अमृता प्रीतम (1919-2005) भारतीय साहित्य और कविता की एक प्रतिष्ठित हस्ती थीं, जिन्हें 20वीं सदी की पहली प्रमुख महिला पंजाबी लेखिका माना जाता है। उनके कार्यों ने भारत और पाकिस्तान दोनों में गहरी छाप छोड़ी। अपने छह दशकों के शानदार करियर में, अमृता ने 100 से अधिक किताबे लिखीं, जिनमें कविता, उपन्यास, निबंध और जीवनी शामिल हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ और पद्म विभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनका प्रसिद्ध उपन्यास "पिंजर" एक फिल्म में भी रूपांतरित हुआ। अमृता को उनके मार्मिक कविता "अज्ज आक्खां वारिस शाह नूँ" के लिए भी याद किया जाता है।
बचपन और प्रारंभिक जीवन
अमृता प्रीतम का जन्म अमृत कौर के रूप में 31 अगस्त 1919 को गुज़रांवाला, पंजाब (तत्कालीन ब्रिटिश भारत) में हुआ था। उनके पिता करतार सिंह हितकारी एक साहित्यिक पत्रिका के संपादक और प्रतिष्ठित उपदेशक थे, जबकि उनकी माँ राज बिबी एक स्कूल शिक्षिका थीं। 11 साल की उम्र में अपनी माँ के निधन ने अमृता को गहराई से प्रभावित किया और उन्होंने भगवान में विश्वास खो दिया। अपनी माँ की मृत्यु के बाद, वे अपने पिता के साथ लाहौर चली गईं और लिखने में सांत्वना पाई। 17 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला कविता संग्रह "अमृत लहरें" (अमर तरंगें) प्रकाशित किया।
1936 से 1943 के बीच उन्होंने छह और कविता संग्रह प्रकाशित किए। प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़कर, उन्होंने ब्रिटिश राज और 1943 के बंगाल अकाल की आलोचना करते हुए "लोक पीड़" (1944) जैसी कृतियाँ लिखीं।
करियर और प्रमुख कार्य
अमृता का साहित्यिक करियर उनकी निर्भीकता और विवादास्पद विषयों पर लिखने की साहसिकता से चिह्नित था। विभाजन से पहले उन्होंने लाहौर रेडियो स्टेशन पर कुछ समय के लिए काम किया। विभाजन के बाद, वे भारत आ गईं और अपनी लेखनी जारी रखी।
उनके कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं
उपन्यास: "पंज बरस लंबी सड़क," "पिंजर," "अदालत," "कोरे कागज़," "उनचास दिन," "सागर और सीपियाँ"
आत्मकथा: "रसीदी टिकट"
कहानी संग्रह: "कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं," "कहानियों के आँगन में"
संस्मरण: "कच्चा आँगन," "एक थी सारा"
उनका प्रसिद्ध उपन्यास "पिंजर" (1950) विभाजन और उसके प्रभावों पर आधारित है। "रसीदी टिकट" में उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन और संघर्षों का खुलासा किया।
पुरस्कार और सम्मान
अपने करियर के दौरान, अमृता को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया:
पंजाब रत्न पुरस्कार: साहित्य में योगदान के लिए पहला प्राप्तकर्ता।
साहित्य अकादमी पुरस्कार: 1956 में कविता "सुनहरे" (संदेश) के लिए पहली महिला पुरस्कार विजेता।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार: 1982 में "कागज़ ते कैनवास" के लिए।
साहित्य अकादमी फेलोशिप: 2004 में।
मानद उपाधियाँ: 1973 में जबलपुर विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय से डी.लिट। 1987 में विश्व भारती विश्वविद्यालय से।
अंतरराष्ट्रीय सम्मान: 1979 में वप्सारोव पुरस्कार (बुल्गारिया) और 1987 में ऑर्ड्रे डेस आर्ट्स एट डेस लेट्रेस (फ्रांस)।
पद्म पुरस्कार: 1969 में पद्म श्री और 2004 में पद्म विभूषण।
व्यक्तिगत जीवन
अमृता का विवाह 1935 में लाहौर के एक धनी व्यापारी के पुत्र प्रीतम सिंह से हुआ। हालांकि, उनका विवाह असफल रहा। 1944 में, उन्होंने साथी कवि साहिर लुधियानवी से मुलाकात की और उनके प्रति आकर्षित हो गईं। 1960 में उन्होंने अपने पति को छोड़ दिया। बाद में, उन्हें इमरोज़ नामक एक कलाकार और लेखक में प्रेम मिला। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया, लेकिन चार दशकों से अधिक समय तक साथ रहे। इमरोज़ ने उनकी सभी किताबों के कवर डिज़ाइन किए।
साहिर लुधियानवी के साथ प्रेम
अमृता का प्रेम साहिर लुधियानवी के साथ शुरू हुआ, जो उर्दू के एक मशहूर शायर थे। उनकी कविताएँ और गीत अमृता के दिल में गहरे उतर गए। साहिर के प्रति उनका प्रेम गहरा और भावुक था। साहिर के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए, अमृता ने लिखा, "मैंने साहिर को नहीं देखा, लेकिन उसकी आवाज़ मेरी रूह में बस गई
Amrita Singh and Sahir Ludhiyanvi Love Story
लेकिन साहिर और अमृता का रिश्ता कभी औपचारिक नहीं हो पाया। साहिर के व्यक्तिगत जीवन के उलझनों और उनकी अलग-अलग प्राथमिकताओं के कारण, उनका प्रेम एक अधूरा सपना बनकर रह गया। फिर भी, साहिर के प्रति उनका प्रेम कभी कम नहीं हुआ और उनकी कविताओं में हमेशा जीवित रहा।
Amrita Singh in Golden Age
इमरोज़ के साथ जीवन
इमरोज़, एक चित्रकार और कवि, अमृता की ज़िंदगी में तब आए जब उनका दिल साहिर की अधूरी मोहब्बत से टूटा हुआ था। इमरोज़ के साथ अमृता का रिश्ता प्रेम और समर्पण का था। वे एक-दूसरे के प्रति बहुत ईमानदार थे और उनका संबंध बिना किसी शर्त के था। इमरोज़ ने अमृता के जीवन में एक स्थायित्व और सुख का अनुभव कराया।
इमरोज़ और अमृता का रिश्ता समाज की परवाह किए बिना खुलकर जीया गया। वे बिना विवाह के एक साथ रहते थे, और इमरोज़ ने हमेशा अमृता का समर्थन किया, चाहे वह उनके साहित्यिक कार्य हों या उनकी व्यक्तिगत संघर्ष। इमरोज़ ने अपनी कविताओं और चित्रों के माध्यम से अमृता के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया।ये भी पढ़ें
Amrita Pritam and Imroz
त्रिकोणीय प्रेम
साहिर, इमरोज़ और अमृता का रिश्ता एक अनोखा त्रिकोण था। इमरोज़ ने कभी साहिर के प्रति अमृता के प्रेम को नहीं रोका, बल्कि उसे सम्मान दिया। इमरोज़ ने साहिर की तस्वीर अपने कमरे में रखी और कहा, "जिस व्यक्ति ने अमृता से प्रेम किया, वह मेरे लिए भी प्रिय है।" यह एक अनोखा और सहनशीलता का उदाहरण था, जो शायद ही कहीं और देखने को मिलता है।
विरासत
अमृता की विरासत उनके 28 उपन्यासों, 18 गद्य संग्रहों, 16 गद्य खंडों और पाँच कहानी संग्रहों में सजीव है। उनकी कई रचनाएँ फिल्मों में रूपांतरित हुईं और उनकी कविताएँ आज भी प्रेरणा देती हैं।
FAQ'S
Q-1:
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Q-3:
अमृता प्रीतम की शायरी,ग़ज़लें,नज़्मे
1 - कविता
मैं तुम्हें फिर मिलूँगी
कहाँ? किस तरह? नहीं जानती
शायद तुम्हारे तख़्ईल की चिंगारी बन कर
तुम्हारी कैनवस पर उतरूँगी
या शायद तुम्हारी कैनवस के ऊपर
एक रहस्यमय रेखा बन कर
ख़ामोश तुम्हें देखती रहूँगी
या शायद सूरज की किरन बन कर
तुम्हारे रंगों में घुलूँगी
या रंगों की बाँहों में बैठ कर
तुम्हारे कैनवस को
पता नहीं कैसे-कहाँ?
पर तुम्हें ज़रूर मिलूँगी
या शायद एक चश्मा बनी होऊँगी
और जैसे झरनों का पानी उड़ता है
मैं पानी की बूँदें
तुम्हारे जिस्म पर मलूँगी
और एक ठंडक-सी बन कर
तुम्हारे सीने के साथ लिपटूँगी…
मैं और कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक़्त जो भी करेगा
इस जन्म मेरे साथ चलेगा…
यह जिस्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर चेतना के धागे
कायनाती कणों के होते हैं
मैं उन कणों को चुनूँगी
धागों को लपेटूँगी
और तुम्हें मैं फिर मिलूँगी…
कहाँ? किस तरह? नहीं जानती
शायद तुम्हारे तख़्ईल की चिंगारी बन कर
तुम्हारी कैनवस पर उतरूँगी
या शायद तुम्हारी कैनवस के ऊपर
एक रहस्यमय रेखा बन कर
ख़ामोश तुम्हें देखती रहूँगी
या शायद सूरज की किरन बन कर
तुम्हारे रंगों में घुलूँगी
या रंगों की बाँहों में बैठ कर
तुम्हारे कैनवस को
पता नहीं कैसे-कहाँ?
पर तुम्हें ज़रूर मिलूँगी
या शायद एक चश्मा बनी होऊँगी
और जैसे झरनों का पानी उड़ता है
मैं पानी की बूँदें
तुम्हारे जिस्म पर मलूँगी
और एक ठंडक-सी बन कर
तुम्हारे सीने के साथ लिपटूँगी…
मैं और कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक़्त जो भी करेगा
इस जन्म मेरे साथ चलेगा…
यह जिस्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर चेतना के धागे
कायनाती कणों के होते हैं
मैं उन कणों को चुनूँगी
धागों को लपेटूँगी
और तुम्हें मैं फिर मिलूँगी…
2 - कविता
आज मैं ने अपने घर का नंबर मिटा दिया है
और गुल की पेशानी पर सब्त गुल का नाम हटा दिया है
हर सड़क की सम्त का नाम पोंछ दिया है
अगर मुझे ढूँढना चाहो
तो हर मुल्क के हर शहर की गली का
दरवाज़ा खटखटाओ
ये एक कलिमा-ए-ख़ैर है बाइस ए शर है
जहाँ भी इक आज़ाद रूह की झलक दिखाई दे
समझना वो मेरा घर है
3 - कविता
कई बरस बाद अचानक एक मुलाक़ात
और दोनों की हस्ती इक नज़्म की तरह काँपी
सामने पूरी रात थी
मगर आधी नज़्म एक गोशे में आवेज़ाँ रही
सुब्ह हुई तो हम फटे हुए काग़ज़ के टुकड़ों की तरह मिले
मैं ने अपने हाथ में उस का हाथ थामा
उस ने अपनी बाँह में मेरी बाँह डाली
फिर हम दोनों सेंसर की तरह हँसे
और काग़ज़ को ठंडी मेज़ पर रख कर
सारी नज़्म पर एक लकीर फेर दी
Conclusion:-
अमृता प्रीतम एक महान कवयित्री थीं। उनका साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्य में अद्वितीय और अमूल्य है। उनकी कविताओं और कहानियों ने प्रेम, पीड़ा, और सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों को गहराई से अभिव्यक्त किया। उनके लेखन में संवेदनशीलता, सच्चाई और मानवीय अनुभवों की गहरी समझ झलकती है, जिसने उन्हें साहित्य जगत में एक विशिष्ट स्थान दिलाया। अमृता प्रीतम का नाम हमेशा महान कवयित्रियों में शामिल रहेगा और उनकी रचनाएँ आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।ये भी पढ़ें