अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1846 को इलाहाबाद के पास बारा गाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम सैयद अकबर हुसैन था। उनका परिवार मूलतः फ़ारस (ईरान) से था और उनकी पैदाइश एक समृद्ध और सम्मानित सैयद परिवार में हुई। उनके पिता मौलवी तफ़ज्जुल हुसैन ब्रिटिश हुकूमत में नायब तहसीलदार के पद पर कार्यरत थे, जिससे अकबर के बचपन का माहौल शिक्षित और अनुशासित था।
अकबर की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा उनके पिता की देखरेख में हुई। उन्होंने अरबी, फ़ारसी, और गणित की पढ़ाई की। 1856 में, अकबर ने जमुना मिशन स्कूल में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त की। हालाँकि, 1859 में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और रेलवे इंजीनियरिंग विभाग में क्लर्क के पद पर काम करने लगे।
व्यक्तिगत जीवन
अकबर इलाहाबादी की पहली शादी 15 वर्ष की उम्र में खदीजा खातून से हुई, जिससे उनके दो बेटे, नज़ीर हुसैन और आबिद हुसैन हुए। बाद में उनकी दूसरी शादी फातिमा सुग़रा से हुई, जिससे उनके दो और बेटे, इशरत हुसैन और हाशिम हुसैन हुए।
करियर की शुरुआत
अकबर इलाहाबादी ने अपने करियर की शुरुआत जमुना पुल के निर्माण के समय पत्थरों की नाप-जोख के मुंशी के रूप में की। इसके बाद उन्हें नकलनवीस की नौकरी मिली। 1867 में वे नायब तहसीलदार बने और बाद में हाइकोर्ट में कार्य किया। 1873 में उन्होंने वकालत की परीक्षा पास की और इलाहाबाद, गोरखपुर, आगरा, और गोंडा में वकालत की। 1880 में वे मुंसिफ़ बने और धीरे-धीरे ज़िला जज के पद तक पहुँच गए।
साहित्यिक दृष्टिकोण
अकबर इलाहाबादी के साहित्यिक कार्यों में उनके व्यंग्य और हास्य की प्रमुख भूमिका है। वे अपनी शायरी और व्यंग्य के माध्यम से समाज की विसंगतियों और राजनीतिक स्थितियों पर तीखा हमला करते हैं। उनकी शायरी का एक विशेष पहलू यह है कि उन्होंने अपनी कविताओं और ग़ज़लों में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। उनकी रचनाओं में ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध, आधुनिक शिक्षा के प्रति असंतोष और सामाजिक असमानताओं की आलोचना स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
प्रमुख रचनाएँ
अकबर इलाहाबादी की प्रमुख रचनाओं में उनकी ग़ज़लें और कविताएँ शामिल हैं। उनकी ग़ज़ल "हंगामा है क्यूँ बरपा" विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसे ग़ुलाम अली ने गाया है। उनकी कविताएँ और शायरी आज भी लोगों के दिलों में बसती हैं और उनकी व्यंग्यपूर्ण शैली को सराहा जाता है।
अंतिम वर्ष और सामाजिक योगदान
जीवन के अंतिम वर्षों में, अकबर इलाहाबादी ने महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गहरी रुचि ली। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता और देश की आज़ादी के मुद्दों पर अपनी कविताओं और नज़्मों के माध्यम से विचार किए।
1898 में ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें ‘ख़ान बहादुर’ के ख़िताब से नवाज़ा। उन्होंने अपनी शायरी और नज़्मों में स्वतंत्रता और सामाजिक समानता के मुद्दों पर विचार किए और देश की आज़ादी के लिए अपनी आवाज उठाई।
मृत्यु और विरासत
अकबर इलाहाबादी का निधन 9 सितंबर 1921 को हुआ। उनका दफन इलाहाबाद के हिम्मतगंज में किया गया। उनकी शायरी और व्यंग्य आज भी उर्दू साहित्य में महत्वपूर्ण मानी जाती है। उनकी रचनाएँ समाज के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालती हैं और उनकी व्यंग्यपूर्ण शैली आज भी लोगों को प्रभावित करती है।
अकबर इलाहाबादी का साहित्यिक योगदान और उनकी
शायरी की शक्ति ने उन्हें उर्दूसाहित्य के महान शायरों में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनके व्यंग्य और हास्य के माध्यम से उन्होंने समाज की कमजोरियों और राजनीतिक विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया, जो आज भी उनके साहित्य को प्रासंगिक बनाता है।
अकबर अल्लाहबदी की ग़ज़लें
1- ग़ज़ल
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
ना तजरबा कारी से वाइज़ की ये हैं बातें
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है
ऐ शौक़ वही मय पी ऐ होश ज़रा सो जा
मेहमान ए नज़र इस दम इक बर्क़ ए तजल्ली है
वाँ दिल में कि सदमे दो याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है
हर ज़र्रा चमकता है अनवार ए इलाही से
हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है
तालीम का शोर ऐसा तहज़ीब का ग़ुल इतना
बरकत जो नहीं होती निय्यत की ख़राबी है
सच कहते हैं शैख़ ''अकबर'' है ताअत ए हक़ लाज़िम
हाँ तर्क ए मय ओ शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है
2- ग़ज़ल
हसीनों के गले से लगती है ज़ंजीर सोने की
नज़र आती है क्या चमकी हुई तक़दीर सोने की
न दिल आता है क़ाबू में न नींद आती है आँखों में
शब ए फ़ुर्क़त में क्यूँ कर बन पड़े तदबीर सोने की
यहाँ बेदारियों से ख़ून ए दिल आँखों में आता है
गुलाबी करती है आँखों को वाँ तासीर सोने की
बहुत बेचैन हूँ नींद आ रही है रात जाती है
ख़ुदा के वास्ते जल्द अब करो तदबीर सोने की
ये ज़र्दा चीज़ है जो हर जगह है बाइ'स ए शौकत
सुनी है आलम ए बाला में भी तामीर सोने की
ज़रूरत क्या है रुकने की मिरे दिल से निकलता रह
हवस मुझ को नहीं ऐ नाला ए शब गीर सोने की
छपर खट याँ जो सोने की बनाई इस से क्या हासिल
करो ऐ ग़ाफ़िलो कुछ क़ब्र में तदबीर सोने की
3- ग़ज़ल
तेरा कूचा न छुटेगा तिरे दीवाने से
इस को काबे से न मतलब है न बुत ख़ाने से
जो कहा मैं ने करो कुछ मिरे रोने का ख़याल
हँस के बोले मुझे फ़ुर्सत ही नहीं गाने से
ख़ैर चुप रहिए मज़ा ही न मिला बोसे का
मैं भी बे लुत्फ़ हुआ आप के झुँझलाने से
मैं जो कहता हूँ कि मरता हूँ तो फ़रमाते हैं
कार ए दुनिया न रुकेगा तिरे मर जाने से
रौनक़ ए इश्क़ बढ़ा देती है बेताबी ए दिल
हुस्न की शान फ़ुज़ूँ होती है शरमाने से
दिल ए सद चाक से खुल जाएँगे हस्ती के ये पेच
बल निकल जाएँगे इस ज़ुल्फ़ के इस शाने से
सफ़हा-ए-दहर पे हैं नक़्श ए मुख़ालिफ़ 'अकबर'
एक उभरता है यहाँ एक के मिट जाने से
अकबर अल्लाहबदी के मशहूर शेर
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
Conclusion:-
अकबर इलाहाबादी अपनी सदी के फनकार शायर थे। उन्होंने उर्दू कविता में व्यंग्य और हास्य की एक नई परंपरा स्थापित की। उनकी शायरी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, सांस्कृतिक दुविधाओं और ब्रिटिश शासन के प्रभावों पर तीखा व्यंग्य किया। अकबर इलाहाबादी ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया और अपनी विशिष्ट शैली से उर्दू साहित्य को समृद्ध किया।
उनकी रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आज भी वे समाज को एक आईना दिखाने का काम करती हैं। "हंगामा है क्यों बरपा" जैसी उनकी ग़ज़लें आज भी लोकप्रिय हैं और उनकी कविताओं का प्रभाव संगीत और सिनेमा में भी देखा जा सकता है।
अकबर इलाहाबादी का जीवन और उनका साहित्यिक योगदान यह दर्शाता है कि वे वास्तव में अपनी सदी के एक महान फनकार शायर थे, जिन्होंने अपनी अनोखी शैली और दृष्टिकोण से उर्दू साहित्य को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया। उनकी रचनाएँ आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी और उर्दू साहित्य में उनकी पहचान हमेशा बरकरार रहेगी।
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