शायरी, अदब और इल्म का ख़ूबसूरत मरकज़,अदब को आम करने का जज़्बा WWW ANTHOUGHT COM

بسم اللہ الرحمٰن الرحیم

दो साल पहले जब मैंने Anthought का आग़ाज़ किया था, तो दिल में एक ख़ास ख़याल मचल रहा था — ये कि जिन शोरा ने अदब की ख़िदमत में अपनी पूरी ज़िंदगी सर्फ़ कर दी, जिनके लफ़्ज़ों ने क़ौम के ज़ेहनों में रौशनी भरी, उन सब की ज़िंदगियों को तलाश करके, तहक़ीक़ के साथ उनकी सवानिह लिखूँ। उस वक़्त मेरे ज़ेहन में ये बात बिल्कुल वाज़ेह थी कि वेबसाइट की रस्म-ए-ख़त हिंदी (देवनागरी) में ही रखी जाएगी ताकि हर क़ारीन (पाठक ) तक रसाई (पहुँच ) मुमकिन हो।

लेकिन फिर एक हक़ीक़त सामने आई — लोग हिंदी ज़रूर पढ़ते हैं, मगर उनका दिल उर्दू पर आकर ठहर जाता है। वो अल्फ़ाज़ चाहे देवनागरी में हों, मगर उन्हें लब-ओ-लहजे, आहंग और लज़्ज़त-ए-तलफ़्फ़ुज़ उर्दू की ही पसंद आती है। तब मैंने ये फ़ैसला किया कि अपनी वेबसाइट को उर्दू के अल्फ़ाज़ से संवारूँ, ताकि ज़ुबान की रूह बरक़रार रहे।

ये सारी बात अर्ज़ करने का मक़सद सिर्फ़ इतना है कि हमारे तमाम अहल-ए-क़लम, शुअरा-ए-कराम (रचनाकार,लेखक,कवि) और अदबा (साहित्यकार) इस नुक्ते को समझें कि आज के दौर में अगर आप अपनी बात ज़्यादा लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं तो आपको अपनी तख़्लीक़ात (रचनायें) को उर्दू के साथ-साथ हिंदी रस्म-ए-ख़त में भी लिखना होगा। वरना आपका पैग़ाम महदूद (सिमित)  दायरे में रह जाएगा।

गुज़िश्ता दो बरसों के इस सफ़र में Anthought ने बेहिसाब तरक़्क़ी की है। अलहम्दुलिल्लाह, हमारी वेबसाइट का ट्रैफ़िक बढ़ता जा रहा है, क़ारीनों (पाठक) की तादाद रोज़ अफ़ज़ूँ है, और ये सब मेरे रब्ब-ए-करीम का करम, मेरी वालिदा मोहतरमा और अज़ीज़ों की दुआएं और आप जैसे अहल-ए-दिल की मोहब्बतों का सदक़ा है।

मैं जानता हूँ कि हमारी वेबसाइट में अब भी बहुत सी ख़ामियाँ बाक़ी हैं, मगर तराशने, सँवारने और बेहतर बनाने का अमल जारी है — इंशा अल्लाहुल  अज़ीज़ ये सफ़र हमेशा जारी रहेगा। आपने भी महसूस किया होगा कि पुरानी तहरीरें वक़्तन-फ़वक़्तन नई शक्ल में सामने आती रहती हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि हर तहरीर अपनी बेहतरीन सूरत में क़ारीन (पाठक) तक पहुँचे।

मेरी तमाम शुअरा, अदबा, और अदब-दोस्त अहबाब से दरख़्वास्त है कि अगर आपको किसी भी जगह कोई कमी महसूस हो तो बेतकल्लुफ़ राब्ता करें। मेरा नंबर (7011631225) है जिस पर मेरा व्हाट्सऐप भी मुनस्लिक(लिंक्ड) है। मशग़ूलियात के सबब जवाब में थोड़ी ताख़ीर (3 से 7 घंटे) मुमकिन है, मगर इंशा अल्लाह आपकी हर बात, हर मशवरा, हर इस्लाह को ज़रूर शामिल किया जाएगा।

मुझे आपकी सरपरस्ती, रहनुमाई और इस्लाह की सख़्त ज़रूरत है। मैं तो बस एक हक़ीर ज़र्रा हूँ, मगर अगर अहल-ए-अदब की निगाह-ए-करम शामिल-ए-हाल रही तो यही ज़र्रा चमक उठेगा।

तमाम लिखने वालों, शायरों और अहल-ए-क़लम से मेरी दिली गुज़ारिश है —
आइए, हम सब मिलकर अदब की इस बज़्म में बेहतरी, रौशनी और ख़िदमत का एक नया बाब क़लम करें।
सफ़र तवील है, मगर अज़्म ये है कि इंशा अल्लाहुल अज़ीज़ हम शाम होने तक रुकने वाले नहीं।
अदब की ख़िदमत हमारा मक़सद है — और यही हमारा कारवां।ये भी पढ़ें 

आपका मुख्लिस ,


ज़िया-उससहर रज़्ज़ाक़ी


بسم اللہ الرحمٰن الرحیم

دو سال پہلے جب میں نے Anthought کا آغاز کیا تھا، تو دل میں ایک خاص خیال مچل رہا تھا — یہ کہ جن شعرا نے ادب کی خدمت میں اپنی پوری زندگی صرف کر دی، جن کے لفظوں نے قوم کے ज़ेہنوں میں روشنی بھری، اُن سب کی زندگیوں کو تلاش کر کے، تحقیق کے ساتھ اُن کی سوانح لکھوں۔ اُس وقت میرے ذہن میں یہ بات بالکل واضح تھی کہ ویب سائٹ کی رسمِ خط ہندی (دیوناگری) میں ہی رکھی جائے گی تاکہ ہر قاری تک رسائی ممکن ہو۔

لیکن پھر ایک حقیقت سامنے آئی — لوگ ہندی ضرور پڑھتے ہیں، مگر اُن کا دل اردو پر آ کر ٹھہر جاتا ہے۔ وہ الفاظ چاہے دیوناگری میں ہوں، مگر اُنہیں لب و لہجے، آہنگ اور لذتِ تلفّظ اردو کی ہی پسند آتی ہے۔ تب میں نے یہ فیصلہ کیا کہ اپنی ویب سائٹ کو اردو کے الفاظ سے سنواروں، تاکہ زبان کی روح برقرار رہے۔

یہ ساری بات عرض کرنے کا مقصد صرف اتنا ہے کہ ہمارے تمام اہلِ قلم، شعرائے کرام اور ادباء اس نکتے کو سمجھیں کہ آج کے دور میں اگر آپ اپنی بات زیادہ لوگوں تک پہنچانا چاہتے ہیں تو آپ کو اپنی تخلیقات کو اردو کے ساتھ ساتھ ہندی رسمِ خط میں بھی لکھنا ہوگا۔ ورنہ آپ کا پیغام محدود دائرے میں رہ جائے گا۔

گزشتہ دو برسوں کے اس سفر میں Anthought نے بے پناہ ترقی کی ہے۔ الحمدللہ، ہماری ویب سائٹ کا ٹریفک بڑھتا جا رہا ہے، قارئین کی تعداد روز افزوں ہے، اور یہ سب میرے ربِ کریم کا کرم، میری والدہ محترمہ کی دعائیں اور آپ جیسے اہلِ دل کی محبتوں کا صدقہ ہے۔

میں جانتا ہوں کہ ہماری ویب سائٹ میں اب بھی بہت سی خامیاں باقی ہیں، مگر تراشنے، سنوارنے اور بہتر بنانے کا عمل جاری ہے — ان شاء اللہ العزیز یہ سفر ہمیشہ جاری رہے گا۔ آپ نے بھی محسوس کیا ہوگا کہ پرانی تحریریں وقتاً فوقتاً نئی شکل میں سامنے آتی ہیں، کیونکہ ہم چاہتے ہیں کہ ہر تحریر اپنی بہترین صورت میں قاری تک پہنچے۔

میری تمام شعرا، ادباء، شعر و ادب کے دلدادہ احباب سے گزارش ہے کہ اگر آپ کو کسی بھی جگہ کوئی کمی محسوس ہو تو بے تکلف رابطہ کریں۔ میرا نمبر7011631225 ہے جس پر میرا واٹس ایپ بھی منسلک ہے۔ مصروفیات کے سبب جواب میں تھوڑی تاخیر (۳ تا ۷ گھنٹے) ممکن ہے، مگر ان شاء اللہ آپ کی ہر بات، ہر مشورہ، ہر اصلاح کو لازمی طور پر شامل کیا جائے گا۔

مجھے آپ کی سرپرستی، رہنمائی اور اصلاح کی اشد ضرورت ہے۔ میں تو بس ایک حقیر ذرّہ ہوں، مگر اگر اہلِ ادب کی نگاہِ کرم شاملِ حال رہی تو یہی ذرّہ چمک اٹھے گا۔

تمام لکھنے والوں، شاعروں اور اہلِ قلم سے میری دلی اپیل ہے —
آئیے، ہم سب مل کر ادب کی اس بزم میں بہتری، روشنی اور خدمت کا ایک نیا باب رقم کریں۔
سفر طویل ہے، مگر عزم یہ ہے کہ ان شاء اللہ العزیز ہم شام ہونے تک رُکنے والے نہیں۔
ادب کی خدمت ہمارا مقصد ہے، اور یہی ہمارا کارواں۔

آپ کا مخلص،


ضیاءُ الصَّحَر رزّاقی

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