Amardeep Singh Poet: की वो तहरीक जिसने दुनियाभर को इत्तेहाद का नया मतलब सिखाया

 अमर्दीप सिंह — एक ऐसा नाम जो सरहदों से परे जाकर, इंसानियत, तहरीक़ और रूहानी विरासत की तर्ज़ुमानी करता है। गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में पैदा हुए अमर्दीप सिंह आज सिंगापुर में बसने वाले एक मुअतबर researcher, लेखक, फोटोग्राफ़र और डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर हैं, जिनकी ज़िंदगी की दास्तान एक रूहानी सफ़र की तरह है — जहाँ जज़्बा, तहज़ीब और तसव्वुर एक दूसरे से गले मिलते हैं।




ख़ानदान और शुरुआती ज़िंदगी

अमर्दीप सिंह का ख़ानदान अस्ल में मुज़फ़्फ़राबाद (कश्मीर) से ताल्लुक़ रखता था, जो अब पाकिस्तान के ज़ेर-इ-इख़्तियार हिस्से में आता है। 1947 की तक़सीम से ठीक पहले उनका ख़ानदान गोरखपुर, हिंदुस्तान चला आया। उनके वालिद सुंदर सिंह एक ज़रगर (goldsmith) थे — सादा-मिज़ाज, मेहनतकश और अपनी ज़मीन से वाबस्ता इंसान।

अमर्दीप ने अपनी तालीम देहरादून के मशहूर Doon School से हासिल की, जहाँ से निकलने वाले कई नामवर सियासतदान, अदबी और फ़िक्री शख़्सियतों की तरह उनमें भी सोच की गहराई और नज़रिया की बुलंदी पैदा हुई। इसके बाद उन्होंने Manipal Institute of Technology से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और फिर University of Chicago से एमबीए किया — जहाँ से उनकी फ़िक्र और नज़र दोनों और भी परवान चढ़ीं।


कारपोरेट ज़िंदगी से रूहानी तलब तक

अमर्दीप सिंह ने तक़रीबन 25 साल माली दुनिया (financial sector) में गुज़ारे। इनमें से 21 बरस उन्होंने American Express में सीनियर ओहदे पर काम किया। इस दौरान उन्होंने हिंदुस्तान से हांगकांग और फिर 2001 में सिंगापुर कूच किया। 2005 में वो सिंगापुर के शहरी (citizen) बन गए। मगर 2013 में उन्होंने इस दौलतमंद मगर बे-रूह ज़िंदगी को छोड़कर, अपने दिल की पुकार पर अमल किया — अपने असल जुनून और विरासत की तलाश की तरफ़ रुख़ किया।


‘Lost Heritage’ — मिटती हुई सिख विरासत की दस्तावेज़ी तलाश

2014 में उन्होंने एक ऐसे सफ़र की शुरुआत की जो सिर्फ़ मुसाफ़िरी नहीं थी, बल्कि वक़्त की गर्द में दबी यादों को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश थी। उन्होंने पाकिस्तान का रुख़ किया और वहाँ सिख विरासत, फ़न, मिमारियत, रूहानी रवायतों और तहज़ीब के उन निशानों की तस्वीरें और तफ़सीलात इकट्ठा कीं जो ज़माने और सियासत की धूल में गुम हो चुके थे।

2016 में उन्होंने अपनी पहली किताब “Lost Heritage: The Sikh Legacy in Pakistan” शाया की। इसमें उन्होंने पाकिस्तान के 36 क़स्बों और देहातों की सैर के दौरान हासिल किए हुए तसावीर और तजुर्बात बयान किए। यह किताब उस दौर की झलक पेश करती है जब पंजाब एक था — और सरहदें दिलों के दरमियान नहीं थीं।

2017 में उन्होंने दूसरी किताब “The Quest Continues: Lost Heritage – The Sikh Legacy in Pakistan” तहरीर की, जिसमें उन्होंने 90 से ज़्यादा नए शहरों और बस्तियों का दौरा किया। अब यह सिलसिला एक रिसर्च नहीं, बल्कि एक मिशन बन चुका था — वो मिशन जिसमें मक़सद था विरासत को ज़िंदा रखना, ताकि आने वाली नस्लें जान सकें कि तहज़ीब दीवारों में नहीं, रूहों में ज़िंदा रहती है।


फिल्मी सफ़र — जब तारीख़ बोलने लगी कैमरे से

2019 में अमर्दीप ने अपने तजुर्बे और मशक़्क़त को कैमरे की ज़बान में ढाल दिया। उन्होंने “Allegory: A Tapestry of Guru Nanak’s Travels” नाम की एक लाज़वाब डॉक्यू-सीरीज़ बनाई — 24 एपिसोड पर मुश्तमिल यह सिलसिला 9 ममालिक और 150 मुख़्तलिफ़ मज़ाहिबी मक़ामात पर फिल्माया गया। इसमें उन्होंने हज़रत गुरु नानक देव जी के रूहानी सफ़र को बयान किया — वो सफ़र जो इंसानियत, मोहब्बत और oneness का पैग़ाम देता है।
यह सीरीज़ अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, गुरमुखी और शाहमुखी — पाँच ज़बानों में मौजूद है, और इसे देखकर महसूस होता है कि गुरु नानक का पैग़ाम सरहदों से नहीं, इंसानियत से जुड़ा हुआ है।

इसके अलावा उन्होंने “Peering Warrior” और “Peering Soul” जैसी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में भी बनाईं जो सिख तारीख़ और विरासत के गहरे पहलुओं पर रोशनी डालती हैं।


Oneness in Diversity — मुख़्तलिफ़ रंगों में एकता की आवाज़

इन दिनों अमर्दीप सिंह “Oneness in Diversity” नामी एक आलमी तालीमी प्रोजेक्ट चला रहे हैं। यह बहुज़बानी ऑडियो-विज़ुअल तालीमी ज़रिया है जो गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल औलिया, सूफ़िया और संतों के पैग़ामात-ए-मोहब्बत को दुनिया के सामने पेश करता है। इस प्रोजेक्ट का मक़सद है — इख़्तलाफ़ात के दरमियान से हमआहंगी की आवाज़ बुलंद करना।


एहतराम और इनआमात

2022 में उन्हें Guru Nanak Interfaith Prize से नवाज़ा गया — यह एज़ाज़ उन शख़्सियतों को दिया जाता है जो मज़ाहिब और ममालिक के दरमियान पुल बनाने का काम करते हैं। यह इनआम इस बात की तस्दीक़ करता है कि रूहानी विरासत की कोई सरहद नहीं होती।


अहम तस्नीफ़ात

  • Lost Heritage: The Sikh Legacy in Pakistan (2016)

  • The Quest Continues: Lost Heritage – The Sikh Legacy in Pakistan (2018)

  • Filmography
  • Allegory: A Tapestry of Guru Nanak’s Travels (2021–22)

  • Peering Warrior & Peering Soul (2016–18)

  • Oneness In Diversity (2024–25)


अमरदीप सिंह जी की शायरी ,ग़ज़लें,नज़्में 


ग़ज़ल-1

नफ़स नफ़स इज़्तिराब सा कुछ

है ज़िंदगी या अज़ाब सा कुछ


फ़रेब खाती है प्यास अपनी

क़दम क़दम है सराब सा कुछ


नई नई गुफ़्तुगू का नश्शा

बड़ी पुरानी शराब सा कुछ


किसी वसीले तो रात गुज़रे

न नींद है और न ख़्वाब सा कुछ


हैं चश्म-ए-गिर्यां को ग़म हज़ारों

चलो करें इंतिख़ाब सा कुछ


इन अच्छे लोगों में वाक़ई क्या

कहीं नहीं है ख़राब सा कुछ


वरक़ वरक़ पढ़ लिया गया वो

था जिस का चेहरा किताब सा कुछ


ये राह पुर-ख़ार कुछ नहीं जब

चुभा हो दिल में गुलाब सा कुछ


न जाने क्यों ख़ुद अज़िय्यती से

मुझे नहीं इज्तिनाब सा कुछ


'अमर' वही शख़्स दिल का जो है

ज़रा सा अच्छा ख़राब सा कुछ

ग़ज़ल-2


सुकूत-ए-दिल की तरफ़ हैं समाअ'तें अपनी

हमें पुकार रही हैं हक़ीक़तें अपनी


तिरे सितम भी मुसलसल हैं और फिर इस पर

ख़ुद अपने दिल को दुखाने की आदतें अपनी


यहाँ सब अहल-ए-ख़िरद और मैं इक अहल-ए-जुनूँ

बदल सकूँ भी तो किस से तबीअ'तें अपनी


ख़ुदा को सौंप दिए काम तो सभी लेकिन

मैं उस के नाम न कर पाया फ़ुर्सतें अपनी


वो एक अहद-ए-जवानी जो राएगाँ गुज़रा

तमाम उम्र दिखाएगा वहशतें अपनी


ख़ुद एक हद में समेटे हुए वजूद अपना

तलाश करता रहा हूँ मैं वुसअ'तें अपनी


इन्ही के सदक़े बची है अमल की गुंजाइश

बड़े ही ध्यान से सुनना शिकायतें अपनी


अजब नहीं वो ख़ुदा बन के फिर रहा है अगर

सँभल सकी हैं भला किस से शोहरतें अपनी


सो तय हुआ है सर-ए-बज़्म-ए-दुश्मनाँ ये ही

ख़ुद अपना क़त्ल करेंगी रिफाक़तें अपनी


अगर बुरा न लगे तुझ को एक बात कहूँ

तू अपने पास ही रख सब नसीहतें अपनी


तुझे 'अमर' तिरी बे-चेहरगी मुबारक हो

मिटा दे और भी सारी सबाहतें अपनी

ग़ज़ल-3


नफ़स नफ़स इज़्तिराब सा कुछ

है ज़िंदगी या अज़ाब सा कुछ


फ़रेब खाती है प्यास अपनी

क़दम क़दम है सराब सा कुछ


नई नई गुफ़्तुगू का नश्शा

बड़ी पुरानी शराब सा कुछ


किसी वसीले तो रात गुज़रे

न नींद है और न ख़्वाब सा कुछ


हैं चश्म-ए-गिर्यां को ग़म हज़ारों

चलो करें इंतिख़ाब सा कुछ


इन अच्छे लोगों में वाक़ई क्या

कहीं नहीं है ख़राब सा कुछ


वरक़ वरक़ पढ़ लिया गया वो

था जिस का चेहरा किताब सा कुछ


ये राह पुर-ख़ार कुछ नहीं जब

चुभा हो दिल में गुलाब सा कुछ


न जाने क्यों ख़ुद अज़िय्यती से

मुझे नहीं इज्तिनाब सा कुछ


'अमर' वही शख़्स दिल का जो है

ज़रा सा अच्छा ख़राब सा कुछ

ग़ज़ल-4



चेहरे पर इक चेहरा लगाना सीख लिया

आख़िर हम ने तौर-ए-ज़माना सीख लिया


कब तक तुझ को ज़हमत हो कतराने की

हम ने भी अब आँख चुराना सीख लिया


हाए तुम तो दिल से मिलने वाले थे

तुम ने कब से हाथ मिलाना सीख लिया


ज़िक्र तो उस का अब भी होता है लेकिन

बात पे हम ने बात बनाना सीख लिया


देखो लड़की ठीक नहीं कम-उम्री में

ये जो तुम ने आँख लड़ाना सीख लिया


कौन यहाँ पर ऐसा जिस ने वक़्त मिला तो

हम से बेहतर वक़्त गँवाना सीख लिया


हम भी अब कुछ नर्म तबीअत वाले हैं

बच्चों ने भी हाथ उठाना सीख लिया

ग़ज़ल-5



सुकूत-ए-दिल की तरफ़ हैं समाअ'तें अपनी

हमें पुकार रही हैं हक़ीक़तें अपनी


तिरे सितम भी मुसलसल हैं और फिर इस पर

ख़ुद अपने दिल को दुखाने की आदतें अपनी


यहाँ सब अहल-ए-ख़िरद और मैं इक अहल-ए-जुनूँ

बदल सकूँ भी तो किस से तबीअ'तें अपनी


ख़ुदा को सौंप दिए काम तो सभी लेकिन

मैं उस के नाम न कर पाया फ़ुर्सतें अपनी


वो एक अहद-ए-जवानी जो राएगाँ गुज़रा

तमाम उम्र दिखाएगा वहशतें अपनी


ख़ुद एक हद में समेटे हुए वजूद अपना

तलाश करता रहा हूँ मैं वुसअ'तें अपनी


इन्ही के सदक़े बची है अमल की गुंजाइश

बड़े ही ध्यान से सुनना शिकायतें अपनी


अजब नहीं वो ख़ुदा बन के फिर रहा है अगर

सँभल सकी हैं भला किस से शोहरतें अपनी


सो तय हुआ है सर-ए-बज़्म-ए-दुश्मनाँ ये ही

ख़ुद अपना क़त्ल करेंगी रिफाक़तें अपनी

अगर बुरा न लगे तुझ को एक बात कहूँ

तू अपने पास ही रख सब नसीहतें अपनी


तुझे 'अमर' तिरी बे-चेहरगी मुबारक हो

मिटा दे और भी सारी सबाहतें अपनी

तबसरा

 “अमर्दीप सिंह: रूह की सरहदों से परे एक तर्ज़ुमान”

अमर्दीप सिंह का नाम लेते ही ज़हन में एक ऐसा चेहरा उभरता है जो कैमरे के ज़रिए तारीख़ को ज़िंदा करता है, और कलम से रूह की खामोशियों को आवाज़ देता है। वो कोई आम दस्तावेज़नवीस नहीं, बल्कि एक ऐसा रूहानी मुसाफ़िर हैं जिसने सरहदों से परे जाकर, इंसानियत, तहज़ीब और मोहब्बत की तह में झाँकने की हिम्मत की।

गोरखपुर से सिंगापुर तक का उनका सफ़र सिर्फ़ ज़मीनों का नहीं, बल्कि वक़्त और वजूद का सफ़र है। देहरादून के “Doon School” और शिकागो के “University of Chicago” में पढ़ने वाला यह नौजवान, जब कॉर्पोरेट दुनिया की बुलंदियों पर था, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह आदमी एक दिन बैंकिंग की गिनतियों से निकलकर रूह की गहराइयों में उतर जाएगा। मगर यही अमर्दीप की असल पहचान है — वो तलब, जो दौलत से नहीं, दिल की पुकार से उठती है।

उनकी किताबें “Lost Heritage” और “The Quest Continues” महज़ तहरीरें नहीं, बल्कि मिटती हुई यादों की धड़कन हैं। वो तस्वीरें, जो उन्होंने पाकिस्तान की सरज़मीन पर खींचीं, दरअसल उन रिश्तों की गवाही देती हैं जो सियासी नक़्शों से मिट तो गए, मगर जज़्बात की दीवारों में अब भी साँस ले रहे हैं। उनके लफ्ज़ों में एक ऐसी तहज़ीब की खुशबू है जो न मुसलमान है, न सिख, न हिंदू — बस इंसान है।

उनकी डॉक्यूमेंट्री “Allegory: A Tapestry of Guru Nanak’s Travels” इबादत की तरह है — 24 क़िस्तों में फैली हुई एक ऐसी रूहानी दस्तान जहाँ हर मंज़िल, हर दरगाह और हर लहजा “oneness” का पैग़ाम देता है। यह काम सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं, बल्कि एक दुआ की तर्ज़ुमानी है — जहाँ कैमरा सज्दा करता है और आवाज़ तस्बीह बन जाती है।

“Oneness in Diversity” जैसे प्रोजेक्ट से अमर्दीप ने साबित किया है कि आज की दुनिया में अगर कोई चीज़ वाक़ई मुक़द्दस है, तो वो इख़्तलाफ़ में एकता की तलाश है। उनके काम से एक सुगंध उठती है — जो पंजाब के खेतों से लेकर बेरूनी मुमालिक  तक फैली हुई है।

उनकी ग़ज़लें, जो दर्द और दानाई का संगम हैं, यह दिखाती हैं कि अमर्दीप सिर्फ़ कैमरे और किताबों के आदमी नहीं — वो लफ़्ज़ों के भी सूफ़ी हैं। हर शेर में एक ख़ामोश सवाल है और हर मिसरे में एक रूह की आहट।ये भी पढ़ें 

ख़ुद एक हद में समेटे हुए वजूद अपना

तलाश करता रहा हूँ मैं वुसअ'तें अपनी

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