दुष्यंत कुमार का नाम हिंदी साहित्य के उन महान रचनाकारों में शुमार होता है जिन्होंने अपनी रचनाओं से समाज को जागरूक और प्रेरित किया। उनका जन्म 01 सितंबर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव में हुआ था। उनका मूल नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। उनके पिता का नाम श्री भगवत सहाय और माता का नाम श्रीमती राम किशोरी था।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
दुष्यंत कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के नवादा प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त की। उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा चंदौसी इंटर कॉलेज से पूरी की। इसी दौरान उनके अंदर काव्य लेखन की प्रतिभा उभरने लगी। बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से हिंदी, दर्शनशास्त्र और इतिहास में बीए की डिग्री हासिल की। उन्होंने एमए की डिग्री भी प्रयाग विश्वविद्यालय से प्राप्त की।ये भी पढ़ें
साहित्यिक जीवन का आरंभ
प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही दुष्यंत कुमार की साहित्यिक यात्रा शुरू हो गई थी। वे साहित्यिक संस्था ‘परिमल’ की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे और 'नए पत्ते' जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका से भी जुड़े रहे। इस समय उन्हें डॉ. रामकुमार वर्मा, डॉ. धीरेंद्र कुमार शास्त्री और डॉ. रसाल जैसे मार्गदर्शक मिले। कमलेश्वर, मार्कंडेय और रवींद्रनाथ त्यागी जैसे सहपाठी उनके साथ थे।
व्यावसायिक जीवन
दुष्यंत कुमार का पेशेवर जीवन विविध रहा। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत आकाशवाणी दिल्ली में एक सामान्य कर्मचारी के रूप में की। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक किरतपुर इंटर कॉलेज में अध्यापन किया, लेकिन यह कार्य भी उन्होंने कुछ समय बाद छोड़ दिया। बाद में वे आकाशवाणी भोपाल में कार्यरत रहे, जहां उन्होंने रेडियो के लिए ध्वनि नाटक लिखे। इसके बाद वे ट्रायबल वेलफेयर में डिप्टी डायरेक्टर बने और फिर मध्य प्रदेश के राजभाषा विभाग में सहायक निर्माता के रूप में कार्य किया।
व्यक्तिगत जीवन
दुष्यंत कुमार का विवाह उनकी स्कूली शिक्षा के दौरान राजेश्वरी कौशिक से हुआ। उन्होंने विवाह के बाद अपने पत्नी के साथ मिलकर बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके तीन संतानें थीं – दो पुत्र और एक पुत्री।
प्रकशित पुस्तकें
1- साये में धूप ( गजल संग्रह )
2-छोटे-छोटे सवाल ( उपन्यास )
3-आँगन में एक वृक्ष (उपन्यास )
4-दुहरी ज़िंदगी ( उपन्यास )
5-सूर्य का स्वागत (काव्य संग्रह)
6-आवाजों के घेरे (काव्य संग्रह)
7-जलते हुए वन का वसंत (काव्य संग्रह)
8-गीति नाट्य (काव्य संग्रह)
9-एक कंठ विषपायी (काव्य नाटक) 1963
10-और मसीहा मर गया (नाटक)
11-मन के कोण (लघुकथाएँ)
पुरस्कार और सम्मान
दुष्यंत कुमार को हिंदी साहित्य में गजल विधा को प्रतिष्ठित करने के लिए जाना जाता है। उनकी अद्वितीय साहित्यिक योगदान के लिए भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इसके अलावा, उनकी धरोहरों को संजोने के लिए 'दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय' की स्थापना की गई है।ये भी पढ़ें
FAQ'S
Ans. this is a better platform to findout Biographies and shayri in Hindi.
Ans. In this blog we have given blow famous poems of Dushyant Kumar.
Ans. Dushyant Kumar was Inqilabi ( Motivational ) poet,He has wriyten many motivational poems like-हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए.
Ans.In this article we have detailed biography which is called in Hindi jiva parichey.
दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें
1 - ग़ज़ल
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगीशर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव मेंहाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहींमेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सहीहो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
2 - ग़ज़ल
अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए
तिरी सहर हो मिरा आफ़्ताब हो जाए
हुज़ूर आरिज़-ओ-रुख़्सार क्या तमाम बदन
मिरी सुनो तो मुजस्सम गुलाब हो जाए
उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना
ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तियाब हो जाए
वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं
सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए
बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा
ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए
ग़लत कहूँ तो मिरी आक़िबत बिगड़ती है
जो सच कहूँ तो ख़ुदी बे-नक़ाब हो जाए
1 - ग़ज़ल
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
2 - ग़ज़ल
अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए
तिरी सहर हो मिरा आफ़्ताब हो जाए
हुज़ूर आरिज़-ओ-रुख़्सार क्या तमाम बदन
मिरी सुनो तो मुजस्सम गुलाब हो जाए
उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना
ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तियाब हो जाए
वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं
सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए
बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा
ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए
ग़लत कहूँ तो मिरी आक़िबत बिगड़ती है
जो सच कहूँ तो ख़ुदी बे-नक़ाब हो जाए
3 - ग़ज़ल
नज़र नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
ज़रा सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं
वो देखते हैं तो लगता है नीव हिलती है
मिरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं
यूँ मुझ को ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन
ये बर्फ़ आँच के आगे पिघल न जाए कहीं
चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना
ये गर्म राख शरारों में ढल न जाए कहीं
तमाम रात तिरे मय कदे में मय पी है
तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं
कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी
कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं
ये लोग होमो-हवन में यक़ीन रखते हैं
चलो यहाँ से चलें हाथ जल न जाए कहीं
Conclusion:-ये भी पढ़ें
दुष्यंत कुमार: हिंदी-उर्दू के नायाब शायर
दुष्यंत कुमार हिंदी और उर्दू साहित्य के उन नायाब शायरों में से थे जिन्होंने अपनी अनूठी शैली और बेबाक अभिव्यक्ति से साहित्यिक जगत में एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपनी गजलों और कविताओं के माध्यम से समाज की समस्याओं को उजागर किया और लोगों को सोचने पर मजबूर किया।
उनका साहित्य सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं था, बल्कि वह समाज को जागरूक करने का माध्यम था। उनकी रचनाओं में विद्रोह, संवेदना, और सच्चाई की गहरी झलक मिलती है।दुष्यंत कुमार का साहित्यिक योगदान हिंदी और उर्दू साहित्य के लिए अमूल्य धरोहर है। उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ लिखना नहीं था, बल्कि समाज को एक नई दिशा देना था। उनकी गजलें और कविताएँ आज भी उतनी ही प्रभावशाली और प्रासंगिक हैं जितनी कि उनके समय में थीं।
दुष्यंत कुमार: हिंदी-उर्दू के नायाब शायर
दुष्यंत कुमार हिंदी और उर्दू साहित्य के उन नायाब शायरों में से थे जिन्होंने अपनी अनूठी शैली और बेबाक अभिव्यक्ति से साहित्यिक जगत में एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपनी गजलों और कविताओं के माध्यम से समाज की समस्याओं को उजागर किया और लोगों को सोचने पर मजबूर किया।
उनका साहित्य सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं था, बल्कि वह समाज को जागरूक करने का माध्यम था। उनकी रचनाओं में विद्रोह, संवेदना, और सच्चाई की गहरी झलक मिलती है।
दुष्यंत कुमार का साहित्यिक योगदान हिंदी और उर्दू साहित्य के लिए अमूल्य धरोहर है। उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ लिखना नहीं था, बल्कि समाज को एक नई दिशा देना था। उनकी गजलें और कविताएँ आज भी उतनी ही प्रभावशाली और प्रासंगिक हैं जितनी कि उनके समय में थीं।