदान के लिए मुल्क के तीसरे सबसे बड़े सिविलियन इनाम 'पद्म भूषण' से नवाज़ा गया।

पद्म श्री (1991): उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े सिविलियन इनाम 'पद्म श्री' से भी नवाज़ा गया।

मिलेनियम पीस अवार्ड (2000): न्यूयॉर्क की "इंटरनेशनल पीस फाउंडेशन" ने उन्हें 'मिलेनियम पीस अवार्ड' दिया, जिसे अमेरिका की साबिक़ा फ़र्स्ट लेडी हिलेरी क्लिंटन ने पेश किया था। यह इनाम उन्हें ग्लोबल अंडरस्टैंडिंग और इंसानियत की खिदमत के लिए दिया गया।

पंजाब रत्न (2001): पंजाब के गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल जे.एफ.आर. जैकब (रिटायर्ड) ने 23 सितंबर 2001 को उन्हें ज़िंदगी और अदब में उनके योगदान के लिए 'पंजाब रत्न' से सरफ़राज़ किया।

अदबी इनआमात: उन्होंने अपनी अदबी खिदमात और फ़ालियतों के लिए 19 सूबाई सतह के इनआमात हासिल किए।

एंबेसडर ऑफ पीस अवार्ड (2002): छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी ने 28 सितंबर 2002 को उन्हें 'एंबेसडर ऑफ पीस अवार्ड' से नवाज़ा।

वफ़ात (निधन )

डॉ. सरदार अंजुम का इंतक़ाल 73 साल की उम्र में हुआ। वो एक महीने से ज़्यादा मोहाली के एक प्राइवेट अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। ब्रेन स्ट्रोक की वजह से उन्हें अस्पताल में नाज़ुक हालत में दाखिल किया गया था, जहां उनकी सर्जरी हुई। सर्जरी के बाद वो वेंटिलेटर पर थे और तकरीबन 160 घंटों तक कोमा में रहे। आख़िरकार 5 अक्टूबर, शाम 5:45 बजे दिल की धड़कन रुकने की वजह से उनका इंतक़ाल हो गया।

डॉ सरदार अंजुम साहब की शायरी,ग़ज़लें,नज़्में 

1-ग़ज़ल 

जब कभी तेरा नाम लेते हैं

दिल से हम इंतिक़ाम लेते हैं


मेरी बर्बादियों के अफ़्साने

मेरे यारों का नाम लेते हैं


बस यही एक जुर्म है अपना

हम मोहब्बत से काम लेते हैं


हर क़दम पर गिरे हैं पर सीखा

कैसे गिरतों को थाम लेते हैं


हम भटक कर जुनूँ की राहों में

अक़्ल से इंतिक़ाम लेते हैं


2-ग़ज़ल 


हम सफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
राह चलते लोग क्या समझें मिरी मजबूरियाँ

मुस्कुराते ख़्वाब चुनती गुनगुनाती ये नज़र
किस तरह समझें मिरी क़िस्मत की ना मंज़ूरियाँ

हादसों की भीड़ है चलता हुआ ये कारवाँ
ज़िंदगी का नाम है लाचारियाँ मजबूरियाँ

फिर किसी ने आज छेड़ा ज़िक्र-ए-मंज़िल इस तरह
दिल के दामन से लिपटने आ गई हैं दूरियाँ


3-ग़ज़ल 


चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
न तुम याद आओ न हम याद आएँ

सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
किसे याद रक्खें किसे भूल जाएँ

उन्हें क्या ख़बर आने वाला न आया
बरसती रहीं रात भर ये घटाएँ


4-ग़ज़ल 

ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
चले भी आओ कि दुनिया से जा रहा है कोई

कहो अजल से ज़रा दो घड़ी ठहर जाए
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई

वो आज लिपटे हैं किस नाज़ुकी से लाशे से
कि जैसे रूठे हुओं को मना रहा है कोई

कहीं पलट के न आ जाए साँस नब्ज़ों में
हसीन हाथों से मय्यत सजा रहा है कोई


4-ग़ज़ल 


है तिरा इंतिज़ार गुलशन में
रो रही है बहार गुलशन में

आज फिर दामन-ए-उमीद मिरा
हो गया तार तार गुलशन में

पत्तियाँ कब बिखेर दें झोंके
किस को है ए'तिबार गुलशन में

किस क़दर सख़्त-जान था 'अंजुम'
जो रहा सोगवार गुलशन में

तब्सरा 

सरदार अंजुम की शख़्सियत और उनके अदबी सफर पर लिखा गया ये मज़मून एक बेहतरीन और पुरकशिश अंदाज़ में पेश किया गया है। यह न सिर्फ़ उनके अदबी कारनामों को बयाँ करता है, बल्कि उनकी शायरी, समाजी सरगर्मियों और इंसानियत की खिदमत में दिए गए उनके बेमिसाल योगदान को भी रोशनी में लाता है। इस आर्टिकल ने उनकी ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ पहलुओं को ख़ूबसूरती से उकेरा है, चाहे वह उनका शायराना अंदाज़ हो या फिर फनकारों के हुक़ूक़ के लिए उनका जद्दोजहद भरा मुआमला।
अंजुम साहब की फन-ओ-सक़ाफ़त के लिए जो मोहब्बत थी, वह हर लफ़्ज़ में झलकती है। उन्होंने जिस तरह से फनकारों के लिए जद्दोजहद की और अपनी तक़रीरों में समाजी और सियासी मसाइल पर आवाज़ उठाई, उससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि वह न सिर्फ़ एक शायर थे, बल्कि एक समाजी मुफक्किर और रहनुमा भी थे। उनका फनकारों के हुक़ूक़ के लिए ‘शिरोमणि उर्दू साहित्यकार पुरस्कार’ को ठुकराना उनकी सच्ची फनकाराना और इंसानी जज़्बे की मिसाल है।
आर्टिकल में दिए गए इनआमात और एज़ाज़ात के तज़करा ने अंजुम साहब की मक़बूलियत और उनके अदबी मक़ाम को और ज़्यादा वज़ाहत के साथ पेश किया है। उनकी फिल्मों से लेकर उनकी शायरी और समाजी खिदमात का ज़िक्र उनके एक कामिल फनकार और दानिशवर होने का सबूत है।
उनकी वफ़ात के वाक़ियात का बयान करते वक़्त, मज़मून ने एक भावुक लहजा अपनाया है, जो पढ़ने वालों के दिलों को छू जाता है। सरदार अंजुम की ज़िंदगी के आख़िरी लम्हात का यह तफ़्सीली बयान उनकी मेहनत और जद्दोजहद की कहानी को और भी ज़्यादा असरदार बना देता है।
मजमून के हर हिस्से में अंजुम साहब की शख़्सियत के मुख़्तलिफ़ रंगों को उभरते हुए देखने का मौक़ा मिलता है, जो किसी भी शख़्स को उनके क़रीब लाने और उनकी शायरी और फन को समझने में मदद करता है।ये भी पढ़ें 

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