कैफ़ी आज़मी Biography and shayari

कैफ़ी आज़मी का जन्म 14 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव मिजवाँ में हुआ था। उनका पूरा नाम सैय्यद अख्तर हुसैन रिज़वी था, लेकिन वे अपने कलमी नाम कैफ़ी आज़मी से प्रसिद्ध हुए। उनके पिता सैय्यद फ़तेह हुसैन रिज़वी एक धार्मिक विद्वान थे, जिन्होंने अपने बेटे को प्रारंभिक शिक्षा फारसी और उर्दू में दिलवाई।


कैफ़ी ने ग्यारह साल की उम्र में अपनी पहली ग़ज़ल "इतना तो ज़िंदगी में किसी की खलल पड़े" लिखी थी। इस ग़ज़ल को मशहूर ग़ज़ल गायिका बेगम अख्तर ने अपनी आवाज़ दी और इसे अमर बना दिया। हालांकि, उनकी औपचारिक शिक्षा ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई। उन्होंने फारसी और उर्दू की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया और 1943 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया की सदस्यता स्वीकार कर लीये भी पढ़ें

कैफ़ी आज़मी की जीवनी

पूरा नाम: सैय्यद अख्तर हुसैन रिज़वी
कलमी नाम: कैफ़ी आज़मी
जन्म: 14 जनवरी 1919
मृत्यु: 10 मई 2002
राष्ट्रीयता: भारतीय
भाषा: उर्दू
पत्नी: शौकत आज़मी
संतान: शबाना आज़मी, बाबा आज़मी

शायरी और  साहित्यिक योगदान

कैफी आज़मी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की। उनकी प्रमुख रचनाओं में "आवारा सजदे", "इंकार", और "आख़िरे-शब" शामिल हैं। उनके काव्य संग्रहों में "झंकार", "आखिरी ग़ज़ल", और "सरमाया" प्रमुख हैं। उनकी कविताओं में प्रेम, रोमांस और सामाजिक मुद्दों का अनूठा संगम देखने को मिलता है।

उनकी कविता "औरत" नारी स्वतंत्रता और सशक्तिकरण की सशक्त आवाज़ है। उन्होंने अपने लेखन में हमेशा समाज की कमजोरियों और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनकी कविताओं में मानवीय संवेदनाओं की गहराई और सामाजिक मुद्दों की गंभीरता स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

कैफी आज़मी का प्रारंभिक जीवन मिजवां गांव में बीता, जहां उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई। उन्हें कविताओं और ग़ज़लों का शौक बचपन से ही था। मात्र 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली ग़ज़ल "इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़े" लिखी, जिसे बाद में प्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका बेगम अख्तर ने गाया और इस ग़ज़ल ने उन्हें पहचान दिलाई।

कैरियर की शुरुआत

कैफी आज़मी ने 1943 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ग्रहण की और मुंबई चले गए। मुंबई में उन्होंने 'मजदूर मोहल्ला' नामक उर्दू पत्रिका का संपादन किया। इस दौरान उन्होंने अपनी लेखनी को समाज के मुद्दों पर केंद्रित किया और सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया।

विवाह और परिवार

कैफी आज़मी का विवाह मई 1947 में शौकत आज़मी से हुआ। शौकत आज़मी भी साहित्यिक परिवेश से थीं और उन्होंने कैफी के लेखन को बेहद सराहा। इस दंपत्ति के दो संतानें हुईं - बेटी शबाना आज़मी और बेटा बाबा आज़मी। शबाना आज़मी एक प्रतिष्ठित बॉलीवुड अभिनेत्री बनीं, जबकि बाबा आज़मी एक प्रमुख सिनेमेटोग्राफर बने।

फिल्मी करियर

कैफी आज़मी ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण हिंदी फिल्मों के लिए गीत और पटकथाएं लिखी। उनकी पहली फिल्म "बुज़दिल" (1951) थी। उन्होंने "कागज़ के फूल" (1959) और "हक़ीकत" (1964) जैसी फिल्मों के लिए यादगार गीत लिखे। उनकी अन्य प्रमुख फिल्में "कोहरा" (1964), "अनुपमा" (1966), "सात हिंदुस्तानी" (1969), "शोला और शबनम" (1971), "पाकीज़ा" (1972), "अर्थ" (1982), और "रज़िया सुल्तान" (1983) हैं।



मिजवां का विकास

1973 में ब्रेन हेमरेज के कारण कैफी आज़मी का बायां हाथ और पैर पैरालाइज हो गया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने गांव मिजवां में बसने का निर्णय लिया। मिजवां एक पिछड़ा हुआ गांव था, लेकिन कैफी आज़मी की मेहनत और प्रयासों से यह गांव विकास की दिशा में आगे बढ़ा। उन्होंने मिजवां वेलफेयर सोसाइटी की स्थापना की, जो महिलाओं और बालिकाओं के सशक्तिकरण पर केंद्रित है। आज मिजवां अपने विकास कार्यों के लिए विश्वभर में जाना जाता है।ये भी पढ़ें



पुरस्कार और सम्मान

कैफी आज़मी को उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिले।

निधन 

10 मई 2002 को कैफी आज़मी का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी कविताएं और ग़ज़लें लोगों के दिलों में जीवित हैं। उनका योगदान उर्दू साहित्य और भारतीय सिनेमा में अमूल्य है।

कैफी आज़मी ने अपने जीवन में जो कुछ भी लिखा और किया, वह उनके अद्वितीय व्यक्तित्व और उनके विचारों का प्रतिबिंब है। उनका जीवन और उनका साहित्य हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी किस प्रकार से समाज के लिए योगदान दिया जा सकता है और अपने सपनों को साकार किया जा सकता है।

कैफ़ी आज़मी की शायरी,ग़ज़लें 

1 - ग़ज़ल 

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो 

क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो 

आँखों में नमी हँसी लबों पर 

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो 

बन जाएँगे ज़हर पीते पीते 

ये अश्क जो पीते जा रहे हो 

जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है 

तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो 

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर 

रेखाओं से मात खा रहे हो 

2 - ग़ज़ल 

इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े 

हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े 

जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क 

यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े 

इक तुम कि तुम को फ़िक्र ए नशेब ओ फ़राज़ है 

इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े 

साक़ी सभी को है ग़म ए तिश्ना लबी मगर 

मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े 

3 - ग़ज़ल 

झुकी झुकी सी नज़र बे क़रार है कि नहीं 

दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं 

तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता 

मिरी तरह तिरा दिल बे क़रार है कि नहीं 

वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है 

उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं 

तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को 

तुझे भी अपने पे ये ए'तिबार है कि नहीं 

4 - नज़्म 

आवरा सजदे 

इक यही सोज़ ए निहाँ कुल मिरा सरमाया है 

दोस्तो मैं किसे ये सोज़ए निहाँ नज़्र करूँ 

कोई क़ातिल सर ए मक़्तल नज़र आता ही नहीं 

किस को दिल नज़्र करूँ और किसे जाँ नज़्र करूँ 

तुम भी महबूब मिरे, तुम भी हो दिलदार मिरे 

आशना मुझ से मगर तुम भी नहीं, तुम भी नहीं 

ख़त्म है तुम पे मसीहा नफ़सी  चारागरी 

महरम ए दर्द ए जिगर तुम भी नहीं तुम भी नहीं 

अपनी लाश आप उठाना कोई आसान नहीं 

दस्त ओ बाज़ू मिरे नाकारा हुए जाते हैं 

जिन से हर दौर में चमकी है तुम्हारी दहलीज़ 

आज सज्दे वही आवारा हुए जाते हैं 

दर्द ए मंज़िल थी, मगर ऐसी भी कुछ दूर न थी 

ले के फिरती रही रस्ते ही में वहशत मुझ को 

एक ज़ख़्म ऐसा न खाया कि बहार आ जाती 

दार तक ले के गया शौक़ ए शहादत मुझ को 

राह में टूट गए पाँव तो मालूम हुआ 

जुज़ मिरे और मिरा राह नुमा कोई नहीं 

एक के बाद  ख़ुदा एक चला आता था 

कह दिया अक़्ल ने तंग आ के ख़ुदा कोई नहीं

Concliusion:-

कैफ़ी आज़मी न केवल एक महान कवि और गीतकार थे, बल्कि एक सच्चे समाज सेवक भी थे। उन्होंने अपने जीवन को अपने सिद्धांतों के अनुसार जिया और अपने कार्यों के माध्यम से समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। उनकी कविताओं और गीतों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक मुद्दों को उठाया और समाज को जागरूक किया। उनकी साहित्यिक और सामाजिक योगदानों के कारण उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उनके जीवन और कार्यों से हमें यह सीख मिलती है कि कैसे हम अपने समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और अपने आस-पास के लोगों की मदद कर सकते हैं। कैफ़ी आज़मी का जीवन एक प्रेरणास्त्रोत है और उनके कार्य हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।ये भी पढ़ें


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