मोहसिन नक़वी: उर्दू शायरी का बेमिसाल रौशन चराग़

 मोहसिन नक़वी, उर्दू शायरी की दुनिया का वो जगमगाता नाम हैं, जिनकी शायरी दिलों के जज़्बात को छू लेने वाली होती है। उनके लफ़्ज़ों में वो तासीर है, जो इश्क़, दर्द और रूहानी एहसासात को बयान करने का हुनर रखती है। मोहसिन नक़वी ने उर्दू शायरी को एक नया आयाम दिया, जिसमें मोहब्बत और इंसानियत के साथ-साथ कर्बला की रुहानी तासीर भी मौजूद है। उनकी शायरी ने उन्हें न केवल पाकिस्तान में, बल्कि पूरी दुनिया में उर्दू अदब के चाहने वालों के बीच एक खास मक़ाम पर पहुंचा दिया।




जन्म और शुरुआती ज़िंदगी

मोहसिन नक़वी का असली नाम सैयद ग़ुलाम अब्बास नक़वी था। उनका जन्म 5 मई 1947 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एक छोटे से गाँव डेरा ग़ाज़ी ख़ान में हुआ। एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने के बावजूद, उनकी रुचि बचपन से ही इल्म और अदब की तरफ थी। उनके वालिद एक किसान थे, लेकिन मोहसिन नक़वी का झुकाव किताबों और शायरी की तरफ शुरू से ही था। उनके परिवार ने भी उनके इस शौक़ को सराहा और उन्हें पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।


तालीम और अदब से रिश्ता

अपनी शुरुआती तालीम उन्होंने डेरा ग़ाज़ी ख़ान से हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए वो मुल्तान के गवर्नमेंट कॉलेज चले गए, जहाँ से उन्होंने ग्रेजुएशन मुकम्मल किया। इसके बाद, लाहौर जैसे अदबी और सियासी हल्क़ों के शहर ने उनके हुनर को परखने और सँवारने का मौक़ा दिया। लाहौर की फ़िज़ा और अदबी महफ़िलों ने उनके शायराना ज़हन को और गहराई दी। यहीं से उनकी शायरी को एक नई पहचान मिली। उनका पहला शेरी मजमुआ "बुंद-ए-नेज़ा" 1971 में शाया हुआ, जिसने उर्दू अदब में तहलका मचा दिया। उनकी शायरी में वो कशिश थी जो सीधे दिल तक पहुँचती थी।


शायरी की ख़ासियत और अंदाज़

मोहसिन नक़वी की शायरी में इश्क़, ग़म, इंसानी जज़्बात और रुहानी पहलुओं का बेजोड़ संगम मिलता है। उनकी ग़ज़लों और नज़्मों में वो गहराई और असर है, जो पढ़ने वालों को सोचने पर मजबूर कर देता है। मोहसिन नक़वी की सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि उनके लफ़्ज़ आम ज़बान में होते हुए भी गहरी बात करते हैं। उनकी शायरी में मोहब्बत की मिठास, जुदाई का दर्द और कर्बला की रूहानियत, सबकुछ बख़ूबी झलकता है।

उनका एक मशहूर शेर है: "हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा।"

यह शेर सिर्फ़ अल्फ़ाज़ का जादू नहीं, बल्कि एक अहसास है जो दिलों में अपनी जगह बना लेता है। मोहसिन नक़वी की शायरी इश्क़ के हसीन पहलुओं को जितनी ख़ूबसूरती से बयां करती है, उतनी ही शिद्दत से ग़म और दर्द को भी बयान करती है।


अहम कृतियाँ और अदबी योगदान

मोहसिन नक़वी ने अपनी ज़िंदगी में कई मशहूर शेरी मजमुए लिखे, जो आज भी उर्दू अदब के ख़ज़ाने का हिस्सा हैं। उनकी अहम किताबों में शामिल हैं:

  1. बुंद-ए-नेज़ा (1971)

  2. तल्ख़ियां

  3. आँखें भीग जाती हैं

  4. फ़िराक़ का मौसम

  5. रंग-ए-शफ़क़

  6. कर्बला के बाद

इन किताबों ने मोहसिन नक़वी को एक ऐसे शायर के तौर पर पेश किया, जो हर मौज़ू पर लिखने का हुनर रखता है। मोहब्बत हो या मज़हब, सियासत हो या इंसानी रिश्ते, उनकी शायरी हर पहलू को छूती है।


कर्बला और अहले-बैत की रूहानियत

मोहसिन नक़वी को उनकी कर्बला और अहले-बैत पर लिखी शायरी के लिए भी जाना जाता है। उन्हें "शायर-ए-अहले-बैत" कहा जाता है। उनकी शायरी में इमाम हुसैन और कर्बला के वाक़ियात का तज़किरा बहुत ही असरदार अंदाज़ में मिलता है। उनके अशआर सुनने वालों के दिलों को झकझोर देते हैं। कर्बला की रूहानियत को उन्होंने इस ख़ूबसूरती से बयान किया है कि पढ़ने वाला एक रुहानी सफ़र पर निकल पड़ता है। उनका ये मशहूर शेर इस बात का गवाह है:

"कर्बला के बाद फ़िज़ा हो गई ग़मगीन,
जैसे तस्बीह के दाने बिखर गए।"


अल्फ़ाज़ की तासीर और मक़बूलियत

मोहसिन नक़वी के अल्फ़ाज़ में वो ताक़त थी जो दिलों को जकड़ लेती थी। उनकी ग़ज़लें और नज़्में सिर्फ़ लिखी नहीं जाती थीं, बल्कि महसूस की जाती थीं। उनके अशआर मुशायरों की जान बन जाते थे। उनके चाहने वाले हर उम्र और हर तबके के लोग थे। उनकी शायरी में एक तरफ मोहब्बत की मासूमियत थी, तो दूसरी तरफ दर्द की गहराई।

उनका ये शेर हर महफ़िल की रौनक बनता है:
"तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे,
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे।"


ज़िंदगी का दुखद अंत

मोहसिन नक़वी की ज़िंदगी का अंत बेहद दर्दनाक था। 15 जनवरी 1996 को उन्हें लाहौर में मज़हबी बुनियाद पर कत्ल कर दिया गया। उनकी मौत ने अदबी दुनिया में एक गहरा शोक पैदा कर दिया। उनके चाहने वालों के लिए ये एक ऐसा सदमा था, जिसे आज तक भुलाया नहीं जा सका।


मोहसिन नक़वी की शायरी का असर

आज भी मोहसिन नक़वी की शायरी को उसी शिद्दत से पढ़ा और सराहा जाता है। उनकी ग़ज़लें और नज़्में महफ़िलों की रौनक बनती हैं। उनकी शायरी में जो दर्द, मोहब्बत और रुहानियत है, वो उन्हें अमर बनाती है। उनके अल्फ़ाज़ हर दौर के लिए मौजू हैं और रहेंगे।

उनके ये अल्फ़ाज़ हर दिल को अपनी गहराइयों तक महसूस होते हैं:
"इश्क़ भी होश में करता है ग़मों का सौदा,
दर्द बिकता है तो अश्कों से खरीदा जाए।"


मोहसिन नक़वी की शायरी,ग़ज़लें,नज़्में 


1-ग़ज़ल 

ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ
मैं आवाज़ों के बन में घिर गया हूँ

मिरे घर का दरीचा पूछता है
मैं सारा दिन कहाँ फिरता रहा हूँ

मुझे मेरे सिवा सब लोग समझें
मैं अपने आप से कम बोलता हूँ

सितारों से हसद की इंतिहा है
मैं क़ब्रों पर चराग़ाँ कर रहा हूँ

सँभल कर अब हवाओं से उलझना
मैं तुझ से पेश-तर बुझने लगा हूँ

मिरी क़ुर्बत से क्यूँ ख़ाइफ़ है दुनिया
समुंदर हूँ मैं ख़ुद में गूँजता हूँ

मुझे कब तक समेटेगा वो 'मोहसिन'
मैं अंदर से बहुत टूटा हुआ हूँ


2-ग़ज़ल 


इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
किन सोचों में गुम फिरते हो

इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यूँ जागे हो

में दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ
में झूटा हूँ तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो

कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आए हो

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो


3-ग़ज़ल 


मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा
मरूँगा ख़ुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूँगा

ये तीरगी मिरे घर का ही क्यूँ मुक़द्दर हो
मैं तेरे शहर के सारे दिए बुझा दूँगा

हवा का हाथ बटाऊँगा हर तबाही में
हरे शजर से परिंदे मैं ख़ुद उड़ा दूँगा

वफ़ा करूँगा किसी सोगवार चेहरे से
पुरानी क़ब्र पे कतबा नया सजा दूँगा

इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूँगा

तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभी
ज़मीं हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूँगा

बढ़ा रही हैं मिरे दुख निशानियाँ तेरी
मैं तेरे ख़त तिरी तस्वीर तक जला दूँगा

बहुत दिनों से मिरा दिल उदास है 'मोहसिन'
इस आइने को कोई अक्स अब नया दूँगा


4-ग़ज़ल 


अगरचे मैं इक चटान सा आदमी रहा हूँ
मगर तिरे बा'द हौसला है कि जी रहा हूँ

वो रेज़ा रेज़ा मिरे बदन में उतर रहा है
मैं क़तरा क़तरा उसी की आँखों को पी रहा हूँ

तिरी हथेली पे किस ने लिक्खा है क़त्ल मेरा
मुझे तो लगता है मैं तिरा दोस्त भी रहा हूँ

खुली हैं आँखें मगर बदन है तमाम पत्थर
कोई बताए मैं मर चुका हूँ कि जी रहा हूँ

कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की
कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ

न पूछ मुझ से कि शहर वालों का हाल क्या था
कि मैं तो ख़ुद अपने घर में भी दो घड़ी रहा हूँ

मिला तो बीते दिनों का सच उस की आँख में था
वो आश्ना जिस से मुद्दतों अजनबी रहा हूँ

भुला दे मुझ को कि बेवफ़ाई बजा है लेकिन
गँवा न मुझ को कि मैं तिरी ज़िंदगी रहा हूँ

वो अजनबी बन के अब मिले भी तो क्या है 'मोहसिन'
ये नाज़ कम है कि मैं भी उस का कभी रहा हूँ


5-ग़ज़ल 


तिरे बदन से जो छू कर इधर भी आता है
मिसाल-ए-रंग वो झोंका नज़र भी आता है

तमाम शब जहाँ जलता है इक उदास दिया
हवा की राह में इक ऐसा घर भी आता है

वो मुझ को टूट के चाहेगा छोड़ जाएगा
मुझे ख़बर थी उसे ये हुनर भी आता है

उजाड़ बन में उतरता है एक जुगनू भी
हवा के साथ कोई हम-सफ़र भी आता है

वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था
कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है

जहाँ लहू के समुंदर की हद ठहरती है
वहीं जज़ीरा-ए-लाल-ओ-गुहर भी आता है

चले जो ज़िक्र फ़रिश्तों की पारसाई का
तो ज़ेर-ए-बहस मक़ाम-ए-बशर भी आता है

अभी सिनाँ को सँभाले रहें अदू मेरे
कि उन सफ़ों में कहीं मेरा सर भी आता है

कभी कभी मुझे मिलने बुलंदियों से कोई
शुआ-ए-सुब्ह की सूरत उतर भी आता है

इसी लिए मैं किसी शब न सो सका 'मोहसिन'
वो माहताब कभी बाम पर भी आता है

1-नज़्म 

मुझे अब डर नहीं लगता

किसी के दूर जाने से
तअ'ल्लुक़ टूट जाने से

किसी के मान जाने से
किसी के रूठ जाने से

मुझे अब डर नहीं लगता
किसी को आज़माने से

किसी के आज़माने से
किसी को याद रखने से

किसी को भूल जाने से
मुझे अब डर नहीं लगता

किसी को छोड़ देने से
किसी के छोड़ जाने से

ना शम्अ' को जलाने से
ना शम्अ' को बुझाने से

मुझे अब डर नहीं लगता
अकेले मुस्कुराने से

कभी आँसू बहाने से
ना इस सारे ज़माने से

हक़ीक़त से फ़साने से
मुझे अब डर नहीं लगता

किसी की ना-रसाई से
किसी की पारसाई से

किसी की बेवफ़ाई से
किसी दुख इंतिहाई से

मुझे अब डर नहीं लगता
ना तो इस पार रहने से

ना तो उस पार रहने से
ना अपनी ज़िंदगानी से

ना इक दिन मौत आने से
मुझे अब डर नहीं लगता

2-नज़्म 

ये पिछले इश्क़ की बातें हैं

ये पिछले इश्क़ की बातें हैं
जब आँख में ख़्वाब दमकते थे

जब दिलों में दाग़ चमकते थे
जब पलकें शहर के रस्तों में

अश्कों का नूर लुटाती थीं
जब साँसें उजले चेहरों की

तन मन में फूल सजाती थीं
जब चाँद की रिम-झिम किरनों से

सोचों में भँवर पड़ जाते थे
जब एक तलातुम रहता था

अपने बे-अंत ख़यालों में
हर अहद निभाने की क़स्में

ख़त ख़ून से लिखने की रस्में
जब आम थीं हम दिल वालों में

अब अपने फीके होंटों पर
कुछ जलते बुझते लफ़्ज़ों के

याक़ूत पिघलते रहते हैं
अब अपनी गुम-सुम आँखों में

कुछ धूल है बिखरी यादों की
कुछ गर्द-आलूद से मौसम हैं

अब धूप उगलती सोचों में
कुछ पैमाँ जलते रहते हैं

अब अपने वीराँ आँगन में
जितनी सुब्हों की चाँदी है

जितनी शामों का सोना है
उस को ख़ाकिस्तर होना है

अब ये बातें रहने दीजे
जिस उम्र में क़िस्से बनते थे

उस उम्र का ग़म सहने दीजे
अब अपनी उजड़ी आँखों में

जितनी रौशन सी रातें हैं
उस उम्र की सब सौग़ातें हैं

जिस उम्र के ख़्वाब ख़याल हुए
वो पिछली उम्र थी बीत गई

वो उम्र बिताए साल हुए
अब अपनी दीद के रस्ते में

कुछ रंग है गुज़रे लम्हों का
कुछ अश्कों की बारातें हैं

कुछ भूले-बिसरे चेहरे हैं
कुछ यादों की बरसातें हैं

ये पिछले इश्क़ की बातें हैं

3-नज़्म 

पागल आँखों वाली लड़की

पागल आँखों वाली लड़की
इतने महँगे ख़्वाब न देखो

थक जाओगी
काँच से नाज़ुक ख़्वाब तुम्हारे

टूट गए तो
पछताओगी

सोच का सारा उजला कुंदन
ज़ब्त की राख में घुल जाएगा

कच्चे-पक्के रिश्तों की ख़ुश्बू का रेशम
खुल जाएगा

तुम क्या जानो
ख़्वाब सफ़र की धूप के तेशे

ख़्वाब अधूरी रात का दोज़ख़
ख़्वाब ख़यालों का पछतावा

ख़्वाबों की मंज़िल रुस्वाई
ख़्वाबों का हासिल तन्हाई

तुम क्या जानो
महँगे ख़्वाब ख़रीदना हों तो

आँखें बेचना पड़ती हैं या
रिश्ते भूलना पड़ते हैं

अंदेशों की रेत न फाँको
प्यास की ओट सराब न देखो

इतने महँगे ख़्वाब न देखो
थक जाओगी


तब्सरा:-

मोहसिन नक़वी सिर्फ़ एक शायर नहीं, बल्कि उर्दू अदब की एक अनमोल धरोहर हैं। उनकी शायरी में जो एहसास, दर्द, मोहब्बत, और सच्चाई है, वो उन्हें हमेशा ज़िंदा रखेगी। उनकी कलम से निकले अल्फ़ाज़ आज भी उन तमाम लोगों के दिलों में बसे हैं, जो शायरी के जादू को महसूस करते हैं।

अगर आप उर्दू अदब के शौकीन हैं, तो मोहसिन नक़वी की शायरी को ज़रूर पढ़ें। उनके अल्फ़ाज़ आपके दिल की गहराइयों को छू लेंगे और आपको उनकी दुनिया का हिस्सा बना देंगे। उनकी शायरी वो आईना है, जिसमें हर शख़्स अपने जज़्बात की तस्वीर देख सकता है।ये भी पढ़ें 

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