उर्दू अदब (साहित्य) और हिंदी साहित्य की शायरी को पसंद करने वाले लोग आज भारत में करोड़ों की संख्या में मौजूद हैं। बड़े बड़े दानिशवर, प्रोफेसर, मोटिवेशनल स्पीकर, राजनेता और तमाम अहम शख्सियात (विशिष्ट व्यक्तित्व) अपनी बात को वज़नदार बनाने के लिए उम्दा और मयारी शेर अपनी स्पीच में शामिल करते हैं। यहाँ तक कि फिल्म इंडस्ट्री में कोई भी बड़ी ऐसी पर्सनालिटी नहीं है जिसे बेहतरीन शायरी याद न रहती हो या वो अपनी बात को दमदार तरीके से रखने के लिए बेहतरीन शेर इस्तेमाल न करते हों। शायरी से मोहब्बत करने वाले उम्दा शेर अपने ख़ज़ाने में जमा करने वाले तमाम लोगों के लिए हम यहाँ कुछ चुनिंदा और मयारी शेर आपके लिए लाए हैं, मुलाहिज़ा फ़रमाएँ।
तो लीजिये पेश हैं चुनिंदा और मयारी शेर
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
निदा फ़ाज़ली
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी
कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
परवीन शाकिर
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है
खुमार बाराबंकवी
तेरे आने की जब ख़बर महके
तेरी ख़ुशबू से सारा घर महके
अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते हैं दाम अक्सर
न बिकने का इरादा हो तो क़ीमत और बढ़ती है
वो रुला कर हँस न पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
फ़ुज़ूल तेज़ हवाओं को दोश देता है
उसे चराग़ जलाने का हौसला कम है
डॉ नवाज़ देवबंदी
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने एतिबार किया
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
कोई कहता था समुंदर हूँ मैं
और मिरी जेब में क़तरा भी नहीं
बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए
इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए
आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं
तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं
मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के
ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है
इल्ज़ाम आइनों पे लगाना फ़ुज़ूल है
जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है
उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
आपका मुहब्बतों तहे दिल से शुक्रिया
शायरी अपनी बात कहने का खूबसूरत और दमदार तरीका है। कुछ अशआर ऐसे होते हैं जो आपके जज़्बात से जुड़े होते हैं, या जिनमें आपको अपनी ही बात कही गई लगती है। "मयारी शेर" कॉलम में हम चुनिंदा और मयारी शेर आपकी खिदमत में पेश करने की कोशिश करेंगे। शायरी से शग़फ़ रखने वाले तमाम दोस्तों से निवेदन है कि अगर आपको मेरी पोस्ट पसंद आ रही हैं, तो कृपया पोस्ट के लिंक को अपने सोशल मीडिया वाल पर शेयर करें। कोई भी सुझाव या तन्क़ीद हो तो हमें कमेंट करके बताएं, आपका स्वागत है।
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