अमीर खुसरो: भारतीय संस्कृति का सूफियाना रंग

अमीर खुसरो, जिनका असली नाम अबुल हसन यमीन उद्दीन खुसरो था, भारतीय उपमहाद्वीप के मशहूर सूफी शायर, संगीतकार, और फ़ारसी व हिंदवी ज़बान के माहिर थे। खुसरो का तअल्लुक न सिर्फ़ साहित्य और शायरी से था, बल्कि उन्होंने संगीत और सांस्कृतिक धरोहर को भी नया रूप दिया। उनके कलाम में इश्क़, रूहानियत, और इंसानियत का गहरा असर देखने को मिलता है, जो हर दौर में लोगों के दिलों को छूता है।


बचपन और तालीम (शुरुआती ज़िंदगी और शिक्षा)

अमीर खुसरो का जन्म 1253 में उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के पटियाली गाँव में हुआ था। उनके वालिद, अमीर सैफ उद्दीन महमूद, एक तुर्क नस्ल के अफसर थे, जबकि उनकी वालिदा हिंदुस्तानी थीं। खुसरो की परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई जहाँ इबादत और इल्म की कद्र थी। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में फ़ारसी और अरबी ज़बान सीख ली और फिर हिंदवी में भी महारत हासिल की। उनके वालिद ने उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई, और खुसरो ने अपनी काबिलियत से जल्द ही अदब की दुनिया में नाम कमाया।

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के साथ रूहानी रिश्ता

अमीर खुसरो की जिंदगी में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का बहुत अहम किरदार था। खुसरो ने औलिया की खिदमत में अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और उनके तअल्लुक से ही सूफी सिलसिले से जुड़े। निज़ामुद्दीन औलिया के साथ उनका रूहानी रिश्ता इस क़दर गहरा था कि उन्होंने अपनी कई शायरी में अपने पीर की मोहब्बत और उनकी तालीमात का जिक्र किया है। उनके कलाम में औलिया के सूफियाना अंदाज़ और तालीमात की झलक मिलती है।

अदबी कारनामे (साहित्यिक योगदान)

खुसरो की अदबी सेवाएं फ़ारसी और हिंदवी दोनों ज़बानों में अनमोल हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में मतला-उल-अनवार, खुसरो-शिरीं, लैला-मजनूं, अय्याना-ए-इसकंदरी, और हश्त-बहिश्त शामिल हैं। इन मसनवियों में रूहानियत, इश्क़, और इंसानी जज्बात की भरपूर अक्कासी की गई है। खुसरो ने अपनी ग़ज़लों और रुबाइयों में भी इश्क़-ओ-मोहब्बत और रूहानी अलफ़ाज़ का इस्तमाल किया है। उनके तखल्लुस (उपनाम) "खुसरो" का जिक्र अक्सर उनकी शायरी में मिलता है, जिससे उनके कलाम में एक अजीब सी रूहानियत आ जाती है।

हिंदवी शायरी और सांस्कृतिक असर

अमीर खुसरो ने फ़ारसी के साथ-साथ हिंदवी में भी अपनी शायरी की। उन्होंने आम हिंदुस्तानी अवाम तक अपनी बात पहुँचाने के लिए हिंदवी ज़बान का सहारा लिया और इस ज़बान को साहित्य में एक नई पहचान दी। उनकी हिंदवी शायरी में भारतीय तहज़ीब और रंग देखने को मिलता है। उनका मशहूर दोहा – "खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग, तन मेरा मन पीऊ का, दोऊ भए एक रंग" – उनकी अनूठी लेखनी का बेहतरीन उदाहरण है।

क़व्वाली और सूफियाना कलाम के बानी

अमीर खुसरो को भारतीय उपमहाद्वीप में क़व्वाली का जनक माना जाता है। उन्होंने सूफियाना शायरी को एक नई दिशा दी और क़व्वाली के ज़रिये रूहानियत की नई दुनिया का इजाद किया। उनकी क़व्वाली, जिसमें दिल को छू लेने वाली बातें और मोहब्बत की तासीर है, आज भी दरगाहों और सूफियाना महफिलों में पढ़ी जाती है।

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संगीत में बेहतरीन योगदान

खुसरो की सेवाएं सिर्फ़ अदब तक महदूद नहीं थीं, उन्होंने भारतीय संगीत में भी बेहतरीन इजाद किए। उन्होंने सितार नाम के साज़ को इजाद किया, जिसे बाद में हिंदुस्तानी संगीत का अहम हिस्सा बना। उनके तर्जुमानी और आविष्कारों ने भारतीय संगीत को एक नई पहचान दी। इसके अलावा, उन्होंने "तराना" नाम की शैली भी बनाई, जो आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक खास हिस्सा है।

मसनवी और पांच किताबें

अमीर खुसरो की पांच मसनवी, जिन्हें 'ख़म्सा-ए-खुसरो' कहा जाता है, उनकी अदबी महानता का शाहकार मानी जाती हैं। इन मसनवी में इश्क़ और रूहानियत की गहराई देखने को मिलती है। इनमें उनकी कल्पनाशक्ति और अदब का अनमोल खजाना छिपा हुआ है। इन रचनाओं में हिंदुस्तानी तहज़ीब और रूहानियत की झलक है, जिसने बाद में कई सूफी कवियों और शायरों को प्रेरित किया।

सामाजिक और सांस्कृतिक असर

अमीर खुसरो की शायरी और उनके कलाम ने उस वक्त की हिंदुस्तानी तहज़ीब को एक नई रोशनी दी। उनकी शायरी में एकता, मोहब्बत, और इंसानियत का पैग़ाम है। उन्होंने फ़ारसी और हिंदवी को मिलाकर ऐसी रचनाएँ कीं, जो हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेहतरीन उदाहरण हैं। उनका लिखा हुआ आज भी हिंदुस्तानी अदब का हिस्सा है और हर सूफियाना महफिल में उनकी शायरी गूँजती है।

देहांत और रूहानी मिलन

अमीर खुसरो का देहांत 1325 में हुआ, और छह महीने बाद ही उनके पीर हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया भी इस दुनिया से रुख़सत हो गए। उनकी आखिरी ख्वाहिश थी कि उन्हें अपने पीर के पास दफनाया जाए। उनकी दरगाह आज भी दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास स्थित है, जहाँ लाखों लोग उनकी शायरी और उनके रूहानी योगदान को खिराज-ए-अक़ीदत पेश करने आते हैं।

विरासत

अमीर खुसरो का अदबी और सांस्कृतिक योगदान बेहतरीन है। उनकी शायरी में इश्क़, रूहानियत और इंसानियत की बातों का समावेश है, जो हर दौर में एक ताजगी और नयापन लाती हैं। उनकी संगीत में इजाद और क़व्वाली में उनकी तखलीक़त आज भी सूफियाना महफिलों में जिंदा है। उनकी याद में हर साल कई जलसे और मुशायरे होते हैं, जहाँ उनके कलाम को पढ़ा और सराहा जाता है। 

आमिर खुसरो की शायरी,ग़ज़लें,गीत,दोहे,मनक़बत

1-गीत 

जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर, 

ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाय कर। 


जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया, 

हक़्क़ा इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर। 


तूँ तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है, 

तुझ दोस्ती बिसियार है, एक शब मिलो तुम आय कर। 


जाना तलब तेरी करूँ, दीगर तलब किसकी करूँ, 

तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर। 


मेरो जो मन तुम ने लिया, तुम उठा ग़म को दिया, 

तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर। 


ख़ुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब, 

क़ुदरत ख़ुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर। 

2-गीत 

छाप-तिलक तज दीन्हीं रे तोसे नैना मिला के। 

प्रेम बटी का मदवा पिला के, 

मतवारी कर दीन्ही रे मों से नैना मिला के। 

ख़ुसरो निज़ाम पै बलि-बलि जइए, 

मोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैना मिला के॥ 

3-गीत 

बहुत कठिन है डगर पनघट की 

कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी 

पनिया भरन को मैं जो गई थी 

दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी 

बहुत कठिन है डगर पनघट की 

'ख़ुसरव' निज़ाम के बल-बल जइए 

लाज रखो मेरे घूँघट पट की 

कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी 

बहुत कठिन है डगर पनघट की 

4-गीत 

घर नारी गँवारी चाहे जो कहे 

मैं निजाम से नैनाँ लगा आई रे 

सोहनी सूरत मोहिनि मूरत 

मैं तो हिरदै बिच समा आई रे 

'ख़ुसरव' 'निजाम' के बल-बल जइए 

मैं तो अनमोल चेरी कहा आई रे 

5-गीत 

सकल बन फूल रही सरसों 

बन बन फूल रही सरसों 

अम्बवा फूटे टेसू फूले 

कोयल बोले डार-डार 

और गोरी करत सिंगार 

मलनियाँ गढवा ले आईं कर सों 

सकल बन फूल रही सरसों 

तरह तरह के फूल खिलाए 

ले गढवा हाथन में आए 

निजामुद्दीन के दरवज्जे पर 

आवन कह गए आशिक़ रंग 

और बीत गए बरसों 

सकल बन फूल रही सरसों 

क़व्वाली 

आज रंग है ऐ महा-रंग है री 

आज रंग है ऐ महा-रंग है री 

मेरे महबूब के घर रंग है री 

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया 

निजामुद्दीन औलिया 'अलाउद्दीन औलिया 

'अलाउद्दीन औलिया फ़रीदुद्दीन औलिया 

फ़रीदुद्दीन औलिया क़ुतुबुद्दीन औलिया 

क़ुतुबुद्दीन औलिया मु'ईनउद्दीन औलिया 

मु'ईनउद्दीन औलिया मुहिउद्दीन औलिया 

आ मुहिउद्दीन औलिया मुहिउद्दीन औलिया 

वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री 

अरे ऐ री सखी री 

वो तो जहाँ देखो मोरो बर संग है री 

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया 

आहे आहे आहे वा 

मुँह माँगे बर संग है री 

वो तो मुँह माँगे बर संग है री 

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो 

जग उजियारो जगत उजियारो। 

वो तो मुँह माँगे बर संग है री 

मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया 

'गंज-शकर' मोरे संग है री 

मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखियो सखी री 

मैं तो ऐसी रंग देस-बिदेस में ढूँड फिरी हूँ 

देस-बिदेस में आहे आहे आहे वा 

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन 

मुँह माँगे बर संग है री 

सजन मिलावरा इस आँगन मा 

सजन सजन तन सजन मिलाव रा 

इस आँगन में उस आँगन में 

अरे इस आँगन में वो तो उस आँगन में 

अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री 

आज रंग है ऐ महा-रंग है री 

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन 

मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन 

मुँह माँगे बर संग है री 

मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री 

ऐ महबूब-ए-इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी 

देस-बिदेस में ढूँड फिरी हूँ 

आज रंग है ऐ महा-रंग है री 

मेरे महबूब के घर रंग है री 



मनक़बत 

मन कुंतो मौला फ़-हाज़ा अलीयुन मौला 

दा-रा-दिल-दा-रा-दिल दर-दानी 

हम-तुम त-ना-ना-ना ना-ना-रे 

यला ली यला ली यलाली-यलाली या ला ली 

मन कुंतो मौला फ़-हाज़ा अलीयुन मौला 


ग़ज़ल 

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ

कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ


शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताह

सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ


यकायक अज़ दिल दो चश्म जादू ब-सद-फ़रेबम ब-बुर्द तस्कीं

किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ


चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़ मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर

न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ


ब-हक्क-ए-रोज़-ए-विसाल-ए-दिलबर कि दाद मारा ग़रीब 'ख़ुसरव'

सपीत मन के वराय रखूँ जो जा के पाऊँ पिया की खतियाँ


दोहे 


खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय,
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।

खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वाकी धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।


खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जलाएं,
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा।


खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन,
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।

तब्सरा 

अमीर खुसरो की ज़िन्दगी और उनकी शायरी, हिंदुस्तानी तहज़ीब का आईना है जिसमें इश्क़, इंसानियत, रूहानियत, और गंगा-जमुनी रंग झलकता है। खुसरो का फ़न सिर्फ़ उनके शेरो-शायरी तक महदूद नहीं रहा, बल्कि उन्होंने अपने फ़न में संगीत, अदब, और सूफियाना रंग को भी बेहतरीन तरीक़े से पेश किया। अमीर खुसरो का कलाम उनके दौर के समाजी, मज़हबी, और तहज़ीबी मसाइल का आइना रहा है और उनका लिखा हुआ हर अल्फ़ाज़ उनके वक़्त के हालात, महसूसात और जज़्बात की सच्ची तस्वीर पेश करता है। खुसरो की शायरी में इश्क़ के जज़्बात हों या इंसानियत का पैग़ाम, उनके हर लफ़्ज़ में सादगी, शफ़्फ़ाक़ी और रूहानी असर झलकता है।

खुसरो का सबसे बड़ा कमाल ये रहा कि उन्होंने अपनी शायरी में सिर्फ़ इश्क़ को ही नहीं बल्कि तसव्वुफ़ के एहसासात को भी बड़ी खूबसूरती से बयान किया। वे हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के सच्चे आशिक़ थे और उनकी शायरी में ये मुहब्बत साफ़ नज़र आती है। "छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके" जैसी पंक्तियाँ तसव्वुफ़ के अनमोल पैग़ाम को लोगों तक पहुँचाती हैं। उनका सूफियाना कलाम, दुनियावी मोहब्बत और रूहानी इश्क़ का ऐसा मेल है जो हिंदुस्तानी अदब को नई बुलंदियों पर ले गया। उनके कलाम ने लोगों के दिलों को जोड़ने का काम किया, जहाँ धर्म, जाति, और मज़हब की दीवारें टूट जाती हैं और इंसानियत का सिर ऊँचा होता है।

खुसरो का हिंदवी-फ़ारसी में लिखा हुआ अदब, एक ऐसा दस्तावेज़ है जो हिंदुस्तान की मिली-जुली तहज़ीब को परिभाषित करता है। उनके क़लाम में हिंदवी ज़ुबान की मिठास और फ़ारसी की गहराई, दोनों मौजूद हैं। ये उनके फ़न की ऐसी ख़ासियत थी जिसने न सिर्फ़ अदब को बल्कि हिंदुस्तानी ज़ुबान को भी नई पहचान दी। कहा जाता है कि खुसरो ने ही हिंदुस्तानी ज़ुबान को वो अंदाज़ बख़्शा जो आज भी हमारी भाषा का हिस्सा है। उन्होंने कई फ़ारसी लफ़्ज़ों को हिंदवी में ढालकर एक नई बोली का ईजाद किया, जो बाद में हिंदुस्तानी ज़ुबान का अहम हिस्सा बनी। इस तरह से, अमीर खुसरो ने हिंदुस्तानी अदब और भाषा के विकास में भी बेमिसाल योगदान दिया।

सिर्फ़ शायरी ही नहीं, बल्कि संगीत में भी खुसरो ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। उन्हें क़व्वाली का बानी माना जाता है, और उनका संगीत सूफियाना महफ़िलों में एक रूहानी माहौल पैदा करता है। खुसरो ने संगीत को इबादत की शक्ल में पेश किया, जहाँ सुर और ताल इंसान को खुदा के करीब ले जाने का ज़रिया बनते हैं। उन्होंने कई नए रागों का इजाद किया और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम दिया। खुसरो की संगीत में महारत उनकी शख्सियत की गहराई और उनके फ़न की बुलंदी को दिखाती है।

अमीर खुसरो की ज़िन्दगी और उनका अदब, एक ऐसा मरकज़ है जहाँ इश्क़, इंसानियत, तहज़ीब और रूहानियत का संगम होता है। उनके कलाम में वो ताक़त है जो आज भी दिलों को छू लेती है और इंसानियत के पैग़ाम को आम करती है। अमीर खुसरो एक ऐसे शायर, सूफ़ी और फ़नकार थे जिनके बिना हिंदुस्तानी अदब, तहज़ीब और संगीत का ज़िक्र अधूरा है। उनकी शायरी और फ़न आज भी हमारे दिलों में उसी जोश और मोहब्बत के साथ जिंदा हैं, और उनकी रहनुमाई में हिंदुस्तान का अदब, भाषा, और तहज़ीब आगे बढ़ रही है।ये भी पढ़ें 


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