अदा जाफ़री की शायरी जीवनी और फेमिनिज्म

 अदा जाफरी,जिनका असली नाम अज़ीज़ जहाँ था की पैदाइश 22 अगस्त सन 1924 को उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं में हुयी,शुरुआत में इन्होंने अदा बदायुनी के नाम से लिखना लिखा लेकिन नुरुल हसन जाफरी से शादी के बाद,अदा जाफरी के नाम से लिखने लगीं 

अदा जाफ़री की शायरी जीवनी और फेमिनिज्म

ADA JAFRY BIOGRAPHY POETRY AND FEMINISM

अदा जाफरी उर्दू अदब के माहौल में पली बढ़ीं, क्योंकि उनके पिता मौलवी बदरुल हसन खुद एक मशहूर शायर थे। उनके पिता के प्रभाव ने छोटी उम्र से ही शायरी में उनकी दिलचस्पी जगा दी। अदा ने अपने स्कूल के वर्षों के दौरान ग़ज़ल लिखना शुरू किया, जहाँ उन्होंने ग़ैर मामूली काबिलियत और इंसानी जज़्बातो की गहरी समझ का प्र्दशन किया।

1947 में भारत के बँटवारे के बाद अदा जाफ़री अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के कराची चली गईं। उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और सिन्ध यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान, अदा ने साहित्यिक क्षेत्रों में सक्रिय रूप से भाग लिया और उर्दू शायरी  के प्रगतिशील आंदोलन में एक प्रमुख आवाज बन गईं।

अदा जाफ़री की शायरी की ख़ासियत उनकी दिलेरी के साथ सामाजिक मुद्दों पर अंतर्दृष्टि है। जज़्बात और उपमाओं के उपयोग के बावजूद, उन्होंने महिला शक्ति के लिए आवाज़ उठाई और समानता की वकालत की। उन्होंने प्रेम, सामाजिक अन्याय और महिलाओं की दुर्दशा पर अपने ख़्यालात का मुज़ाहेरा किया 


1951 में, अदा जाफरी ने अपना पहला (मजमुआ ए कलाम ) कविता संग्रह "मैं चांद नहीं" (आई एम नॉट द मून) प्रकाशित किया, जिसे आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। उनकी ग़ज़लियात पाठकों को पसंद आईं और एक रूढ़िवादी (क़दामत पसंद )समाज में महिलाओं के संघर्ष और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हैं। उनके बाद के कविता संग्रह, जिनमें "शोला-ए-गुल" (गुलाब की लौ) और "हव्वा की बेटी" (ईव्स डॉटर) शामिल हैं, ने एक मुकम्मिल शायरा  के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत किया।ये भी पढ़ें 


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अदा जाफ़री के साहित्यिक योगदान ने उनके पूरे करियर में बहुत तारीफें हासिल कीं। 1967 में, उनकी असाधारण काव्य प्रतिभा को पहचानते हुए, उन्हें प्रतिष्ठित एडमजी साहित्यिक पुरस्कार मिला। उन्होंने लेखकों के अधिकारों की वकालत करने और उर्दू साहित्य को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान राइटर्स गिल्ड के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।

अपने साहित्यिक प्रयासों से परे, अदा जाफ़री ने सामाजिक और मानवीय कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने भेदभाव, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अन्य सामाजिक अन्यायों के खिलाफ आवाज उठाई। वह शिक्षा की शक्ति में यक़ीन करती थीं और उन्होंने वंचित महिलाओं के लिए जागरूकता और अवसर पैदा करने की दिशा में काम किया।

अदा जाफरी की शायरी पाकिस्तान और उसके बाहर भी पाठकों और लेखकों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है। संवेदनशीलता (हस्सासियत) और बौद्धिक गहराई से समृद्ध  उनकी नायाब शैली ने उन्हें नारीवादी (फेमिनिज्म) आंदोलन में एक महत्वपूर्ण हस्ती बना दिया और उर्दू साहित्य के विकास में योगदान दिया। 12 मार्च, 2015 को अदा जाफ़री का निधन (इंतेक़ाल) हो गया, वह अपने पीछे एक कबीले कद्र विरासत छोड़ गईं जो उर्दू शायरी की दुनिया को आकार देती रही। उनके योगदान ने उन्हें पाकिस्तान के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध  शायरों में स्थान दिलाया है।

जीवन परिचय 

नाम-अज़ीज़ जहाँ
उप नाम -अदा जाफ़री
पिता का नाम -पिता सैयद मुहम्मद शाहिद
जन्म-पैदाइश 22 अगस्त सन 1924
जन्म स्थान -जिला बदायूं ,उत्तर प्रदेश 
पति का नाम-नुरुल हसन जाफरी
शिक्षा -सिन्ध यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की
कॅरियर -लेखिका,शायरा,नरवादी 
संतान- सबीहा (लड़की),आज़मी (लड़का) आमिर (लड़का)

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FAQ

question-1: दा जाफरी कौन थी ?
answer-1:अदा जाफरी एक बहुत मशहूर उर्दू शायरा ( कवित्री ) थी,जिनका जन्म 22 अगस्त सन 1924 को, उत्तर प्रदेश के ज़िला बदायूं हुआ था,हिंदुस्तान-पाकिस्तान के पार्टीशन के समय उनका परिवार पाकिस्तान की राजधानी कराची जाकर बस गया,आगे शिक्षा  सिन्ध सियूनिवर्सिटी से पूरी की 
question-2: अदा जाफरी का विवाह ?
answer-2:अदा जाफरी का विवाह नुरुल हसन जाफरी ( उस समय भारत में सिविल सर्वेंट ) के साथ लख़नऊ में हुआ था 
question-3: अदा जाफरी की ग़ज़ल/शायरी ?
answer-3:यहाँ हमने अदा जाफरी की की शायरी , 2 ग़ज़लें और 2 नज़्मे लिखी हैं,प्लीज चेक कीजिये 
question-4: अदा जाफरी की संतान ?
answer-4:अदा जाफरी की तीन संताने हैं,सबीहा जाफरी ( सबसे बड़ी बेटी ) आज़मी जाफरी (बेटा ) आमिर जाफरी ( बेटा ) प्लीज पिक्चर्स देखिये 

अदा जाफरी की प्रकाशित पुस्तकेँ 

1-"शोला-ए-गुल"
2-"हव्वा की बेटी"
3-"मैं चांद नहीं"
4- "ग़ज़ल नुमा" सन 1988 
5- "ग़ज़लान तुम तो वाक़िफ़ हो" सन 1982 
6- "हर्फ़-ए-शनासाई" सन 1999 
7- "शहर-ए-दर्द सन" 1967
8-"साज़-ए-सुखन सन" 1988 
9- "शहर-ए-दर्द सन" 1982
10-"में साज़ ढूंढ़ती रही" सन 1982 
11-"जो रही सो बेखबर रही" 3 वल्यूम सन 1995-1996-2011  


अदा जाफरी को मिले अवार्ड्स और सम्मान 

1- हमदर्द फाउंडेशन, नई दिल्ली ने उन्हें "सदी की उत्कृष्ट महिला कवयित्री" के रूप में मान्यता दी।सन 1955 
2-उन्हें उनके दूसरे काव्य संग्रह शहर-ए-दर्द के लिए पाकिस्तान राइटर्स गिल्ड द्वारा एडमजी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।सन1967 
3-उनके काम की मान्यता में, पाकिस्तान सरकार ने उन्हें मैडल ऑफ़ एक्सीलेंस से सम्मानित किया सन 1981
4-उन्हें 1994 में पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लेटर्स से बाबा-ए उर्दू, डॉ. मौलवी अब्दुल हक पुरस्कार मिला। सन 1994 
5- कायदे आज़म साहित्य पुरस्कार सन 1997 
6- हमदर्द फाउंडेशन ऑफ पाकिस्तान के सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट भी हासिल किया 
7-पाकिस्तान सरकार ने उन्हें साहित्य के लिए प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस अवॉर्ड से सम्मानित किया सन  2003
8- पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लेटर्स द्वारा साहित्य में आजीवन उपलब्धि के लिए कमाल-ए फन पुरस्कार मिला सन 2003 
वह उत्तरी अमेरिका और यूरोप के साहित्यिक समाजों से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता थीं ये भी पढ़ें 


अदा जाफरी की शायरी-ग़ज़लें-नज़्मे 

1-ग़ज़ल 

एक आईना रू-ब-रू है अभी 

उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी 

वही ख़ाना-ब-दोश उम्मीदें 

वही बे-सब्र दिल की ख़ू है अभी 

दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं 

तेरी आवाज़ और तू है अभी 

ज़िंदगी की तरह ख़िराज-तलब 

कोई दरमाँदा आरज़ू है अभी 

बोलते हैं दिलों के सन्नाटे 

शोर सा ये जो चार-सू है अभी 

ज़र्द पत्तों को ले गई है हवा 

शाख़ में शिद्दत-ए-नुमू है अभी 

वर्ना इंसान मर गया होता 

कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी 

हम-सफ़र भी हैं रहगुज़र भी है 

ये मुसाफ़िर ही कू-ब-कू है अभी 


2-ग़ज़ल 

वैसे ही ख़याल आ गया है 

या दिल में मलाल आ गया है 

आँसू जो रुका वो किश्त-ए-जाँ में 

बारिश की मिसाल आ गया है 

ग़म को न ज़ियाँ कहो कि दिल में 

इक साहिब-ए-हाल आ गया है 

जुगनू ही सही फ़सील-ए-शब में 

आईना-ख़िसाल आ गया है 

आ देख कि मेरे आँसुओं में 

ये किस का जमाल आ गया है 

मुद्दत हुई कुछ न देखने का 

आँखों को कमाल आ गया है 

मैं कितने हिसार तोड़ आई 

जीना था मुहाल आ गया है 


1 -नज़्म 

मुद्दतों बा'द आई हो तुम 

और तुम्हें इतनी फ़ुर्सत कहाँ 

अन-कहे हर्फ़ भी सुन सको 

आरज़ू की वो तहरीर भी पढ़ सको 

जो अभी तक लिखी ही नहीं जा सकी 

इतनी मोहलत कहाँ 

मेरे बाग़ों में जो खिल न पाए अभी 

उन शगूफ़ों की बातें करो 

दर्द ही बाँट लो 

मेरे किन माहताबों से तुम मिल सकीं 

कितनी आँखों के ख़्वाबों से तुम मिल सकीं 

हाँ तुम्हारी निगाह-ए-सताइश ने 

घर की सब आराइशें देख लीं 

तन की आसाइशें देख लीं 

मेरे दिल में जो पैकाँ तराज़ू हुए 

तुम को भी 

लाला-ओ-गुल के बे-साख़्ता इस्तिआ'रे लगे 


2 -नज़्म 

एक मौहूम इज़्तिराब सा है 

इक तलातुम सा पेच-ओ-ताब सा है 

उमडे आते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद आँसू 

दिल पे क़ाबू न आँख पर क़ाबू 

दिल में इक दर्द मीठा मीठा सा 

रंग चेहरे का फीका फीका सा 

ज़ुल्फ़ बिखरी हुई परेशाँ-हाल 

आप ही आप जी हुआ है निढाल 

सीने में इक चुभन सी होती है 

आँखों में क्यूँ जलन सी होती है 

सर में पिन्हाँ तसव्वुर-ए-मौहूम 

हाए ये आरज़ू-ए-ना-मालूम 

एक नाला सा है बग़ैर आवाज़ 

एक हलचल सी है न सोज़ न साज़ 

क्यूँ ये हालत है बे-क़रारी की 

साँस भी खुल के आ नहीं सकती 

रूह में इंतिशार सा क्या है 

दिल को ये इंतिज़ार सा क्या है 

Conclusion:-

अदा जाफरी एक महान शायरा थी। उनकी शायरी ने समाज में जागरूकता और समानता को बढ़ावा दिया। उनकी अदबी खिदमात ने उर्दू को, हिंदुस्तान और पाकिस्तानी शायरी को नई दिशा दी और उन्हें एक यादगार स्थान मिला। उनकी शायरी आज भी पढ़ने वालों को प्रेरित करती हैं और उन्हें एक शानदार शायरा  के रूप में याद किया जाता रहेगा,अदा जाफरी आसमान-ए-शायरी में रौशन जगमगाते सितारे की तरह हमेशा हमारे दिलों को रोशन करती रहेंगी ये भी पढ़ें 
















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